Tasdiq Ahmed Khan's Posts - Open Books Online2024-03-28T21:22:33ZTasdiq Ahmed Khanhttp://openbooksonline.com/profile/TasdiqAhmedKhanhttp://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/2991293789?profile=RESIZE_48X48&width=48&height=48&crop=1%3A1http://openbooksonline.com/profiles/blog/feed?user=0kc905rr0adqw&xn_auth=noग़ज़ल - जो हसीनों से दिल लगाते हैंtag:openbooksonline.com,2022-08-23:5170231:BlogPost:10878912022-08-23T05:54:40.000ZTasdiq Ahmed Khanhttp://openbooksonline.com/profile/TasdiqAhmedKhan
<p>ग़ज़ल<br/>जो हसीनों से दिल लगाते हैं<br/>वो हमेशा फरेब खाते हैं<br/>सिर्फ़ कहते हैं वो यही है ग़म<br/>मुझको अपना कहाँ बनाते हैं<br/>ज़द में उनका मकां भी आएगा<br/>जो पड़ोसी का घर जलाते हैं<br/>बेवफ़ाई है आपकी फ़ितरत<br/>हम तो करके वफा निभाते हैं<br/>दिल में उठती है इक क़यामत सी<br/>जब ख़यालों में उनको लाते हैं<br/>पूछता ही नहीं उसे कोई<br/>वो नजर से जिसे गिराते हैं<br/>होश रहता नहीं हमें तस्दीक<br/>उनसे जब भी नजर मिलाते हैं</p>
<p>(मौलिक एवं अप्रकाशित) </p>
<p>ग़ज़ल<br/>जो हसीनों से दिल लगाते हैं<br/>वो हमेशा फरेब खाते हैं<br/>सिर्फ़ कहते हैं वो यही है ग़म<br/>मुझको अपना कहाँ बनाते हैं<br/>ज़द में उनका मकां भी आएगा<br/>जो पड़ोसी का घर जलाते हैं<br/>बेवफ़ाई है आपकी फ़ितरत<br/>हम तो करके वफा निभाते हैं<br/>दिल में उठती है इक क़यामत सी<br/>जब ख़यालों में उनको लाते हैं<br/>पूछता ही नहीं उसे कोई<br/>वो नजर से जिसे गिराते हैं<br/>होश रहता नहीं हमें तस्दीक<br/>उनसे जब भी नजर मिलाते हैं</p>
<p>(मौलिक एवं अप्रकाशित) </p>हमको जाँ से ज़ियादा है प्यारा वतनtag:openbooksonline.com,2022-08-23:5170231:BlogPost:10880232022-08-23T05:30:00.000ZTasdiq Ahmed Khanhttp://openbooksonline.com/profile/TasdiqAhmedKhan
<p style="text-align: left;">हमको जाँ से ज़्यादा है प्यारा वतन<br></br> सारी दुनिया से बहतर हमारा वतन<br></br> आपसी भाइचारे का हो खात्मा<br></br> कैसे करले भला ये गवारा वतन<br></br> यौमे आज़ादगी का है मंज़र हसीं<br></br> ढंक गया है तिरंगों से सारा वतन<br></br> सिर्फ़ हिन्दू मुसलमान सिख ही नहीं<br></br> सबकी जाँ सबकी आंखों का तारा वतन<br></br> दौर - ए - मुश्किल है इसकी हिफाज़त करो <br></br> दे रहा है सभी को सहारा वतन<br></br> रखिए फिरका परस्तों पे पैनी नज़र<br></br> कर नहीं दें ये फिर पारा पारा वतन<br></br> इसकी मिट्टी में शामिल है मेरा भी…</p>
<p style="text-align: left;">हमको जाँ से ज़्यादा है प्यारा वतन<br/> सारी दुनिया से बहतर हमारा वतन<br/> आपसी भाइचारे का हो खात्मा<br/> कैसे करले भला ये गवारा वतन<br/> यौमे आज़ादगी का है मंज़र हसीं<br/> ढंक गया है तिरंगों से सारा वतन<br/> सिर्फ़ हिन्दू मुसलमान सिख ही नहीं<br/> सबकी जाँ सबकी आंखों का तारा वतन<br/> दौर - ए - मुश्किल है इसकी हिफाज़त करो <br/> दे रहा है सभी को सहारा वतन<br/> रखिए फिरका परस्तों पे पैनी नज़र<br/> कर नहीं दें ये फिर पारा पारा वतन<br/> इसकी मिट्टी में शामिल है मेरा भी खूं<br/> ये है सबका, नहीं है तुम्हारा वतन<br/> आबरू इसकी तस्दीक ख़तरे में है<br/> कर रहा है हमें ये इशारा वतन</p>
<p style="text-align: left;">(मौलिक एवं अप्रकाशित</p>ग़ज़ल - क़यामत का मंज़र दिखाने लगे हैंtag:openbooksonline.com,2019-11-09:5170231:BlogPost:9959462019-11-09T03:29:04.000ZTasdiq Ahmed Khanhttp://openbooksonline.com/profile/TasdiqAhmedKhan
<p>गज़ल(122-122-122-122)</p>
<p>क़यामत का मंज़र दिखाने लगे हैं<br></br>अचानक ही वो मुस्कुराने लगे हैं</p>
<p>ये क्या कम है सुनते न थे जो हमारी<br></br>वो अब हाथ हम से मिलाने लगे हैं</p>
<p>बुरा हो जवानी का आयी है जबसे<br></br>वो सूरत ही मुझ से छुपाने लगे हैं</p>
<p>दिए जो जलाये उजाले की ख़ातिर<br></br>वही आग घर को लगाने लगे हैं</p>
<p>अमीरों के बंगले बचाने की ख़ातिर<br></br>वो मुफ़लिस के छप्पर जलाने लगे हैं</p>
<p>सरे बज्म हँस हँस के मत बात कीजिए<br></br>सभी लोग तियूरी चढ़ाने लगे हैं</p>
<p>ग़ज़ब है वफा जिनसे मैं कर…</p>
<p>गज़ल(122-122-122-122)</p>
<p>क़यामत का मंज़र दिखाने लगे हैं<br/>अचानक ही वो मुस्कुराने लगे हैं</p>
<p>ये क्या कम है सुनते न थे जो हमारी<br/>वो अब हाथ हम से मिलाने लगे हैं</p>
<p>बुरा हो जवानी का आयी है जबसे<br/>वो सूरत ही मुझ से छुपाने लगे हैं</p>
<p>दिए जो जलाये उजाले की ख़ातिर<br/>वही आग घर को लगाने लगे हैं</p>
<p>अमीरों के बंगले बचाने की ख़ातिर<br/>वो मुफ़लिस के छप्पर जलाने लगे हैं</p>
<p>सरे बज्म हँस हँस के मत बात कीजिए<br/>सभी लोग तियूरी चढ़ाने लगे हैं</p>
<p>ग़ज़ब है वफा जिनसे मैं कर रहा हूं<br/>फरेबी वो मुझको बताने लगे हैं</p>
<p>भरोसा हुआ ही नहीं उनको मुझ पर<br/>वफा को वो फ़िर आज़माने लगे हैं</p>
<p>जिन्हें मैं ने तस्दीक चलना सिखाया<br/>वही मुझको ठोकर लगाने लगे हैं</p>
<p></p>
<p>(मौलिक व अप्रकाशित) </p>गज़ल _तुम चाहे गुज़र जाओ किसी राह गुज़र सेtag:openbooksonline.com,2019-09-10:5170231:BlogPost:9920322019-09-10T04:30:00.000ZTasdiq Ahmed Khanhttp://openbooksonline.com/profile/TasdiqAhmedKhan
<p>(मफ ऊल_मफाईल_मफाईल_फ ऊलन) </p>
<p>.</p>
<p>तुम चाहे गुज़र जाओ किसी राह गुज़र से<br></br> लेकिन नहीं बच पाओगे तुम मेरी नजर से</p>
<p>.</p>
<p>वो खौफ़ ए ज़माना से या रुस्वाई के डर से<br></br> देता रहा आवाज मैं निकले न वो घर से</p>
<p>.</p>
<p>तू जुल्म से आ बाज़ अभी वक़्त है ज़ालिम<br></br> पानी भी बहुत हो चुका ऊँचा मेरे सर से</p>
<p>.</p>
<p>फँसता है सदा हुस्न के वो जाल में यारो<br></br> वाकिफ़ जो नहीं उनके दग़ाबाज़ हुनर से</p>
<p>.</p>
<p>मालूम करें आओ कठिन कितना है रस्ता<br></br> कुछ लोग अभी लौट के आए हैं सफ़र…</p>
<p>(मफ ऊल_मफाईल_मफाईल_फ ऊलन) </p>
<p>.</p>
<p>तुम चाहे गुज़र जाओ किसी राह गुज़र से<br/> लेकिन नहीं बच पाओगे तुम मेरी नजर से</p>
<p>.</p>
<p>वो खौफ़ ए ज़माना से या रुस्वाई के डर से<br/> देता रहा आवाज मैं निकले न वो घर से</p>
<p>.</p>
<p>तू जुल्म से आ बाज़ अभी वक़्त है ज़ालिम<br/> पानी भी बहुत हो चुका ऊँचा मेरे सर से</p>
<p>.</p>
<p>फँसता है सदा हुस्न के वो जाल में यारो<br/> वाकिफ़ जो नहीं उनके दग़ाबाज़ हुनर से</p>
<p>.</p>
<p>मालूम करें आओ कठिन कितना है रस्ता<br/> कुछ लोग अभी लौट के आए हैं सफ़र से</p>
<p>.</p>
<p>ठुकरा दिया जो तू ने मुझे ये तो बता दे<br/> जाऊँ गा कहाँ जाने जहां मैं तेरे दर से</p>
<p>.</p>
<p>ये जर्फ है अपना ये श ऊर अपना है लोगो<br/> मैं सुनता रहा सिर्फ़ वो जब ना गहां बरसे</p>
<p>.</p>
<p>कोई भी खता वार नहीं जाने मन इसका<br/> दीवाना हुआ हूं तेरे जलवों के असर से</p>
<p>.</p>
<p>इन्सान हैं हम कोई फरिश्ता तो नहीं हैं<br/> ग़लती तो हुआ करती है दुनिया में बशर से</p>
<p>.</p>
<p>देखी गई उठती हुई उस सम्त क़यामत<br/> वो हाय गुज़र जाते हैं बे पर्दा जिधर से</p>
<p>.</p>
<p>तस्दीक उन्हें कर दो ख़बर ढ़लने को है दिन<br/> दीदार को बैठा है कोई दर पे सहर से</p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित</p>गज़ल - अकेले ईद हम कैसे मनाएँtag:openbooksonline.com,2019-06-05:5170231:BlogPost:9858332019-06-05T15:30:17.000ZTasdiq Ahmed Khanhttp://openbooksonline.com/profile/TasdiqAhmedKhan
<p>गज़ल(ईद मनाएं)</p>
<p></p>
<p>(मफाईलुन - मफाईलुन - फ ऊलन)</p>
<p></p>
<p>न घर आएं न वो हम को बुलाएं <br></br>अकेले ईद हम कैसे मनाएं</p>
<p></p>
<p>यही है ईद का पैग़ाम लोगों <br></br>दिलों को आज हम दिल से मिलाएँ</p>
<p></p>
<p>मुबारक बाद मैं दूँ उनको कैसे <br></br>कभी वो सामने मेरे न आएं</p>
<p></p>
<p>मनाई साथ ही थी हम ने होली <br></br>सिवइयां साथ ही हम आज खाएँ</p>
<p></p>
<p>गिले शिकवे भुला दें आज के दिन <br></br>गले मिल कर मुहब्बत को बढ़ाएं</p>
<p></p>
<p>वतन से ख़त्म हो फिरका परस्ती <br></br>ख़ुदा से आज ये…</p>
<p>गज़ल(ईद मनाएं)</p>
<p></p>
<p>(मफाईलुन - मफाईलुन - फ ऊलन)</p>
<p></p>
<p>न घर आएं न वो हम को बुलाएं <br/>अकेले ईद हम कैसे मनाएं</p>
<p></p>
<p>यही है ईद का पैग़ाम लोगों <br/>दिलों को आज हम दिल से मिलाएँ</p>
<p></p>
<p>मुबारक बाद मैं दूँ उनको कैसे <br/>कभी वो सामने मेरे न आएं</p>
<p></p>
<p>मनाई साथ ही थी हम ने होली <br/>सिवइयां साथ ही हम आज खाएँ</p>
<p></p>
<p>गिले शिकवे भुला दें आज के दिन <br/>गले मिल कर मुहब्बत को बढ़ाएं</p>
<p></p>
<p>वतन से ख़त्म हो फिरका परस्ती <br/>ख़ुदा से आज ये माँगें दुआएँ</p>
<p></p>
<p>फिराके यार उस पर ईद का दिन <br/>हंसी तस्दीक लब पर कैसे लाएँ</p>
<p></p>
<p>(मौलिक व अप्रकाशित</p>ग़ज़ल _किसी से प्यार किसी से क़रार ख़ैर ख़ुदाtag:openbooksonline.com,2019-05-18:5170231:BlogPost:9841332019-05-18T07:04:41.000ZTasdiq Ahmed Khanhttp://openbooksonline.com/profile/TasdiqAhmedKhan
<p>ग़ज़ल</p>
<p>( मफाइलुन_फ इ लातुन_मफाइलुन_फेलुन) </p>
<p></p>
<p>किसी से प्यार किसी से क़रार ख़ैर ख़ुदा<br></br>करे वो तीर से दो दो शिकार ख़ैर ख़ुदा</p>
<p></p>
<p>अलम छुपाने की कोशिश तो हँस के की लेकिन<br></br>निगाहे नम ने किया आश कार ख़ैर ख़ुदा</p>
<p></p>
<p>नज़र पे पहरा है दीवाना फ़िर भी कूचे में <br></br>सनम को अपने रहा है पुकार ख़ैर ख़ुदा</p>
<p></p>
<p>तवक्को उनसे है फैसल की, कर रहे हैं जो <br></br>फरेबियों में हमारा शुमार ख़ैर ख़ुदा</p>
<p></p>
<p>लगा ये देख के उनको उदास महफ़िल में <br></br>खिज़ा के साथ…</p>
<p>ग़ज़ल</p>
<p>( मफाइलुन_फ इ लातुन_मफाइलुन_फेलुन) </p>
<p></p>
<p>किसी से प्यार किसी से क़रार ख़ैर ख़ुदा<br/>करे वो तीर से दो दो शिकार ख़ैर ख़ुदा</p>
<p></p>
<p>अलम छुपाने की कोशिश तो हँस के की लेकिन<br/>निगाहे नम ने किया आश कार ख़ैर ख़ुदा</p>
<p></p>
<p>नज़र पे पहरा है दीवाना फ़िर भी कूचे में <br/>सनम को अपने रहा है पुकार ख़ैर ख़ुदा</p>
<p></p>
<p>तवक्को उनसे है फैसल की, कर रहे हैं जो <br/>फरेबियों में हमारा शुमार ख़ैर ख़ुदा</p>
<p></p>
<p>लगा ये देख के उनको उदास महफ़िल में <br/>खिज़ा के साथ है आई बहार ख़ैर ख़ुदा</p>
<p></p>
<p>किसी की पड़ गई तारीफ़ दोस्तों मंहगी <br/>दिया है उसने नज़र से उतार ख़ैर ख़ुदा</p>
<p></p>
<p>उसी ने की दगा तस्दीक तुझसे उल फत में <br/>तुझे था जिसपे बहुत एतबार ख़ैर ख़ुदा</p>
<p></p>
<p>(मौलिक व अप्रकाशित)</p>ग़ज़ल _वो कुछ न इसके सिवा करेंगेtag:openbooksonline.com,2019-04-30:5170231:BlogPost:9830172019-04-30T07:44:03.000ZTasdiq Ahmed Khanhttp://openbooksonline.com/profile/TasdiqAhmedKhan
<p>ग़ज़ल _(वो कुछ न इसके सिवा करेंगे)</p>
<p></p>
<p>(मफा इला तुन _मफा इला तुन)</p>
<p></p>
<p>वो कुछ न इसके सिवा करेंगे l</p>
<p>बना के अपना दगा करेंगे l</p>
<p></p>
<p>किसी से हो जाए उनको उलफत</p>
<p>यही ख़ुदा से दुआ करेंगे l</p>
<p></p>
<p>सितम जफ़ा जिनकी ख़ास फितरत</p>
<p>वो कह रहे हैं वफ़ा करेंगे l</p>
<p></p>
<p>कभी हमें आज़मा के देखो</p>
<p>ये दिल है क्या जाँ फिदा करेंगे l</p>
<p></p>
<p>नज़र पे पहरे अगर लगे तो</p>
<p>खयाल में हम मिला करेंगे l</p>
<p></p>
<p>लगा के इलज़ामे बे…</p>
<p>ग़ज़ल _(वो कुछ न इसके सिवा करेंगे)</p>
<p></p>
<p>(मफा इला तुन _मफा इला तुन)</p>
<p></p>
<p>वो कुछ न इसके सिवा करेंगे l</p>
<p>बना के अपना दगा करेंगे l</p>
<p></p>
<p>किसी से हो जाए उनको उलफत</p>
<p>यही ख़ुदा से दुआ करेंगे l</p>
<p></p>
<p>सितम जफ़ा जिनकी ख़ास फितरत</p>
<p>वो कह रहे हैं वफ़ा करेंगे l</p>
<p></p>
<p>कभी हमें आज़मा के देखो</p>
<p>ये दिल है क्या जाँ फिदा करेंगे l</p>
<p></p>
<p>नज़र पे पहरे अगर लगे तो</p>
<p>खयाल में हम मिला करेंगे l</p>
<p></p>
<p>लगा के इलज़ामे बे वफाई</p>
<p>वो क्या मेरा सामना करेंगे l</p>
<p></p>
<p>करें वो तस्दीक लाख नफरत</p>
<p>हम उनसे उलफत सदा करेंगे l</p>
<p></p>
<p>(मौलिक व अप्रकाशित)</p>ग़ज़ल _(रहबरी उनकी मुझको हासिल है)tag:openbooksonline.com,2019-04-15:5170231:BlogPost:9807722019-04-15T06:30:00.000ZTasdiq Ahmed Khanhttp://openbooksonline.com/profile/TasdiqAhmedKhan
<p>(फाइ ला तुन _मफा इलुन _फ़ेलुन)</p>
<p></p>
<p>रहबरी उनकी मुझको हासिल है l<br></br> अब भला किसको फिकरे मंज़िल है l</p>
<p></p>
<p>दे सफ़ाई न क़त्ल पर वर्ना<br></br> लोग समझेंगे तू ही क़ातिल है l</p>
<p></p>
<p>उस हसीं से गिला है सिर्फ यही<br></br> वो वफ़ाओं से मेरी गाफिल है l</p>
<p></p>
<p>दोस्तों से वो राय लेते हैं<br></br> सिर्फ़ उलफत में ये ही मुश्किल है l</p>
<p></p>
<p>ढूँढ कर लाए तो कोई ऎसा<br></br> मेरा महबूब माहे कामिल है l</p>
<p></p>
<p>जो बचाता है बदनज़र से उन्हें<br></br> उनके रुखसार का ही वो तिल है…</p>
<p>(फाइ ला तुन _मफा इलुन _फ़ेलुन)</p>
<p></p>
<p>रहबरी उनकी मुझको हासिल है l<br/> अब भला किसको फिकरे मंज़िल है l</p>
<p></p>
<p>दे सफ़ाई न क़त्ल पर वर्ना<br/> लोग समझेंगे तू ही क़ातिल है l</p>
<p></p>
<p>उस हसीं से गिला है सिर्फ यही<br/> वो वफ़ाओं से मेरी गाफिल है l</p>
<p></p>
<p>दोस्तों से वो राय लेते हैं<br/> सिर्फ़ उलफत में ये ही मुश्किल है l</p>
<p></p>
<p>ढूँढ कर लाए तो कोई ऎसा<br/> मेरा महबूब माहे कामिल है l</p>
<p></p>
<p>जो बचाता है बदनज़र से उन्हें<br/> उनके रुखसार का ही वो तिल है l</p>
<p></p>
<p>वो है तस्दीक धोके बाज़ कोई<br/> जिसके ऊपर फिदा तेरा दिल है l</p>
<p></p>
<p>(मौलिक व अप्रकाशित)</p>ओ बी ओ को 9वीं सालगिरह की सौगातtag:openbooksonline.com,2019-04-02:5170231:BlogPost:9799372019-04-02T06:31:20.000ZTasdiq Ahmed Khanhttp://openbooksonline.com/profile/TasdiqAhmedKhan
<p>ओ बी ओ को 9वीं सालगिरह की सौगात</p>
<p>ग़ज़ल (फाइलुन _फाइलुन _फाइलुन _फाइलुन /फाइलात)</p>
<p></p>
<p>मेरा दिल दे रहा है दुआ ओ बी ओ l<br></br>तू फले फूले यूँ ही सदा ओ बी ओ l</p>
<p></p>
<p>कोई सीखे कथा, छंद या शायरी <br></br>इन सभी का है तू रहनुमा ओ बी ओ l</p>
<p></p>
<p>भाई सौरभ हों राना या मिथलेश हों <br></br>इनके दम से तू आगे बढ़ा ओ बी ओ l</p>
<p></p>
<p>सीखने का दिया मंच तूने हमें <br></br>क्यूँ न तेरा करूँ शुक्रिया ओ बी ओ l</p>
<p></p>
<p>आज ख़ुश हैं बहुत यूँ नहीं योगराज <br></br>गोद में इनकी फूला फला ओ बी…</p>
<p>ओ बी ओ को 9वीं सालगिरह की सौगात</p>
<p>ग़ज़ल (फाइलुन _फाइलुन _फाइलुन _फाइलुन /फाइलात)</p>
<p></p>
<p>मेरा दिल दे रहा है दुआ ओ बी ओ l<br/>तू फले फूले यूँ ही सदा ओ बी ओ l</p>
<p></p>
<p>कोई सीखे कथा, छंद या शायरी <br/>इन सभी का है तू रहनुमा ओ बी ओ l</p>
<p></p>
<p>भाई सौरभ हों राना या मिथलेश हों <br/>इनके दम से तू आगे बढ़ा ओ बी ओ l</p>
<p></p>
<p>सीखने का दिया मंच तूने हमें <br/>क्यूँ न तेरा करूँ शुक्रिया ओ बी ओ l</p>
<p></p>
<p>आज ख़ुश हैं बहुत यूँ नहीं योगराज <br/>गोद में इनकी फूला फला ओ बी ओ l</p>
<p></p>
<p>क्यूँ न तुझको अदब का मदरसा कहें <br/>तुझ से उस्ताद है सीखता ओ बी ओ l</p>
<p></p>
<p>पीर बन जाए सुहबत में तेरी अदीब <br/>कोई पारस है तू बाख़ुदा ओ बी ओ l</p>
<p></p>
<p>भाई बागी की महनत का जादू है ये <br/>आज सूरज है कल का दिया ओ बी ओ l</p>
<p></p>
<p>जुड़ गया तुझ से तस्दीक सब की तरह <br/>देख कर तेरी आख़िर वफ़ा ओ बी ओ l</p>
<p></p>
<p>(मौलिक व अप्रकाशित)</p>ग़ज़ल (यही ज़माने को खल रहा है )tag:openbooksonline.com,2019-04-01:5170231:BlogPost:9800242019-04-01T14:55:11.000ZTasdiq Ahmed Khanhttp://openbooksonline.com/profile/TasdiqAhmedKhan
<p></p>
<p>ग़ज़ल (यही ज़माने को खल रहा है ) <br></br>(मफा इलातुन _मफा इलातुन)</p>
<p></p>
<p>यही ज़माने को खल रहा हैl<br></br>वो मेरे हम राह चल रहा है l</p>
<p></p>
<p>वो हैं मुखातिब तो मुझसे लेकिन <br></br>कलेजा यारों का जल रहा है l</p>
<p></p>
<p>नज़र में है सिर्फ उसके मंज़िल <br></br>जो गिरते गिरते संभल रहा है l</p>
<p></p>
<p>रखें निगाहों पे कैसे काबू <br></br>वो सामने से निकल रहा है l</p>
<p></p>
<p>बदल के शीशा है फायदा क्या<br></br>तेरा भी अब हुस्न ढल रहा है l</p>
<p></p>
<p>खयाल में आ रहा है दिलबर <br></br>न यूँ…</p>
<p></p>
<p>ग़ज़ल (यही ज़माने को खल रहा है ) <br/>(मफा इलातुन _मफा इलातुन)</p>
<p></p>
<p>यही ज़माने को खल रहा हैl<br/>वो मेरे हम राह चल रहा है l</p>
<p></p>
<p>वो हैं मुखातिब तो मुझसे लेकिन <br/>कलेजा यारों का जल रहा है l</p>
<p></p>
<p>नज़र में है सिर्फ उसके मंज़िल <br/>जो गिरते गिरते संभल रहा है l</p>
<p></p>
<p>रखें निगाहों पे कैसे काबू <br/>वो सामने से निकल रहा है l</p>
<p></p>
<p>बदल के शीशा है फायदा क्या<br/>तेरा भी अब हुस्न ढल रहा है l</p>
<p></p>
<p>खयाल में आ रहा है दिलबर <br/>न यूँ मेरा दिल मचल रहा है l</p>
<p></p>
<p>दगा की तुहमत लगी तो जाना <br/>मुझे वो तस्दीक छल रहा है l</p>
<p></p>
<p>(मौलिक व अप्रकाशित)</p>ग़ज़ल (यूँ ही तो न मायूस हम हो गए)tag:openbooksonline.com,2019-03-14:5170231:BlogPost:9783472019-03-14T11:53:02.000ZTasdiq Ahmed Khanhttp://openbooksonline.com/profile/TasdiqAhmedKhan
<p>ग़ज़ल (यूँ ही तो न मायूस हम हो गए)<br></br>(फ ऊलन _फ ऊलन _फ ऊलन _फ अल)</p>
<p></p>
<p>यूँ ही तो न मायूस हम हो गएl<br></br>अचानक सितम उनके कम हो गए l</p>
<p></p>
<p>ज़माने की नाकाम साज़िश हुई<br></br>वो मेरे हुए उनके हम हो गए l</p>
<p></p>
<p>खिलाफे सितम क्या सुखनवर लिखें <br></br>बिकाऊ जब उनके क़लम हो गए l</p>
<p></p>
<p>हुकूमत बचा ज़ुल्म की संग दिल <br></br>सभी अब खिलाफे सितम हो गए l</p>
<p></p>
<p>कोई आ गया आख़री वक़्त क्या <br></br>सभी खत्म दिल के अलम हो गए l</p>
<p></p>
<p>यूँ ही तो न यारों को हैरत हुई…</p>
<p>ग़ज़ल (यूँ ही तो न मायूस हम हो गए)<br/>(फ ऊलन _फ ऊलन _फ ऊलन _फ अल)</p>
<p></p>
<p>यूँ ही तो न मायूस हम हो गएl<br/>अचानक सितम उनके कम हो गए l</p>
<p></p>
<p>ज़माने की नाकाम साज़िश हुई<br/>वो मेरे हुए उनके हम हो गए l</p>
<p></p>
<p>खिलाफे सितम क्या सुखनवर लिखें <br/>बिकाऊ जब उनके क़लम हो गए l</p>
<p></p>
<p>हुकूमत बचा ज़ुल्म की संग दिल <br/>सभी अब खिलाफे सितम हो गए l</p>
<p></p>
<p>कोई आ गया आख़री वक़्त क्या <br/>सभी खत्म दिल के अलम हो गए l</p>
<p></p>
<p>यूँ ही तो न यारों को हैरत हुई <br/>मेरी रह पे उनके क़दम हो गए l</p>
<p></p>
<p>अज़ीज़ों का तस्दीक है ये करम <br/>नहीं बद गुमां यूँ सनम हो गए l</p>
<p></p>
<p>(मौलिक व अप्रकाशित)</p>ग़ज़ल (जो वाकिफ़ ही नहीं नामे वफ़ा से)tag:openbooksonline.com,2019-03-04:5170231:BlogPost:9773602019-03-04T14:19:51.000ZTasdiq Ahmed Khanhttp://openbooksonline.com/profile/TasdiqAhmedKhan
<p>ग़ज़ल (जो वाकिफ़ ही नहीं नामे वफ़ा से)<br></br>(मफाई लुन _मफाई लुन _फ ऊलन)</p>
<p></p>
<p>जो वाकिफ़ ही नहीं नामे वफ़ा सेl<br></br>लगा बैठा हूँ दिल उस दिलरुबा से l</p>
<p></p>
<p>वो बिन मांगे ही मुझको मिल गए हैं<br></br>करूँ कोई दुआ अब क्या ख़ुदा से l</p>
<p></p>
<p>झुका मुंसिफ़ भी ज़र के आगे वर्ना<br></br>बरी होता नहीं क़ातिल सज़ा से l</p>
<p></p>
<p>परायों का करूँ मैं कैसे शिकवा<br></br>मुझे लूटा है अपनों ने दगा से l</p>
<p></p>
<p>ये है फिरक़ा परस्तों की ही साज़िश<br></br>बुझा कब दीप उलफत का हवा से…</p>
<p>ग़ज़ल (जो वाकिफ़ ही नहीं नामे वफ़ा से)<br/>(मफाई लुन _मफाई लुन _फ ऊलन)</p>
<p></p>
<p>जो वाकिफ़ ही नहीं नामे वफ़ा सेl<br/>लगा बैठा हूँ दिल उस दिलरुबा से l</p>
<p></p>
<p>वो बिन मांगे ही मुझको मिल गए हैं<br/>करूँ कोई दुआ अब क्या ख़ुदा से l</p>
<p></p>
<p>झुका मुंसिफ़ भी ज़र के आगे वर्ना<br/>बरी होता नहीं क़ातिल सज़ा से l</p>
<p></p>
<p>परायों का करूँ मैं कैसे शिकवा<br/>मुझे लूटा है अपनों ने दगा से l</p>
<p></p>
<p>ये है फिरक़ा परस्तों की ही साज़िश<br/>बुझा कब दीप उलफत का हवा से l</p>
<p></p>
<p>वफ़ा की कर न तू उम्मीद कोई<br/>मुहब्बत तू ने की इक बे वफ़ा से l</p>
<p></p>
<p>दूआयें ही हैं वो तस्दीक माँ की<br/>बचाती हैं मुझे जो हर बला से l</p>
<p></p>
<p>(मौलिक व अप्रकाशित)</p>ग़ज़ल (पुलवामा के शहीदों को श्रद्धांजलि)tag:openbooksonline.com,2019-02-18:5170231:BlogPost:9751972019-02-18T13:31:50.000ZTasdiq Ahmed Khanhttp://openbooksonline.com/profile/TasdiqAhmedKhan
<p></p>
<p>ग़ज़ल (पुलवामा के शहीदों को श्रद्धांजलि)</p>
<p></p>
<p>देके सर हम हो गए दुनिया से रुखसत दोस्तो l<br></br>तुम को करनी है वतन की अब हिफाज़त दोस्तो l</p>
<p></p>
<p>बाँध कर बैठो कफ़न अपने सरों पर हर घड़ी<br></br>सामने ना जाने कब आ जाए आफ़त दोस्तो l</p>
<p></p>
<p>उन दरिंदों का मिटा दें दुनिया से नामो निशां<br></br>मुल्क में फैला रहे हैं जो भी दहशत दोस्तो l</p>
<p></p>
<p>उसको मत देना मुआफ़ी मौत देना है उसे<br></br>जिसने पुलवामा में की है नीच हरकत दोस्तो l</p>
<p></p>
<p>हम को उनकी ईंट का पत्थर से देना…</p>
<p></p>
<p>ग़ज़ल (पुलवामा के शहीदों को श्रद्धांजलि)</p>
<p></p>
<p>देके सर हम हो गए दुनिया से रुखसत दोस्तो l<br/>तुम को करनी है वतन की अब हिफाज़त दोस्तो l</p>
<p></p>
<p>बाँध कर बैठो कफ़न अपने सरों पर हर घड़ी<br/>सामने ना जाने कब आ जाए आफ़त दोस्तो l</p>
<p></p>
<p>उन दरिंदों का मिटा दें दुनिया से नामो निशां<br/>मुल्क में फैला रहे हैं जो भी दहशत दोस्तो l</p>
<p></p>
<p>उसको मत देना मुआफ़ी मौत देना है उसे<br/>जिसने पुलवामा में की है नीच हरकत दोस्तो l</p>
<p></p>
<p>हम को उनकी ईंट का पत्थर से देना है जवाब<br/>ढा रहे हैं सरहदों पर जो क़यामत दोस्तो l</p>
<p></p>
<p>ये हैं दहशत गर्द क्या जानें भला इंसानियत<br/>इनको अब उलफत नहीं दिखलाओ ताक़त दोस्तो l</p>
<p></p>
<p>मत करो आगे भरोसा तुम पड़ोसी देश पर<br/>धोका देना बन गई है उसकी फितरत दोस्तो l</p>
<p></p>
<p>उनसे बदला खून का लेना है हम को खून से<br/>दी जवानों को जिन्होंने हाए रिहलत दोस्तो </p>
<p></p>
<p>जो सदा धोका ही दे कहना है ये तस्दीक का<br/>उसकी जानिब मत बढ़ाओ दस्ते उलफत दोस्तो l</p>
<p style="text-align: left;"></p>
<p>(मौलिक व अप्रकाशित)</p>
<p></p>ग़ज़ल (मिट चुके हैं प्यार में कितने ही सूरत देख कर)tag:openbooksonline.com,2019-02-03:5170231:BlogPost:9728432019-02-03T14:13:57.000ZTasdiq Ahmed Khanhttp://openbooksonline.com/profile/TasdiqAhmedKhan
<p>ग़ज़ल (मिट चुके हैं प्यार में कितने ही सूरत देख कर)<br></br>(फाइ ला तुन _फाइ ला तुन _फाइ ला तुन _फाइ लु न)</p>
<p></p>
<p>मिट चुके हैं प्यार में कितने ही सूरत देख कर l<br></br>कीजिए गा हुस्न वालों से मुहब्बत देख कर l</p>
<p></p>
<p>मुझको आसारे मुसीबत का गुमां होने लगा<br></br>यक बयक उनका करम उनकी इनायत देख कर l</p>
<p></p>
<p>कुछ भी हो सकता है महफ़िल में संभल कर बैठिए<br></br>आ रहा हूँ उनकी आँखों में क़यामत देख कर l</p>
<p></p>
<p>देखता है कौन इज्ज़त और सीरत आज कल<br></br>जोड़ते हैं लोग रिश्ते सिर्फ़ दौलत देख…</p>
<p>ग़ज़ल (मिट चुके हैं प्यार में कितने ही सूरत देख कर)<br/>(फाइ ला तुन _फाइ ला तुन _फाइ ला तुन _फाइ लु न)</p>
<p></p>
<p>मिट चुके हैं प्यार में कितने ही सूरत देख कर l<br/>कीजिए गा हुस्न वालों से मुहब्बत देख कर l</p>
<p></p>
<p>मुझको आसारे मुसीबत का गुमां होने लगा<br/>यक बयक उनका करम उनकी इनायत देख कर l</p>
<p></p>
<p>कुछ भी हो सकता है महफ़िल में संभल कर बैठिए<br/>आ रहा हूँ उनकी आँखों में क़यामत देख कर l</p>
<p></p>
<p>देखता है कौन इज्ज़त और सीरत आज कल<br/>जोड़ते हैं लोग रिश्ते सिर्फ़ दौलत देख कर l</p>
<p></p>
<p>आने वाली है तबाही मुल्क में लगता है ये<br/>डूबी मज़हब के समुन्दर में सियासत देख कर l</p>
<p></p>
<p>प्यार जिसका आज तक हासिल न कर पाया कोई<br/>उसके कूचे में परखना अपनी क़िस्मत देख कर l</p>
<p></p>
<p>इश्क़ में भी अब तिजा रत हो रही तस्दीक है<br/>तुम किसी भी महजबीं से करना उलफत देख कर l</p>
<p></p>
<p>(मौलिक व अप्रकाशित)</p>ग़ज़ल (दिल ने जिसे बना लिया गुलफाम दोस्तो)tag:openbooksonline.com,2019-01-17:5170231:BlogPost:9700242019-01-17T10:27:28.000ZTasdiq Ahmed Khanhttp://openbooksonline.com/profile/TasdiqAhmedKhan
<p>ग़ज़ल (दिल ने जिसे बना लिया गुलफाम दोस्तो)<br></br>(मफ ऊल _फाइ लात _मफा ईल _फाइ लुन)</p>
<p></p>
<p>दिल ने जिसे बना लिया गुलफाम दोस्तो l<br></br>उसने दिया फरेबी का इल्ज़ाम दोस्तो l</p>
<p></p>
<p>मैं ने खिलाफे ज़ुल्म जुबां अपनी खोल दी<br></br>अब चाहे कुछ भी हो मेरा अंजाम दोस्तो l</p>
<p></p>
<p>दिल को अलम जिगर को तड़प अश्क आँख को<br></br>मुझ को दिए ये इश्क़ ने इनआम दोस्तो l</p>
<p></p>
<p>लाए हैं अंजुमन में किसी अजनबी को वह<br></br>दिल में न यूँ उठा मेरे कुहराम दोस्तो l</p>
<p></p>
<p>सच्चा है यार वो उसे पहचान…</p>
<p>ग़ज़ल (दिल ने जिसे बना लिया गुलफाम दोस्तो)<br/>(मफ ऊल _फाइ लात _मफा ईल _फाइ लुन)</p>
<p></p>
<p>दिल ने जिसे बना लिया गुलफाम दोस्तो l<br/>उसने दिया फरेबी का इल्ज़ाम दोस्तो l</p>
<p></p>
<p>मैं ने खिलाफे ज़ुल्म जुबां अपनी खोल दी<br/>अब चाहे कुछ भी हो मेरा अंजाम दोस्तो l</p>
<p></p>
<p>दिल को अलम जिगर को तड़प अश्क आँख को<br/>मुझ को दिए ये इश्क़ ने इनआम दोस्तो l</p>
<p></p>
<p>लाए हैं अंजुमन में किसी अजनबी को वह<br/>दिल में न यूँ उठा मेरे कुहराम दोस्तो l</p>
<p></p>
<p>सच्चा है यार वो उसे पहचान लीजिए <br/>बद वक़्त पर जो आए सदा काम दोस्तो l</p>
<p></p>
<p>जिसने किया तबाह वही मेरा यार है <br/>उसका जुबां से कैसे मैं लूँ नाम दोस्तो l</p>
<p></p>
<p>तस्दीक तब से भूल गया राहे मैकदा <br/>उसने नज़र का जबसे पिया जाम दोस्तो l</p>
<p></p>
<p>(मौलिक व अप्रकाशित</p>ग़ज़ल (यूँ ही धुआँ न अचानक उठा है गुलशन में)tag:openbooksonline.com,2019-01-05:5170231:BlogPost:9684962019-01-05T07:30:00.000ZTasdiq Ahmed Khanhttp://openbooksonline.com/profile/TasdiqAhmedKhan
<p>(मफा इलुन _फ़ इ ला तुन _मफा इलुन _फ़े लुन)</p>
<p></p>
<p>यूँ ही धुआँ न अचानक उठा है गुलशन में l<br></br> लगी है आग यक़ी नन किसी नशे मन में l</p>
<p></p>
<p>मुझे है ग़म यही उन पर शबाब आते ही<br></br> मिलें न वैसे वो मिलते थे जैसे बचपन में l</p>
<p></p>
<p>न मैं सुकून से हूँ और न चैन से हो तुम<br></br> ये कैसी खींच ली दीवार हम ने आँगन में l</p>
<p></p>
<p>सितम भी ढाए तो वो मुस्कुरा के ही ढाए<br></br> यही तो ख़ास है फितरत हमारे दुश्मन में l</p>
<p></p>
<p>रखें या तोड़ दें बोलें ही सच हमेशा ये<br></br> मिले ये…</p>
<p>(मफा इलुन _फ़ इ ला तुन _मफा इलुन _फ़े लुन)</p>
<p></p>
<p>यूँ ही धुआँ न अचानक उठा है गुलशन में l<br/> लगी है आग यक़ी नन किसी नशे मन में l</p>
<p></p>
<p>मुझे है ग़म यही उन पर शबाब आते ही<br/> मिलें न वैसे वो मिलते थे जैसे बचपन में l</p>
<p></p>
<p>न मैं सुकून से हूँ और न चैन से हो तुम<br/> ये कैसी खींच ली दीवार हम ने आँगन में l</p>
<p></p>
<p>सितम भी ढाए तो वो मुस्कुरा के ही ढाए<br/> यही तो ख़ास है फितरत हमारे दुश्मन में l</p>
<p></p>
<p>रखें या तोड़ दें बोलें ही सच हमेशा ये<br/> मिले ये दोस्तों खसलत हर एक दर्पन में l</p>
<p></p>
<p>छुपाए बैठे हैं महफ़िल में अपने जलवे वो<br/> यही है खौफ न लग जाए आग चिलमन में l</p>
<p></p>
<p>किसी की याद न तस्दीक क्यूँ सताए मुझे<br/> चमन में झूले भी पड़ने लगे हैं सावन में l</p>
<p></p>
<p>(मौलिक व अप्रकाशित)</p>ग़ज़ल (रब से कीजिए दुआएं नए साल में)tag:openbooksonline.com,2019-01-01:5170231:BlogPost:9681822019-01-01T06:58:34.000ZTasdiq Ahmed Khanhttp://openbooksonline.com/profile/TasdiqAhmedKhan
<p>ग़ज़ल (रब से कीजिए दुआएं नए साल में)<br></br>(फाइ लुन _फाइ लुन _फाइ लुन _फाइ लुन _)</p>
<p></p>
<p>रब से कीजिए दुआएं नए साल में l<br></br>अच्छे दिन लौट आएँ नए साल में l</p>
<p></p>
<p>पास आएं न आएं नए साल में l<br></br>पर न हम को भुलाएं नए साल में l</p>
<p></p>
<p>जिन अज़ी ज़ों ने उनको किया बद गुमां<br></br>उनको मत मुँह लगाएँ नए साल में l</p>
<p></p>
<p>उस पे फिरक़ा परस्तों की है बद नजर<br></br>भाई चारा बचाएँ नए साल में l</p>
<p></p>
<p>इम्तहाने वफ़ा तो बहुत हो चुके<br></br>और मत आज़मा एँ नए साल में…</p>
<p>ग़ज़ल (रब से कीजिए दुआएं नए साल में)<br/>(फाइ लुन _फाइ लुन _फाइ लुन _फाइ लुन _)</p>
<p></p>
<p>रब से कीजिए दुआएं नए साल में l<br/>अच्छे दिन लौट आएँ नए साल में l</p>
<p></p>
<p>पास आएं न आएं नए साल में l<br/>पर न हम को भुलाएं नए साल में l</p>
<p></p>
<p>जिन अज़ी ज़ों ने उनको किया बद गुमां<br/>उनको मत मुँह लगाएँ नए साल में l</p>
<p></p>
<p>उस पे फिरक़ा परस्तों की है बद नजर<br/>भाई चारा बचाएँ नए साल में l</p>
<p></p>
<p>इम्तहाने वफ़ा तो बहुत हो चुके<br/>और मत आज़मा एँ नए साल में l</p>
<p></p>
<p>नज़रें मँहगाई घर की ख़ुशी हो गई<br/>जश्न कैसे मनाएँ नए साल में l</p>
<p></p>
<p>जाने जां दिल भी इक रोज़ मिल जाएंगे<br/>हाथ हम से मिलाएँ नए साल में l</p>
<p></p>
<p>मुझको तरसाया पिछ्ले बरस आपने<br/>अब तो जलवा दिखाएँ नए साल में l</p>
<p></p>
<p>ये गवारा है तस्दीक दुनिया को कब<br/>उनके घर आएं जाएँ नए साल में l</p>
<p></p>
<p>(मौलिक व अप्रकाशित)</p>ग़ज़ल (प्यार का हर दस्तूर निभाना पड़ता है)tag:openbooksonline.com,2018-12-11:5170231:BlogPost:9652112018-12-11T05:52:42.000ZTasdiq Ahmed Khanhttp://openbooksonline.com/profile/TasdiqAhmedKhan
<p>ग़ज़ल (प्यार का हर दस्तूर निभाना पड़ता है)<br></br>(फ्अल_फ ऊलन _फ्अल _फ ऊलन _फ़ेलुन _फा)</p>
<p></p>
<p>प्यार का हर दस्तूर निभाना पड़ता है l<br></br>यार का हर ग़म हँस के उठाना पड़ता है l</p>
<p></p>
<p>बाज़ कहाँ वो यूँ आता है महफ़िल में <br></br>शीशा नुक्ता चीं को दिखाना पड़ता है l</p>
<p></p>
<p>यूँ ही मुसाफ़िर मिटती नहीं है तारीकी<br></br>रस्ते में इक दीप जलाना पड़ता है l</p>
<p></p>
<p>उलफत की मंज़िल आसान नहीं इतनी<br></br>धोका हर इक मोड़ पे खाना पड़ता है l</p>
<p></p>
<p>रह पाता है कोई सदा कब दुनिया…</p>
<p>ग़ज़ल (प्यार का हर दस्तूर निभाना पड़ता है)<br/>(फ्अल_फ ऊलन _फ्अल _फ ऊलन _फ़ेलुन _फा)</p>
<p></p>
<p>प्यार का हर दस्तूर निभाना पड़ता है l<br/>यार का हर ग़म हँस के उठाना पड़ता है l</p>
<p></p>
<p>बाज़ कहाँ वो यूँ आता है महफ़िल में <br/>शीशा नुक्ता चीं को दिखाना पड़ता है l</p>
<p></p>
<p>यूँ ही मुसाफ़िर मिटती नहीं है तारीकी<br/>रस्ते में इक दीप जलाना पड़ता है l</p>
<p></p>
<p>उलफत की मंज़िल आसान नहीं इतनी<br/>धोका हर इक मोड़ पे खाना पड़ता है l</p>
<p></p>
<p>रह पाता है कोई सदा कब दुनिया में<br/>एक न इक दिन सब को जाना पड़ता है l</p>
<p></p>
<p>मज़दूरी मज़दूर को कब यूँ है मिलती<br/>खून पसीना उसको बहाना पड़ता है l</p>
<p></p>
<p>खेल मुहब्बत का तस्दीक है कुछ ऎसा<br/>जिस में दिल दाँव पे लगाना पड़ता है l</p>
<p></p>
<p>(मौलिक व अप्रकाशित</p>ग़ज़ल (ख़त्म कर के ही मुहब्बत का सफ़र जाऊंगा)tag:openbooksonline.com,2018-11-06:5170231:BlogPost:9599432018-11-06T05:00:00.000ZTasdiq Ahmed Khanhttp://openbooksonline.com/profile/TasdiqAhmedKhan
<p>(फाइ इलातु न _फ इ लातुन _फ इ लातुन _फ़े लुन)</p>
<p></p>
<p>ख़त्म कर के ही मुहब्बत का सफ़र जाऊंगा l<br></br> तू ने ठुकराया तो कूचे में ही मर जाऊँगा l</p>
<p></p>
<p>जो भी कहना है वो कह दीजिए ख़ामोश हैं क्यूँ<br></br> आपका फ़ैसला सुनके ही मैं घर जाऊँगा l</p>
<p></p>
<p>वकते आख़िर है मेरा पर्दा हटा दे अब तो<br></br> छोड़ कर मैं तेरे चहरे पे नज़र जाऊँगा l</p>
<p></p>
<p>आ गए वक़ते सितम अश्क अगर आँखों में <br></br> मैं सितमगर की निगाहों से उतर जाऊँगा l</p>
<p></p>
<p>लौट कर आऊंगा मैं सिर्फ़ तू इतना कह दे …<br></br></p>
<p>(फाइ इलातु न _फ इ लातुन _फ इ लातुन _फ़े लुन)</p>
<p></p>
<p>ख़त्म कर के ही मुहब्बत का सफ़र जाऊंगा l<br/> तू ने ठुकराया तो कूचे में ही मर जाऊँगा l</p>
<p></p>
<p>जो भी कहना है वो कह दीजिए ख़ामोश हैं क्यूँ<br/> आपका फ़ैसला सुनके ही मैं घर जाऊँगा l</p>
<p></p>
<p>वकते आख़िर है मेरा पर्दा हटा दे अब तो<br/> छोड़ कर मैं तेरे चहरे पे नज़र जाऊँगा l</p>
<p></p>
<p>आ गए वक़ते सितम अश्क अगर आँखों में <br/> मैं सितमगर की निगाहों से उतर जाऊँगा l</p>
<p></p>
<p>लौट कर आऊंगा मैं सिर्फ़ तू इतना कह दे <br/> जिंदगी भर मैं उसी रह पे ठहर जाऊँगा l</p>
<p></p>
<p>मैं इबादत की तरह करता रहा इश्क़ मगर <br/> सोचती ही रही दुनिया के मैं डर जाऊँगा l</p>
<p></p>
<p>उसने तस्दीक सहारा न दिया गर मुझको <br/> छोड़ कर उसका मैं दर कौन से दर जाऊँगा l</p>
<p></p>
<p>(मौलिक व अप्रकाशित)</p>ग़ज़ल (तोड़ते भी नहीं यारी को निभाते भी नहीं)tag:openbooksonline.com,2018-08-18:5170231:BlogPost:9449902018-08-18T12:30:00.000ZTasdiq Ahmed Khanhttp://openbooksonline.com/profile/TasdiqAhmedKhan
<p>(फा इलातुन _फइलातुन _फइलातुन_फेलुन)</p>
<p></p>
<p>तोड़ते भी नहीं यारी को निभाते भी नहीं l <br></br> शीशए दिल में है क्या मुझको बताते भी नहीं l</p>
<p></p>
<p>ऐसे दीवाने भी हम दम हैं जो उलफत के लिए<br></br> गिड़ गिड़ाते भी नहीं सर को झुकाते भी नहीं l</p>
<p></p>
<p>मांगता जब भी हूँ मैं उनसे जवाबे उलफत<br></br> ना भी करते नहीं हाँ होटों पे लाते भी नहीं l</p>
<p></p>
<p>उनकी उलफत का यकीं कोई भला कैसे करे<br></br> वो मिलाते भी नहीं आँख चुराते भी नहीं l</p>
<p></p>
<p>हक़ गरीबों का जो बिन मांगे तू देता…</p>
<p>(फा इलातुन _फइलातुन _फइलातुन_फेलुन)</p>
<p></p>
<p>तोड़ते भी नहीं यारी को निभाते भी नहीं l <br/> शीशए दिल में है क्या मुझको बताते भी नहीं l</p>
<p></p>
<p>ऐसे दीवाने भी हम दम हैं जो उलफत के लिए<br/> गिड़ गिड़ाते भी नहीं सर को झुकाते भी नहीं l</p>
<p></p>
<p>मांगता जब भी हूँ मैं उनसे जवाबे उलफत<br/> ना भी करते नहीं हाँ होटों पे लाते भी नहीं l</p>
<p></p>
<p>उनकी उलफत का यकीं कोई भला कैसे करे<br/> वो मिलाते भी नहीं आँख चुराते भी नहीं l</p>
<p></p>
<p>हक़ गरीबों का जो बिन मांगे तू देता ज़ालिम<br/> ये मुखालिफ तेरे आवाज़ उठाते भी नहीं l</p>
<p></p>
<p>किस तरह आगे बढ़े दरमियाँ भाई चारा<br/> वो गले लगते नहीं मुझको लगाते भी नहीं l</p>
<p></p>
<p>उस दगा बाज़ की फितरत से जो वाक़िफ होते<br/> दिल भी हम देते नहीं जान लुटाते भी नहीं l</p>
<p></p>
<p>उनको पैगामे वफ़ा कैसे भला दे कोई <br/> रुख बदलते वो नहीं आँख लड़ाते भी नहीं l</p>
<p></p>
<p>जानते हम जो नहीं शौक़े सुखन गोई उन्हें <br/> उनको तस्दीक ग़ज़ल अपनी सुनाते भी नहीं l</p>
<p></p>
<p>(मौलिक व अप्रकाशित</p>ग़ज़ल _ घर की बर्बादी के हालात नज़र आते हैं |0tag:openbooksonline.com,2018-08-06:5170231:BlogPost:9435432018-08-06T01:19:52.000ZTasdiq Ahmed Khanhttp://openbooksonline.com/profile/TasdiqAhmedKhan
<p>(फाइ ला तुन _फ इ लातुन _फ इ लातुन _फे लुन)</p>
<p></p>
<p>घर की बर्बादी के हालात नज़र आते हैं |<br></br>उनके तब्दील खयालात नज़र आ ते हैं |</p>
<p></p>
<p>सिर्फ़ मेरी ही नहीं उनसे तलब मिलने की <br></br>वो भी मुश्ताक़े मुलाकात नज़र आ ते हैं |</p>
<p></p>
<p>जिनके वादों ने हसीं ख्वाब दिखाए मुझको <br></br>उफ़ बदलते हुए वो बात नज़र आ ते हैं |</p>
<p></p>
<p>उनकी यादों को भुलाऊँ तो भुलाऊँ कैसे <br></br>वो तसव्वुर में भी दिन रात नज़र आ ते हैं |</p>
<p></p>
<p>बे असर यूँ न हुईं मेरी वफाएँ यारो <br></br>उनके सोए हुए…</p>
<p>(फाइ ला तुन _फ इ लातुन _फ इ लातुन _फे लुन)</p>
<p></p>
<p>घर की बर्बादी के हालात नज़र आते हैं |<br/>उनके तब्दील खयालात नज़र आ ते हैं |</p>
<p></p>
<p>सिर्फ़ मेरी ही नहीं उनसे तलब मिलने की <br/>वो भी मुश्ताक़े मुलाकात नज़र आ ते हैं |</p>
<p></p>
<p>जिनके वादों ने हसीं ख्वाब दिखाए मुझको <br/>उफ़ बदलते हुए वो बात नज़र आ ते हैं |</p>
<p></p>
<p>उनकी यादों को भुलाऊँ तो भुलाऊँ कैसे <br/>वो तसव्वुर में भी दिन रात नज़र आ ते हैं |</p>
<p></p>
<p>बे असर यूँ न हुईं मेरी वफाएँ यारो <br/>उनके सोए हुए जज़्बात नज़र आ ते हैं |</p>
<p></p>
<p>ख़ास जो दोस्त हैं मिलती है यह उन में खसलत <br/>वक्ते मुश्किल वो सदा साथ नज़र आ ते हैं |</p>
<p></p>
<p>ज़ख़मे नौ देता है तस्दीक वो हर दिन फ़िर भी <br/>तुम को आसारे इना यात नज़र आ ते हैं |</p>
<p></p>
<p>(मौलिक व अप्रकाशित)</p>ग़ज़ल (क्या ख़ता कोई रशके क़मर हो गई)tag:openbooksonline.com,2018-07-29:5170231:BlogPost:9423082018-07-29T09:51:02.000ZTasdiq Ahmed Khanhttp://openbooksonline.com/profile/TasdiqAhmedKhan
<p>ग़ज़ल (क्या ख़ता कोई रशके क़मर हो गई)<br></br>(फाइ लुन _फाइ लुन _फाइ लुन _फाइ लुन)</p>
<p></p>
<p>क्या ख़ता कोई रशके क़मर हो गई |<br></br>जो खफा मुझसे तेरी नज़र हो गई |</p>
<p></p>
<p>आँख में तेरी अश्के नदामत न थे<br></br>इस लिए हर दुआ बे असर हो गई |</p>
<p></p>
<p>ग़म तबाही का तुमको नहीं है अगर<br></br>आँख क्यूँ देख कर मुझको तर हो गई |</p>
<p></p>
<p>ख़त्म शिकवे गिले सारे हो जाएंगे<br></br>गुफ्तगू उनसे तन्हा अगर हो गई |</p>
<p></p>
<p>यह करामत हमारे अज़ीज़ों की है<br></br>यूँ न उनकी अलग रह गुज़र हो गई…</p>
<p>ग़ज़ल (क्या ख़ता कोई रशके क़मर हो गई)<br/>(फाइ लुन _फाइ लुन _फाइ लुन _फाइ लुन)</p>
<p></p>
<p>क्या ख़ता कोई रशके क़मर हो गई |<br/>जो खफा मुझसे तेरी नज़र हो गई |</p>
<p></p>
<p>आँख में तेरी अश्के नदामत न थे<br/>इस लिए हर दुआ बे असर हो गई |</p>
<p></p>
<p>ग़म तबाही का तुमको नहीं है अगर<br/>आँख क्यूँ देख कर मुझको तर हो गई |</p>
<p></p>
<p>ख़त्म शिकवे गिले सारे हो जाएंगे<br/>गुफ्तगू उनसे तन्हा अगर हो गई |</p>
<p></p>
<p>यह करामत हमारे अज़ीज़ों की है<br/>यूँ न उनकी अलग रह गुज़र हो गई |</p>
<p></p>
<p>तुहमते बे वफाई थी दोनों तरफ़ <br/>बदगुमानी इसी बात पर हो गई |</p>
<p></p>
<p>मुझको हैरत है उनसे मिला नीम शब <br/>फ़िर भी तस्दीक सबको ख़बर हो गई |</p>
<p></p>
<p>(मौलिक व अप्रकाशित)</p>ग़ज़ल (हम अगर राहे वफ़ा में कामरां हो जाएँगे)tag:openbooksonline.com,2018-07-18:5170231:BlogPost:9404972018-07-18T02:00:00.000ZTasdiq Ahmed Khanhttp://openbooksonline.com/profile/TasdiqAhmedKhan
<p>(फाइ ला तुन _फाइ ला तुन _फाइ ला तुन _फाइ लु न)</p>
<p></p>
<p>हम अगर राहे वफ़ा में कामरां हो जाएँगे l<br></br> सारी दुनिया के लिए इक दास्तां हो जाएँगे l</p>
<p></p>
<p>आप ने हम को ठिकाना गर न कूचे में दिया <br></br> हम भरी दुनिया में बे घर जानेजाँ हो जाएँगे l</p>
<p></p>
<p>बे रुखी जारी रही फूलों से गर यूँ ही तेरी <br></br> खार भी तेरे मुखालिफ बागबां हो जाएँगे l</p>
<p></p>
<p>जैसे हम बचपन में मिलते थे किसे था यह पता <br></br> मिल नहीं पाएंगे वैसे जब जवां हो जाएँगे l</p>
<p></p>
<p>ज़िंदगी में इस तरह आएंगे…</p>
<p>(फाइ ला तुन _फाइ ला तुन _फाइ ला तुन _फाइ लु न)</p>
<p></p>
<p>हम अगर राहे वफ़ा में कामरां हो जाएँगे l<br/> सारी दुनिया के लिए इक दास्तां हो जाएँगे l</p>
<p></p>
<p>आप ने हम को ठिकाना गर न कूचे में दिया <br/> हम भरी दुनिया में बे घर जानेजाँ हो जाएँगे l</p>
<p></p>
<p>बे रुखी जारी रही फूलों से गर यूँ ही तेरी <br/> खार भी तेरे मुखालिफ बागबां हो जाएँगे l</p>
<p></p>
<p>जैसे हम बचपन में मिलते थे किसे था यह पता <br/> मिल नहीं पाएंगे वैसे जब जवां हो जाएँगे l</p>
<p></p>
<p>ज़िंदगी में इस तरह आएंगे महमाँ बन के वो <br/> पहले दिल फ़िर दिल रुबा फ़िर दिल सितां हो जाएँगे l</p>
<p></p>
<p>इतनी जल्दी यह करिश्मा हो गा किस को आस थी <br/> ज़ुल्म ढ़ाने वाले मुझ पर महरबां हो जाएँगे l</p>
<p></p>
<p>हम से नफरत करते करते किस को यह मालूम था <br/> वो हमारे दिल में महमाँ नागहां हो जाएँगे l</p>
<p></p>
<p>शमअ तो शब भर जलेगी देखिए इनकी वफ़ा <br/> जल के परवाने मगर पल में धुआँ हो जाएँगे l</p>
<p></p>
<p>कौन बोलेगा भला तस्दीक ज़ुल्मों के ख़िलाफ़ <br/> आप गर महफिल में गूंगे बे जुबां हो जाएँगे l</p>
<p>काम रां_ कामयाब, दिल सितां _माशूक़<br/> ना गहां _अचानक</p>
<p></p>
<p>(मौलिक व अप्रकाशित)</p>ग़ज़ल (जानेमन मुझको मुहब्बत का ज़माना याद है)tag:openbooksonline.com,2018-07-02:5170231:BlogPost:9381422018-07-02T12:00:00.000ZTasdiq Ahmed Khanhttp://openbooksonline.com/profile/TasdiqAhmedKhan
<p>(फाइलातुन _फाइलातुन _फाइलातुन _फाइलुन)</p>
<p><br></br> याद है तेरी इनायत, ज़ुल्म ढाना याद है |<br></br> जानेमन मुझको मुहब्बत का ज़माना याद है |</p>
<p></p>
<p>हम जहाँ छुप छुप के मिलते थे कभी जाने जहाँ<br></br> आज भी वो रास्ता और वो ठिकाना याद है |</p>
<p></p>
<p>भूल बैठे हैं सितम के आप ही क़िस्से मगर<br></br> दर्द, ग़म,आँसू का मुझको हर फ़साना याद है|</p>
<p></p>
<p>इस लिए दौरे परेशानी से घबराता नहीं<br></br> मुश्किलों में उनका मुझको मुस्कुराना याद है |</p>
<p></p>
<p>घर के बाहर यक बयक सुन कर मेरी आवाज़ को…<br></br></p>
<p>(फाइलातुन _फाइलातुन _फाइलातुन _फाइलुन)</p>
<p><br/> याद है तेरी इनायत, ज़ुल्म ढाना याद है |<br/> जानेमन मुझको मुहब्बत का ज़माना याद है |</p>
<p></p>
<p>हम जहाँ छुप छुप के मिलते थे कभी जाने जहाँ<br/> आज भी वो रास्ता और वो ठिकाना याद है |</p>
<p></p>
<p>भूल बैठे हैं सितम के आप ही क़िस्से मगर<br/> दर्द, ग़म,आँसू का मुझको हर फ़साना याद है|</p>
<p></p>
<p>इस लिए दौरे परेशानी से घबराता नहीं<br/> मुश्किलों में उनका मुझको मुस्कुराना याद है |</p>
<p></p>
<p>घर के बाहर यक बयक सुन कर मेरी आवाज़ को<br/> बिन दुपट्टा तेरा दरवाज़े पे आना याद है |</p>
<p></p>
<p>जान से अपनी गया पा कर इशारा जो तेरा <br/> क्या तुझे अपना सितम गर वो दिवाना याद है|</p>
<p></p>
<p>हुक्म से किस के गिरी तस्दीक बिजली क्या पता <br/> हम को जलता सिर्फ अपना आशियाना याद है |</p>
<p></p>
<p>(मौलिक व अप्रकाशित)</p>ग़ज़ल (हो गई उनकी महरबानी है)tag:openbooksonline.com,2018-06-19:5170231:BlogPost:9350482018-06-19T04:00:00.000ZTasdiq Ahmed Khanhttp://openbooksonline.com/profile/TasdiqAhmedKhan
<p>(फाइलातुन _मफाइलुन_फेलुन)</p>
<p></p>
<p>कोई मुश्किल ज़रूर आनी है |<br></br> हो गई उनकी महरबानी है |</p>
<p></p>
<p>तिशनगी जो बुझाए लोगों की<br></br> तुझ में सागर कहाँ वो पानी है |</p>
<p></p>
<p>और मुझ से वो हो गए बद ज़न <br></br> बात यारों की जब से मानी है |</p>
<p></p>
<p>खा गई घर का चैन मँहगाई <br></br> उनकी जिस दिन से हुक्म रानी है |</p>
<p></p>
<p>ज़ख्म तू ने दिए हैं ले कर दिल </p>
<p>जुल की फितरत तेरी पुरानी है |</p>
<p></p>
<p>इंक़लाब आए क्यूँ न बस्ती में <br></br> उन पे आई गज़ब जवानी है…</p>
<p>(फाइलातुन _मफाइलुन_फेलुन)</p>
<p></p>
<p>कोई मुश्किल ज़रूर आनी है |<br/> हो गई उनकी महरबानी है |</p>
<p></p>
<p>तिशनगी जो बुझाए लोगों की<br/> तुझ में सागर कहाँ वो पानी है |</p>
<p></p>
<p>और मुझ से वो हो गए बद ज़न <br/> बात यारों की जब से मानी है |</p>
<p></p>
<p>खा गई घर का चैन मँहगाई <br/> उनकी जिस दिन से हुक्म रानी है |</p>
<p></p>
<p>ज़ख्म तू ने दिए हैं ले कर दिल </p>
<p>जुल की फितरत तेरी पुरानी है |</p>
<p></p>
<p>इंक़लाब आए क्यूँ न बस्ती में <br/> उन पे आई गज़ब जवानी है |</p>
<p></p>
<p>तरके उल्फत करें वही तस्दीक </p>
<p>मुझको तो दोस्ती निभानी है |</p>
<p></p>
<p>(मौलिक व अप्रकाशित ) </p>
<p></p>
<p></p>
<p></p>ग़ज़ल (न मुँह को फेर के यूं आप जाएं ईद के दिन)tag:openbooksonline.com,2018-06-15:5170231:BlogPost:9341022018-06-15T15:00:00.000ZTasdiq Ahmed Khanhttp://openbooksonline.com/profile/TasdiqAhmedKhan
<p>(मफाइलुन _फ इलातुन_मफाइलुन_फ इलुन)</p>
<p></p>
<p>न मुँह को फेर के यूं आप जाएं ईद के दिन |<br></br> मेरे गले से लगें या लगाएँ ईद के दिन |</p>
<p></p>
<p>अकेले हम ख़ुशी कैसे मनाएँ ईद के दिन |<br></br> ख़ुदा क़सम वो बहुत याद आएँ ईद के दिन |</p>
<p></p>
<p>जो पिछले साल थाशामिल हमारी खुशियों में <br></br> उसी हसीन की यादें सताएँ ईद के दिन |</p>
<p></p>
<p>गरज़ है क्या भला हम साया ग़ैर मुस्लिम है <br></br> उसे बुलाके सिवइयाँ खिलाएँ ईद के दिन |</p>
<p></p>
<p>ख़ुदा ने अर्श से भेजा है तुहफा फरहत का<br></br> न दिल…</p>
<p>(मफाइलुन _फ इलातुन_मफाइलुन_फ इलुन)</p>
<p></p>
<p>न मुँह को फेर के यूं आप जाएं ईद के दिन |<br/> मेरे गले से लगें या लगाएँ ईद के दिन |</p>
<p></p>
<p>अकेले हम ख़ुशी कैसे मनाएँ ईद के दिन |<br/> ख़ुदा क़सम वो बहुत याद आएँ ईद के दिन |</p>
<p></p>
<p>जो पिछले साल थाशामिल हमारी खुशियों में <br/> उसी हसीन की यादें सताएँ ईद के दिन |</p>
<p></p>
<p>गरज़ है क्या भला हम साया ग़ैर मुस्लिम है <br/> उसे बुलाके सिवइयाँ खिलाएँ ईद के दिन |</p>
<p></p>
<p>ख़ुदा ने अर्श से भेजा है तुहफा फरहत का<br/> न दिल किसी भी बशर का दुखाएँ ईद केदिन |</p>
<p></p>
<p>वतन में एकता क़ायम हो भाई चारा बढ़े <br/> ख़ुदा से मांगिए मिल कर दुआएँ ईद के दिन |</p>
<p></p>
<p>कहीँ न फोड़ लूँ आंखें मैं देख कर मंज़र <br/> उदास शक्ल न मुझको दिखाएँ ईद के दिन |</p>
<p></p>
<p>किया जो वादा मुलाक़ात का कभी हम से <br/> उसे तो आप खुदारा निभाएँ ईद के दिन |</p>
<p></p>
<p>जो मुद्दतों से है तस्दीक आप से रूठा <br/> उसे गले से लगा कर मनाएँ ईद के दिन |</p>
<p></p>
<p>{मौलिक व अप्रकाशित)</p>ग़ज़ल _तक़दीर आज़माने की ज़हमत न कीजिएtag:openbooksonline.com,2018-06-12:5170231:BlogPost:9338892018-06-12T17:00:00.000ZTasdiq Ahmed Khanhttp://openbooksonline.com/profile/TasdiqAhmedKhan
<p>(मफऊल _ फाइलात _ मफाईल _फाइलुन)</p>
<p></p>
<p>तक़दीर आज़माने की ज़हमत न कीजिए |<br></br> उस बे वफ़ा को पाने की हसरत न कीजिए |</p>
<p></p>
<p>बढ़ने लगी हैं नफरतें लोगों के दरमियाँ<br></br> मज़हब की आड़ ले के सियासत न कीजिए |</p>
<p></p>
<p>जलवे किसी हसीन के आया हूँ देख कर<br></br> महफ़िल में आज ज़िक्रे कियामत न कीजिए |</p>
<p></p>
<p>आवाज़ तो उठाइए हक़ के लिए मगर<br></br> इसके लिए वतन में बग़ावत न कीजिए |</p>
<p></p>
<p>बैठा है चोट खाके हसीनों से दिल पे वो<br></br> जो कह रहा था मुझ से मुहब्बत न कीजिए…</p>
<p>(मफऊल _ फाइलात _ मफाईल _फाइलुन)</p>
<p></p>
<p>तक़दीर आज़माने की ज़हमत न कीजिए |<br/> उस बे वफ़ा को पाने की हसरत न कीजिए |</p>
<p></p>
<p>बढ़ने लगी हैं नफरतें लोगों के दरमियाँ<br/> मज़हब की आड़ ले के सियासत न कीजिए |</p>
<p></p>
<p>जलवे किसी हसीन के आया हूँ देख कर<br/> महफ़िल में आज ज़िक्रे कियामत न कीजिए |</p>
<p></p>
<p>आवाज़ तो उठाइए हक़ के लिए मगर<br/> इसके लिए वतन में बग़ावत न कीजिए |</p>
<p></p>
<p>बैठा है चोट खाके हसीनों से दिल पे वो<br/> जो कह रहा था मुझ से मुहब्बत न कीजिए |</p>
<p></p>
<p>मुफलिस के घर ही लुटते हैं अक्सर फसाद में<br/> अख़बार पढ़ के आज का हैरत न कीजिए |</p>
<p></p>
<p>रसमे वफ़ा निभाइए तस्दीक आप भी<br/> खाकर फरेबे हुस्न शिकायत न कीजिए |</p>
<p></p>
<p>(मौलिक व अप्रकाशित</p>ग़ज़ल _मेरे हबीब सिर्फ तू क़ुरबत की बात करtag:openbooksonline.com,2018-06-06:5170231:BlogPost:9328212018-06-06T10:00:00.000ZTasdiq Ahmed Khanhttp://openbooksonline.com/profile/TasdiqAhmedKhan
<p>मफ ऊल _फाइलात_ मफाईल _फाइलुन</p>
<p></p>
<p>उलफत की गर नहीं तो अदावत की बात कर |<br></br> मेरे हबीब सिर्फ़ तू क़ुरबत की बात कर |</p>
<p></p>
<p>दीदार कर के आया हूँ मैं एक हसीन का <br></br> मुझ से न यार आज क़यामत की बात कर |</p>
<p></p>
<p>लोगों के बीच होने लगीं ख़त्म उलफतें <br></br> मज़हब के नाम पर न सियासत की बात कर |</p>
<p></p>
<p>तदबीर पर है सिर्फ नजूमी मुझे यकीं <br></br> तू देख कर लकीर न क़िस्मत की बात कर |</p>
<p></p>
<p>ईमान बेचता नहीं मैं हूँ सुखन सरा <br></br> मुझ से मेरे अज़ीज़ न दौलत की बात कर…</p>
<p>मफ ऊल _फाइलात_ मफाईल _फाइलुन</p>
<p></p>
<p>उलफत की गर नहीं तो अदावत की बात कर |<br/> मेरे हबीब सिर्फ़ तू क़ुरबत की बात कर |</p>
<p></p>
<p>दीदार कर के आया हूँ मैं एक हसीन का <br/> मुझ से न यार आज क़यामत की बात कर |</p>
<p></p>
<p>लोगों के बीच होने लगीं ख़त्म उलफतें <br/> मज़हब के नाम पर न सियासत की बात कर |</p>
<p></p>
<p>तदबीर पर है सिर्फ नजूमी मुझे यकीं <br/> तू देख कर लकीर न क़िस्मत की बात कर |</p>
<p></p>
<p>ईमान बेचता नहीं मैं हूँ सुखन सरा <br/> मुझ से मेरे अज़ीज़ न दौलत की बात कर |</p>
<p></p>
<p>खिदमत तो वाल दैन की तू ने कभी न की <br/> नादां ज़ुबान से न तू जन्नत की बात कर |</p>
<p></p>
<p>मुद्दत के बाद तुझ से अकेले मिले हैं वो <br/> तस्दीक आज सिर्फ मुहब्बत की बात कर |</p>
<p>(मौलिक व अप्रकाशित)</p>ग़ज़ल (दोस्तों वक़्त के रहबर का तमाशा देखो)tag:openbooksonline.com,2018-05-19:5170231:BlogPost:9309792018-05-19T05:00:00.000ZTasdiq Ahmed Khanhttp://openbooksonline.com/profile/TasdiqAhmedKhan
<p>(फाइला तुन _फ इलातुन _फ इ ला तुन _फेलुन)</p>
<p></p>
<p>दोस्तों वक़्त के रहबर का तमाशा देखो |<br></br> कोई तकलीफ में, खुश कोई है फिरक़ा देखो |</p>
<p></p>
<p>कोई पत्थर की तरह आपकी ठोकर में है<br></br> मेरे महबूब ज़रा गौर से कूचा देखो |</p>
<p></p>
<p>आपको करना है दीदार गरीबी का अगर <br></br> जाके फुट पाथ का रातों में नज़ारा देखो |</p>
<p></p>
<p>हर किसी शख्स के हाथों में नहीं यूँ पत्थर <br></br> फ़िर कोई आ गया कूचे में दिवाना देखो |</p>
<p></p>
<p>गिडगिडाने से कभी हक़ नहीं मिल पाएगा <br></br> कर के तब्दील ज़रा…</p>
<p>(फाइला तुन _फ इलातुन _फ इ ला तुन _फेलुन)</p>
<p></p>
<p>दोस्तों वक़्त के रहबर का तमाशा देखो |<br/> कोई तकलीफ में, खुश कोई है फिरक़ा देखो |</p>
<p></p>
<p>कोई पत्थर की तरह आपकी ठोकर में है<br/> मेरे महबूब ज़रा गौर से कूचा देखो |</p>
<p></p>
<p>आपको करना है दीदार गरीबी का अगर <br/> जाके फुट पाथ का रातों में नज़ारा देखो |</p>
<p></p>
<p>हर किसी शख्स के हाथों में नहीं यूँ पत्थर <br/> फ़िर कोई आ गया कूचे में दिवाना देखो |</p>
<p></p>
<p>गिडगिडाने से कभी हक़ नहीं मिल पाएगा <br/> कर के तब्दील ज़रा दोस्तों लहजा देखो |</p>
<p></p>
<p>दर्द है दिल में, जिगर में है तड़प, आँखें नम <br/> ले के आ या हूँ सनम तुहफे मैं क्या क्या देखो |</p>
<p></p>
<p>इस क़दर उनके ख़यालों ने मुझे महकाया <br/> सूँघता है मुझे हर कोई गुलों सा देखो |</p>
<p></p>
<p>बाद में उंगली मेरी सम्त उठा लेना तुम <br/> पहले आईने में अपना ज़रा चहरा देखो |</p>
<p></p>
<p>काम आते हैं कहाँ वक्ते मुसीबत अपने <br/> अब किसी ग़ैर का तस्दीक सहारा देखो |</p>
<p></p>
<p>(मौलिक व अप्रकाशित)</p>ग़ज़ल (जिस को कुछ ग़म न हो कमाई का)tag:openbooksonline.com,2018-05-15:5170231:BlogPost:9308512018-05-15T14:30:00.000ZTasdiq Ahmed Khanhttp://openbooksonline.com/profile/TasdiqAhmedKhan
<p></p>
<p>(फाइलातुन - - मफा इलुंन - - - फेलुन)</p>
<p></p>
<p>जिस को कुछ ग़म न हो कमाई का |</p>
<p>वो करे काम आशनाई का |</p>
<p></p>
<p>मुझको ले आए ग़म की सरहद तक</p>
<p>शुक्रिया उनकी रहनुमाई का |</p>
<p></p>
<p>झूटी तुहमत पे तैश खाते हो</p>
<p>यह तरीक़ा नहीं सफ़ाई का |</p>
<p></p>
<p>मनज़िले इश्क़ पा सकेगा वही </p>
<p>सह लिया जिसने ग़म जुदाई का |</p>
<p></p>
<p>मैं वफादार था लगा फ़िर भी </p>
<p>मुझ पे इल्ज़ाम बे वफाई का |</p>
<p></p>
<p>ज़ुल्म उस हद तलक रहें मह दूद</p>
<p>आए मौक़ा न जग हँसाई…</p>
<p></p>
<p>(फाइलातुन - - मफा इलुंन - - - फेलुन)</p>
<p></p>
<p>जिस को कुछ ग़म न हो कमाई का |</p>
<p>वो करे काम आशनाई का |</p>
<p></p>
<p>मुझको ले आए ग़म की सरहद तक</p>
<p>शुक्रिया उनकी रहनुमाई का |</p>
<p></p>
<p>झूटी तुहमत पे तैश खाते हो</p>
<p>यह तरीक़ा नहीं सफ़ाई का |</p>
<p></p>
<p>मनज़िले इश्क़ पा सकेगा वही </p>
<p>सह लिया जिसने ग़म जुदाई का |</p>
<p></p>
<p>मैं वफादार था लगा फ़िर भी </p>
<p>मुझ पे इल्ज़ाम बे वफाई का |</p>
<p></p>
<p>ज़ुल्म उस हद तलक रहें मह दूद</p>
<p>आए मौक़ा न जग हँसाई का |</p>
<p></p>
<p>उस पे आती हैं मुश्किलें तस्दीक </p>
<p>काम करता है जो भलाई का |</p>
<p></p>
<p>(मौलिक व अप्रकाशित)</p>