इश्क़ से ना हो राब्ता कोई
ज़िन्दगी है की हादसा कोई
वो पुराने ज़माने की बात है
अब नहीं करता है वफ़ा कोई
ज़िन्दगी के जद्दोजहद अपने
मौत का है न फ़लसफ़ा कोई
यहाँ सब बे अदब हैं मेरी जां
अब करे क्या मुलाहिज़ा कोई
दिल का है टूटने का ग़म 'नाहक'
था सलामत मुआहिदा कोई
मौलिक एवं अप्रकाशित
You can share this blog post in two ways…
Share this link:
Send it with your computer's email program: Email this