ठण्ड कड़ाके की पड़े, सरसर चले समीर।नित्य शिशिर में सूर्य का, चाहे ताप शरीर।१।*दिखे शिशिर में जो नहीं, गजभर दूरी पार।लगता धरती से हुआ, अम्बर एकाकार।२।*धुन्ध लपेटे भोर तो, विरहन जैसी साँझ।विधवा लगते वृक्ष हैं, धरती लगती बाँझ।३।*घना कुहासा ढब घिरे, झरे हवा से नीर।बदली जैसी भीत भी, धूप न पाये चीर।४।*देती है हिम खण्ड सा, शीतलहर अहसास।चन्दा जैसा दीखता, सूर्य क्षितिज के पास।५।*हुए वृक्ष सब काँच से,…