दोहा त्रयी...
दुख के जंगल हैं घने , सुख की छिटकी धूप । करम पड़ेंगे भोगने , निर्धन हो या भूप ।।
धन वैभव संसार का, आभासी शृंगार । कभी कहकहे जीत के, कभी मौन की हार ।।
विदित वेदना शूल की, विदित पुष्प की गंध । सुख-दुख दोनों जीव की, साँसों के अनुबंध ।।
सुशील सरना / 20-1-22
मौलिक एवं अप्रकाशित