by Sushil Sarna
May 6
दोहा पंचक. . . . . नया जमाना
अपने- अपने ढंग से, अब जीते हैं लोग ।नया जमाना मानता, जीवन को अब भोग ।।
मुक्त आचरण ने दिया, जीवन को वो रूप ।जाने कैसे ढल गई, संस्कारों की धूप ।।
मर्यादा ओझल हुई, सिमट गए परिधान ।नया जमाना मानता, बेशर्मी को शान ।।
सार्वजनिक अश्लीलता, फैली पैर पसार ।नयी सभ्यता ने दिया, खूब इसे विस्तार ।।
निजी पलों का आजकल, नहीं रहा अब मोल ।रहा मौन को देखिए, नया जमाना खोल ।।
सुशील सरना / 6-5-25
मौलिक एवं अप्रकाशित
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दोहा पंचक. . . नया जमाना
by Sushil Sarna
May 6
दोहा पंचक. . . . . नया जमाना
अपने- अपने ढंग से, अब जीते हैं लोग ।
नया जमाना मानता, जीवन को अब भोग ।।
मुक्त आचरण ने दिया, जीवन को वो रूप ।
जाने कैसे ढल गई, संस्कारों की धूप ।।
मर्यादा ओझल हुई, सिमट गए परिधान ।
नया जमाना मानता, बेशर्मी को शान ।।
सार्वजनिक अश्लीलता, फैली पैर पसार ।
नयी सभ्यता ने दिया, खूब इसे विस्तार ।।
निजी पलों का आजकल, नहीं रहा अब मोल ।
रहा मौन को देखिए, नया जमाना खोल ।।
सुशील सरना / 6-5-25
मौलिक एवं अप्रकाशित