दोहा पंचक. . . रोटी

दोहा पंचक. . . रोटी

सूझ-बूझ ईमान सब, कहने की है बात ।
क्षुधित उदर के सामने , फीके सब जज्बात ।।

मुफलिस को हरदम लगे, लम्बी भूखी रात ।
रोटी हो जो सामने, लगता मधुर प्रभात ।।

जब तक तन में साँस है, चले क्षुधा से जंग ।
बिन रोटी फीके लगें, जीवन के सब रंग ।।

मान-प्रतिष्ठा से बड़ी, उदर क्षुधा की बात ।
रोटी के मोहताज हैं, जीवन के हालात ।।

स्वप्न देखता रात -दिन, रोटी के ही दीन ।
इसी जुगत में दीन यह , हरदम रहता लीन ।।

सुशील सरना / 25-12-24

मौलिक एवं अप्रकाशित 

  • लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

    आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे रचे हैं। हार्दिक बधाई।

  • Sushil Sarna

    आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी