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मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
मगर सँभल के रह-ए-ज़ीस्त से गुज़रना है
मैं देखता हूँ तुझे भी वो सब दिखाई दे
मुझे कभी न कोई ऐसा शग्ल करना है
नज़ारा कोई दिखा दे ये शब तो वक्त कटे
इसी के साथ सहर होने तक ठहरना है
न जाने कितने मराहिल हैं ज़ह'न में मेरे
कोई ये काश बता दे कहाँ उतरना है
ये दिल भी देखता है बारहा वही सपने
ज़मीं पे आके बिल-आखिर जिन्हें बिखरना है
उन्हें उजालों से तकलीफ़ होती है ऐ दोस्त
जिन्हें अँधेरों से अपना जहान भरना है
उन्हें चमन से न फूलों से है कोई रग़बत
मगर मुझे यूँ न सहराओं में विचरना है
- मौलिक, अप्रकाशित
सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी
आदरणीय शिज्जु भाई , क्या बात है , बहुत अरसे बाद आपकी ग़ज़ल पढ़ा रहा हूँ , आपने खूब उन्नति की है हार्दिक बधाई
पूरी ग़ज़ल बेहतरीन हुई है , एक एक शेर के लिए बधाई आपको
May 2
सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey
भाई शिज्जू जी, क्या ही कमाल के अश’आर निकाले हैं आपने. वाह वाह ...
किस एक की बात करूँ ..
मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
मगर सँभल के रह-ए-ज़ीस्त से गुज़रना है .... क्या सतर्कता है, भाई ! .. बहुत खूब
मैं देखता हूँ तुझे भी वो सब दिखाई दे
मुझे कभी न कोई ऐसा शग्ल करना है .. वाह वाह वाह ! अब ये समझा आप इतने सटीक, मतलब, इतने प्वाइंटेड कैसे हैं.. जय हो. :-)).
नज़ारा कोई दिखा दे ये शब तो वक्त कटे
इसी के साथ सहर होने तक ठहरना है .....ये मजबूरी है या उपलब्धि ! .. अच्छा खयाल है.
न जाने कितने मराहिल हैं ज़ह'न में मेरे
कोई ये काश बता दे कहाँ उतरना है ... मिसरा-ए- सानी को तनिक समय दें. या हो सकता है, मुझे ही बहुत स्पष्ट नहीं हो पाया..
ये दिल भी देखता है बारहा वही सपने
ज़मीं पे आके बिल-आखिर जिन्हें बिखरना है .. वाह !.कितनी सहजता से आपने मानवीय जीवन के सातत्य को व्याख्यायित किया है.
उन्हें उजालों से तकलीफ़ होती है ऐ दोस्त
जिन्हें अँधेरों से अपना जहान भरना है ... सही है, नकारात्मकता चाहे किसी छद्म में हो, स्वीकार्य नहीं ःऐ.
उन्हें चमन से न फूलों से है कोई रग़बत
मगर मुझे यूँ न सहराओं में विचरना है ... मगर मुझे न यूँ सहराओं में विचरना है ..मिसरे का यह विन्यास अधिक प्रवहमान हो रहा है.
इस प्रस्तुति पर दिल से दाद कह रहा हूँ.
शुभ-शुभ
May 2
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी
आदरणीय शिज्जु "शकूर" जी आदाब अच्छी ग़ज़ल हुई है मुबारकबाद पेश करता हूँ, कुछ सुझाव पेश करने की जसारत कर रहा हूँ -
न जाने कितने मराहिल हैं ज़ह'न में मेरे
ये जानता ही नहीं हूँ कहाँ ठहरना है
उन्हें उजालों से तकलीफ़ हो रही होगी
जिन्हें अँधेरों से अपना जहान भरना है
उन्हें चमन से न फूलों से है कोई रग़बत
मगर किसी का यहाँ इंतज़ार करना है
May 3
सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey
आदरणीय अमीरुद्दीन साहब, आपने जो सुझाव बताए हैं वे वस्तुतः गजल को लेकर आपकी समृद्ध समझ और आपके अनुभवों का परिचायक हैं. भाई शिज्जू जी, इन सुझावों के बरअक्स आपनी राय दें और अपने अनुसार और कुछ कहें, तो यह गजल और निखर जाएगी.
शुभ-शुभ
May 3
Nilesh Shevgaonkar
आ. शिज्जू भाई,
एक लम्बे अंतराल के बाद आपकी ग़ज़ल पढ़ रहा हूँ..
बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है.
मैं देखता हूँ तुझे भी वो सब दिखाई दे
मुझे कभी न कोई ऐसा शग्ल करना है.. इस शेर तक मैं पहुँच नहीं पा रहा हूँ.. शाम को फोन पर समझने का प्रयास करूँगा .
ग़ज़ल के लिए बधाई
May 3
Sushil Sarna
आदरणीय जी इस दिलकश ग़ज़ल के लिए दिल से मुबारकबाद सर
May 3
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी
आदरणीय सौरभ सर, मैं इस क़ाबिल तो नहीं... ये आपकी ज़र्रा नवाज़ी है। सादर।
May 3
सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर"
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी, ग़ज़ल को समय देने एवं उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए आपका हार्दिक आभार
May 4
सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर"
आदरणीय सौरभ सर,
ग़ज़ल पर विस्तृत टिप्पणी एवं सुझावों के लिए हार्दिक आभार। आपकी प्रतिक्रिया हमेशा उत्साहित करती है। आपने जिस मिसरे को रेखांकित किया है, उसे यूँ बदला है।
//न जाने कितने मराहिल हैं ज़ह'न में मेरे
मैं उलझनों में हूँ मुझको कहाँ ठहरना है//
मुझे लग रहा है कि उतरना शब्द के कारण कन्फ़्यूज़न की स्थिति बनी, उसका उपयोग एक खास कारण से किया था, मगर बताना पढ़ रहा है तो मैं मानता हूँ कि शे'र कमज़ोर है। दूसरा मिसरा आपके सुझाव के अनुरूप बदल लिया है।
उन्हें चमन से न फूलों से है कोई रग़बत
मगर मुझे न यूँ सहराओं में विचरना है
May 4
सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर"
मोहतरम अमीरुद्दीन अमीर 'बागपतवी' साहिब बहुत शुक्रिया। उस शे'र में 'उतरना' शब्द ख़ास मक़सद से लिया था। बहरहाल, तरमीम कर लिया है, गौर फरमाइएगा
//न जाने कितने मराहिल हैं ज़ह'न में मेरे
मैं उलझनों में हूँ मुझको कहाँ ठहरना है//
/उन्हें उजालों से तकलीफ़ हो रही होगी/
सुझाव अच्छा है, मगर माजरत चाहूँगा। यहाँ आपका ख़याल कारण और परिणाम की ओर इशारा कर रहा है और मैं मानसिकता पर बात कर रहा हूँ, इसलिए मैं यहाँ तरमीम नहीं कर रहा। अलबत्ता आपका सुझाव संभालकर रख रहा हूँ। आगे अवश्य काम आएगा।
/मगर किसी का यहाँ इंतज़ार करना है/
आपका सुझाव अच्छा है, शुक्रिया। मगर माजरत चाहूँगा, यहाँ भी आपके और मेरे ख़याल मुख़्तलिफ़ हैं। यहाँ भी मैंने मानसिकता और दृष्टिकोण की बात की है। इसलिए शे'र में आदरणीय सौरभ सर के सुझावानुसार थोड़ा बदलाव किया है।
/उन्हें चमन से न फूलों से है कोई रग़बत
मगर मुझे न यूँ सहराओं में विचरना है/
May 4
सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर"
आदरणीय निलेश भाई,
ग़ज़ल को समय देने के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया। आपके फोन का इंतज़ार है।
May 4
सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर"
आदरणीय सुशील सरना जी उत्सावर्धक शब्दों के लिए आपका बहुत शुक्रिया
May 4