"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115

आदरणीय साथियो,

सादर नमन।
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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115
विषय : उजाले की ओर
अवधि : 30-10-2024 से 31-10-2024 
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अति आवश्यक सूचना:-
1. सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अपनी केवल एक लघुकथा पोस्ट कर सकते हैं।
2. रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना/ टिप्पणियाँ केवल देवनागरी फॉण्ट में टाइप कर, लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड/नॉन इटेलिक टेक्स्ट में ही पोस्ट करें।
3. टिप्पणियाँ केवल "रनिंग टेक्स्ट" में ही लिखें, 10-15 शब्द की टिप्पणी को 3-4 पंक्तियों में विभक्त न करें। ऐसा करने से आयोजन के पन्नों की संख्या अनावश्यक रूप में बढ़ जाती है तथा "पेज जम्पिंग" की समस्या आ जाती है। 
4. एक-दो शब्द की चलताऊ टिप्पणी देने से गुरेज़ करें। ऐसी हल्की टिप्पणी मंच और रचनाकार का अपमान मानी जाती है।आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है, किन्तु बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पाए इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता अपेक्षित है। देखा गया कि कई साथी अपनी रचना पोस्ट करने के बाद गायब हो जाते हैं, या केवल अपनी रचना के आस पास ही मंडराते रहते हैंI कुछेक साथी दूसरों की रचना पर टिप्पणी करना तो दूर वे अपनी रचना पर आई टिप्पणियों तक की पावती देने तक से गुरेज़ करते हैंI ऐसा रवैया कतई ठीक नहींI यह रचनाकार के साथ-साथ टिप्पणीकर्ता का भी अपमान हैI
5. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति तथा गलत थ्रेड में पोस्ट हुई रचना/टिप्पणी को बिना कोई कारण बताये हटाया जा सकता है। यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
6. रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका, अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल/स्माइली आदि लिखने/लगाने की आवश्यकता नहीं है।
7. प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार "मौलिक व अप्रकाशित" अवश्य लिखें।
8. आयोजन से दौरान रचना में संशोधन हेतु कोई अनुरोध स्वीकार्य न होगा। रचनाओं का संकलन आने के बाद ही संशोधन हेतु अनुरोध करें। 
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मंच संचालक
योगराज प्रभाकर
(प्रधान संपादक)
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    Manan Kumar singh

    अंतिम दीया
    रात गए अँधेरे ने टिमटिमाते दीये से कहा,'अब तो मान जा।आ मेरे आगोश में।' 
    'नहीं।कभी नहीं।' बाती तपाक से बोली।
    'कब तलक जलेगी? तेल तो खत्म हो चला।' अँधेरे ने चुटकी ली।
    'प्राची के आने तक। स्नेहसनी हूँ।'
    "मौलिक एवं अप्रकाशित"

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      TEJ VEER SINGH

      रोशनी की दस्तक - लघुकथा -

      "अम्मा, देखो दरवाजे पर कोई नेताजी आपको आवाज लगा रहे हैं।"

      अम्मा की बेटी ने गुहार लगाई ।

      अम्मा ने बाहर आकर देखा। शहर के विधायक जी अपनी बड़ी सी गाड़ी में से निकाल कर मिठाई और दिवाली के पॉकेट बाँट रहे थे। लोगों की कतार लगी हुई थी। अम्मा भी कतार में खड़ी हो गई। 

      शोर सुन कर अम्मा का बेटा भी बाहर आ गया।

      अम्मा, धूप में क्यों खड़ी हो? ये किस बात की कतार लगी है?”

      "बेटा, ये नेताजी दीवाली की मिठाई देने आये हैं।

      "मिठाई के साथ और क्या है?”

      "शायद कुछ मोमबत्ती और फुलझड़ी हैं।

      क्या ये सामान हमारे लिये अनिवार्य है?”

      "कुछ दिन ये मोमबत्तियाँ झोंपड़ी में रोशनी करेंगी। हमारी लालटेन का तेल बचेगा।

      "मगर हमने ये सामान माँगा था क्या?" हमारी आज की सबसे बड़ी आवश्यकता क्या है?”

      "बेटा, इस समय सबसे बड़ी जरूरत तो तुम्हारी नौकरी की है।तेरे बापू के मरने के बाद घर चलाना मुश्किल हो गया है। 

      "और उसका वादा एक साल पहले इन्हीं नेता जी ने किया था।अब क्या बोल रहे हैं?”

      "कह रहे हैं कि कोशिश की जा रही है।

      और ये कोशिश अगले चुनाव तक चलती रहेगी।

      "और हम लोग कर भी क्या सकते हैं।

      हम इस कतार से अलग तो हो सकते हैं।इन उपहारों का बहिष्कार तो कर सकते हैं । इनसे ये तो पूछ सकते हैं कि इनका बारहवीं पास बेटा सरकारी कारखाने का डाइरेक्टर कैसे बन गया।" 

      अम्मा यह सुन कर कतार से बाहर निकल आई।

      अम्मा की देखा देखी एक एक कर मुहल्ले के सभी लोग कतार छोड़ अपनी झोपड़ियों में जाने लगे।जिन लोगों ने पॉकेट ले लिये थे, वे लोग भी पॉकेट वापस नेता जी की गाड़ी में डाल दिये । 

      नेता जी इस अप्रत्याशित परिवर्तन को देख अचंभित हो गये ।

      मौलिक एवं अप्रकाशित

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        Sheikh Shahzad Usmani

        चल मुसाफ़िर तोहफ़ों की ओर (लघुकथा) :


        इंसानों की आधुनिक दुनिया से डरी हुई प्रकृति की दुनिया के शासक ईश्वर और वनस्पति , कीड़े -मकोड़ों, जीव-जंतुओं आदि की प्रजा में से कुछ 'चिकित्सक' और 'शोधकर्ता' इंसानों के एक महापर्व पर आपस में विमर्श कर रहे थे। डॉक्टर पीपल और वैद्य नीम जी आपस में बतियाने लगे।


        "तरह -तरह के आयोजनों और धार्मिक तीज-त्योहारों पर इंसान इतना स्वार्थी हो जाता है कि हमारे जगत की उसे चिंता ही नहीं रहती। पटाखों और आतिशबाजी और ध्वनि प्रदूषण से हमें दो-चार होना पड़ता है!" वृक्ष डॉक्टर पीपल जी ने कहा।


        "मिट्टी की दीयों की परम्परा जैसे रीति -रिवाज़ों की बात ही कुछ और थी भाई!" वृक्ष वैद्य नीम जी बोले।


        "हॉं, वे भी चिकित्सकीय, औषधीय काम किया करते हैं। इंसानों और हमारे लिए तो वे डॉक्टर दीपक हैं! पर कोई समझे, तब न, वैद्य जी!"


        शोधकर्ता सूर्य महाराज ने उन दोनों की बातें सुनकर उनसे कहा, "इंसान भटक गया है भाइयों, लेकिन सही राह पकड़ने की कोशिश में भी है। वो सोलर एनर्जी तक के लाभ जानते हुए भी इसका सही और भरपूर उपयोग करना मुश्किल से सीख ही रहा है अभी। प्रकृति की दुनिया ही उसकी जीवन नैया को चलने देगी। माटी से माटी तक के सफ़र में इंसान मिट्टी की दीयों की अहमियत और कुदरती तोहफ़ों के रख-रखाव और इस्तेमाल को समझना फिर से सीख रहा है। वक़्त पलटी खायेगा... और इंसान सही दिशा की ओर चल पड़ेगा। भई, मेरा शोध तो यही कहता है!"


        (मौलिक व अप्रकाशित)