गुड्डू, गोविंद और गोपी तीनों अलग अलग कक्षाओं के थे और तीनों दोस्त भी नहीं थे। स्कूल में आज फिर वे तीनों न तो मध्यान्ह अवकाश में अपना मनपसंद गेम खेल पाये थे और न ही इस समय खेल के पीरियड में उन्हें उनकी कक्षा के साथियों ने अपने साथ किसी खेल में शामिल किया था।
अचानक गुड्डू के मन में कुछ सूझा। अपने-अपने खाली टिफ़िन के साथ वह उन दोनों को शौचालय के पास के छोटे मैदान की ओर ले गया। खो-खो के खेल की तरह तीनों अपने-अपने टिफ़िन लेकर एक पंक्ति में उकड़ू बैठ गये। अंतिम छोर पर बैठे गुड्डू ने अपने क्षेत्र के कंकड़ पत्थर बीने। बीच में बैठे गोविंद ने अपने क्षेत्र के और शौचालय की तरफ़ के क्षेत्र के कंकड़-पत्थर गोपी ने बीने। फिर तीनों ने गत्ते के एक बड़े से डब्बे में अपने-अपने टिफ़िन उड़ेल दिये।
अब गोविन्द के मन में कुछ सूझा। उसकी सलाह पर वे तीनों शौचालय के आसपास की खर-पतवार और फ़ालतू नुकसानदायक पौधे-झांड़ियां उखाड़ने लगे। कुछ ही समय में शौचालय के आसपास स्वच्छता और अधिक जगह दिखाई देने लगी। दूर धूप में बैठी एक चपरासी आंटी यह सब देख रहीं थीं। उन्होंने एक महिला शिक्षक को सारी बात बतायी और फिर वे दोनों उन तीनों बच्चों के पास पहुंची। गुड्डू ने उन्हें खो-खो, क्रिकेट, फुटबॉल और हैंडबॉल खेलने वाले विद्यार्थियों के उनके प्रति उपेक्षापूर्ण रवैए के बारे में बताते हुए उन तीनों के खेल के इस अंदाज़ के बारे में बताते हुए कहा - "देखिए, अब यहां आने में कोई लड़की नहीं डरेगी। यहां भी हम खो-खो या कबड्डी खेल सकेंगे। चपरासी आंटी शर्मिंदा सी हो गईं। उनका काम इन बच्चों ने कर दिखाया था। शिक्षिका उन तीनों को प्राचार्य महोदया के पास ले गईं, जहां उन्हें न केवल शाबासी मिली, बल्कि खेल शिक्षक को बुलवाकर अगले सप्ताह के लिए उन्हें हैंडबॉल दिये जाने की अनुमति भी दी गई। वे तीनों बड़ी ख़ुशी के साथ अपनी-अपनी कक्षाओं में पहुंच गये।
(मौलिक व अप्रकाशित)
Deepak Sharma Kuluvi
really wonderful sir
Deepak kuluvi
May 12, 2020