"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173

आदरणीय साहित्य प्रेमियो,

जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर नव-हस्ताक्षरों, के लिए अपनी कलम की धार को और भी तीक्ष्ण करने का अवसर प्रदान करता है. इसी क्रम में प्रस्तुत है :

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173

विषय : "विषय मुक्त"

आयोजन अवधि-12 अप्रैल 2025, दिन शनिवार से 13 अप्रैल 2025, दिन रविवार की समाप्ति तक अर्थात कुल दो दिन.


ध्यान रहे : बात बेशक छोटी हो लेकिन 'घाव करे गंभीर’ करने वाली हो तो पद्य- समारोह का आनन्द बहुगुणा हो जाए. आयोजन के लिए दिये विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी मौलिक एवं अप्रकाशित रचना पद्य-साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते हैं. साथ ही अन्य साथियों की रचना पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते हैं.

उदाहरण स्वरुप पद्य-साहित्य की कुछ विधाओं का नाम सूचीबद्ध किये जा रहे हैं --

तुकांत कविता, अतुकांत आधुनिक कविता, हास्य कविता, गीत-नवगीत, ग़ज़ल, नज़्म, हाइकू, सॉनेट, व्यंग्य काव्य, मुक्तक, शास्त्रीय-छंद जैसे दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका आदि.

अति आवश्यक सूचना :-

रचनाओं की संख्या पर कोई बन्धन नहीं है. किन्तु, एक से अधिक रचनाएँ प्रस्तुत करनी हों तो पद्य-साहित्य की अलग अलग विधाओं अथवा अलग अलग छंदों में रचनाएँ प्रस्तुत हों.
रचना केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, अन्य सदस्य की रचना किसी और सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी.
रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना अच्छी तरह से देवनागरी के फॉण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें.
रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे अपनी रचना पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं.
प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें.
नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
सदस्यगण बार-बार संशोधन हेतु अनुरोध न करें, बल्कि उनकी रचनाओं पर प्राप्त सुझावों को भली-भाँति अध्ययन कर संकलन आने के बाद संशोधन हेतु अनुरोध करें. सदस्यगण ध्यान रखें कि रचनाओं में किन्हीं दोषों या गलतियों पर सुझावों के अनुसार संशोधन कराने को किसी सुविधा की तरह लें, न कि किसी अधिकार की तरह.

आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता अपेक्षित है.

इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं.

रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से स्माइली अथवा रोमन फाण्ट का उपयोग न करें. रोमन फाण्ट में टिप्पणियाँ करना, एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 12 अप्रैल 2025, दिन शनिवार लगते ही खोल दिया जायेगा।

यदि आप किसी कारणवश अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें.

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मंच संचालक

ई. गणेश जी बाग़ी 
(संस्थापक सह मुख्य प्रबंधक)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम परिवार

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    अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव

    एक बार फिर आओ कान्हा

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    एक बार फिर आओ कान्हा, लीला मधुर दिखाओ ना।

    छोड़ कन्हाई ब्रज की गलियाँ, मेरी नगरिया आओ ना॥

                                                                                                               

    कलकल करती नदिया बहती, नदी के सुंदर तट हैं।                                                                             ग्वाल बाल ग्वालिन पनिहारिन, और सुंदर पनघट हैं ॥                                                                              चुन चुनकर गोपी ग्वालिन की,मटकी फोड़ दिखाओ ना।                                                                            एक बार फिर आओ कान्हा, लीला मधुर दिखाओ ना॥

    मुरली मधुर बजाते हो, कोई जादू सा कर जाते हो।

    सखा के संग माखन चोरी, सखियों के चित्त चुराते हो॥                                                                              धरती पर आओ मनमोहन, मुरली मधुर बजाओ ना।

    एक बार फिर आओ कान्हा, लीला मधुर दिखाओ ना॥

    मौसम का राजा फागुन है, याद न ब्रज की आएगी।

    रंग गुलाल अबीर लगाकर, होली खेली जाएगी॥

    हाँ कह दो इस बार कन्हाई, होली साथ मनाओ ना।

    एक बार फिर आओ कान्हा, लीला मधुर दिखाओ ना॥

                                                                                                                                                        नदी सरोवर वन उपवन हैं , झरने ताल हैं कुंज यहाँ।

    मनमोहक पूनम की रात में, रास रचाने निकुंज यहाँ॥

    ग्वाल बाल गोपिन संग आओ, रास यहाँ भी रचाओ ना।

    एक बार फिर आओ कान्हा, लीला दिव्य दिखाओ ना॥

    वृन्दावन को छोड़ कन्हाई, छत्तीसगढ़ में आओ ना।                                                                                  छोड़ो अब गोकुल बरसाना, मेरी नगरिया आओ ना॥                                                 

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    मौलिक अप्रकाशित

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    अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी

    2122 - 2122 - 2122 - 212

    क़ब्रगाहों से गड़े मुर्दे उखाड़े जाएँगे 

    इस तरह जलते हुए मुद्दे दबाए जाएँगे 

    आज बारी है हमारी कल तुम्हारी आएगी 

    अहल-ए-मंसब अहल-ए-'इशरत सब पुकारे जाएँगे 

    कर दिया बारूद-ख़ाना चहचहाते बाग़ को 

    कोई चिंगारी उठी तो सब ही मारे जाएँगे 

    जाबिराना खींच कर पैरों के नीचे से ज़मीं

    शहरियों के दूसरे दर्जे बनाए जाएँगे 

    गर घटाते ही रहे तुम इस नदी की वुस'अतें

    रूद-ख़ाने इसके इक दिन सब बहा ले जाएँगे 

     

    क़र्ज़ के दलदल में धँसती जा रही है ज़िन्दगी 

    कब तलक ख़ैरात ही से घर चलाए जाएँगे 

    डूब जाने को म'ईशत बस कि अब तय्यार है 

    देखना है किस तरह मंसब सँभाले जाएँगे 

    आएँगे जिस दिन हवाओं के निशाने पर 'अमीर'

    एक इक कर के सभी दीये बुझाए जाएँगे 

    "मौलिक व अप्रकाशित"

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    Sushil Sarna

    दोहा सप्तक. . . . अपने

    अपनों से क्यों दुश्मनी, गैरों से क्यों प्यार ।
    उचित नहीं संसार में, करना यह व्यवहार ।।

    करे पीठ पर वार जो, उसको दुश्मन जान ।
    आस्तीन के साँप की, एक यही पहचान ।।

    अपने मीठे शहद से, इनकी खास मिठास ।
    दिल को मिलता चैन सा, जब यह होते पास ।।

    गैरों से मिलता नहीं, अपनों सा सद्भाव ।
    कटुता के देना नहीं, उनके दिल को घाव ।।

    रिश्ते नाजुक काँच से, रखना जरा संभाल ।
    मनमुटाव की आँच से, जले प्यार की डाल ।।

    सहनशीलता है जहाँ, मिलता वहाँ मिठास ।
    रिश्तों में अच्छी नहीं, लगती कभी खटास ।।

    शाबाशी की थपकियाँ, सच्ची सी आशीष ।
    अपनों के ही प्यार में, खिलते पुष्प शिरीष ।।

    मौलिक एवं अप्रकाशित 

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