दोहा सप्तक. . . . विविध
कह दूँ मन की बात या, सुनूँ तुम्हारी बात ।
क्या जाने कल वक्त के, कैसे हों हालात ।।
गले लगाकर मौन को, क्यों बैठे चुपचाप ।
आखिर किसकी याद में, अश्क बहाऐं आप ।।
बहुत मचा है आपकी. खामोशी का शोर ।
भीगे किसकी याद से, दो आँखों के कोर ।।
मन मचला जिसके लिए, कब समझा वह पीर ।
बह निकला चुपचाप फिर, विरह व्यथा का नीर ।।
दो दिल अक्सर प्यार में, होते हैं मजबूर ।
कुछ पल चलते साथ फिर, हो जाते वह दूर ।।
कहते हैं मजबूरियाँ, अश्कों के सैलाब ।
किस्मत में क्यों इश्क को, हासिल हुए अजाब ।।
बेदर्दी ने प्यार में, ऐसी दे दी पीर ।
हरदम अब भीगी रहे, आँखों की प्राचीर ।।
सुशील सरना / 1-5-25
मौलिक एवं अप्रकाशित
Ashok Kumar Raktale
आदरणीय सुशील सरना साहब सादर, सभी दोहे सुन्दर रचे हैं आपने. हार्दिक बधाई स्वीकारें. सादर
May 4
Sushil Sarna
आदरणीय अशोक रक्ताले जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय
May 5