तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या

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इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या

वैसे भी इस गुफ़्तगू से ज़ख़्म भर जावेंगे क्या

आप आ'ला हैं तो हमको हक़ हमारा दीजिये

आपके रहम-ओ-करम पे जीस्त जी पावेंगे क्या

इल्म का अब हाल ये है सोचते हैं नौजवाँ

डिग्रियाँ लेते रहे यूँ ही तो फिर खावेंगे क्या

आप अपने दर्द की बुनियाद भी तो देखिये

दर्द में ये चारागर कोई कमी लावेंगे क्या

दश्त भी वहशत में आ जाये है हिज़्र ऐसी ख़ला

मयकशी से इस ख़लिश में राहतें पावेंग क्या

ज़िंदगी प्यारी है ग़र तो राह से हट जाईये

ख़ुद से डरते हैं जुनूँ में जाने कर जावेंगे क्या

फिर वही दिल की तमन्ना फिर वही दिल की कशिश

हम उसी ग़लती को अबके फिर से दुहरावेंगे क्या

रास्ता रोके खड़ी हैं जाने कितनी आँधियाँ

आप तो झोका हैं अब झोके से घबरावेंगे क्या

मौलिक व अप्रकाशित

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  • Nilesh Shevgaonkar

    आ. आज़ी तमाम भाई,
    अच्छी ग़ज़ल हुई है .. कुछ शेर और बेहतर हो सकते हैं.
    जैसे 

    इल्म का अब हाल ये है सोचते हैं नौजवाँ

    डिग्रियाँ लेते रहे यूँ ही तो फिर खावेंगे क्या... यहाँ इल्म और डिग्री का खाने से सीधा सम्बन्ध नहीं है .. नौकरी न मिलने का रेफरेंस होना था.
    दश्त भी वहशत में आ जाये है हिज़्र ऐसी ख़ला.. अलिफ़ वस्ल के बाद भी मिसरा अटकता सा लग रहा है 
    दश्त भी वहशत में आए हिज़्र है ऐसी ख़ला
    .
    बस ऐसे ही 
    सादर 
     

  • Aazi Tamaam

    बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय निलेश सर ग़ज़ल पर नज़र ए करम का

    देखिये आदरणीय तीसरे शे'र में सुधार का प्रयास किया है अगर सार्थक हो सका हो तो

    कौन दे है नौकरी सिर्फ़ इल्म की अस्नाद पर

    डिग्रियाँ लेते रहे यूँ ही तो फिर खावेंगे क्या


  • सदस्य टीम प्रबंधन

    Saurabh Pandey

    आदरणीय आजी तमाम भाई, आपकी प्रस्तुति पर आ कर पुरानी हिंदी से आवेंगे-जावेंगे वाले क्रिया-विषेषण से सामना हो रहा है, जिसे अब भाषा छोड़ चुकी है. इनके स्थान पर आएँगे-जाएँगे अब स्वीकार्य और मान्य हो चुके हैं.

     

    फिर, इनका उपयोग दूसरी तरह से आज भी कहीं-कहीं हो जाता है. जब किसी कार्य को अन्य से करवाये जाने की संभावना बनती हो. इस लिहाज से मात्र एक शेर खरा उतरता है - 

    रास्ता रोके खड़ी हैं जाने कितनी आँधियाँ

    आप तो झोका हैं अब झोके से घबरावेंगे क्या ... अर्थात, अर्थ निकलता है, आप झोंके से (हमें) घबरवावेंगे क्या ? 

    प्रयोग किया जाना या अपने हिसाब से नया करने का प्रयास अच्छा है. यह नवाचार का परिचायक भी है. लेकिन मान्य वैन्यासिक गठन के प्रति सचेत रहना अधिक उचित है. 

    फिर, ज़िंदगी प्यारी है ग़र तो राह से हट जाईये ... आप यह ’जाईए’ कहाँ से ले आए ? कहाँ देखा है ? यदि कोई मान्य स्रोत हो तो हमें भी बताइएगा. हम भी जानकार होना चाहेंगे. 

    बहरहाल, इस प्रस्तुति के लिए हार्दिक धन्यवाद ..