रोज 'सुणै है कै' कै बाळो जद बोल्यो 'सुण धापाँ'। सुणकै मुळकी, हुयो हियो है तब सै बागाँ बागाँ।
आज खटिनै से बागाँ माँ ये कोयलड़ी कूकी, पाणी सिंच्यो आज बेल माँ पड़ी जकी थी सूकी, मुख सै म्हारो नाँव सुन्यो तो म्हे तो मरग्या लाजाँ, रोज 'सुणै है कै' कै बाळो जद बोल्यो 'सुण धापाँ'।
मनरै मरुवै री खुशबू अंगाँ सै फूटण लागी, सगळै तन में एक धूजणी सी इब छूटण लागी, राग सुनावै मन री कुरजाँ म्हे तो चढ़ग्या नाजाँ, रोज 'सुणै है कै' कै बाळो जद बोल्यो 'सुण धापाँ'।
नेह-मेह बरसावण खातिर मन-बादलियो माच्यो, आज पिया रे रंग मँ सारो मेरो तन-मन राच्यो, सुध-बुध भूल्या पिउजी रै म्हे लारै लारै भाजाँ, रोज 'सुणै है कै' कै बाळो जद बोल्यो 'सुण धापाँ'।
धरती पर जद पाँव पड़ै तो लागै घूंघर बाजै, साँसाँ चालै तो यूँ लागै जिंयाँ बादल गाजै, दिवला चासाँ म्हे तो सोलह सिंगाराँ माँ साजाँ, रोज 'सुणै है कै' कै बाळो जद बोल्यो 'सुण धापाँ'।
राजस्थानी साहित्य
38 members
Description
गीत (रोज सुणै है कै)
by बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
Aug 30, 2020
रोज 'सुणै है कै' कै बाळो जद बोल्यो 'सुण धापाँ'।
सुणकै मुळकी, हुयो हियो है तब सै बागाँ बागाँ।
आज खटिनै से बागाँ माँ ये कोयलड़ी कूकी,
पाणी सिंच्यो आज बेल माँ पड़ी जकी थी सूकी,
मुख सै म्हारो नाँव सुन्यो तो म्हे तो मरग्या लाजाँ,
रोज 'सुणै है कै' कै बाळो जद बोल्यो 'सुण धापाँ'।
मनरै मरुवै री खुशबू अंगाँ सै फूटण लागी,
सगळै तन में एक धूजणी सी इब छूटण लागी,
राग सुनावै मन री कुरजाँ म्हे तो चढ़ग्या नाजाँ,
रोज 'सुणै है कै' कै बाळो जद बोल्यो 'सुण धापाँ'।
नेह-मेह बरसावण खातिर मन-बादलियो माच्यो,
आज पिया रे रंग मँ सारो मेरो तन-मन राच्यो,
सुध-बुध भूल्या पिउजी रै म्हे लारै लारै भाजाँ,
रोज 'सुणै है कै' कै बाळो जद बोल्यो 'सुण धापाँ'।
धरती पर जद पाँव पड़ै तो लागै घूंघर बाजै,
साँसाँ चालै तो यूँ लागै जिंयाँ बादल गाजै,
दिवला चासाँ म्हे तो सोलह सिंगाराँ माँ साजाँ,
रोज 'सुणै है कै' कै बाळो जद बोल्यो 'सुण धापाँ'।
मौलिक व अप्रकाशित