२१२२ १२१२ २२/११२
तमतमा कर बकी हुई गाली
कापुरुष है, जता रही गाली
भूल कर माँ-बहन व रिश्तों को
कोई देता है बेतुकी गाली
कुछ नहीं कर सका बुरा मेरा
खीझ उसने उछाल दी गाली
ढंग-व्यवहार के बदलने से
हो गयी विष बुझी वही गाली
कब मुलायम लगी कठिन कब ये
सोचना कब दुलारती गाली
कौन कहिए यहाँ जमाने में
अदबदा कर न दी कभी गाली
नाज से तुम सहेज कर रखना
संस्कारों पली-बढ़ी गाली
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मौलिक व अप्रकाशित
सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey
आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपसे मिले अनुमोदन हेतु आभार
on Saturday
सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी
आदरणीय सौरभ भाई , ' गाली ' जैसी कठिन रदीफ़ को आपने जिस खूबसूरती से निभाया है , काबिले तारीफ़ है , सभी शेर सामयिक और सार्थक लगे , ख़ास कर ये दो शेर ,
कुछ नहीं कर सका बुरा मेरा
खीझ उसने उछाल दी गाली
कब मुलायम लगी कठिन कब ये
सोचना कब दुलारती गाली
ग़ज़ल के लिए आपको हार्दिक बधाईयाँ
yesterday
सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey
प्रस्तुति के अनुमोदन और उत्साहवर्द्धन के लिए आपका आभार, आदरणीय गिरिराज भाईजी.
yesterday