कोई भी भाषा हो , लेकिन
हिन्दी सी भला मिठास कहाँ ?
जो दिल से भाव निकलते हैं
वह कोमल सा अहसास कहाँ ?
है नर्तन मधुर तरंगों सा
अपना ' प्रणाम ' अन्यान्य कहाँ ?
जिससे झंकृत हृद - तार मृदुल
वह सुन्दरता , उल्लास कहाँ
जब बच्चा ' अम्मा , कहकर के
जा , माँ के गले लिपटता है
इस नैसर्गिक उद्बोधन में
अद्भुत आनन्द , हुलास कहाँ ?
कोई भी भाषा हो , लेकिन
हिन्दी सी भला मिठास कहाँ ?
मौलिक एवं अप्रकाशित