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पुतलियों ने कहा, जा तुझे इश्क हो फागुनी है हवा, जा तुझे इश्क हो हैं कई मायने रंग औ’ गंध के गर नहीं ये पता, जा तुझे इश्क हो चुन रहे थे सदा कौडियाँ, शंख-सीप फिर समुंदर हँसा, ’जा तुझे इश्क हो’ चैत्र-बैसाख की थिर-मदिर साँझ में टेरती है हवा.. ’जा तुझे इश्क हो’ देख कर ये गगन गेरुआ-गेरुआ गा उठी है धरा, जा तुझे इश्क हो उपनिषद गा रहे सुन सखे, बावरे, एक ही फलसफा --जा तुझे इश्क…