अभेद्य है ये दुर्ग अभी न सेंध से प्रहार कर I
बिखेरना है धज्जियां, सत्य का तू वार कर II
प्रहार कर प्रहार कर........
धन की बहुत लालसा बिके हुए जमीर हैं.
तन के महाराज सभी मन के ये फ़कीर हैं.
विवश अब नहीं है तू , देख तो पुकार कर
बिखेरना है धज्जियां, सत्य का तू वार कर II
प्रहार कर प्रहार कर........
कौम अब पुकारती न और इन्तजार कर,
रक्त से बलिदान के सींचित इस जमीन पर,
मिट सके भेद सभी जीवन को बलिदान कर
बिखेरना है धज्जियां, सत्य का तू वार कर II
प्रहार कर प्रहार कर........
नित शाम ढले भेडिये अब झुण्ड में है आ रहे
नित कृत्य दानवों से करके कौम को लजा रहे
दूध की है लाज तुझे अब सोच ना विचार कर
बिखेरना है धज्जियां, सत्य का तू वार कर II
प्रहार कर प्रहार कर........
मिट गए सिंदूर कई जो सत्य को पुकार कर
गर्व उन्हें फिरभी यहाँ इस देश को निहार कर
लानते ना दे अब इस ढ्कोसली सरकार पर,
बिखेरना है धज्जियां, सत्य का तू वार कर II
प्रहार कर प्रहार कर........
हजारों द्रष्टियां लगी इस तेरे जन करोड़ पर
गरीब रक्त बेचते यहाँ अंग अंग मरोड़ कर
बुझ गए है दीप कई भूख से चीत्कार कर
बिखेरना है धज्जियां, सत्य का तू वार कर
प्रहार कर प्रहार कर.....
PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA
मिट गए सिंदूर कई जो सत्य को पुकार कर
गर्व उन्हें फिरभी यहाँ इस देश को निहार कर
लानते ना दे अब इस ढ्कोसली सरकार पर,
बिखेरना है धज्जियां, सत्य का तू वार कर II
प्रहार कर प्रहार कर........
आदरणीय अशोक जी, सादर अभिवादन.
Mar 25, 2012
सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey
क्या शब्द चयन और क्या प्रवाह ? गेयता के लिहाज से यह कविता छलछलाती हुई सी निकलती जाती है. ऊर्जस्विता को नसों में घोलती इस रचना के लिये भाई अशोक कुमार जी हृदय से धन्यवाद.
Mar 25, 2012
संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी'
आदरणीय अशोक जी,
ओजस्वी शब्दों के साथ प्रवाहमय कविता से इस मंच पर आगाज़ किया आपने| स्वागत है आपका...! सादर,
Mar 26, 2012
Ashok Kumar Raktale
आदरणीय प्रदीप जी, सौरभ जी, संदीप जी और शाही जी आप सभी गुनी जनों का आशीर्वाद प्राप्त कर प्रसन्नता हुई.धन्यवाद.
Mar 27, 2012
MAHIMA SHREE
फीचर होने केलिए...बधाई...
Mar 28, 2012
सदस्य कार्यकारिणी
rajesh kumari
ek aujpoorn, sandesh deti hui josh ka sanchaar karti hui kavita.....atiuttam badhaai sweekaren.
Mar 28, 2012
राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी'
आदरणीय अशोक जी, सादर नमस्कार. बहुत सुन्दर रचना. एक ललकार जो सत्तायाशो के कर्ण भेद दे! इस वीर रस से ओत प्रोत रचना के लिए हार्दिक बधाई.
Mar 28, 2012