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Description
by Sheikh Shahzad Usmani
Jun 3, 2019
कबूतर बाजी आ गईंबालकनी पर बैठ गईं।
लू-लपटें चल रहींआसरा वो ढूंढ रहीं।
कबूतर बाजी अंदर आईंफ्लैट पूरा जब घूम आईं।
मिला न कोई अड्डा मन कापंखों से था ख़तरा तन का।
कौने में दुबक कर बैठ गईंजैसे-तैसे प्राण बचा पाईं।
चुन्नी ने पंखे ऑफ़ कियेकबूतरनी के फोटो लिये।
सेल्फ़ी भी ख़ूब ली गईंखाना-पानी ही भूल गईं।
रात जब होने को आईचुन्नी को अब याद आई।
भोजन-पानी भर कटोरीपास कबूतरनी रख आईं।
बड़े सबेरे दुपट्टा फैंकाकबूतरनी पकड़ न पाईं।
पंख ताक़त से फड़फड़ाकरकबूतर बाजी अब उड़ पाईं।
नज़र गई दरवाज़े पर जबठंडी हवा में वो भाग पाईं।
चुन्नी खड़ी हो बालकनी परटाटा कर वीडियो बना रहीं।
कबूतर बाजी गोते लगाकरसाथियों संग अब उड़ती रहीं।
(मौलिक व अप्रकाशित)शेख़ शहज़ाद उस्मानीशिवपुरी (मध्यप्रदेश)[03 जून, 2019]
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बाल साहित्य
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Description
चुन्नी की बाजीजान (बाल-कविता)
by Sheikh Shahzad Usmani
Jun 3, 2019
कबूतर बाजी आ गईं
बालकनी पर बैठ गईं।
लू-लपटें चल रहीं
आसरा वो ढूंढ रहीं।
कबूतर बाजी अंदर आईं
फ्लैट पूरा जब घूम आईं।
मिला न कोई अड्डा मन का
पंखों से था ख़तरा तन का।
कौने में दुबक कर बैठ गईं
जैसे-तैसे प्राण बचा पाईं।
चुन्नी ने पंखे ऑफ़ किये
कबूतरनी के फोटो लिये।
सेल्फ़ी भी ख़ूब ली गईं
खाना-पानी ही भूल गईं।
रात जब होने को आई
चुन्नी को अब याद आई।
भोजन-पानी भर कटोरी
पास कबूतरनी रख आईं।
बड़े सबेरे दुपट्टा फैंका
कबूतरनी पकड़ न पाईं।
पंख ताक़त से फड़फड़ाकर
कबूतर बाजी अब उड़ पाईं।
नज़र गई दरवाज़े पर जब
ठंडी हवा में वो भाग पाईं।
चुन्नी खड़ी हो बालकनी पर
टाटा कर वीडियो बना रहीं।
कबूतर बाजी गोते लगाकर
साथियों संग अब उड़ती रहीं।
(मौलिक व अप्रकाशित)
शेख़ शहज़ाद उस्मानी
शिवपुरी (मध्यप्रदेश)
[03 जून, 2019]