ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा

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ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा,
मुझ को बुनने वाला बुनकर ख़ुद ही पगला जाएगा.
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इश्क़ के रस्ते पर चलना है तेरी मर्ज़ी; लेकिन सुन
इस रस्ते को श्राप मिला है राही पगला जाएगा.
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उस के हुनर पर किस को शक़ है लेकिन उस की सोचो तो
ज़ख़्म हमारे सीते सीते दर्ज़ी पगला जाएगा.  
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उस को समुन्दर जैसी छोटी मोटी जगहें भाती हैं
इन आँखों में आएगा तो पानी पगला जाएगा.
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जिससे बदला लूँगा उस को इतना याद करूँगा मैं
मेरे नाम की लेते लेते हिचकी पगला जाएगा.
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दूर ही रहना उस पागल से जिस ने ऐसे शे’र कहे,
वरना उस को सुनते सुनते तू भी पगला जाएगा.
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उस बेचारे कूज़ा-गर की सोच के दिल घबराता है
“नूर” सरीखी पाकर अड़ियल मिट्टी पगला जाएगा.
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निलेश नूर 
मौलिक/ अप्रकाशित 

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  • Nilesh Shevgaonkar

    आ. सौरभ सर,
    आपने मुझे मज़ाक मज़ाक में अब्दुल रज़ाक कर दिया 🤣😂🤣😂🤣😂

  • Nilesh Shevgaonkar

    आभार आ. शिज्जू भाई..
    मंच पर इसी तरह की चर्चा ही उर्जा भर्ती है 
    आभार 

  • Nilesh Shevgaonkar

    आ. सौरभ सर,
    होठों को शहद, रस, जाम आदि तो कई बार देखा सुना था लेकिन पहली बार होंठ पे गमले देखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ..
    आगे होठों पे क्यारी, बौलेवार्ड और खेत भी देखने जल्द ही मिलेंगे.. बस आप काठमांडू जाते रहिये  
    चल चल रे काठ मांडू 
    मिलेंगे  वहां शम्भू 
    😁😁😁😁😁😹😹😹