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Description
इस ग्रुप मे धार्मिक साहित्य और धर्म से सम्बंधित बाते लिखी जा सकती है,
by PHOOL SINGH
Jan 18
काल का नियम कठोर है होता
सभी को इसको वरना हो
श्री राम अछूते रह सके न, क्या मानव जीवन का वर्णन हो||
आते साधू रूप में काल देवता
श्री राम से वचन एक लेना हो
गुप्त बात कोई सुन सके न, इस बात की पुष्टि प्रथम हो||
मृत्यु दंड का भागी होगा
विघ्न वार्तालाप में डाले जो
लक्ष्मण को द्वारपाल बनाया, हनुमान न उपस्थित उस क्षण हो||
पूरा हुआ अब समय आपका
वैंकुंठ धाम अब चलना हो
कर्म सभी तो हो चुके हैं, अवतरण जिनकी खातिर हो||
दुर्वासा ऋषि आ तब पहुँचते
माया प्रभु की अद्भुत हो
दुनियाँ जानती उनके क्रोध को, वर-श्राप भी उनके कम न हो||
दुविधा में रहते लक्ष्मण जी है
कोई मार्ग के उनके सम्मुख हो
मृत्युदंड अब उन्हे मिलेगा, अन्यथा श्री राम श्राप के भागी हो||
मृत्युदंड है मुझको चुनना
शायद धरा छोड़ अब चलना हो
उपस्थिति बताते दुर्वासा जी की, मिलना जरूरी जिनका हो||
तर्क-वितर्ककर मिला देश निकाला
पर समाधि को स्वीकारे वो
लक्ष्मण अपने परम धाम पधारे, जहाँ भव्य स्वागत उनका हो||
विलाप में रोते श्री राम जी
ये विचित्र डरावनी घटना हो
अजेय यौद्धा कहलाते है जो, स्वयं काल से इस बार हारे वो||
विधि की लेखनी टल नहीं सकती
सीख बड़ी दे जाते वो
दशानन को मारने वाले, आज गहन सोच में डूबे हो||
भ्रात प्रेम भी बड़ा अनोखा
भाई की शक्ति कहलाता जो
एक बाजू बन साथ निभाता, असहाय दूजे को करता जो||
जीकर भी अब क्या करूँ
जब लक्ष्मण मेरे साथ न हो
कदम-कदम पर जो साथ निभाया, जग उसके बिना अब सुना हो||
सोचते सोचते दिन गुजरते
इस निर्णय पर पहुंचे वो
सरयू नदी में प्राण गँवाना, दृढ़ निश्चय मन में लाएँ वो||
विचार-विमर्श कर सभासदों से
काम का वितरण करते वो
सगे-संबंधी संग चले त्रिदश किनारे, निश्चित सरयू में उनका उतरना हो||
नारायण रूप में हुए समाहित
विष्णु रूप अवतारे जो
वैंकुंठ धाम में प्रभु पहुंचे, जो युगों-युगो से अब तक सुना हो||
स्वरचित व मौलिक रचना
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धार्मिक साहित्य
121 members
Description
इस ग्रुप मे धार्मिक साहित्य और धर्म से सम्बंधित बाते लिखी जा सकती है,
वैंकुंठधाम आगमन
by PHOOL SINGH
Jan 18
काल का नियम कठोर है होता
सभी को इसको वरना हो
श्री राम अछूते रह सके न, क्या मानव जीवन का वर्णन हो||
आते साधू रूप में काल देवता
श्री राम से वचन एक लेना हो
गुप्त बात कोई सुन सके न, इस बात की पुष्टि प्रथम हो||
मृत्यु दंड का भागी होगा
विघ्न वार्तालाप में डाले जो
लक्ष्मण को द्वारपाल बनाया, हनुमान न उपस्थित उस क्षण हो||
पूरा हुआ अब समय आपका
वैंकुंठ धाम अब चलना हो
कर्म सभी तो हो चुके हैं, अवतरण जिनकी खातिर हो||
दुर्वासा ऋषि आ तब पहुँचते
माया प्रभु की अद्भुत हो
दुनियाँ जानती उनके क्रोध को, वर-श्राप भी उनके कम न हो||
दुविधा में रहते लक्ष्मण जी है
कोई मार्ग के उनके सम्मुख हो
मृत्युदंड अब उन्हे मिलेगा, अन्यथा श्री राम श्राप के भागी हो||
मृत्युदंड है मुझको चुनना
शायद धरा छोड़ अब चलना हो
उपस्थिति बताते दुर्वासा जी की, मिलना जरूरी जिनका हो||
तर्क-वितर्ककर मिला देश निकाला
पर समाधि को स्वीकारे वो
लक्ष्मण अपने परम धाम पधारे, जहाँ भव्य स्वागत उनका हो||
विलाप में रोते श्री राम जी
ये विचित्र डरावनी घटना हो
अजेय यौद्धा कहलाते है जो, स्वयं काल से इस बार हारे वो||
विधि की लेखनी टल नहीं सकती
सीख बड़ी दे जाते वो
दशानन को मारने वाले, आज गहन सोच में डूबे हो||
भ्रात प्रेम भी बड़ा अनोखा
भाई की शक्ति कहलाता जो
एक बाजू बन साथ निभाता, असहाय दूजे को करता जो||
जीकर भी अब क्या करूँ
जब लक्ष्मण मेरे साथ न हो
कदम-कदम पर जो साथ निभाया, जग उसके बिना अब सुना हो||
सोचते सोचते दिन गुजरते
इस निर्णय पर पहुंचे वो
सरयू नदी में प्राण गँवाना, दृढ़ निश्चय मन में लाएँ वो||
विचार-विमर्श कर सभासदों से
काम का वितरण करते वो
सगे-संबंधी संग चले त्रिदश किनारे, निश्चित सरयू में उनका उतरना हो||
नारायण रूप में हुए समाहित
विष्णु रूप अवतारे जो
वैंकुंठ धाम में प्रभु पहुंचे, जो युगों-युगो से अब तक सुना हो||
स्वरचित व मौलिक रचना