चित्र से काव्य तक

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'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171

आदरणीय काव्य-रसिको !

सादर अभिवादन !!

  

’चित्र से काव्य तक छन्दोत्सव का यह एक सौ एकहत्तरवाँ योजन है।

 .   

 

छंद का नाम  -  मुकरिया/ कहमुकरिया छंद  

आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ - 

20 सितंबर’ 25 दिन शनिवार से

21 सितंबर 25 दिन रविवार तक

केवल मौलिक एवं अप्रकाशित रचनाएँ ही स्वीकार की जाएँगीं.  

मुकरिया/ कहमुकरिया छंद के मूलभूत नियमों के लिए यहाँ क्लिक करें

जैसा कि विदित है, कई-एक छंद के विधानों की मूलभूत जानकारियाँ इसी पटल के  भारतीय छन्द विधान समूह में मिल सकती हैं.

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आयोजन सम्बन्धी नोट 

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ - 20 सितंबर’ 25 दिन शनिवार से 21 सितंबर 25 दिन रविवार तक रचनाएँ तथा टिप्पणियाँ प्रस्तुत की जा सकती हैं। 

अति आवश्यक सूचना :

  1. रचना केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, अन्य सदस्य की रचना किसी और सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी.
  2. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
  3. सदस्यगण संशोधन हेतु अनुरोध  करें.
  4. अपने पोस्ट या अपनी टिप्पणी को सदस्य स्वयं ही किसी हालत में डिलिट न करें. 
  5. आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति संवेदनशीलता आपेक्षित है.
  6. इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं.
  7. रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. 
  8. अनावश्यक रूप से रोमन फाण्ट का उपयोग  करें. रोमन फ़ॉण्ट में टिप्पणियाँ करना एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.
  9. रचनाओं को लेफ़्ट अलाइंड रखते हुए नॉन-बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें. अन्यथा आगे संकलन के क्रम में संग्रहकर्ता को बहुत ही दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.

छंदोत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...


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मंच संचालक
सौरभ पाण्डेय
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम  

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  • up

    pratibha pande

    कभी इधर है कभी उधर है

    भाती कभी न एक डगर है

    इसने कब किसकी है मानी

    क्या सखि साजन? नहीं जवानी

    __

    खींच- खाँच कर इसे सँभाला

    फिर भी बढ़ता भ्रम का जाला

    कच्ची ही रहती है सींवन

    क्या सखि साजन?ना सखि जीवन

    __

    मुझे दूर से पास बुलाता

    छूना चाहूँ फुर हो जाता

    कभी पराया कभी है अपना

    क्या सखि साजन?ना सखि सपना

    __

    रातों की नींदें उड़वाती

    खड़ी दूर ही है मुस्काती

    बिन इसके न मिले छोकरी

    क्या सखि साजन?नहीं नौकरी

    ____

    मौलिक व अप्रकाशित 

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    Ashok Kumar Raktale

    कह-मुकरी

    *

    प्रश्न नया नित जुड़ता जाए

    एक नहीं वह हल कर पाए

    थक-हार गया वह खेल जुआ

    क्या सखि साजन? ना सखी युवा।।

    *

    उसके वादे उस पर भारी

    लाख  करे  चाहे   तैयारी

    कहता है कुछ, कुछ है देता

    क्या सखि साजन? ना सखि नेता।।

    *

    रोज निकल बाहर आता है

    सिर खुद का फिर खुजलाता है

    देख जगत की फैली माया।

    क्या सखि साजन ? ना सखि साया।।  

    #

    मौलिक/अप्रकाशित.

    7
  • up

    Ashok Kumar Raktale

        

    कह-मुकरी

    *

    हर दिन कितने प्रश्न छुड़ाए

    मेरे मन को वह  अति भाए।

    देख  उसे  पर  लगता  डर।

    क्या सखि साजन? ना कंप्यूटर।।

    *

    रोम-रोम  जोड़े  वह नाता।

    कभी प्रश्न भी  कई  उठाता।

    कभी करे वह मुश्किल जीना।

    क्या सखि साजन? नहीं पसीना।।

    *

    वह  सच्चा  है  मन को भाता।

    कभी न अपनी पीठ दिखाता।

    है   शृंगार   उसे   ये   अर्पण।

    क्या सखि साजन? ना सखि दर्पण।।

    #

    मौलिक/अप्रकाशित.

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