इबकाळ रामजी न जाण के सूझी, क बरसण क दिनां मं च्यारूँ कान्या तावड़ की बळबळती सिगड़ी सिलागायाँ बठ्यो है | जठे देखो बठे ई लोग-लुगावड़ियां में कि बाट देखता-देखता आकता होगा | खेतां मायलो बीज निपजणों भूलगो | तपत तावड़ के मायनं टाबरां का पसीन स चिड़पड़ा होयोड़ा मूंडां न देखतां निगावां होठां प आयोड़ी सूखी फेफड़ी पर जाक थम ज्याव | पण कर तो के कर , सारो कुण् लगाव | सगळा एक-दूसर न देख ले और फेरूँ आसमान कानी देखण लागज्या हैं | एक कानी जांटी कि छाया म बठ्यो गण्डकङो जीब बारणै काड राखी है | गर्मी क मार ऊंकी ल्हक-ल्हक डट ई कोन्या | रामजी सैँकी पत् राखण हाळो है, बं ई न याद करो., सगळा मिल रामजी न याद करण लागज्या है.... रामजी , गेर दे छाँट र | ल्हुका-छिपि क्यांले कर्र्यो , क्यांकि आंट र | रामजी , गेर दे छाँट र |
तीतरपंखी बादळ आव | बिन बरसे पाछा जाव | पीण न पाणी कोनी | तुरत तरस दिखलाव | ल्हुका-छिपि क्यांले कर्र्यो , क्यांकि आंट र | रामजी , गेर दे छाँट र |
कळियाँ काची कई तोड़ली | मँहगाई है घणी खोड़ली | पण राम-रुखाळा सबका | तू निठुराई कयां ओढ़ली | ल्हुका-छिपि क्यांले कर्र्यो , क्यांकि आंट र | रामजी , गेर दे छाँट र |
देखतां -देखतां छांट पड़ण लागज्या है, बो रामजी घणों दयालु है. (गंगा धर शर्मा 'हिन्दुस्तान')
राजस्थानी साहित्य
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Description
सावण सूखो क्यूँ !
by Ganga Dhar Sharma 'Hindustan'
Mar 4, 2016
सावण सूखो क्यूँ !
एक कानी जांटी कि छाया म बठ्यो गण्डकङो जीब बारणै काड राखी है | गर्मी क मार ऊंकी ल्हक-ल्हक डट ई कोन्या |
रामजी सैँकी पत् राखण हाळो है, बं ई न याद करो., सगळा मिल रामजी न याद करण लागज्या है....
रामजी , गेर दे छाँट र |
ल्हुका-छिपि क्यांले कर्र्यो , क्यांकि आंट र |
रामजी , गेर दे छाँट र |
तीतरपंखी बादळ आव |
बिन बरसे पाछा जाव |
पीण न पाणी कोनी |
तुरत तरस दिखलाव |
ल्हुका-छिपि क्यांले कर्र्यो , क्यांकि आंट र |
रामजी , गेर दे छाँट र |
कळियाँ काची कई तोड़ली |
मँहगाई है घणी खोड़ली |
पण राम-रुखाळा सबका |
तू निठुराई कयां ओढ़ली |
ल्हुका-छिपि क्यांले कर्र्यो , क्यांकि आंट र |
रामजी , गेर दे छाँट र |
(गंगा धर शर्मा 'हिन्दुस्तान')