श्वेत हूँ मैं , और श्याम भी मैंं । मैं ही क्रोध हूँ, और काम भी मैं। उस ईश्वर का मैं रूप नहीं, स्वयं ईश्वर हूँ, मैं दूत नहीं।
एक ही सत्य है, "मैं"
कर्म भी मैं हूँ, और फल भी मैं, धर्म भी मैं, और अधर्म भी मैं। कर्ता भी मैं, और कांड भी मैं, विपत्ति भी मैं, और समाधान भी मैं। तुम जितना मुझमें समाओगे, उतना ही मुझको पाओगे।
एक ही सत्य है, "मैं"
कण-कण में मैं , रज़-रज़ में मैं , उत्थान, पतन और निर्माण भी मैं। यश भी मै सम्मान भी मैं सिर पर चढ जाऊँ तो अभिमान भी मैं तुम जितना मुझको सिमरोगे, तुम उतना ही मुझमें समाओगे।
एक ही सत्य है, "मैं"
शब्द भी मैं, संगीत भी मैं, जीवन का मधुमय गीत भी मैं। सूक्ष्म भी मैं, विशाल भी मैं, सुई भी मैं, तलवार भी मैं। तेरा तन भी मैं, तेरा मन भी मैं, अस्तित्व भी मैं, व्यक्तित्व भी मैं। तुम मुझको छोड़ नहीं सकते, मुँह मुझसे मोड़ नहीं सकते।
एक ही सत्य है, "मैं"
तेरा सत्य भी मैं, तेरा भ्रम भी मैं, तेरा योग भी मैं, तेरा भोग भी मैं। तेरा रोग भी मैं तेरा उपचार भी मैं अस्थि-मज्जा साकार भी मैं सिरा में दौडता रक्त भी मैंं आती-जाती हर श्वांस भी मैं तेरे रग-रग में हूँ समाहित मैं तू पार न मुझसे पाएगा, इस द्वंद में मारा जाएगा।
एक ही सत्य है, "मैं"
by AMAN SINHA
Nov 2
एक ही सत्य है, "मैं"
एक ही सत्य है, "मैं"
श्वेत हूँ मैं ,
और श्याम भी मैंं ।
मैं ही क्रोध हूँ,
और काम भी मैं।
उस ईश्वर का
मैं रूप नहीं,
स्वयं ईश्वर हूँ,
मैं दूत नहीं।
एक ही सत्य है, "मैं"
कर्म भी मैं हूँ,
और फल भी मैं,
धर्म भी मैं,
और अधर्म भी मैं।
कर्ता भी मैं,
और कांड भी मैं,
विपत्ति भी मैं,
और समाधान भी मैं।
तुम जितना
मुझमें समाओगे,
उतना ही
मुझको पाओगे।
एक ही सत्य है, "मैं"
कण-कण में मैं ,
रज़-रज़ में मैं ,
उत्थान, पतन
और निर्माण भी मैं।
यश भी मै
सम्मान भी मैं
सिर पर चढ जाऊँ
तो अभिमान भी मैं
तुम जितना
मुझको सिमरोगे,
तुम उतना ही
मुझमें समाओगे।
एक ही सत्य है, "मैं"
शब्द भी मैं,
संगीत भी मैं,
जीवन का मधुमय
गीत भी मैं।
सूक्ष्म भी मैं,
विशाल भी मैं,
सुई भी मैं,
तलवार भी मैं।
तेरा तन भी मैं,
तेरा मन भी मैं,
अस्तित्व भी मैं,
व्यक्तित्व भी मैं।
तुम मुझको छोड़
नहीं सकते,
मुँह मुझसे मोड़
नहीं सकते।
एक ही सत्य है, "मैं"
तेरा सत्य भी मैं,
तेरा भ्रम भी मैं,
तेरा योग भी मैं,
तेरा भोग भी मैं।
तेरा रोग भी मैं
तेरा उपचार भी मैं
अस्थि-मज्जा
साकार भी मैं
सिरा में दौडता
रक्त भी मैंं
आती-जाती हर
श्वांस भी मैं
तेरे रग-रग में
हूँ समाहित मैं
तू पार न
मुझसे पाएगा,
इस द्वंद में
मारा जाएगा।
एक ही सत्य है, "मैं"
"मौलिक व अप्रकाशित"
अमन सिन्हा