Ganga Dhar Sharma 'Hindustan''s Posts - Open Books Online2024-03-19T01:56:18ZGanga Dhar Sharma 'Hindustan'http://openbooksonline.com/profile/GangaDharSharmaHindustanhttp://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/2991286354?profile=RESIZE_48X48&width=48&height=48&crop=1%3A1http://openbooksonline.com/profiles/blog/feed?user=1jhg85rno8lzt&xn_auth=noभारत माता करे पुकार...tag:openbooksonline.com,2019-02-17:5170231:BlogPost:9751772019-02-17T15:30:00.000ZGanga Dhar Sharma 'Hindustan'http://openbooksonline.com/profile/GangaDharSharmaHindustan
<p>मुझको भारत माँ कहते थे , करते थे मेरी जयकार।</p>
<p>पुलवामा में बेटे मेरे , षडयंत्रों का हुए शिकार।</p>
<p>विकल ह्रदय जननी हूँ मैं , पुत्रों मेरी सुनो पुकार।</p>
<p>विकल्प एक ही है, प्रतिशोध, सत्य यही है करो स्वीकार।</p>
<p></p>
<p>कायरता के कृत्य घिघौने , छद्मयुद्ध की माया को।</p>
<p>चिथड़े-चिथड़े उड़ते देखा, मैंने पुत्रों की काया को।</p>
<p>इस छद्मयुद्ध के जख्मों में , टीस भयानक उठती है।</p>
<p>फ़फ़क-फ़फ़क कर रोते-रोते ही, रीस भयानक उठती है।</p>
<p></p>
<p>समय नहीं है अब केवल वक्तव्यों और…</p>
<p>मुझको भारत माँ कहते थे , करते थे मेरी जयकार।</p>
<p>पुलवामा में बेटे मेरे , षडयंत्रों का हुए शिकार।</p>
<p>विकल ह्रदय जननी हूँ मैं , पुत्रों मेरी सुनो पुकार।</p>
<p>विकल्प एक ही है, प्रतिशोध, सत्य यही है करो स्वीकार।</p>
<p></p>
<p>कायरता के कृत्य घिघौने , छद्मयुद्ध की माया को।</p>
<p>चिथड़े-चिथड़े उड़ते देखा, मैंने पुत्रों की काया को।</p>
<p>इस छद्मयुद्ध के जख्मों में , टीस भयानक उठती है।</p>
<p>फ़फ़क-फ़फ़क कर रोते-रोते ही, रीस भयानक उठती है।</p>
<p></p>
<p>समय नहीं है अब केवल वक्तव्यों और बयानों का।</p>
<p>घड़ियाली आँसू टपकाने, बहकाने और बहानों का।</p>
<p>पुलवामा की मर्माहत पीड़ा, स्रोत शक्ति का बन जाए।</p>
<p>शत्रुजनित जो मिली वेदना, वो शत्रु-मृत्यु बन जाए।</p>
<p></p>
<p>वीर-प्रसूता हूँ मैं फिर भी ,कहाँ भाग्य से भूल हुई।</p>
<p>कौन शत्रु को बचा रहा, क्यों किस्मत प्रतिकूल हुई।</p>
<p>ताले बंदूकों <i>के</i> <i>,</i>वीर जवानों <i>की</i> ,गए नहीं क्यों खोले।</p>
<p>आस्तीन में मेरी, किसकी शह पर, पलते रहे सँपोले।</p>
<p></p>
<p>जिस मिट्टी का तिलक लगाते, मैं वो भारत की धरती हूँ।</p>
<p>मेरे बच्चों मैं आज स्वयं, आह्वान तुम्हारा करती हूँ।</p>
<p>गीता में भगवान् कृष्ण के उपदेशों का ध्यान करो।</p>
<p>पृथ्वी, अग्नि, आकाश मिसाइल का शीघ्र अब संधान करो।</p>
<p></p>
<p>हिंदुस्तान' इन उद्द्वेग-क्षणों को व्यर्थ गँवाना उचित नहीं।</p>
<p>वीरों के उत्सर्ग-पर्व पर , अश्रु बहाना उचित नहीं।</p>
<p>सन सैंतालिस में मिली स्वतंत्रता समझो अभी अधूरी है।</p>
<p>इस निर्मम सिद्धांत-विहीन , आतंकी का पतन जरूरी है।</p>
<p>(मौलिक एवं अप्रकाशित)</p>एक रंग है खूनtag:openbooksonline.com,2018-08-25:5170231:BlogPost:9460802018-08-25T20:15:50.000ZGanga Dhar Sharma 'Hindustan'http://openbooksonline.com/profile/GangaDharSharmaHindustan
<p>हिन्दू - मुस्लिम का कहें, एक रंग है खून.<br></br>हिन्दू हिन्दू में फरक, क्यों करता कानून.<br></br>सबके दो हैं हाथ, पाँव भी सबके दो हैं.<br></br>नाक सभी के एक, सूँघते जिससे वो हैं.<br></br>नयन जिसे भी मिले,जगत के दर्शन करता.<br></br>कान और मुँह से, सुनता - वर्णन करता.<br></br>सात दिन मिले सभी को, हफ्ते में एक समान.<br></br>विद्यालय में गुरु सभी को, देता ज्ञान समान.<br></br>अन्न नहीं करता देने में, ताकत कोई भेद.<br></br>मनु के पुत्र सभी मनुष्य हैं, कहते सारे वेद.<br></br>सूरज सबके लिए चमकता, सबको राह दिखाता.<br></br>श्वांस सभी पवन से…</p>
<p>हिन्दू - मुस्लिम का कहें, एक रंग है खून.<br/>हिन्दू हिन्दू में फरक, क्यों करता कानून.<br/>सबके दो हैं हाथ, पाँव भी सबके दो हैं.<br/>नाक सभी के एक, सूँघते जिससे वो हैं.<br/>नयन जिसे भी मिले,जगत के दर्शन करता.<br/>कान और मुँह से, सुनता - वर्णन करता.<br/>सात दिन मिले सभी को, हफ्ते में एक समान.<br/>विद्यालय में गुरु सभी को, देता ज्ञान समान.<br/>अन्न नहीं करता देने में, ताकत कोई भेद.<br/>मनु के पुत्र सभी मनुष्य हैं, कहते सारे वेद.<br/>सूरज सबके लिए चमकता, सबको राह दिखाता.<br/>श्वांस सभी पवन से पाते, जो है जीवन-दाता.<br/>पानी पावक तथा पवन, धरती और गगन.<br/>सबको मिलते उतने, जितना किया जतन.<br/>प्रकृति का है न्याय, कर्म बिन फल ना देती.<br/>हक़ लायक को मिले, ये दखल न देती.<br/>ऐसा ही हो जाये तो, संसार सुधर जायेगा.<br/>हर भेदभाव से उठकर, ये देश सँवर जायेगा.<br/>'हिन्दुस्तान' ह्रदय में मेरे, करुणा भरी अपार.<br/>हिन्दू-मुस्लिम, ऊँच-नीच का, इसमें नहीं विचार.<br/>गंगा धर शर्मा 'हिन्दुस्तान'<br/>अजमेर (राज.)</p>
<p>मौलिक एवम् अप्रकाशित </p>ग़ज़ल : है अँधेर नगरी चौपट का राज है.tag:openbooksonline.com,2018-06-07:5170231:BlogPost:9330322018-06-07T10:00:00.000ZGanga Dhar Sharma 'Hindustan'http://openbooksonline.com/profile/GangaDharSharmaHindustan
<p>है अँधेर नगरी चौपट का राज है.</p>
<p>हंसों को काला पानी, कौवों को ताज है.</p>
<p> </p>
<p>आईन का मसौदा ऐसा बुना बुजन नें.</p>
<p>घोड़ों की दुर्गति खच्चर पे नाज है.</p>
<p> </p>
<p>माज़ी के जो गुलाम हुक्काम हो गए.</p>
<p>शाहाना आज देखो उनके मिज़ाज है.</p>
<p> </p>
<p>अंगुश्त-कशी का मुजरिम वो बादशाहे इश्क.</p>
<p>मुमताज जिसकी जिन्दा जमुना का ताज है.</p>
<p> </p>
<p>‘हिन्दुस्तान’ कहता हरदम खरी-खरी.</p>
<p>लफ्जे-दलालती बस ग़ज़ल का रिवाज है.</p>
<p>मौलिक एवं अप्रकाशित</p>
<p>है अँधेर नगरी चौपट का राज है.</p>
<p>हंसों को काला पानी, कौवों को ताज है.</p>
<p> </p>
<p>आईन का मसौदा ऐसा बुना बुजन नें.</p>
<p>घोड़ों की दुर्गति खच्चर पे नाज है.</p>
<p> </p>
<p>माज़ी के जो गुलाम हुक्काम हो गए.</p>
<p>शाहाना आज देखो उनके मिज़ाज है.</p>
<p> </p>
<p>अंगुश्त-कशी का मुजरिम वो बादशाहे इश्क.</p>
<p>मुमताज जिसकी जिन्दा जमुना का ताज है.</p>
<p> </p>
<p>‘हिन्दुस्तान’ कहता हरदम खरी-खरी.</p>
<p>लफ्जे-दलालती बस ग़ज़ल का रिवाज है.</p>
<p>मौलिक एवं अप्रकाशित</p>ग़ज़ल : नौकरी है कहाँ बता भाई. (२१२२ १२१२ २२)tag:openbooksonline.com,2018-05-18:5170231:BlogPost:9308962018-05-18T10:57:06.000ZGanga Dhar Sharma 'Hindustan'http://openbooksonline.com/profile/GangaDharSharmaHindustan
लाज माँ बाप की बचा भाई.<br />
हो सके तो कमा के खा भाई.<br />
<br />
सौ में नम्बर मैं सौ भी ले लूँगा.<br />
नौकरी है कहाँ बता भाई.<br />
<br />
खून का रंग एक है लेकिन.<br />
राज जातों में बाँटता भाई.<br />
<br />
नूर भी आफ़ताब से लेता.<br />
चाँद में रोशनी कहाँ भाई.<br />
<br />
आज 'हिन्दोस्तान' को देखो.<br />
दीखता है खफा खफा भाई.<br />
(मौलिक व अप्रकाशित)
लाज माँ बाप की बचा भाई.<br />
हो सके तो कमा के खा भाई.<br />
<br />
सौ में नम्बर मैं सौ भी ले लूँगा.<br />
नौकरी है कहाँ बता भाई.<br />
<br />
खून का रंग एक है लेकिन.<br />
राज जातों में बाँटता भाई.<br />
<br />
नूर भी आफ़ताब से लेता.<br />
चाँद में रोशनी कहाँ भाई.<br />
<br />
आज 'हिन्दोस्तान' को देखो.<br />
दीखता है खफा खफा भाई.<br />
(मौलिक व अप्रकाशित)ग़ज़ल : लेके गुलाल हाथ में इक बार देखिये.tag:openbooksonline.com,2018-03-05:5170231:BlogPost:9176172018-03-05T12:05:21.000ZGanga Dhar Sharma 'Hindustan'http://openbooksonline.com/profile/GangaDharSharmaHindustan
<p>लेके गुलाल हाथ में इक बार देखिये.</p>
<p>मुठ्ठी में होगी आपके बहार देखिये.</p>
<p> </p>
<p>चम्मचों से मात वो चक्की भी खा गई.</p>
<p>आटा भी पाता रहा संसार देखिये.</p>
<p> </p>
<p>अच्छे को अच्छा दिखता, दिखता बुरा बुरे को.</p>
<p>आईने सा है मेरा किरदार देखिये.</p>
<p> </p>
<p>आज़ादी की कीमत आज़ाद ने चुकाई.</p>
<p>लाखों हैं आज इसके हक़दार देखिये.</p>
<p> </p>
<p>पीतल भी आज देखो स्वर्ण हो गया.</p>
<p>खोटा-खरा बताती झनकार देखिये.</p>
<p> </p>
<p>आसूदगी को मेरी कुछ और न समझ.</p>
<p>गर्के-उल्फत है…</p>
<p>लेके गुलाल हाथ में इक बार देखिये.</p>
<p>मुठ्ठी में होगी आपके बहार देखिये.</p>
<p> </p>
<p>चम्मचों से मात वो चक्की भी खा गई.</p>
<p>आटा भी पाता रहा संसार देखिये.</p>
<p> </p>
<p>अच्छे को अच्छा दिखता, दिखता बुरा बुरे को.</p>
<p>आईने सा है मेरा किरदार देखिये.</p>
<p> </p>
<p>आज़ादी की कीमत आज़ाद ने चुकाई.</p>
<p>लाखों हैं आज इसके हक़दार देखिये.</p>
<p> </p>
<p>पीतल भी आज देखो स्वर्ण हो गया.</p>
<p>खोटा-खरा बताती झनकार देखिये.</p>
<p> </p>
<p>आसूदगी को मेरी कुछ और न समझ.</p>
<p>गर्के-उल्फत है मेरा संसार देखिये.</p>
<p> </p>
<p>हल्ला मचा-मचा के मोहल्ला जगा दिया.</p>
<p>मुर्गों की हो रही हो भरमार देखिये.</p>
<p> </p>
<p>‘हिन्दोस्तां’ की रातें रोशन इन्हीं से हैं.</p>
<p>खम्बों पे बिजलियों के ये तार देखिये.</p>
<p>(मौलिक एवं अप्रकाशित)</p>आँखों में आप काज़ल जरा कम लगाइएtag:openbooksonline.com,2018-02-26:5170231:BlogPost:9161362018-02-26T12:16:32.000ZGanga Dhar Sharma 'Hindustan'http://openbooksonline.com/profile/GangaDharSharmaHindustan
<p>....................ऑंखें...........................</p>
<p>आँखों में आप काज़ल जरा कम लगाइए.</p>
<p>तारीकियों को इनकी न इतना बढाइए.</p>
<p>हिन्दोस्तां की दुनिया रोशन इन्हीं से है.</p>
<p>अँधेरों से आज इसको वल्लाह बचाइए.</p>
<p>गंगा धर शर्मा 'हिन्दुस्तान'</p>
<p>अजमेर (राज.)</p>
<p>(मौलिक व अप्रकाशित)</p>
<p>....................ऑंखें...........................</p>
<p>आँखों में आप काज़ल जरा कम लगाइए.</p>
<p>तारीकियों को इनकी न इतना बढाइए.</p>
<p>हिन्दोस्तां की दुनिया रोशन इन्हीं से है.</p>
<p>अँधेरों से आज इसको वल्लाह बचाइए.</p>
<p>गंगा धर शर्मा 'हिन्दुस्तान'</p>
<p>अजमेर (राज.)</p>
<p>(मौलिक व अप्रकाशित)</p>ग़ज़ल : सरसों के फूल खिलते, धानी फसल में जैसे.tag:openbooksonline.com,2018-02-26:5170231:BlogPost:9163132018-02-26T12:05:54.000ZGanga Dhar Sharma 'Hindustan'http://openbooksonline.com/profile/GangaDharSharmaHindustan
<p>तेरी अधखुली सी आँखें, भंवरे कँवल में जैसे.</p>
<p>मदहोश सो रहे हों , अपने महल में जैसे.</p>
<p> </p>
<p>चुनरी पे तेरी सलमा-सितारे हैं यूँ जड़े.</p>
<p>सरसों के फूल खिलते, धानी फसल में जैसे.</p>
<p> </p>
<p>शर्मो-हया है इनकी वैसी ही बरक़रार.</p>
<p>देखी थी इनमें मैंने पहली-पहल में जैसे.</p>
<p> </p>
<p>जुर्मे-गौकशी को कानूनी सरपनाही.</p>
<p>जी रहे हैं अब भी, दौरे-मुग़ल में जैसे.</p>
<p> </p>
<p>वैसे ही होना होश जरूरी है जोश में.</p>
<p>है अक़ल का होना कारे-नक़ल में जैसे.</p>
<p> </p>
<p>बहके बहर…</p>
<p>तेरी अधखुली सी आँखें, भंवरे कँवल में जैसे.</p>
<p>मदहोश सो रहे हों , अपने महल में जैसे.</p>
<p> </p>
<p>चुनरी पे तेरी सलमा-सितारे हैं यूँ जड़े.</p>
<p>सरसों के फूल खिलते, धानी फसल में जैसे.</p>
<p> </p>
<p>शर्मो-हया है इनकी वैसी ही बरक़रार.</p>
<p>देखी थी इनमें मैंने पहली-पहल में जैसे.</p>
<p> </p>
<p>जुर्मे-गौकशी को कानूनी सरपनाही.</p>
<p>जी रहे हैं अब भी, दौरे-मुग़ल में जैसे.</p>
<p> </p>
<p>वैसे ही होना होश जरूरी है जोश में.</p>
<p>है अक़ल का होना कारे-नक़ल में जैसे.</p>
<p> </p>
<p>बहके बहर तो समझो ‘हिन्दुस्तान’ की बजाए.</p>
<p>बहके कदम से मैकश आया ग़ज़ल में जैसे.</p>
<p>गंगा धर शर्मा ‘हिन्दुस्तान’</p>
<p>अजमेर (राज.)</p>
<p>(मौलिक व अप्रकाशित)</p>ग़ज़ल : कुत्तों से सिंह मात जो खाएँ तो क्या करें.tag:openbooksonline.com,2018-02-26:5170231:BlogPost:9161322018-02-26T07:59:48.000ZGanga Dhar Sharma 'Hindustan'http://openbooksonline.com/profile/GangaDharSharmaHindustan
<p>ग़ज़ल : कुत्तों से सिंह मात जो खाएँ तो क्या करें.</p>
<p></p>
<p>बहने लगी हैं उल्टी हवाएँ तो क्या करें.</p>
<p>कुत्तों से सिंह मात जो खाएँ तो क्या करें.</p>
<p> </p>
<p>वो ही लिखा है मैंने जो अच्छा लगा मुझे.</p>
<p>नासेह सर को अपने खपाएँ तो क्या करें.</p>
<p> </p>
<p>जल्लाद हाथ में जब खंजर उठा चुका.</p>
<p>खौफे अजल न तब भी सताएँ तो क्या करें.</p>
<p> </p>
<p>इल्मे-अरूज पर पढ़ कर के लफ़्ज चार. .</p>
<p>खारिज बहर ग़ज़ल को बताएँ तो क्या करें.</p>
<p> </p>
<p>कह तो रहें आप कि रंजिश नहीं मगर.…</p>
<p>ग़ज़ल : कुत्तों से सिंह मात जो खाएँ तो क्या करें.</p>
<p></p>
<p>बहने लगी हैं उल्टी हवाएँ तो क्या करें.</p>
<p>कुत्तों से सिंह मात जो खाएँ तो क्या करें.</p>
<p> </p>
<p>वो ही लिखा है मैंने जो अच्छा लगा मुझे.</p>
<p>नासेह सर को अपने खपाएँ तो क्या करें.</p>
<p> </p>
<p>जल्लाद हाथ में जब खंजर उठा चुका.</p>
<p>खौफे अजल न तब भी सताएँ तो क्या करें.</p>
<p> </p>
<p>इल्मे-अरूज पर पढ़ कर के लफ़्ज चार. .</p>
<p>खारिज बहर ग़ज़ल को बताएँ तो क्या करें.</p>
<p> </p>
<p>कह तो रहें आप कि रंजिश नहीं मगर. </p>
<p>तेवर न आपके ये जताएँ तो क्या करें.</p>
<p> </p>
<p>उड़-उड़ तुम्हारी जुल्फ़ मचाती रही ग़दर.</p>
<p>डर-डर घटाएँ आँसू बहाएँ तो क्या करें.</p>
<p> </p>
<p>हिन्दोस्तां है होश जरूरी तो जोश में.</p>
<p>बेबात जोश लोग दिखाएँ तो क्या करें.</p>
<p>गंगा धर शर्मा ' हिन्दुस्तान'</p>
<p>(मौलिक व अप्रकाशित)</p>ग़ज़ल..गले में झूलते बाँहों के नर्म हार की बात।tag:openbooksonline.com,2017-02-25:5170231:BlogPost:8392272017-02-25T19:09:16.000ZGanga Dhar Sharma 'Hindustan'http://openbooksonline.com/profile/GangaDharSharmaHindustan
<p>गले में झूलते बाँहों के नर्म हार की बात।<br></br>ये बात है मेरे मौला हसीं हिसार की बात।</p>
<p>रखोगे आग पे माखन तो वो पिघल ही जायेगा।<br></br>भला टली है कभी , है ये होनहार की बात।</p>
<p>ये इंकलाब की बातें है जोश वालों की।<br></br>कहीं पढ़ी थी जो मैंने वो बुर्दबार की बात।</p>
<p>कहूँ किसी से भला क्यों , छुपा के रखे हैं।<br></br>उन्हीं की आँखों के किस्से उन्ही के प्यार की बात।</p>
<p>बड़ी कठिन है ये शेरो-सुखन नवाजी जनाब।<br></br>बेइख़्तियार से हालात , क़ि बारदार की बात।</p>
<p>ख़याल ही जब हिन्दोस्ताँ का हो न तो…</p>
<p>गले में झूलते बाँहों के नर्म हार की बात।<br/>ये बात है मेरे मौला हसीं हिसार की बात।</p>
<p>रखोगे आग पे माखन तो वो पिघल ही जायेगा।<br/>भला टली है कभी , है ये होनहार की बात।</p>
<p>ये इंकलाब की बातें है जोश वालों की।<br/>कहीं पढ़ी थी जो मैंने वो बुर्दबार की बात।</p>
<p>कहूँ किसी से भला क्यों , छुपा के रखे हैं।<br/>उन्हीं की आँखों के किस्से उन्ही के प्यार की बात।</p>
<p>बड़ी कठिन है ये शेरो-सुखन नवाजी जनाब।<br/>बेइख़्तियार से हालात , क़ि बारदार की बात।</p>
<p>ख़याल ही जब हिन्दोस्ताँ का हो न तो फिर।<br/>फरेब हैं सब , धोखा है बागदार की बात।<br/>गंगा धर शर्मा हिन्दुस्तान'</p>
<p>मौलिक एवम् अप्रकाशित</p>
<p></p>चाँद बोला चाँदनी, चौथा पहर होने को है.tag:openbooksonline.com,2017-01-30:5170231:BlogPost:8326042017-01-30T09:00:00.000ZGanga Dhar Sharma 'Hindustan'http://openbooksonline.com/profile/GangaDharSharmaHindustan
<p>चाँद बोला चाँदनी, चौथा पहर होने को है.</p>
<p>चल समेटें बिस्तरे वक्ते सहर होने को है.</p>
<p></p>
<p>चल यहाँ से दूर चलते हैं सनम माहे-जबीं.</p>
<p>इस जमीं पर अब न अपना तो गुजर होने को है.</p>
<p></p>
<p>है रिजर्वेशन अजल, हर सम्त जिसकी चाह है.</p>
<p>ऐसा लगता है कि किस्सा मुख़्तसर होने को है.</p>
<p></p>
<p>गर सियासत ने न समझा दर्द जनता का तो फिर.</p>
<p>हाथ में हर एक के तेगो-तबर होने को है.</p>
<p></p>
<p>जो निहायत ही मलाहत से फ़साहत जानता.</p>
<p>ना सराहत की उसे कोई कसर होने को…</p>
<p>चाँद बोला चाँदनी, चौथा पहर होने को है.</p>
<p>चल समेटें बिस्तरे वक्ते सहर होने को है.</p>
<p></p>
<p>चल यहाँ से दूर चलते हैं सनम माहे-जबीं.</p>
<p>इस जमीं पर अब न अपना तो गुजर होने को है.</p>
<p></p>
<p>है रिजर्वेशन अजल, हर सम्त जिसकी चाह है.</p>
<p>ऐसा लगता है कि किस्सा मुख़्तसर होने को है.</p>
<p></p>
<p>गर सियासत ने न समझा दर्द जनता का तो फिर.</p>
<p>हाथ में हर एक के तेगो-तबर होने को है.</p>
<p></p>
<p>जो निहायत ही मलाहत से फ़साहत जानता.</p>
<p>ना सराहत की उसे कोई कसर होने को है.</p>
<p></p>
<p>है शिकायत , कीजिये लेकिन हिदायत है सुनो.</p>
<p>जो कबाहत की किसी ने तो खतर होने को है.</p>
<p></p>
<p><span>पाके नेमत जो निज़ामत की सख़ावत छोड़ दे.</span></p>
<p>वो मलामत ओ बगावत की नजर होने को है.</p>
<p></p>
<p>शान 'हिन्दुस्तान' की कोई मिटा सकता नहीं.</p>
<p>सरफ़रोशों की न जब कोई कसर होने को है.</p>
<p>(मौलिक एवं अप्रकाशित)</p>आज तिरंगे को देखा तो जख़्म पुराने याद आयेtag:openbooksonline.com,2016-12-24:5170231:BlogPost:8226162016-12-24T18:30:00.000ZGanga Dhar Sharma 'Hindustan'http://openbooksonline.com/profile/GangaDharSharmaHindustan
<p dir="ltr">आज तिरंगे को देखा तो जख़्म पुराने याद आये<br></br> जलियाँ वाला याद आया तोपों के निशाने याद आये</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">हर और तबाही बरपा थी जुल्म ढहाया जाता था<br></br> हुस्न के हाथों आशिक के ख़्वाब मिटाने याद आये</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">अपने पीछे दौड़ रहे उस बालक को जब देखा तो <br></br> तुम याद आये और तुम्हारे साथ ज़माने याद आये</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">फूटी कौड़ी भी ना दूँगा जब भी कोई कहता है<br></br> कौरव-पांडव वाले तब ही सब अफ़साने याद आये…</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">आज तिरंगे को देखा तो जख़्म पुराने याद आये<br/> जलियाँ वाला याद आया तोपों के निशाने याद आये</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">हर और तबाही बरपा थी जुल्म ढहाया जाता था<br/> हुस्न के हाथों आशिक के ख़्वाब मिटाने याद आये</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">अपने पीछे दौड़ रहे उस बालक को जब देखा तो <br/> तुम याद आये और तुम्हारे साथ ज़माने याद आये</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">फूटी कौड़ी भी ना दूँगा जब भी कोई कहता है<br/> कौरव-पांडव वाले तब ही सब अफ़साने याद आये</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">टपटप टपके थे आँसू तब 'हिन्दोस्ताँ ' की आँखों से<br/> अपनों के हाथों अपनों के क़त्ल कराने याद आये</p>
<p dir="ltr">मौलिक एवम् अप्रकाशित </p>तेरी याद आई, तो आती चली गई|tag:openbooksonline.com,2015-11-17:5170231:BlogPost:7159312015-11-17T11:26:42.000ZGanga Dhar Sharma 'Hindustan'http://openbooksonline.com/profile/GangaDharSharmaHindustan
<p>तेरी याद आई, तो आती चली गई|</p>
<p>गहरे तक दिल को जलाती चली गई||</p>
<p>.</p>
<p>कितने दिन हुए तुमसे मिले हुए|</p>
<p>याद तेरी हमको, याद दिलाती चली गई||</p>
<p></p>
<p>कौन मानेगा , हम तड़प रहे हैं यहाँ|</p>
<p>तुम वहां दूर, ललचाती चली गई||</p>
<p>.</p>
<p>मुझको यकीन है हम एक ही तो हैं|</p>
<p>यही सोच दूरी, मिटाती चली गई||</p>
<p>.</p>
<p>कितने मंजर नजर के सामने से गुजरे|</p>
<p>हर मंजर में तू, झलक दिखलाती चली गई||</p>
<p>.</p>
<p>लिखने को गज़ल लिख रहा हूँ मैं|</p>
<p>सच तो ये है कि तू लिखती…</p>
<p>तेरी याद आई, तो आती चली गई|</p>
<p>गहरे तक दिल को जलाती चली गई||</p>
<p>.</p>
<p>कितने दिन हुए तुमसे मिले हुए|</p>
<p>याद तेरी हमको, याद दिलाती चली गई||</p>
<p></p>
<p>कौन मानेगा , हम तड़प रहे हैं यहाँ|</p>
<p>तुम वहां दूर, ललचाती चली गई||</p>
<p>.</p>
<p>मुझको यकीन है हम एक ही तो हैं|</p>
<p>यही सोच दूरी, मिटाती चली गई||</p>
<p>.</p>
<p>कितने मंजर नजर के सामने से गुजरे|</p>
<p>हर मंजर में तू, झलक दिखलाती चली गई||</p>
<p>.</p>
<p>लिखने को गज़ल लिख रहा हूँ मैं|</p>
<p>सच तो ये है कि तू लिखती चली गई||</p>
<p>.</p>
<p>कब से पुकारता हूँ , चली आओ अब|</p>
<p>आ तो गई फिर नखरे दिखाती चली गई||</p>
<p>.</p>
<p>मुझको बार-बार बस ये ही ख़याल है।</p>
<p>कैसे मुझे तू बहलाती चली गई||</p>
<p>.</p>
<p>आवाज दिल से आती है बस तेरे नाम कि|</p>
<p>ये सदा सारे जहाँ में समाती चली गई|| .</p>
<p>.</p>
<p>आसमां पे पंछी, सागर में मछलियाँ हैं|</p>
<p>धरती पर बस तू, हवा बताती चली गई||</p>
<p>.</p>
<p>प्यार आना हो तो बस आ ही जाता है|</p>
<p>तू भी जाते-जाते प्यार जताती चली गई||</p>
<p>.</p>
<p>गम तेरी जुदाई का भुला पाना मुश्किल|</p>
<p>एक तू है जो इठलाई , इठलाती चली गई||</p>
<p>.</p>
<p>क्या मैं इतना बुरा हूँ, सच बताना|</p>
<p>जो तू मुझसे दूरी बढाती चली गई||</p>
<p>.</p>
<p>नींद भी नहीं आती जालिम मुझे फिर भी|</p>
<p>याद तेरी मिलन के सपने दिखाती चली गई||</p>
<p>.</p>
<p>सो रही है तू तुझे अपने जो मिले हैं|</p>
<p>मैं जगता अकेला, रात बताती चली गई||</p>
<p>.</p>
<p>हो गई होंगी कुछ गलतियाँ , मानता हूँ मैं|</p>
<p>पर सयानी थी तू , क्यों बात बढाती चली गई||</p>
<p>.</p>
<p>हैं कुछ आरजुएँ तुम्हारी, पूरी करूँगा मैं|</p>
<p>क्यों ! ये सब, गैरों को बताती चली गई||</p>
<p>.</p>
<p>कब मैंने चाह , तू परेशान हो जरा भी|</p>
<p>क्यों कर मुझपे तोहमत ये लगाती चली गई||</p>
<p>.</p>
<p>तू बढे राहे तरक्की पे मुझ को खुशी है|</p>
<p>मेरी तमन्ना यही गीत गति चली गई|</p>
<p>.</p>
<p>इस मौसमे-बहार में तेरा जाना हमें अखरा|</p>
<p>बारिस हमारे जिस्मों-जाँ को जलाती चली गई||</p>
<p>गंगा धर शर्मा 'हिंदुस्तान'</p>
<p>(मौलिक व अप्रकाशित)</p>होली.....(गंगा धर शर्मा 'हिंदुस्तान')tag:openbooksonline.com,2015-03-05:5170231:BlogPost:6263592015-03-05T17:00:00.000ZGanga Dhar Sharma 'Hindustan'http://openbooksonline.com/profile/GangaDharSharmaHindustan
<p><strong>......होली......</strong><br></br> <br></br> होली है त्यौहार रंगों का , <br></br> आओ तन मन रंग लें .<br></br> हो खुशियों की बौछार , <br></br> आओ तन मन रंग लें.<br></br> <br></br> सबका हो हर अरमान पूरा <br></br> ना सपना रहे अधूरा<br></br> <br></br> जिसकी जितनी चाहत हो<br></br> उतना उसको मिल जाये<br></br> बस खुशियों की बारिस हो<br></br> और तन मन खिल जाये<br></br> <br></br> प्यार प्यार बस प्यार रहे <br></br> सारी दुनिया के भीतर<br></br> और किसी भी भाव का <br></br> हो ना पाए असर<br></br> <br></br> इस होली पर इसी भाव को<br></br> बस अपने मन में पालें <br></br> प्यार छोड़ कर…</p>
<p><strong>......होली......</strong><br/> <br/> होली है त्यौहार रंगों का , <br/> आओ तन मन रंग लें .<br/> हो खुशियों की बौछार , <br/> आओ तन मन रंग लें.<br/> <br/> सबका हो हर अरमान पूरा <br/> ना सपना रहे अधूरा<br/> <br/> जिसकी जितनी चाहत हो<br/> उतना उसको मिल जाये<br/> बस खुशियों की बारिस हो<br/> और तन मन खिल जाये<br/> <br/> प्यार प्यार बस प्यार रहे <br/> सारी दुनिया के भीतर<br/> और किसी भी भाव का <br/> हो ना पाए असर<br/> <br/> इस होली पर इसी भाव को<br/> बस अपने मन में पालें <br/> प्यार छोड़ कर बाकि सबको<br/> होली संग जलालें<br/> <br/> होली की जलती अग्नि<br/> प्रेम की ज्योति जलाये<br/> गेहूं की खिलती बालियाँ <br/> नयी भोर को लाये<br/> <br/> नई उमंग और नयी चेतना <br/> दे होली की गर्मी<br/> सद्भाव ह्रदय का गहना हो<br/> बनें नहीं हठधर्मी <br/> <br/> पुनः एक बार होली की <br/> सबको मिले बधाई<br/> खाओ और खिलाओ <br/> प्रेम से खूब मिठाई</p>
<p>.<br/> गंगा धर शर्मा 'हिंदुस्तान'</p>
<p>(मौलिक व अप्रकाशित) </p>बेपरवाही नहीं, प्रिया मेरी ! विश्वास ह्रदय का मेरा है ||tag:openbooksonline.com,2015-02-28:5170231:BlogPost:6232062015-02-28T03:30:00.000ZGanga Dhar Sharma 'Hindustan'http://openbooksonline.com/profile/GangaDharSharmaHindustan
<p>बेपरवाही नहीं, प्रिया मेरी! विश्वास ह्रदय का मेरा है | <br></br> तुमको सब कुछ सौंप दिया , जो मेरा है सो तेरा है ||</p>
<p></p>
<p>मुक्त हुआ , कुछ फिक्र नहीं | <br></br> तू सच है, केवल जिक्र नहीं | <br></br> मैं चाहे जहाँ रहूँ लेकिन, तेरे नयन ह्रदय का डेरा है | <br></br> बेपरवाही नहीं, प्रिया मेरी! विश्वास ह्रदय का मेरा है ||</p>
<p></p>
<div><p>मैं सोता, तू जगती है | <br></br> धीरज रोज , परखती है | <br></br> है बन्द आँख में ख्वाब तेरा, भले नींद ने घेरा है | <br></br> बेपरवाही नहीं, प्रिया मेरी! विश्वास ह्रदय का मेरा है…</p>
</div>
<p>बेपरवाही नहीं, प्रिया मेरी! विश्वास ह्रदय का मेरा है | <br/> तुमको सब कुछ सौंप दिया , जो मेरा है सो तेरा है ||</p>
<p></p>
<p>मुक्त हुआ , कुछ फिक्र नहीं | <br/> तू सच है, केवल जिक्र नहीं | <br/> मैं चाहे जहाँ रहूँ लेकिन, तेरे नयन ह्रदय का डेरा है | <br/> बेपरवाही नहीं, प्रिया मेरी! विश्वास ह्रदय का मेरा है ||</p>
<p></p>
<div><p>मैं सोता, तू जगती है | <br/> धीरज रोज , परखती है | <br/> है बन्द आँख में ख्वाब तेरा, भले नींद ने घेरा है | <br/> बेपरवाही नहीं, प्रिया मेरी! विश्वास ह्रदय का मेरा है ||</p>
<p></p>
<p>तू सोचे , फिर एक बहाना | <br/> मैं कहता, दिल का अफसाना | <br/> होंठ मौन हैं, रहे भले ही, तुम्हें रोम-रोम ने टेरा है | <br/> बेपरवाही नहीं, प्रिया मेरी! विश्वास ह्रदय का मेरा है ||</p>
<p></p>
<p>जो चाहा, अक्सर नहीं मिला | <br/> सच्चा है, ये सच्चा है गिला | <br/> हर चीज वक़्त के बाद मिले, कुछ किस्मत ही का फेरा है | <br/> बेपरवाही नहीं, प्रिया मेरी ! विश्वास ह्रदय का मेरा है ||</p>
<p></p>
<p>उत्सव दिन, उत्साह विहीन | <br/> उपालंभ, नित्य नवीन | <br/> कैसे हर दिन सेलिब्रेट करूँ, मुझे उत्सव दर्शन तेरा है | <br/> बेपरवाही नहीं, प्रिय मेरी! विश्वास ह्रदय का मेरा है ||</p>
<p>.<br/> गंगा धर शर्मा 'हिन्दुस्तान'</p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित </p>
</div>मिलनtag:openbooksonline.com,2014-09-04:5170231:BlogPost:5728232014-09-04T02:17:44.000ZGanga Dhar Sharma 'Hindustan'http://openbooksonline.com/profile/GangaDharSharmaHindustan
<p>मिलन</p>
<p>.<br></br>क्या मिलन परिणाम यही है ?<br></br>.<br></br>संध्या मिलन के हित वासर <br></br>निज अस्तित्व को खो देता <br></br>नद नदी में ,नदी उदधि में <br></br>मिल खोते स्वनाम सभी हैं |<br></br>क्या मिलन परिणाम यही है ?<br></br>.<br></br>जब जब मिले धनुष से तीर <br></br>पलटे वो खाकर दुत्कार <br></br>लक्ष्य से मिल जाये यदि तो <br></br>करता घायल प्राण यही है |<br></br>क्या मिलन परिणाम यही है ?<br></br>.<br></br>क्षिति मिलन के हित से अम्बर <br></br>झुकने पर बाध्य नित्य हुआ <br></br>दिशा मिलन की असीम दौड़ <br></br>कि दौड़ा पवमान नहीं है ||<br></br>क्या मिलन परिणाम…</p>
<p>मिलन</p>
<p>.<br/>क्या मिलन परिणाम यही है ?<br/>.<br/>संध्या मिलन के हित वासर <br/>निज अस्तित्व को खो देता <br/>नद नदी में ,नदी उदधि में <br/>मिल खोते स्वनाम सभी हैं |<br/>क्या मिलन परिणाम यही है ?<br/>.<br/>जब जब मिले धनुष से तीर <br/>पलटे वो खाकर दुत्कार <br/>लक्ष्य से मिल जाये यदि तो <br/>करता घायल प्राण यही है |<br/>क्या मिलन परिणाम यही है ?<br/>.<br/>क्षिति मिलन के हित से अम्बर <br/>झुकने पर बाध्य नित्य हुआ <br/>दिशा मिलन की असीम दौड़ <br/>कि दौड़ा पवमान नहीं है ||<br/>क्या मिलन परिणाम यही है ?<br/>.<br/>उर की कसक मिलन-पूर्व <br/>मिलन संग सिमट जाती है <br/>मिलन क्षणों की विरह-शंका <br/>पा सकी न निदान कहीं हैं || <br/>क्या मिलन परिणाम यही है?<br/>गंगा धर शर्मा 'हिन्दुस्तान'<br/>अजमेर.</p>
<p><strong>मौलिक व अप्रकाशित</strong></p>चुनरी निचोड़ रही थी।tag:openbooksonline.com,2014-09-02:5170231:BlogPost:5725582014-09-02T16:30:00.000ZGanga Dhar Sharma 'Hindustan'http://openbooksonline.com/profile/GangaDharSharmaHindustan
<p>बस सबको पीछे छोड़ रही थी, बिलकुल सरपट दौड़ रही थी। <br></br> कीर्तिमान कई तोड़ रही थी, दोनों में लग होड़ रही थी। <br></br> चालक- परिचालक दोनों में <br></br> बस के चारों ही कोनों में <br></br> मची हुई होड़ा-होड़ी थी <br></br> सब्र सभी ने छोड़ी थी <br></br> इंद्रजाल का पाश पड़ा था <br></br> या फिर कोई नशा चढ़ा था <br></br> जिसने एक झलक भी पा ली <br></br> रह गया ठिठक कर वहीँ खड़ा था <br></br> कसी हुई थी जींस कमर पर, थी कुर्ती ढीली-ढाली। <br></br> जिसमे छलक-छलक जाती थी,यौवन-मदिरा की प्याली। <br></br> हर एक कंठ में प्यास जगी, कुछ ऐसी बनी कहानी। …<br></br></p>
<p>बस सबको पीछे छोड़ रही थी, बिलकुल सरपट दौड़ रही थी। <br/> कीर्तिमान कई तोड़ रही थी, दोनों में लग होड़ रही थी। <br/> चालक- परिचालक दोनों में <br/> बस के चारों ही कोनों में <br/> मची हुई होड़ा-होड़ी थी <br/> सब्र सभी ने छोड़ी थी <br/> इंद्रजाल का पाश पड़ा था <br/> या फिर कोई नशा चढ़ा था <br/> जिसने एक झलक भी पा ली <br/> रह गया ठिठक कर वहीँ खड़ा था <br/> कसी हुई थी जींस कमर पर, थी कुर्ती ढीली-ढाली। <br/> जिसमे छलक-छलक जाती थी,यौवन-मदिरा की प्याली। <br/> हर एक कंठ में प्यास जगी, कुछ ऐसी बनी कहानी। <br/> संत फकीरों तक के मुँह का , सूख गया था पानी। <br/> अभी चढ़ी ही थी बस में , सर्वांग सुंदरी बाला। <br/> भ्रमर हृदयों को आज कली ने, खंड-खंड कर डाला . <br/> कितनी सीटें रिक्त पड़ी थी , सबको छोड़ दिया। <br/> चालक-केबिन में जा बैठी, उर ही तोड़ दिया। <br/> जाते ही चालक से बातें दो चार करी <br/> चालक की उम्मीदों ने मानों हुँकार भरी <br/> चालक की आँखें चमक उठी, जब दसन-द्युति को देखा। <br/> आज विधाता नें खोला है, उसकी किस्मत का लेखा। <br/> कण्डक्टर ने भी दाँव लगाया, बोला टिकट दिखाओ। <br/> थोड़ा सरको, जगह बनाओ, मुझको निकट बिठाओ। <br/> बस में चढ़ी हुई थी गबरू , एक से एक सवारी <br/> चालक-परिचालक की जोड़ी लेकिन, आज पड़ी थी भारी <br/> केबिन का शीशा बंद, पर्दा भी ढल गया। <br/> सवारियों का रश्क़, शक़ में बदल गया। <br/> फुसफुसाहट कब शोर बन गयी <br/> सवारियों की , केबिन से ठन गयी <br/> आखिर शीशा खुला, पर्दा हटा<br/> सामने थी फिर रूप की छटा <br/> लपेट कर ऊँगली, चुनरी निचोड़ रही थी <br/> कीर्तिमान कई तोड़ रही थी, दोनों में लग होड़ रही। <br/> बस सरपट दौड़ रही थी, सबको पीछे छोड़ रही थी। <br/> गंगा धर शर्मा 'हिंदुस्तान' <br/> अजमेर। <br/> मौलिक व अप्रकाशित</p>