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ग़मज़दा आँखों का पानी
बोलता है बे-ज़बानी
मार ही डालेगी हमको
आज उनकी सरगिरानी
आपकी हर बात वाजिब
और हमारी लंतरानी
जाने किसकी बद्दुआ है
वक़्त-ए-गर्दिश जाँ-सितानी
दर्द-ओ-ग़म रास आ रहे हैं
बुझ रही है ज़िंदगानी
कौन जाने कब कहाँ से
आये मर्ग-ए-ना-गहानी
ले के फागुन आ गया फिर
फ़स्ल-ए-गुल की छेड़खानी
कैसे मैं समझाऊँ ख़ुद को
संग दिल है मेरा जानी
बोलते हैं चोर अक्सर
शाह ख़ुद को ख़ानदानी
कौन जाने रूह क्या है
फ़ानी है या जावेदानी
मुफ़्लिसी सोती है 'आज़ी'
ओढ़कर रंग आसमानी
(मौलिक व अप्रकाशित)
Aazi Tamaam
बहुत बहुत शुक्रिया ज़र्रानवाज़ी का आ श्याम जी
May 25
सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर
आदरणीय आज़ी तमाम जी, बढ़िया ग़ज़ल हुई है। शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल फरमाएं। सादर।
Jun 2
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
आ. भाई आजी तमाम जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।
Jun 2