"ओ बी ओ चित्र से काव्य तक छंदोंत्सव" में भाग लेने हेतु सदस्य इस समूह को ज्वाइन कर ले |
आदरणीय काव्य-रसिको !
सादर अभिवादन !!
’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ तिरपनवाँ आयोजन है.
इस बार के आयोजन के लिए सहभागियों के अनुरोध पर अभी तक आम हो चले चलन से इतर रचना-कर्म हेतु एक विशेष छंद साझा किया जा रहा है।
इस बार के दो छंद हैं - कुकुभ छंद
आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ -
20जनवरी’ 24 दिन शनिवार से
21जनवरी’ 24 दिन रविवार तक
केवल मौलिक एवं अप्रकाशित रचनाएँ ही स्वीकार की जाएँगीं.
कुकुभ छंद के मूलभूत नियमों के लिए यहाँ क्लिक करें
जैसा कि विदित है, कई-एक छंद के विधानों की मूलभूत जानकारियाँ इसी पटल के भारतीय छन्द विधान समूह में मिल सकती हैं.
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आयोजन सम्बन्धी नोट :
फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ - 20 जनवरी’ 24 दिन शनिवार से 21जनवरी’ 24 दिन रविवार तक रचनाएँ तथा टिप्पणियाँ प्रस्तुत की जा सकती हैं।
अति आवश्यक सूचना :
छंदोत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
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मंच संचालक
सौरभ पाण्डेय
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम
दुष्यंत सेवक
आदरणीय संचालक महोदय,
प्रस्तुत है मेरी एक अनगढ़ रचना 🙏🏾
मॉल और गार्डन शहर के, सुख उनमें यह कहाँ भला
कच्ची मढ़ी ये गाँवों की दे, छाँह घनी और शीतला
कर किलोल आह्लादित रहते, गाँव के ये नन्हें छौने
देखकर इनके खुश चेहरे, सुख अपने लगते बौने
मौलिक एवं अप्रकाशित
Jan 20
Ashok Kumar Raktale
कुकुभ छन्द
*
नर नारायण दोनों ही जग में, आकर सुख-दुख सहते हैं।
कभी झोपड़ी को घर करते, कभी महल में रहते हैं।
खेल भाग्य का है यह सारा, ये नन्हें क्या जानेंगे।
रामचरित जब पढ़ लेंगे तो, बूझेंगे सच मानेंगे।।
*
अभी खेलकर खुश होते हैं, आपस में बतियाते हैं।
पक्के घर से ज्यादा इनको, अभी झोपड़े भाते हैं।
कल पढ़-लिखकर बच्चे सारे, बस जायेंगे शहरों में।
याद झोपड़े सब आयेंगे, इनको तब दोपहरों में।।
*
अभी शीत है किन्तु ग्रीष्म भी, आयेगा ही अब आगे।
महकेगी अमराई सारी, तब आयेंगे सब भागे।
घनी छाँव जो देखेगा तो, ठिठक पथिक रुक जाएगा।
कुछ पल को आराम करेगा, और बहुत सुख पाएगा।।
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~ मौलिक/अप्रकाशित.
Jan 21
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
नगर से दूर दृश्य गाँव का, भले ही न उस से नाता
मगर खूबियों से यह अपनी, सभी का मन है लुभाता।।
भरी दुपहरी गर्मी की यह, जब नगरों में दम घोटे
बाग बगीचे गाँवों में तब, हैं नित शीतलता बोते।।
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गर्मीं के मौसम में फिर से, लदी आम से हर डाली
बच्चे जुटकर सब आये हैं, करने इसकी रखवाली।।
शहरी बच्चों जैसे ये ना, चकाचौंध में जीते हैं।।
खुली हवा में साँसें लेते, शीतल जल पीते हैं।।
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मौलिक/अप्रकाशित
Jan 21