सामाजिक सरोकार

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बहस और तर्क में अंतर

बहस और तर्क में अंतर होता है
ये बात बहुत बारीक लकीर के अंतर से समझी जा सकती है
तर्क
आप तब करते है जब आपको किसी विषय की जानकारी होती है
तथ्यों के साथ , उदाहरण के साथ और सटीक आंकड़ों के साथ
लेकिन बहस
बहस एक उन्मांद सा है किसी भी विषय पर
बिना समझे कुछ कह देना और फिर अपने को सही साबित करने के लिए कुतर्कों का सहारा लेना
हो सकता है तर्क कभी कभी बहस बन जाये . लेकिन तर्कों की अपनी एक पहचान और एक स्थान होता है जिसे सुनने वाला विचारता भी है
लेकिन बहस के बाद हासिल कुछ नही होता
बुद्धिमान होना अथवा खुद को प्रमाणित करना दो अलग बातें है
एक है कोशिश अर्थात जैसे किसी विषय के को साबित करने के पीछे कुछ भी कहना बहस कहलाएगी

कोई तर्क को काटने निकल पड़े तो काट सकता है लेकिन हाथ कुछ नहीं लगेगा। बेशक़ खुश हो ले कि मैंने तुम्हारे बात को काट दिया, लेकिन हाथ कुछ लगेगा नहीं , बल्कि बहस में बदल जायेगा मुद्दा ।
और अपनी बात को समझाने के लिहाज़ से कुछ कहना तर्क के श्रेणी में आएगा

मतलब ये भी है कि हम जो भी संवाद करते हैं, तो दूसरे तरीके से सुनना भी पड़ेगा । क्योंकि हम जितनी भी बातें कर रहे हैं उनको काटना बड़ा आसान है । हम बातें कर रहे हैं ‘शब्द’ से तो निश्चित रूप से हम जितनी भी बातें कर रहे हैं वो क्या हैं ? अधूरी हैं
और अगर कोई उसको काटने पर उतारू हो तो काट सकता है। अभी यहाँ पर एक सूक्ष्म बुद्धि का आदमी बैठा दिया जाए जिसने तय ही कर रखा हो कि कुतर्क करना है, तो वो जीत जाएगा। वो तय कर के आया होता है

व्यक्ति अधूरे ज्ञान से ही अपने आप को विद्वान् समझने लगते हैं और शेखी बघारने के लिए खुद को विद्वान् प्रमाणित करने की कोशिश करते है इसके लिए वें दूसरे के वार्तालाप के वक़्त अपना सुझाव पेश करके उस पर बहस करने पर उतारू हो जाते हैं जिसके कारण उन्हें अपमानित होना पड़ता है । परन्तु अधूरे ज्ञानी इंसानों की बहस करने की आदत उन्हें बार बार किसी के भी वार्तालाप में हस्तक्षेप करने के लिए उकसाती है इससे बचिए ।
ज्ञान हासिल कीजिये फिर खुद को उसकी कसौटी पर परखिये
अगर आप अपना स्केल खुद बनाते है तो आपसे ज्यादा समझदार कोई नही हो सकता
अपने कथन को बार बार दोहरा कर उसे प्रमाणित करने की कोशिश करता है कोई जब तो वह प्रयास उसके द्वारा करी गई बहस कहलाती है ।

आमतौर पर, जब विचारों में मतभेद होता है तो दो लोगों के बीच बहस होना आम बात है। कभी−कभी बात हद तक बढ़ जाती है कि एक आम बहस बड़ी लड़ाई का रूप ले लेती है। जब भी बहस होती है तो दोनों पक्ष यही चाहते हैं कि जीत उन्हीं की हो ।
बचिए बहस से
तर्क को बहस की जरूरत नही तर्क के पीछे तथ्य होते है
लेकिन बहस के पीछे सपाट जमीन
इसलिए सुनना सीखें

किसी भी बहस को जीतने का एक मकसद बोलना नहीं बल्कि सुनना है। किसी भी बहस में हर कोई पहले अपनी बात को रखना चाहता है। ऐसे में कोई भी दूसरे के मुद्दे को समझ नहीं पाता और बहस किसी भी मंजिल पर नहीं पहुंचती। इससे बचने का सबसे अच्छा तरीका है कि आप सबसे पहले शांतिपूर्वक दूसरे की बात सुनें।
ध्यान दें :-
♦️धर्मपर तर्क करने वाले से बहस नही करना चाहिए उन्हें छोड़ दे ,
( balshiv )
♦️ आत्मा तर्क से परास्त हो सकती है, पर परिणाम का भय तर्क से दूर नही होता. वह पर्दा चाहता है. -प्रेमचंद
!!
मनु काव्यात्मक एडवाइजर ,