चित्र से काव्य तक

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'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167

आदरणीय काव्य-रसिको !

सादर अभिवादन !!

  

’चित्र से काव्य तक छन्दोत्सव का यह एक सौ सड़सठवाँ योजन है।.   

 

छंद का नाम  -  दोहा छंद  

आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ - 

17 मई’ 25 दिन शनिवार से

18 मई 25 दिन रविवार तक

केवल मौलिक एवं अप्रकाशित रचनाएँ ही स्वीकार की जाएँगीं.  

दोहा छंद के मूलभूत नियमों के लिए यहाँ क्लिक करें

जैसा कि विदित है, कई-एक छंद के विधानों की मूलभूत जानकारियाँ इसी पटल के  भारतीय छन्द विधान समूह में मिल सकती हैं.

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आयोजन सम्बन्धी नोट 

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ -

17 मई’ 25 दिन शनिवार से 18 मई 25 दिन रविवार तक  रचनाएँ तथा टिप्पणियाँ प्रस्तुत की जा सकती हैं। 

अति आवश्यक सूचना :

  1. रचना केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, अन्य सदस्य की रचना किसी और सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी.
  2. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
  3. सदस्यगण संशोधन हेतु अनुरोध  करें.
  4. अपने पोस्ट या अपनी टिप्पणी को सदस्य स्वयं ही किसी हालत में डिलिट न करें. 
  5. आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति संवेदनशीलता आपेक्षित है.
  6. इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं.
  7. रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. 
  8. अनावश्यक रूप से रोमन फाण्ट का उपयोग  करें. रोमन फ़ॉण्ट में टिप्पणियाँ करना एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.
  9. रचनाओं को लेफ़्ट अलाइंड रखते हुए नॉन-बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें. अन्यथा आगे संकलन के क्रम में संग्रहकर्ता को बहुत ही दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.

छंदोत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...


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मंच संचालक
सौरभ पाण्डेय
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम  

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    pratibha pande

    छिपन छिपाई खेलता,सूूरज मेघों संग।

    गर्मी के इस बार कुछ, नर्म लग रहे रंग।।
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    पथिक थका रवि से कहे, मत कर इतना काम।
    बादल को तू ओढ़कर, कर ले कुछ आराम।।
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    मौसम कभी सुहावना,कभी बढ़ रहा ताप।
    बिन पानी के धूप में,कभी न निकलें आप।।
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    सादा शीतल जल पियें, लिम्का कोला छोड़।
    गर्मी का कुछ है नहीं, इससे अच्छा तोड़।।
    --
    चलता जा रे ओ पथिक,दूर बहुत है गाँव।
    कहाँ बचे हैं पेड़ अब,जो तू ढूँढे छाँव।।
    --
    अब तो घर- घर आ गया, पानी बोतलबंद। 
    उँटनी भी कहने लगी, इसको सेहतमंद। ।
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    पानी उसका रोककर, हम करते एलान। 
    नहीं रक्त के साथ जल, दुश्मन ले यह जान।।
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    मौलिक व अप्रकाशित 
     
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    सदस्य कार्यकारिणी

    मिथिलेश वामनकर

    दोहा छंद

    गर्मी में है वायरल, नया नवेला ट्रेंड।
    प्यास कहे बोतल सुनो,तुम ही सच्ची फ्रेंड।।

    पानी भी अब प्यास से, बन बैठा अनजान।
    आज गले में फंस गया, जैसे रेगिस्तान।।

    देख पसीने में घुला, तन का सारा मैल।
    टेढ़ी नज़रें मारता, सूरज है गुस्सैल।।

    धरती की बहुएं हवा, सागर इसका सेठ।
    सूरज ने बतला दिया, क्या होता है जेठ।।

    खूब तपन समझा रही, क्या होता इज़हार।
    अब तो ए.सी. में दिखा, अपना पावन प्यार।।

    सूरज क्रोधित देखकर, हवा हुई नासाज।
    अम्बर से गायब हुए, बादल डरकर आज।।

    अमराई ने थाम ली, तीखी धूप कटार।
    छांव पसीना पोंछने, लाई तनिक बयार।।

    फ्री के प्रेमी लीजिए, पग से लेकर माथ।
    सूरज खुद देने लगा, फ्री का सौना बाथ।।

    मौलिक एवं अप्रकाशित

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    सदस्य टीम प्रबंधन

    Saurabh Pandey

    जागृत माँ पीतांबरा, दर्शन का शुभ-काल

    सड़क मार्ग पर हूँ अभी, झाँसी से भोपाल 

    कठिन है रचना पढ़ना 

    और फिर..

    कुछ भी कहना 

    आप सब दशा समझना

    🙏🙏

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