चित्र से काव्य तक

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'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 168

आदरणीय काव्य-रसिको !

सादर अभिवादन !!

  

’चित्र से काव्य तक छन्दोत्सव का यह एक सौ अड़सठवाँ योजन है।.   

 

छंद का नाम  -  कुण्डलिया छंद  

आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ - 

21 जून’ 25 दिन शनिवार से

22 जून 25 दिन रविवार तक

केवल मौलिक एवं अप्रकाशित रचनाएँ ही स्वीकार की जाएँगीं.  

कुण्डलिया छंद के मूलभूत नियमों के लिए यहाँ क्लिक करें

जैसा कि विदित है, कई-एक छंद के विधानों की मूलभूत जानकारियाँ इसी पटल के  भारतीय छन्द विधान समूह में मिल सकती हैं.

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आयोजन सम्बन्धी नोट 

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ -

21 जून’ 25 दिन शनिवार से 22 जून 25 दिन रविवार तक रचनाएँ तथा टिप्पणियाँ प्रस्तुत की जा सकती हैं। 

अति आवश्यक सूचना :

  1. रचना केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, अन्य सदस्य की रचना किसी और सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी.
  2. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
  3. सदस्यगण संशोधन हेतु अनुरोध  करें.
  4. अपने पोस्ट या अपनी टिप्पणी को सदस्य स्वयं ही किसी हालत में डिलिट न करें. 
  5. आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति संवेदनशीलता आपेक्षित है.
  6. इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं.
  7. रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. 
  8. अनावश्यक रूप से रोमन फाण्ट का उपयोग  करें. रोमन फ़ॉण्ट में टिप्पणियाँ करना एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.
  9. रचनाओं को लेफ़्ट अलाइंड रखते हुए नॉन-बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें. अन्यथा आगे संकलन के क्रम में संग्रहकर्ता को बहुत ही दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.

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मंच संचालक
सौरभ पाण्डेय
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम  

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    अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव

    कुंडलिया छंद

    +++++++++

    सारे चैनल देखिए, पढ़िए सब अखबार्।

    योग शक्ति को मानता, अब सारा संसार॥

    अब सारा संसार, मनाता दिवस योग का।

    जड़ से होता नाश , पुराने सभी रोग का॥

    डाक्टर भागे दूर, न आते द्वार हमारे।

    आसन प्राणायाम , करें जब घर में सारे॥

     

    शाला में अनिवार्य हो, आसन प्राणायाम्।

    रोग बने ना  जिंदगी, बोझ लगे ना काम॥

    बोझ लगे ना काम, न भटके बच्चों का मंन।

    सुबह करें फिर शाम, स्वस्थ होगा सबका तन॥

    हर अवगुण से मुक्त , रहे गुरु बालक बाला।

    करें योग अनिवार्य, निजी हो चाहे शाला॥

     

    भगवन नाम बिगाड़ते, शिक्षित नास्तिक लोग।

    योगा कहते योग को, यह भी है इक रोग॥

    यह भी है इक रोग, यार को कहते यारा।

    गुरु ही देंगे ज्ञान, योग है अविरल धारा॥

    मन है अभी गुलाम, सत्य कहने में अड़चन।

    अज्ञानी हैं लोग, ज्ञान दो इनको भगवन॥

     

    +++++++++++++

    मौलिक अप्रकाशित

     

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    सुरेश कुमार 'कल्याण'

    कुंडलिया छंद

    ***********

    पढ़ना लिखना सीखते, नन्हें - नन्हें बाल।

    मिलकर करते योग सब, मिला ताल से ताल।

    मिला ताल से ताल, जगे यह दुनिया सारी।

    छूमंतर हों रोग, योग जब पड़ता भारी।

    सुन लो रे ' कल्याण ', योग की सीढ़ी चढ़ना।

    तेज रहे मस्तिष्क, खूब तुम लिखना पढ़ना।।

    **********

    योगी जन सब योग को, देते नव आयाम।

    बाल सभी मिल सीखते, आसन प्राणायाम।

    आसन प्राणायाम, हरें सब पीर बदन की।

    काया हो नीरोग, कली ज्यों खिले चमन की।

    जागो रे ' कल्याण ', पड़े क्यों बनकर भोगी।

    चमकालो तकदीर, छोड़ कर आलस योगी।।

    ************

    मौलिक एवं अप्रकाशित 

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  • up

    Hariom Shrivastava

    -कुण्डलिया छंद-

    1-

    कुण्डलिया लिखने दिया, योग दिवस का चित्र।

    छंदोत्सव में योग पर, लिखना  सबको  मित्र।।

    लिखना सबको मित्र, योग  के  लाभ  समूचे।

    पहुँचाना   है   योग,  गली   हर   कूचे-कूचे।।

    रहें स्वस्थ सब लोग, लगे  खुशहाली  दिखने।

    इस कारण यह चित्र, दिया कुण्डलिया लिखने।।

    2-

    सिखलाया जाए अगर, बचपन से ही योग।

    तो  जीवनभर  व्यक्ति  से, दूर  रहेंगे  रोग।।

    दूर  रहेंगे  रोग,  स्वस्थ  होगी  तब  काया।

    काम  करेंगे  लोग, बढ़ेगी  घर  में  माया।।

    योग दिवस का पर्व, सभी ने साथ मनाया।

    छात्रों को भी योग, शिक्षकों ने सिखलाया।।

    3-

    बचपन से जो भी करे, योग और व्यायाम।

    इच्छाओं की वह सदा, रखता कसी लगाम।

    रखता कसी लगाम, नियम यम संयम करके।

    आधि-व्याधियाँ  दूर,  रहें  उससे  डर-डर के।।

    योग रखे सम्पन्न, व्यक्ति को तन-मन-धन से।

    रहना  जिसे  प्रसन्न, योग  सीखे  बचपन से।।

     

    (मौलिक एवं अप्रकाशित)

    -हरिओम श्रीवास्तव-

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