दोहा पंचक. . . अपनत्व

दोहा पंचक. . . . .  अपनत्व

अपनों से मिलता नहीं,  अब अपनों सा प्यार ।
बदल गया है  आजकल,  आपस का व्यवहार ।।

अपने छूटे द्वेष में, कल्पित है व्यवहार ।
तनहा जीवन ढूँढता, अपनों का संसार ।।

क्षरण हुआ विश्वास का, बिखर गए संबंध ।
कहीं शून्य में खो  गई, अपनेपन की गंध ।।

तोड़ सको तो तोड़ दो, नफरत की दीवार ।
इसके पीछे है छुपा, अपनों का संसार ।।

आपस में अपनत्व का, उचित नहीं पाखंड ।
रिश्तों को अलगाव का, फिर मिलता है दंड ।।

सुशील सरना / 7-5-25

  1. मौलिक एवं अप्रकाशित 
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  • Sushil Sarna

    परम आदरणीय गिरिराज भंडारी जी एवं सौरभ पाण्डेय जी  इस वार्ता को यहीं समाप्त करना  उचित होगा ।मेरे मन की मैंने कह दी आपने  अपनी कह दी । इस दौरान यदि मेरे शब्दों से किसी वरिष्ठ जन को ठेस पहुँची हो तो बन्दा क्षमा प्रार्थी है । सादर नमन 


  • सदस्य टीम प्रबंधन

    Saurabh Pandey

    आदरणीय सुशील सरनाजी, यदि आप चर्चा की गंभीरता को वाकई समझ रहे हैं तो यह अवश्य ही उचित है, कि संवादो को विराम दिया जाय. अन्यथा मैं भी अपने शब्द वापस लेता हूँ.

    आप संवेदनशील हैं. हम सभी स्वीकारते हैं.

    लेकिन जिस लिहाज में आदरणीय योगराज भाईजी को लेकर, जो इस पटल के सर्वमान्य आदरणीय मुखिया हैं, आपने अपने भाव-शब्द अभिव्यक्त किये हैं वह भी आपसे संयत लिहाज और आवश्यक संवेदना की मांग करता है. आप जब अन्यों, विशेषकर पटल के वरिष्ठों की संवेदना का खयाल करेंगे तो आपको भी अपने जीवन में कभी किसी से कोई परेशानी नहीं होगी.

    आप विगत एक-दो सप्ताहों के अपने संवादों को एक-एक कर देख जायँ. आपको सहज भान होगा, कि मैंने आपको किन-किन बिंदुओं पर कहाँ-कहाँ और कैसे-कैसे सचेत किया है.

    मैं आपकी वरिष्ठता को ससम्मान स्वीकार करता हूँ. लेकिन, आदरणीय गिरिराज भाई, जो इस पटल के वरिष्ठ सदस्य हैं, की सलाह पर आपने जिस अन्यमनस्कता से प्रत्युत्तर दिया है, वह मुझे कहीं अधिक कष्टकर प्रतीत हुआ है. हम आदरणीय गिरिराज भाई का हार्दिक सम्मान करते हैं और उनकी सुगढ़ सलाहों से बार-बार लाभान्वित होते रहे हैं. विश्वास है, आप मेरे कहे का निहितार्थ समझ रहे होंगे.

    आदरणीय, मैं फिर कहूँगा, ओबीओ पटल पर हम सभी की तवील गैर-मौजूदगी यहाँ पटल पर बहुत कुछ बिगाड़ गयी है.

    आइए, हम सब बिना किसी विशेष हील-हवाले के समवेत सुधार हेतु उद्यत हों. हम पारस्परिक सम्मान को व्यवहार में सर्वोच्च स्थान दें, काव्य-कर्म स्वयं सुगढ़ होता जाएगा. 

    इति सिद्धम्

    सादर

  • Sushil Sarna

    आदरणीय सौरभ जी  आपकी नेक सलाह का शुक्रिया । आपके वक्तव्य से फिर यही निचोड़ निकला कि सरना दोषी । खैर जैसी आपकी  इच्छा । सादर नमन