"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-100 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है। इस बार गोष्ठी को विषयमुक्त रखा गया है।तो आइए किसी भी मनपसंद विषय पर एक प्रभावोत्पादक लघुकथा रचकर इस गोष्ठी को सफल बनाएँ।
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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-100
अवधि : 30-07-2023 से 31-07-2023
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अति आवश्यक सूचना:-
1. सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अपनी केवल एक लघुकथा पोस्ट कर सकते हैं।
2. रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना/ टिप्पणियाँ केवल देवनागरी फॉण्ट में टाइप कर, लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड/नॉन इटेलिक टेक्स्ट में ही पोस्ट करें।
3. टिप्पणियाँ केवल "रनिंग टेक्स्ट" में ही लिखें, १०-१५ शब्द की टिप्पणी को ३-४ पंक्तियों में विभक्त न करें। ऐसा करने से आयोजन के पन्नों की संख्या अनावश्यक रूप में बढ़ जाती है तथा "पेज जम्पिंग" की समस्या आ जाती है।
4. एक-दो शब्द की चलताऊ टिप्पणी देने से गुरेज़ करें। ऐसी हल्की टिप्पणी मंच और रचनाकार का अपमान मानी जाती है।आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है, किन्तु बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पाए इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता अपेक्षित है। देखा गया कि कई साथी अपनी रचना पोस्ट करने के बाद गायब हो जाते हैं, या केवल अपनी रचना के आस पास ही मंडराते रहते हैंI कुछेक साथी दूसरों की रचना पर टिप्पणी करना तो दूर वे अपनी रचना पर आई टिप्पणियों तक की पावती देने तक से गुरेज़ करते हैंI ऐसा रवैया कतई ठीक नहींI यह रचनाकार के साथ साथ टिप्पणीकर्ता का भी अपमान हैI
5. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति तथा गलत थ्रेड में पोस्ट हुई रचना/टिप्पणी को बिना कोई कारण बताये हटाया जा सकता है। यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
6. रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका, अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल/स्माइली आदि लिखने/लगाने की आवश्यकता नहीं है।
7. प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार "मौलिक व अप्रकाशित" अवश्य लिखें।
8. आयोजन से दौरान रचना में संशोधन हेतु कोई अनुरोध स्वीकार्य न होगा। रचनाओं का संकलन आने के बाद ही संशोधन हेतु अनुरोध करें।
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बहुत ही दुःखी मन से आपको यह पत्र लिख रहा हूँ। आप मुझको शायद ही पहचान पाएँ। परंतु मैं आपको बहुत वर्षों से या यूँ कह लीजिए बचपन से जानता हूँ। मुझको याद है जब आपका जन्म हुआ था आपकी दादी ने एक बढ़ई से कहकर खास तौर से आपके लिये बनवाया था। आप ज्यादातर तो सबकी गोदी में ही रहते थे। और क्यों न हो, आपके पिताजी के जन्म के बाद इस घर के आँगन में आप ही की तो प्रथम किलकारीयाँ सुनाई दी थी। अब आप को लग रहा था यह बात को मैं कैसे जानता हूँ। तो वो इसलिये की जब आप की माँ आपको याद करती और अपने पास बुलाने के लिये किसी को भेजती तो आपके परिवार के कई सदस्यों के मुँह से यही बात निकलती, "अरे बहू, इसको रहने दो न हमारे पास , शेखर के बाद अब मुन्ना ही तो आया है हमारी गॉद में। ऐसे तो मुहल्ले में रिश्तेदारों में बहुत बच्चे हुए पर अपना खून तो अपना ही खून होता है न।" तब आपकी माँ कुछ न कह पाती। उस समय बहुओं को घर में कुछ कहने की छूट कब मिलती थी? वह तो सहमी-सहमी-सी पर्दे में रहती थीं। आपके भूख के समय या तो सिर्फ रात को माँ के पास आना मिलता था। माँ के आँचल में आप कब जो जाते थे पता ही न चलता था। कुछ देर के बाद माँ आपको मेरे हवाले कर देती थीं और आप मेरे पास आराम से सो जाते थे। उस समय सब आपको मुन्ना बुलाते थे, मैं भी यही कहता था। फिर जब जब बड़े हो गए, आपकी दुल्हन के कदम घर में पड़े। तब मैं आपके हवेली के एक बंद कमरे में दूसरे पुराने सामानों के साथ रहने लगा था। आपको याद होगा, आपके घर में जब गुड़िया का जन्म हुआ था, तब बहूरानी ने मुझको उस अँधेरे कमरे से निकाला था, और बढ़ई से बोलकर थोड़ा ठीक-ठाक करवाया था। उस चतुर बढ़ई ने मुझे पोलिश भी कर दिया था। उसके बाद आपके घर में जब बेटा पैदा हुआ तब भी मेरा उपयोग हुआ था। मैं अपने को बहुत गौरवान्वित महसूस करता था। यही सोचकर कि पहले आपके काम आया हूँ, और अब आपके बच्चों के। यूँ तो आपकी दादी की यह चौथी पीढ़ी थी। पर मैं इस समय तक एकदम फ़िट था। आपके घर मे कोई भी आता था, वो मुझको देखकर यह पूछे बिना न रह पाता, "अरे वाह! यह तो बहुत ज़ोरदार है। कहाँ से बनवाया। तब अगर आप घर पर होते तो अपने शर्ट की कॉलर को पहले तो ठीक करते फिर कहते, "यह तो मेरे दादी जी ने ...।" और वे लोग थोडी देर बैठकर चले जाते। इस समय तक तो आप एक फैक्ट्री के मालिक बन गए थे। अब हमारा मुन्ना साहब बन गया था। आपको भी जब तक मेरे उपयोग की आवश्यकता पड़ी। आपने उपयोग किया उसके बाद अपनी पत्नी से कहकर वापिस उसी अँधेरे कमरे में रखवा दिया। मैं उस समय भी आपसे कुछ कहना चाहता था पर मोहवश कभी कह न पाया। और मैं दुबारा बंद कर दिया गया। जहाँ अब मैं टूटने लगा था, क्योंकि मेरे ऊपर किसी ने बहुत भारी वाली कोई पुरानी अलमारी रख दी थी। मैं सिसकता रहा पर मेरी आवाज़...। अहा! आज तो मुझको सूर्य देव के दर्शन हो गए। मैं कितना खुश हुआ। बाहर आया तो देखा कि आपकी पत्नी की तस्वीर पर माला चढ़ी हुई थी। मैं कुछ पूछने के लिये हुआ कि दो लोग आए और उन्होंने मुझको उठा लिया। मुझको लगा कि अब मुझको किसी कमरे में ले ले जाया जा रहा। मेरे मन में यह सोचकर लड्डू फूट रहे थे कि अब मैं आपके बच्चों के बच्चों को भी काम आऊँगा। पर मेरा सोचना गलत था। वे लोग तो मुझको बाहर खड़े एक ट्रक में रख रहे थे। मेरी समझ में कुछ नहीं आया। मैं घबरा गया था, अपना इतने बरसों पुराना साथ ...तभी मैंने किसी को कहते सुना, "घोर कलियुग है, क्या ज़माना आ गया है, इसके बाप-दादाओं के समय की हवेली... और इसके नालायक बेटे ने सब कुछ अपने नाम कर लिया, और अब तो सुना है इसको भी घर खाली करने को कह दिया है। इसने अपने बच्चों के लिये कितना कुछ नही किया, बेटा तो विदेश में एक बार क्या गया वहीं का होकर रह गया..." मेरी समझ में कुछ-कुछ आने लगा था। मैंने देखा कि तुम मेरे करीब आ रहे हो। तुमने मुझको छुआ। मुझसे लिपट कर रोये तुम। हमारा मुन्ना...अब तुम कहाँ रहोगे? मन कर रहा था कि तमको पहले की तरह अपनी आगोश में ले लूँ। पर अब मैं लँगड़ा हो गया था, मुझपर बंधा कपड़ा भी न रहा था। तुम ने रोते हुए मुझसे कहा था, "तुमने मेरे बचपन मे अपने आगोश में सुलाया। अब बुढ़ापे में बच्चों ने वृद्धाश्रम का दरवाज़ा...। और ट्रक ड्राइवर ने ट्रक स्टार्ट कर दिया। तुम पीछे रह गए। पर इस बीच मैं यह खत लिख चुका था। मैं तो तुम्हारे बचपन से ही तुमको खत लिख रहा था सोचा था कि तुम जब दादा बनोगे...। खैर समय का खेल है मुन्ना साहब। यह खत जब तुम पढ़ रहे होगे, मैं बहुत दूर जा चुका होऊँगा और तुमको भी कोई ठिकाना मिल गया होगा। पर बेटा अब तो अधिकार रखता हूँ तमको बेटा कहने का। तुम को मैं कभी नहीं भूला पाऊँगा। क्योंकि तुम्हारी माँ की तरह तुम मेरी गोद में भी लोरी सुनते हुए सोए हो और खूब सोये हो। अलविदा बेटा! तुम्हारा बुढ़ापा सही कटे। स्वस्थ रहना
"एक पुस्तक को प्रकाशित करवाने में न जाने कितने वृक्षों को काटना पड़ता है इसलिए प्रकाशित करवाने के पहले पुस्तक के उद्देश्य और सार्थकता पर गंभीरतापूर्वक सोचना जरूर चाहिए।" कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ अतिथि लोकार्पणकर्त्ता ने कहा। जो मुझे सुनकर उचित-सही नहीं लगी।
किसी लोकार्पण में यह कहा जाना अशोभनीय था। पुस्तक लोकार्पण को दुल्हन की मुँह दिखाई कहा जा सकता है••• घूँघट उठाकर कहा जाये कि इससे शादी के पहले सोच-विचार करना चाहिए था•••
कटाक्ष को सहजता से नहीं लेकर हताश होकर साहित्य से विमुख हो जाना रेशमा के लिए स्वाभाविक रहा।
"आसान तो नहीं होता होगा! बीज शोधन, बीज का बोरे में अंकुरण, घनघोर घने रूप में बिजड़ा होना तब फसल में परिवर्तित होकर, पुष्ट दानों की सुनहले बालियों के रूप में झूम जाना।" रेशमा को बार-बार याद दिलाते रहना पड़ेगा।
22 जनवरी 2016
रेशमा द्वारा आमंत्रित करने पर वसंतोत्सव में शामिल होना अच्छा लगा। उनका अपनी मंडली के संग उल्लास से सरस्वती पूजा करना और गुलाल लगाना रोमांचित कर रहा था।
"शहर से थोड़ा बाहर है लेकिन शोरगुल से भी दूर होना अच्छा लग रहा है। तुम्हारे लिए विशेष रूप से••" मेरे कहते रेशमा चहकने लगी।
"इसी भवन में सभी तरह की कलाओं के कार्यशाला भी चलते हैं और हम जैसे यहाँ ससम्मान टीक भी सकते हैं•••। यह सरकार से हमें आवंटित किया गया है।"
उनके लिए खुले आकाश के संग घोसले की चाहत पूरी हो जाना बड़ी बात थी।
09 नवम्बर 2019
पुस्तक मेला में घूमते-घूमते प्यास लग गयी थी। चाय-पानी की तलाश हमें एक स्टॉल पर ला खड़ा किया। "आप सभी का स्वागत है! इनसे पैसा नहीं लेना। ये हमारे विशेष अतिथि हैं।"
"घोड़ा घास से यारी करेगा•••।"
"अरे! यह यहाँ अनुकूल नहीं है। आपने ही कहा था जीविका के लिए कुछ ठोस करो। हमने भोजनालय खोल लिया•••!"
"हाँ लेकिन अपने प्राकृतिक गुण को भी नहीं छोड़ना••,"
"मिले एक दराती से काबिलियत का परिचय द्वारा माता ने अपने पुत्र के गुणों को भाप लिया और एक संदेश भी दिया कि किसी की महानता का पता उनके व्यवहार अर्थात जीवन शैली से ही चल जाता हैं। आप मेरे लिए वही माँ हैं।"
"बिना तपे कुन्दन•••!"
23 जुलाई 2023
चार दिनों से रेशमा का अपनी मंडली के संग अपने विशेष अंदाज में ताली बजा-बजाकर 'बेसरा माता'(जिनकी सवारी मुर्गा है) की पूजा की जगह कथकली कुचिपुड़ी ओडिसी सतत्रिया मोहिनीअट्टम नृत्य करती अचंभित कर रही थी। सभी को
शिव तांडव, माँ दुर्गा का भजन, माँ काली का रौद्र नृत्य की जीवंत प्रस्तुति भी पसन्द आए। जीने की चाह का पराकाष्ठा है राख़ से पुन: खिल जाना...!
विभा रानी श्रीवास्तव, पटना
रचना काल : 31 जुलाई 2023
मौलिक एवं अप्रकाशित और अप्रसारित
KALPANA BHATT ('रौनक़')
. माँ के आँचल-सा
मुन्ना साहब,
बहुत ही दुःखी मन से आपको यह पत्र लिख रहा हूँ। आप मुझको शायद ही पहचान पाएँ। परंतु मैं आपको बहुत वर्षों से या यूँ कह लीजिए बचपन से जानता हूँ।
मुझको याद है जब आपका जन्म हुआ था आपकी दादी ने एक बढ़ई से कहकर खास तौर से आपके लिये बनवाया था।
आप ज्यादातर तो सबकी गोदी में ही रहते थे। और क्यों न हो, आपके पिताजी के जन्म के बाद इस घर के आँगन में आप ही की तो प्रथम किलकारीयाँ सुनाई दी थी। अब आप को लग रहा था यह बात को मैं कैसे जानता हूँ। तो वो इसलिये की जब आप की माँ आपको याद करती और अपने पास बुलाने के लिये किसी को भेजती तो आपके परिवार के कई सदस्यों के मुँह से यही बात निकलती, "अरे बहू, इसको रहने दो न हमारे पास , शेखर के बाद अब मुन्ना ही तो आया है हमारी गॉद में। ऐसे तो मुहल्ले में रिश्तेदारों में बहुत बच्चे हुए पर अपना खून तो अपना ही खून होता है न।" तब आपकी माँ कुछ न कह पाती। उस समय बहुओं को घर में कुछ कहने की छूट कब मिलती थी? वह तो सहमी-सहमी-सी पर्दे में रहती थीं। आपके भूख के समय या तो सिर्फ रात को माँ के पास आना मिलता था। माँ के आँचल में आप कब जो जाते थे पता ही न चलता था। कुछ देर के बाद माँ आपको मेरे हवाले कर देती थीं और आप मेरे पास आराम से सो जाते थे। उस समय सब आपको मुन्ना बुलाते थे, मैं भी यही कहता था।
फिर जब जब बड़े हो गए, आपकी दुल्हन के कदम घर में पड़े। तब मैं आपके हवेली के एक बंद कमरे में दूसरे पुराने सामानों के साथ रहने लगा था। आपको याद होगा, आपके घर में जब गुड़िया का जन्म हुआ था, तब बहूरानी ने मुझको उस अँधेरे कमरे से निकाला था, और बढ़ई से बोलकर थोड़ा ठीक-ठाक करवाया था। उस चतुर बढ़ई ने मुझे पोलिश भी कर दिया था। उसके बाद आपके घर में जब बेटा पैदा हुआ तब भी मेरा उपयोग हुआ था। मैं अपने को बहुत गौरवान्वित महसूस करता था। यही सोचकर कि पहले आपके काम आया हूँ, और अब आपके बच्चों के। यूँ तो आपकी दादी की यह चौथी पीढ़ी थी। पर मैं इस समय तक एकदम फ़िट था। आपके घर मे कोई भी आता था, वो मुझको देखकर यह पूछे बिना न रह पाता, "अरे वाह! यह तो बहुत ज़ोरदार है। कहाँ से बनवाया। तब अगर आप घर पर होते तो अपने शर्ट की कॉलर को पहले तो ठीक करते फिर कहते, "यह तो मेरे दादी जी ने ...।" और वे लोग थोडी देर बैठकर चले जाते। इस समय तक तो आप एक फैक्ट्री के मालिक बन गए थे। अब हमारा मुन्ना साहब बन गया था।
आपको भी जब तक मेरे उपयोग की आवश्यकता पड़ी। आपने उपयोग किया उसके बाद अपनी पत्नी से कहकर वापिस उसी अँधेरे कमरे में रखवा दिया। मैं उस समय भी आपसे कुछ कहना चाहता था पर मोहवश कभी कह न पाया। और मैं दुबारा बंद कर दिया गया। जहाँ अब मैं टूटने लगा था, क्योंकि मेरे ऊपर किसी ने बहुत भारी वाली कोई पुरानी अलमारी रख दी थी। मैं सिसकता रहा पर मेरी आवाज़...।
अहा! आज तो मुझको सूर्य देव के दर्शन हो गए। मैं कितना खुश हुआ। बाहर आया तो देखा कि आपकी पत्नी की तस्वीर पर माला चढ़ी हुई थी। मैं कुछ पूछने के लिये हुआ कि दो लोग आए और उन्होंने मुझको उठा लिया। मुझको लगा कि अब मुझको किसी कमरे में ले ले जाया जा रहा। मेरे मन में यह सोचकर लड्डू फूट रहे थे कि अब मैं आपके बच्चों के बच्चों को भी काम आऊँगा। पर मेरा सोचना गलत था। वे लोग तो मुझको बाहर खड़े एक ट्रक में रख रहे थे। मेरी समझ में कुछ नहीं आया। मैं घबरा गया था, अपना इतने बरसों पुराना साथ ...तभी मैंने किसी को कहते सुना, "घोर कलियुग है, क्या ज़माना आ गया है, इसके बाप-दादाओं के समय की हवेली... और इसके नालायक बेटे ने सब कुछ अपने नाम कर लिया, और अब तो सुना है इसको भी घर खाली करने को कह दिया है। इसने अपने बच्चों के लिये कितना कुछ नही किया, बेटा तो विदेश में एक बार क्या गया वहीं का होकर रह गया..." मेरी समझ में कुछ-कुछ आने लगा था। मैंने देखा कि तुम मेरे करीब आ रहे हो। तुमने मुझको छुआ। मुझसे लिपट कर रोये तुम। हमारा मुन्ना...अब तुम कहाँ रहोगे? मन कर रहा था कि तमको पहले की तरह अपनी आगोश में ले लूँ। पर अब मैं लँगड़ा हो गया था, मुझपर बंधा कपड़ा भी न रहा था। तुम ने रोते हुए मुझसे कहा था, "तुमने मेरे बचपन मे अपने आगोश में सुलाया। अब बुढ़ापे में बच्चों ने वृद्धाश्रम का दरवाज़ा...।
और ट्रक ड्राइवर ने ट्रक स्टार्ट कर दिया। तुम पीछे रह गए। पर इस बीच मैं यह खत लिख चुका था। मैं तो तुम्हारे बचपन से ही तुमको खत लिख रहा था सोचा था कि तुम जब दादा बनोगे...।
खैर समय का खेल है मुन्ना साहब। यह खत जब तुम पढ़ रहे होगे, मैं बहुत दूर जा चुका होऊँगा और तुमको भी कोई ठिकाना मिल गया होगा। पर बेटा अब तो अधिकार रखता हूँ तमको बेटा कहने का। तुम को मैं कभी नहीं भूला पाऊँगा। क्योंकि तुम्हारी माँ की तरह तुम मेरी गोद में भी लोरी सुनते हुए सोए हो और खूब सोये हो।
अलविदा बेटा! तुम्हारा बुढ़ापा सही कटे। स्वस्थ रहना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Jul 30, 2023
vibha rani shrivastava
14 सितम्बर 2014
"एक पुस्तक को प्रकाशित करवाने में न जाने कितने वृक्षों को काटना पड़ता है इसलिए प्रकाशित करवाने के पहले पुस्तक के उद्देश्य और सार्थकता पर गंभीरतापूर्वक सोचना जरूर चाहिए।" कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ अतिथि लोकार्पणकर्त्ता ने कहा। जो मुझे सुनकर उचित-सही नहीं लगी।
किसी लोकार्पण में यह कहा जाना अशोभनीय था। पुस्तक लोकार्पण को दुल्हन की मुँह दिखाई कहा जा सकता है••• घूँघट उठाकर कहा जाये कि इससे शादी के पहले सोच-विचार करना चाहिए था•••
कटाक्ष को सहजता से नहीं लेकर हताश होकर साहित्य से विमुख हो जाना रेशमा के लिए स्वाभाविक रहा।
"आसान तो नहीं होता होगा! बीज शोधन, बीज का बोरे में अंकुरण, घनघोर घने रूप में बिजड़ा होना तब फसल में परिवर्तित होकर, पुष्ट दानों की सुनहले बालियों के रूप में झूम जाना।" रेशमा को बार-बार याद दिलाते रहना पड़ेगा।
22 जनवरी 2016
रेशमा द्वारा आमंत्रित करने पर वसंतोत्सव में शामिल होना अच्छा लगा। उनका अपनी मंडली के संग उल्लास से सरस्वती पूजा करना और गुलाल लगाना रोमांचित कर रहा था।
"शहर से थोड़ा बाहर है लेकिन शोरगुल से भी दूर होना अच्छा लग रहा है। तुम्हारे लिए विशेष रूप से••" मेरे कहते रेशमा चहकने लगी।
"इसी भवन में सभी तरह की कलाओं के कार्यशाला भी चलते हैं और हम जैसे यहाँ ससम्मान टीक भी सकते हैं•••। यह सरकार से हमें आवंटित किया गया है।"
उनके लिए खुले आकाश के संग घोसले की चाहत पूरी हो जाना बड़ी बात थी।
09 नवम्बर 2019
पुस्तक मेला में घूमते-घूमते प्यास लग गयी थी। चाय-पानी की तलाश हमें एक स्टॉल पर ला खड़ा किया। "आप सभी का स्वागत है! इनसे पैसा नहीं लेना। ये हमारे विशेष अतिथि हैं।"
"घोड़ा घास से यारी करेगा•••।"
"अरे! यह यहाँ अनुकूल नहीं है। आपने ही कहा था जीविका के लिए कुछ ठोस करो। हमने भोजनालय खोल लिया•••!"
"हाँ लेकिन अपने प्राकृतिक गुण को भी नहीं छोड़ना••,"
"मिले एक दराती से काबिलियत का परिचय द्वारा माता ने अपने पुत्र के गुणों को भाप लिया और एक संदेश भी दिया कि किसी की महानता का पता उनके व्यवहार अर्थात जीवन शैली से ही चल जाता हैं। आप मेरे लिए वही माँ हैं।"
"बिना तपे कुन्दन•••!"
23 जुलाई 2023
चार दिनों से रेशमा का अपनी मंडली के संग अपने विशेष अंदाज में ताली बजा-बजाकर 'बेसरा माता'(जिनकी सवारी मुर्गा है) की पूजा की जगह कथकली कुचिपुड़ी ओडिसी सतत्रिया मोहिनीअट्टम नृत्य करती अचंभित कर रही थी। सभी को
शिव तांडव, माँ दुर्गा का भजन, माँ काली का रौद्र नृत्य की जीवंत प्रस्तुति भी पसन्द आए। जीने की चाह का पराकाष्ठा है राख़ से पुन: खिल जाना...!
विभा रानी श्रीवास्तव, पटना
रचना काल : 31 जुलाई 2023
मौलिक एवं अप्रकाशित और अप्रसारित
Jul 31, 2023
TEJ VEER SINGH
ताल मेल - लघुकथा -
"भाई जी, ये दांव तो उल्टा पड़ गया ।”
"क्या मतलब?”
"भाई जी, जिस राज्य में हमने दंगे कराने की साजिश रची थी, वहाँ अपने ही लोग ज्यादा पिट रहे हैं।मरने वाले भी अपने ही लोग ज्यादा हैं ।"
"अरे ये सब छोड़।यज्ञ पूर्ण करने के लिये आहुति तो देनी ही पड़ती है। तभी अभीष्ट फल मिलता है। तू मुद्दे की बात बता।”
"मैं कुछ समझा नहीं भाई जी?”
"अबे गधे, केवल इतना पता लगा कि अब माहौल किसके पक्ष में है?” हवा अब किस पार्टी की तरफ़ बह रही है।चुनाव कौन जीत रहा है।
"अरे भाई जी, यह तो स्पष्ट रूप से दिख रहा है कि इस दंगे के बाद तो हमारी पार्टी ही जीतेगी।"
नेता जी ने तुरंत नोटों की गड्डी जेब से निकाल कर अपने चेलों को थमाई,
“जाओ ऐश करो, जश्न मनाओ”
मौलिक एवं अप्रकाशित
Jul 31, 2023