ब्रज मां होली खेले मुरारी अवध मां रघुराई
मेरा संदेसा पिया को दे जो जाने पीर पराई
कोयल को अमराई मिली कीटों को उपवन
मैं अभागिन ऐसी रही आया न मेरा साजन
लाल पहनू , नीली पहनू, हरी हो या वसंती
पुष्पों की माला भी तन मन शूल ऐसे चुभती
सूनी गलियां सूना उपवन सूना सूना संसार है
मैं बिरहिन यहाँ तड़फूं कैसा तेरा ये प्यार है
प्रियतम भेजी कितनी पाती तेरी याद सताती है
मैं तो दूजे घर की बेटी मा…