सत्य का प्रहार

अभेद्य है ये दुर्ग अभी न सेंध से प्रहार कर I
बिखेरना है धज्जियां, सत्य का तू वार कर II
                                     प्रहार कर प्रहार कर........
धन की बहुत लालसा  बिके हुए जमीर हैं.
तन के महाराज सभी  मन के ये फ़कीर हैं.
विवश  अब नहीं है तू , देख तो पुकार कर
बिखेरना है धज्जियां, सत्य का तू वार कर II
                                     प्रहार कर प्रहार कर........
                   
कौम अब पुकारती  न और इन्तजार कर,
रक्त से बलिदान के सींचित इस जमीन पर,
मिट सके भेद सभी जीवन को बलिदान कर
बिखेरना है धज्जियां, सत्य का तू वार कर II
                                     प्रहार कर प्रहार कर........

नित शाम ढले भेडिये अब झुण्ड में है आ रहे
नित कृत्य दानवों से करके कौम को लजा रहे
दूध की है लाज तुझे अब सोच ना विचार कर
बिखेरना है धज्जियां, सत्य का तू वार कर II
                                     प्रहार कर प्रहार कर........

मिट गए सिंदूर कई जो सत्य को पुकार कर
गर्व उन्हें फिरभी यहाँ इस देश को निहार कर
लानते ना दे अब  इस ढ्कोसली सरकार पर,
बिखेरना है धज्जियां, सत्य का तू वार कर II
                                     प्रहार कर प्रहार कर........

हजारों द्रष्टियां लगी इस तेरे जन करोड़ पर
गरीब रक्त बेचते यहाँ  अंग अंग मरोड़ कर
बुझ  गए है दीप कई भूख से चीत्कार कर
बिखेरना है धज्जियां, सत्य का तू वार कर                       
                    प्रहार कर प्रहार कर.....

  • PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA

    मिट गए सिंदूर कई जो सत्य को पुकार कर 
    गर्व उन्हें फिरभी यहाँ इस देश को निहार कर
    लानते ना दे अब  इस ढ्कोसली सरकार पर,
    बिखेरना है धज्जियां, सत्य का तू वार कर II 
                                         प्रहार कर प्रहार कर........

    आदरणीय अशोक जी, सादर अभिवादन. 

    मिला सुर मेरा तुम्हारा , शानदार , जानदार प्रस्तुति. स्वागत है.




  • सदस्य टीम प्रबंधन

    Saurabh Pandey

    क्या शब्द चयन और क्या प्रवाह ? गेयता के लिहाज से यह कविता छलछलाती हुई सी निकलती जाती है. ऊर्जस्विता को नसों में घोलती इस रचना के लिये भाई अशोक कुमार जी हृदय से धन्यवाद.

  • संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी'

    आदरणीय अशोक जी,

    ओजस्वी शब्दों के साथ प्रवाहमय कविता से इस मंच पर आगाज़ किया आपने| स्वागत है आपका...! सादर,

  • Ashok Kumar Raktale

    आदरणीय प्रदीप जी, सौरभ जी, संदीप जी और शाही जी आप  सभी गुनी जनों का आशीर्वाद प्राप्त कर प्रसन्नता हुई.धन्यवाद.

  • MAHIMA SHREE

    आदरणीय अशोक जी ,
    फीचर होने केलिए...बधाई...

  • सदस्य कार्यकारिणी

    rajesh kumari

    ek aujpoorn, sandesh deti hui josh ka sanchaar karti hui kavita.....atiuttam badhaai sweekaren.

  • राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी'

    आदरणीय अशोक जी, सादर नमस्कार. बहुत सुन्दर रचना. एक ललकार जो सत्तायाशो के कर्ण भेद दे! इस वीर रस से ओत प्रोत रचना के लिए हार्दिक बधाई.