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रिदा से ही जब पा बड़ा हो गया
ख़ुदा मेरा मुझसे ख़फा हो गया
मेरे साथ गम का चले कारवाँ
अकेला मैं फ़िर क्यों बता हो गया
जिसे छूना तुमको न मुमकिन लगे
समझ लो वही अब ख़ुदा हो गया
नहीं ज़िन्दगी ज़िन्दगी सी रही
सफ़र यह भी अब बदमज़ा हो गया
सुख़न शाइरी भी अजब शै हुई
तसव्वुर का इक आसरा हो गया
अँधेरों की आदत बना लीजिए
ज़िया से अधिक फ़ासला हो गया
नज़र को नज़र से मिलाते ही वो
मेरा हमसफ़र…