हिन्दी ग़ज़ल

“मीत मन से मन मिला तू और स्वर से स्वर मिला,”
कर लिया यह कर्म जिस ने उस को ही ईश्वर मिला.
कांच   की  कारीगरी  में  जो   निपुण  थे  साथियों,
आजकल उन के ही  हाथों  में   हमें   पत्थर  मिला.
पेट भर  रोटी  मिली   जब   भूखे  बच्चों को  हुज़ूर,
सब कठिन प्रश्नों का उन को इक सरल उत्तर मिला.
चापलूसी  की   कला  में  जो  है  जितना  ही चतुर,
जग में उस को उतना ही सम्मान और आदर मिला.
यह पुरातन सत्य  है  कि  वानर की हैं संतान हम,
आज  मानव रूप में भी हम को  वही  बन्दर मिला.
प्रेम  का  आश्रम   सजाने  के   लिए आ श्रम  करें,
ऐसे  कर्मों  का जगत में फल भी सदा सुन्दर मिला.
एक प्यारी सी  ग़ज़ल बन ही  गयी  इस पँक्ति  से ,
बहर  भी   है  ख़ूबसूरत   क़ाफ़िया  सुन्दर  मिला.
मन  में रामायण सा ही वो बस गया है  ऐ ‘लतीफ़’   
यूं  सतत् पावन  पठन का  उम्र  भर अवसर मिला.

©अब्दुल लतीफ़ ख़ान (दल्ली राजहरा).

  • ajay sharma

    sir,,,,yadi gitika ki 9th pankti me """"yah puratan satya hai , vanar ki hai santaan ham

                                                         aaj manav roop me , humko vahi bandar mila ''' ho jaye to 
     zyada achcha laga ....................tathapi ,,,,rachana nihsandeh bahut achhi hai

  • ajay sharma

    जग में उस को उतना ही सम्मान और आदर मिला.
    यह पुरातन सत्य  है  कि  वानर की हैं संतान हम,
    आज  मानव रूप में हम को  ,  वही  बन्दर मिला.
    प्रेम  का  आश्रम   सजाने  के   लिए आ  श्रम  करें,
    ऐसे  कर्मों  का जगत में फल सदा सुन्दर मिला.
    एक प्यारी सी  ग़ज़ल बन ही  गयी  इस पँक्ति  से ,
    बहर  भी   है  ख़ूबसूरत   क़ाफ़िया  सुन्दर  मिला.  bahut sunder 
    मन  में रामायण सा ही वो बस गया है  ऐ ‘लतीफ़’   
    यूं  सतत् पावन  पठन का  उम्र  भर अवसर मिला. qabil e daad hain 

    nice sharing 

  • वीनस केसरी

    वाह लतीफ़ खान साहिब
    क्या बेहतरीन ग़ज़ल कही है
    दिल से ढेरो दाद निकल रही है
    वाह वाह वा

    इस जमीं पर ही अभी कुछ दिन पहले सौ ग़ज़लें पढ़ने का सुख प्राप्त हुआ है आज १०१ हो गई :)))

  • satish mapatpuri

    पेट भर  रोटी  मिली   जब   भूखे  बच्चों को  हुज़ूर,
    सब कठिन प्रश्नों का उन को इक सरल उत्तर मिला.

    यह पुरातन सत्य  है  कि  वानर की हैं संतान हम,
    आज  मानव रूप में भी हम को  वही  बन्दर मिला.

    सुभान अल्लाह ...... ग़ज़ल के हर शे ' र तारीफ़ के काबिल हैं . खुबसूरत ख़याल ..... दाद कुबूल फरमाएं लतीफ़ साहेब .

  • लक्ष्मण रामानुज लडीवाला

    प्रेम  का  आश्रम   सजाने  के   लिए आ श्रम  करें,
    ऐसे  कर्मों  का जगत में फल भी सदा सुन्दर मिला.
    एक प्यारी सी  ग़ज़ल बन ही  गयी  इस पँक्ति  से ,
    बहर  भी   है  ख़ूबसूरत   क़ाफ़िया  सुन्दर  मिला.

     ठीक कहाँ अब्दुल लतीफ़ खान भाई आपने श्रम से सुंदर आश्रम भी मिल गया 
    और खुबसूरत काफिया भी वाह क्या बात है ' बधाई 
  • रविकर

    वाह भाई वाह |
    मजेदार ||
    बधाई स्वीकारें , आदरणीय ||

  • AVINASH S BAGDE

    चापलूसी  की   कला  में  जो  है  जितना  ही चतुर,
    जग में उस को उतना ही सम्मान और आदर मिला.

    --
    कर लिया यह कर्म जिस ने उस को ही ईश्वर मिला.

    --

    प्रेम  का  आश्रम   सजाने  के   लिए आ श्रम  करें,

    वाह |लतीफ़ खान साहिब !!

  • SANDEEP KUMAR PATEL

    आदरणीय लतीफ़ खान साहब सादर प्रणाम
    वाह वाह वा
    क्या बात है इक इक शेर शानदार है
    बहुत उम्दा ग़ज़ल कही है सर जी
    दाद पे दाद क़ुबूल कीजिये

  • Ashok Kumar Raktale

    “मीत मन से मन मिला तू और स्वर से स्वर मिला,”
    कर लिया यह कर्म जिस ने उस को ही ईश्वर मिला.

    बहुत सुन्दर मतला और दाद के काबिल हर शेर, सुन्दर गजल पर बधाई स्वीकार करें आद. अब्दुल लतीफ़ खान साहब.

  • लतीफ़ ख़ान

    श्री अरुण कुमार निगम जी ,तरही ग़ज़ल में आप की कोशिश बहुत ही शानदार है। कोशिश करते रहिये ,कोशिशें अक्सर कामयाब होती हैं। सौरभ जी ने जो मशविरा दिया है एकदम सही है।उन के सुझाव अनुसार कार्य कीजिए ,सफलता की मंजिल दूर नहीं।।।।बधाई ...

  • लतीफ़ ख़ान

    शिखा कौशिक नूतन जी,,, उम्दा अशआर केलिए बधाई,, नारी शक्ति पर शशक्त रचना।


  • सदस्य टीम प्रबंधन

    Saurabh Pandey

    इस सुन्दर और सुगढ़ प्रस्तुति को मैं आज देख पा रहा हूँ. खेद है.

    ग़ज़ल की प्रस्तुति में बहुत ही संयत प्रयास हुआ है. 

    कांच   की  कारीगरी  में  जो   निपुण  थे  साथियों,
    आजकल उन के ही  हाथों  में   हमें   पत्थर  मिला.
    पेट भर  रोटी  मिली   जब   भूखे  बच्चों को  हुज़ूर,
    सब कठिन प्रश्नों का उन को इक सरल उत्तर मिला.

    इन दो अश’आर के लिये हृदय से बधाई स्वीकार करें, लतीफ़ भाई.   आपकी रचनाओं की प्रतीक्षा रहती है, फिर भी यह विशिष्ट ग़ज़ल अबतक छूट रही थी.

    सादर