बोध
फैंसी ड्रैस का आयोजन था।वृद्धाश्रम के सभी वृद्ध तरह - तरह की वेशभूषा में सजे थे। कोई किसान,कोई सब्जी बेचने वाला,कोई पुजारी ,कोई माली तो कोई संत। उन्हीं में से एक वृद्धा ने कटोरा हाथ में लिया व अपनी वेशभूषा के अनुरूप वह भीख माँगने लगी।
फैंसी ड्रेस का माहौल ही बदल गया। सबके हाथ पीछे हट गए,आँखे पनीली हो गईं,ह्रदय करूण भाव से भर गया ।सभी के मन के एक कोने में एक बोध , एक पछतावा, एक पश्चाताप सा जाग गया।सब यही सोच रहे थे ओह! ये हमने क्या कर दिया।सबकी संवेदना ने विचारों पर ताला लगा दिया ये दृश्य सबकी बर्दाश्त के बाहर था । सब ये भूल गए कि वे फैंसी ड्रेस के आयोजन में बैठे हैं।अचानक से जज बनी यौवना उठी व वृद्धा के हाथ से कटोरा छीन कर केवल यही बोल पाई मुझे माफ कर दीजिए,मुझे माफ कर दीजिए! और अपनी सास के पाँवों में गिर कर वह बोली माताजी अब मैं आपको यहाँ नहीँ रहने दूँगी।
आप अपनी मौलिक व अप्रकाशित रचनाएँ इस लिंक के माध्यम से पोस्ट कर सकती है. इस लिंक से रचना के विषय, रचना और टैग के बॉक्स आयेंगे. टैग बॉक्स में रचना की विधा यथा लघुकथा, गीत, ग़ज़ल, कविता आदि लिखने है सादर
आदरणीय मिथिलेश जी,सौरभ जी,आदरणीया प्राची जी,कान्ता राय जी,नीरज शर्मा जी आप सभी का ह्रदय तल से आभार !
मुझे बहुत कुछ सीखना है आप सभी से।सो कृपा बनाए रखें इस अभिलाषा के साथ पुनः धन्यवाद!
सादर ममता
आदरणीय मिथिलेश जी नमस्कार! एकप्रश्न मन में है कि कोई भी रचना अगर छपी नहीं है तो इसका प्रमुख कारण क्या हो सकता है ? और
अगर उसमें संशोधन किया जाए तो क्या पुनः प्रेषित की जा सकती है? कृपया शंका निवारण कीजिए।
सादर ममता
सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर
स्वागत अभिनन्दन
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Jul 13, 2015
Mamta
फैंसी ड्रैस का आयोजन था।वृद्धाश्रम के सभी वृद्ध तरह - तरह की वेशभूषा में सजे थे। कोई किसान,कोई सब्जी बेचने वाला,कोई पुजारी ,कोई माली तो कोई संत। उन्हीं में से एक वृद्धा ने कटोरा हाथ में लिया व अपनी वेशभूषा के अनुरूप वह भीख माँगने लगी।
फैंसी ड्रेस का माहौल ही बदल गया। सबके हाथ पीछे हट गए,आँखे पनीली हो गईं,ह्रदय करूण भाव से भर गया ।सभी के मन के एक कोने में एक बोध , एक पछतावा, एक पश्चाताप सा जाग गया।सब यही सोच रहे थे ओह! ये हमने क्या कर दिया।सबकी संवेदना ने विचारों पर ताला लगा दिया ये दृश्य सबकी बर्दाश्त के बाहर था । सब ये भूल गए कि वे फैंसी ड्रेस के आयोजन में बैठे हैं।अचानक से जज बनी यौवना उठी व वृद्धा के हाथ से कटोरा छीन कर केवल यही बोल पाई मुझे माफ कर दीजिए,मुझे माफ कर दीजिए! और अपनी सास के पाँवों में गिर कर वह बोली माताजी अब मैं आपको यहाँ नहीँ रहने दूँगी।
सादर ममता
Jul 22, 2015
Mamta
सादर ममता
Jul 22, 2015
सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर
आदरणीया ममता जी, रचना आपके पेज पर पोस्ट हो गई है. रचनाएँ ब्लोग्स के माध्यम से पोस्ट की जानी है, रचना भेजने के लिए लिंक
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आप अपनी मौलिक व अप्रकाशित रचनाएँ इस लिंक के माध्यम से पोस्ट कर सकती है. इस लिंक से रचना के विषय, रचना और टैग के बॉक्स आयेंगे. टैग बॉक्स में रचना की विधा यथा लघुकथा, गीत, ग़ज़ल, कविता आदि लिखने है सादर
Jul 22, 2015
सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर
स्वागत है.
Jul 23, 2015
Mamta
मुझे बहुत कुछ सीखना है आप सभी से।सो कृपा बनाए रखें इस अभिलाषा के साथ पुनः धन्यवाद!
सादर ममता
Aug 11, 2015
Mamta
अगर उसमें संशोधन किया जाए तो क्या पुनः प्रेषित की जा सकती है? कृपया शंका निवारण कीजिए।
सादर ममता
Aug 12, 2015