चित्र से काव्य तक

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'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159

आदरणीय काव्य-रसिको !

सादर अभिवादन !!

  

’चित्र से काव्य तक छन्दोत्सव का यह एक सौ उनसठवाँ योजन है।.   

 

छंद का नाम -  सार छंद

आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ - 

21 सितंबर’ 24 दिन शनिवार से

22 सितंबर’ 24 दिन रविवार तक

हम आयोजन के अंतर्गत शास्त्रीय छन्दों के शुद्ध रूप तथा इनपर आधारित गीत तथा नवगीत जैसे प्रयोगों को भी मान दे रहे हैं. छन्दों को आधार बनाते हुए प्रदत्त चित्र पर आधारित छन्द-रचना तो करनी ही है, दिये गये चित्र को आधार बनाते हुए छंद आधारित नवगीत या गीत या अन्य गेय (मात्रिक) रचनायें भी प्रस्तुत की जा सकती हैं.

केवल मौलिक एवं अप्रकाशित रचनाएँ ही स्वीकार की जाएँगीं.  

सार छंद के मूलभूत नियमों के लिए यहाँ क्लिक करें

जैसा कि विदित है, कई-एक छंद के विधानों की मूलभूत जानकारियाँ इसी पटल के  भारतीय छन्द विधान समूह में मिल सकती हैं.

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आयोजन सम्बन्धी नोट 

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ -

21 सितंबर’ 24 दिन शनिवार से 22 सितंबर’ 24 दिन रविवार तक  रचनाएँ तथा टिप्पणियाँ प्रस्तुत की जा सकती हैं। 

अति आवश्यक सूचना :

  1. रचना केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, अन्य सदस्य की रचना किसी और सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी.
  2. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
  3. सदस्यगण संशोधन हेतु अनुरोध  करें.
  4. अपने पोस्ट या अपनी टिप्पणी को सदस्य स्वयं ही किसी हालत में डिलिट न करें. 
  5. आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति संवेदनशीलता आपेक्षित है.
  6. इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं.
  7. रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. 
  8. अनावश्यक रूप से रोमन फाण्ट का उपयोग  करें. रोमन फ़ॉण्ट में टिप्पणियाँ करना एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.
  9. रचनाओं को लेफ़्ट अलाइंड रखते हुए नॉन-बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें. अन्यथा आगे संकलन के क्रम में संग्रहकर्ता को बहुत ही दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.

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मंच संचालक
सौरभ पाण्डेय
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम  

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    अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव

    सार छंद  [ छन्न पकैया ]

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    छन्न पकैया छन्न पकैया,क्वाँर मास में आता।

    कृष्ण पक्ष पंद्रह दिन का जो, पितर पक्ष कहलाता॥

     

    छन्न पकैया छन्न पकैया, याद इन दिनों आती।

    पूर्वज हैं किस लोक हमारे, चिंता हमें सताती॥

     

    छन्न पकैया छन्न पकैया, कष्टों से तारेगा।

    श्राद्ध पिंड दान और तर्पण, मुक्त उन्हें कर देगा॥

     

    छन्न पकैया छन्न पकैया, रुचिकर भोग लगाते।

    अग्नि काग चींटी गोमाता, सब माध्यम बन जाते॥

     

    छन्न पकैया छन्न पकैया, काग स्वधर्म निभाता।

    कौआ जाने भविष्य सबका, वो है त्रिकाल ज्ञाता॥

     

    छन्न पकैया छन्न पकैया, पूर्वज आस लगाते।

    जब कौएँ को भोग लगाते, तृप्त सभी हो जाते॥

     

    छन्न पकैया छन्न पकैया, पाप न हम कर जायें।

    इन दिनों भूल से कुत्ते को, कभी न भोग खिलायें॥

    ++++++++++++++

    मौलिक अप्रकाशित

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    Dayaram Methani

    सार छंद में चित्रानुकूल भाव

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    ब्रह्मा जी के आगे कौआ, रोया निज दुख गाया,
    इस जग में सब करते नफरत, क्यों पाई ये काया,
    दर्द समन्दर जैसा अब तक, हम है सहते आये,
    दया कीजिए अब तो हम पर, दया भाव मिल जाये।

    ब्रह्मा बोले क्यों रोता है, सबको दुख सुख होता,
    कौआ बोला मेरे जैसा, जीव सदा ही रोता।
    खुशी न आई मेरे हिस्से, किया अपराध कैसा,
    मिली खुशी है सबको जग में, और न कोई ऐसा।

    खोली पोथी तब ब्रह्मा ने, देखा अनर्थ भारी,
    भूल गया सुख देना इसको, गलती मेरी सारी।
    ब्रह्मा बोला तेरे हिस्से, सुख लिखा नहीं भाई,
    पर वरदान तुझे देता हूँ , सुख की राह बनाई।

    श्राद्ध पक्ष जब जब आयेगा, खूब मान पायेगा,
    सबसे पहले हलवा पूड़ी, को तू ही खायेगा।
    खुश हुए वरदान पाकर वो, खुशियां खूब मनाई,
    तब से श्राद्ध पक्ष में ऐसी, ये रीत चली आई।
    — दयाराम मेठानी
    (मौलिक एवं अप्रकाशित)

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    pratibha pande

    बाऊजी(गीत..सार छंद)
    _____
    आज श्राद्ध है बाऊजी का
    पंडित है घर आया
     मीठा भोजन रख मुँडेर पर
    कौए को ललचाया
    _

    बाऊजी थे बड़े सयाने, 

     छिप कर मीठा खाते
     आ जाते जो कभी पकड़ में
    साफ मुकर भी जाते            
    कभी रूठ जाते अम्मा से
    कहते मत दो खाना
    छोड़ चला जाऊँगा तब तुम
    कौआ श्वान जिमाना
    _
    आज भाग पर अपने देखो
    कौआ भी इतराया
    _
    अम्मा देख रही कौए को
    खीर मिठाई खाते
    तृप्त हो रहे बाऊजी भी
    पंडित जी समझाते
    इस दुनियाँ से जाने वाले
    चले कहाँ जाते हैं
    पंडित मुल्ला अलग अलग घर
    उनका बतलाते हैं
    _
    सत्य बताने उस दुनियाँ से
    कौन लौट है पाया
    ______
    मालिक व अप्रकाशित 
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