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ग़ज़ल : 1222,1222,122
मेरे किरदार पर धब्बा नहीं था
तुम्हीं ने ग़ौर से देखा नही था
मेरे ग़म को समझता कोई कैसे
कोई मेरी तरह तनहा नहीं था
मैं इक ठहरा हुआ तालाब था बस
वो दरिया था कभी ठहरा नहीं था
तेरी हर बात सच्ची थी हमेशा
फ़क़त लहजा ही बस अच्छा नहीं था
न आया जो नदी के पास यारो
वो प्यासा था मगर इतना नहीं था
नज़र मेरी थी मंज़िल पर…
ContinuePosted on September 10, 2020 at 11:00pm — 10 Comments
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