सर्दीली सांझ ऐसे आई मेरे गाँव
अभी अभी तो सांझ थी उतरी
चंदा ने कुण्डी खटकाई
सूरज ने यों पीठ क्या फेरी
शीत ने जैसे धौल जमाई
उतने जितने जतन जुटाये
फिर भी कम्पाये कम्पाई
कब तक कोई सिकुड़े-सिकुड़े
दादू ने सिगड़ी सुलगाई
अम्मां ने कम्बल ले खींचा
सर तक खींची ढकी रजाई
चूल्हे के संग पूसी चिपकी
कैसे- कैसे पूंछ दबाई
कुतिया दुबकी गैया के संग
डरी -डरी गैया रम्भाई
इतना ही कम क्या था प्…