हाँ मैं नारी हूँ
घर की मर्यादा हूँ,
प्रेम पूरित वादा हूँ
पिता का सम्मान हूँ
पति की इज्जत हूँ
रिश्तों की शान हूँ
सारी बंदिशें, तमाम वर्जनाएं
निर्धारित हैं मेरे लिए
मेरे लिए ही सब 'कहना' है
मुझे ही सब कुछ 'सुनना'
विष मेरे लिए है
मैं मीरा बनूँ
पत्थर मेरे लिए
तो मैं अहिल्या बनूँ
अग्नि परीक्षा देकर भी
घर से निकल सीता मैं बनूँ।
पर उस चिता के बीच
घुटती फ़रियादों से अलग
भींचे होठों, रुंधे गले से प…