बह्र-ए-मुजतस मुसमन मख़बून महज़ूफ
मुफ़ाइलुन फ़इलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन
1212 1122 1212 112/22
किसे जगा के बताएं उदास हैं कितने
सितारे,चाँद, हवाएं उदास हैं कितने
न कोई आह लबों पे न ही सदा कोई
ख़मोश रात बिताएं उदास हैं कितने
सुदूर सरहदों पे इक ग़ज़ल सिसकती है
ख़ुशी के गीत न गाएं, उदास हैं कितने
क़ज़ा खड़ी है यहीं सामने शिफ़ा लेकर
हमीं न दार पे जाएं, उदास हैं कितने
रखो न ज़ेहन को अय जान कर्ब-आलूदा
न कर्ब-ज़ा ही दिखाएं, उदास हैं कितने
मुझे न बख़्श सकेगा सुकूत-ए-दिल मेरा
भले ही जान से जाएं, उदास हैं कितने
मुझे पता है भली-भाँति ढब उदासी का
मुझे न आप बताएं उदास हैं कितने
रुका न रोकने से 'ब्रज' उदासियों में कोई
जो जा रहे हैं वो जाएं ,उदास हैं कितने
क़ज़ा-मृत्यु,
शिफ़ा-दवा
दार-फाँसी का तख्ता
कर्ब-आलूदा-दुख से भरा हुआ
कर्ब-ज़ा-बेचैनी
सुकूत-ए-दिल-हृदय का सन्नाटा
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार 'ब्रज'
Nilesh Shevgaonkar
आ. बृजेश ब्रज जी,
अच्छी ग़ज़ल हुई है. बधाई स्वीकार करें.
मतले के ऊला में
ये सर्द रात, हवाएं उदास हैं कितने रात और हवा दोनों स्त्रीलिंगी हैं अत: उदास हैं कितनीं आना चाहिए शायद.
शेष शुभ
सादर
May 6
सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी
अनुज बृजेश , पूरी ग़ज़ल बहुत खूबसूरत हुई है , हार्दिक बधाई स्वीकार करें
मतले के उला में मुझे भी संदेह है , लिंग दोष का , आप गुनिजन का इन्तिज़ार कर सकते हैं
May 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
आ. भाई वृजेश जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।
मतले में यदि उन्हें सम्बोधित कर रहे हैं तो "हवाओ" करने से दोष हट जायेगा। यदि इनके उदास होने की बात कर रहे हैं तो जैसे गुणीजन कह रहे हैं क्रिया में लिंग दोष आ रहा है देखिएगा।
May 6
बृजेश कुमार 'ब्रज'
आदरणीय नीलेश जी सर्व प्रथम रचना पटल पे उपस्थिति के लिए आपका हार्दिक आभार....वैसे ये दोष इतना बारीक़ नहीं है कि नज़र न पड़े लेकिन सच यही है कि आपके इंगित करने पे ही ध्यान में आया।
May 7
बृजेश कुमार 'ब्रज'
आदरणीय गिरिराज जी उत्साहवर्धन के लिए आपका बहुत-बहुत आभार और नमन करता हूँ...आपसे आदरणीय नीलेश जी आदरणीय धामी जी से पूर्णतया सहमत हूँ बस थोड़ी उत्सुकता है जिसे पहले कमेंट में लिखा है।
May 7
बृजेश कुमार 'ब्रज'
आदरणीय धामी जी स्नेहिल सलाह के लिए आपका अभिनन्दन और आभार....आपकी सलाह को ध्यान में रखते हुए जल्द ही कुछ सुधार का प्रयास करूँगा।
May 7
सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey
भाई बृजेश जी, आपको ओबीओ के मेल के जरिये इस व्याकरण सम्बन्धी दोष के प्रति अगाह किया था. लेकिन ऐसा लगता है आपने मेल देखा ही नहीं होगा.
प्रयासरत रहें
शुभ-शुभ
May 7
बृजेश कुमार 'ब्रज'
आदरणीय सौरभ सर सादर नमन....दोष तो दोष है उसे स्वीकारने और सुधारने में कोई संकोच नहीं है।
May 7
सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey
ओबीओ का मेल चेक करें
May 7
बृजेश कुमार 'ब्रज'
आदरणीय सौरभ सर ओ बी ओ का मेल वाकई में नहीं देखा माफ़ी चाहता हूँ
आदरणीय नीलेश जी, आ. गिरिराज जी ,आ. धामी जी
मतले को ऐसा कहें तो?
किसे जगा के सुनाएं उदास हैं कितने
ख़मोश रात बिताएं उदास हैं कितने
May 7
सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी
अनुज बृजेश
किसे जगा के सुनाएं उदास हैं कितने
ख़मोश रात बिताएं उदास हैं कितने ... ठीक लग रहा है , मुझे भी एक हल सूझ है , अगर ठीक लगे तो
किसे जगा के सुनाएं उदास हैं कितने
हमी को हम ही बताएं उदास हैं कितने --- अगर जो आप कहना चाहते हैं उसके करीब लगे तो विचार कर सकते हैं
May 7
सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey
आपने जो सुधार किया है, वह उचित है, भाई बृजेश जी।
किसे जगा के सुनाएं उदास हैं कितने
ख़मोश रात बिताएं उदास हैं कितने
साथ ही, यह सोचने-विचारने के लिए कुछ और आयाम भी प्रशस्त करता दीख रहा है। जैसे, उला-सानी मिसरे को, देखिए, यदि जक्स्टापोज किया जाय -
खमोश पल ये बताएँ, उदास हैं कितने
मगर कहाँ ये सुनाएँ, उदास हैं कितने
अर्थात, इस पर काम करते रहें, जबतक कि सर्वमान्य मिसरे और आश्वस्तिकारी मतला हो नहीं जाता
शुभ-शुभ
May 7
Nilesh Shevgaonkar
बिरह में किस को बताएं उदास हैं कितने
किसे जगा के सुनाएं उदास हैं कितने
सादर
May 8
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी
आदरणीय जज़्बातों से लबरेज़ अच्छी ग़ज़ल हुई है मुबारकबाद पेश करता हूँ। मतले पर अच्छी चर्चा हो रही है, एक विकल्प और सही -
किसे जगा के सुनाएँ उदास हैं कितने
सितारे, चाँद, हवाएँ उदास हैं कितने...
May 8
बृजेश कुमार 'ब्रज'
एक अँधेरा लाख सितारे
May 9