तुम्हारे हित देशहित से बड़े क्यूँ है?
ये दुश्चरित्र है तुम्हारा,
सताता मुझे क्यूँ है?
तुम इन्सान ही बुरे हो,
इल्जाम धर्म और जात पर क्यूँ है?
तुम्हे इसमें सुकून है बहुत,
ये मेरे सुकूं को खाता क्यूँ है?
ये धर्म के ठेकेदार हैं,
फिर मानवता के भक्षक क्यूँ हैं?
ये दोषी है समाज के,
कतार में इतने रक्षक क्यूँ है?
क्या तेरा ईमान है, कहाँ तेरा ज़मीर है?
भौंडे कुतर्कों का इतना गुमान क्यूँ है?
कर्म- संदेशी इस…