Gurpreet Singh jammu's Posts - Open Books Online2024-03-28T16:01:45ZGurpreet Singh jammuhttp://openbooksonline.com/profile/GurpreetSingh624http://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/2991291581?profile=RESIZE_48X48&width=48&height=48&crop=1%3A1http://openbooksonline.com/profiles/blog/feed?user=26bammr5145mf&xn_auth=noतज़मीन बर ग़ज़ल उस्ताद-ए-मोहतरम समर कबीर साहिबtag:openbooksonline.com,2023-02-15:5170231:BlogPost:10986812023-02-15T10:11:55.000ZGurpreet Singh jammuhttp://openbooksonline.com/profile/GurpreetSingh624
<p>221-1221-1221-122</p>
<p></p>
<p>हालाँकि किया आपने इज़हार नहीं है<br></br>ये बात समझना कोई दुश्वार नहीं है<br></br>अब छोड़िए इज़हार भी दरकार नहीं है <br></br>"ख़ामोश है लब पर कोई तकरार नहीं है<br></br>मैं जान गया हूँ तुझे इंकार नहीं है"</p>
<p><br></br>ये बात अलग है कि दिल-ओ-जान से चाहूँ <br></br>पाने को तुम्हें जान मैं क्या कुछ नहीं कर दूँ <br></br>ये भी है हक़ीक़त कि कभी होगा नहीं यूँ<br></br>"मैं बेच के ग़ैरत को तेरा प्यार ख़रीदूँ <br></br>इस बात पे राज़ी दिल-ए-ख़ुद्दार नहीं है"</p>
<p><br></br>भाती है ग़ज़ल सब को, जो भाता हो ग़ज़ल…</p>
<p>221-1221-1221-122</p>
<p></p>
<p>हालाँकि किया आपने इज़हार नहीं है<br/>ये बात समझना कोई दुश्वार नहीं है<br/>अब छोड़िए इज़हार भी दरकार नहीं है <br/>"ख़ामोश है लब पर कोई तकरार नहीं है<br/>मैं जान गया हूँ तुझे इंकार नहीं है"</p>
<p><br/>ये बात अलग है कि दिल-ओ-जान से चाहूँ <br/>पाने को तुम्हें जान मैं क्या कुछ नहीं कर दूँ <br/>ये भी है हक़ीक़त कि कभी होगा नहीं यूँ<br/>"मैं बेच के ग़ैरत को तेरा प्यार ख़रीदूँ <br/>इस बात पे राज़ी दिल-ए-ख़ुद्दार नहीं है"</p>
<p><br/>भाती है ग़ज़ल सब को, जो भाता हो ग़ज़ल को<br/>जो सीखता हो और सिखाता हो ग़ज़ल को<br/>जो ओढ़ता हो और बिछाता हो ग़ज़ल को<br/>"जो ख़ून-ए-जिगर अपना पिलाता हो ग़ज़ल को<br/>ऐसा तो यहाँ कोई भी फ़ंकार नहीं है"</p>
<p><br/>देखोगे जिधर आपको ऐसा ही लगेगा <br/>मुझ को है ये डर आप को ऐसा ही लगेगा<br/>कुछ तो है कसर आप को ऐसा ही लगेगा<br/>"सब कुछ है मगर आपको ऐसा ही लगेगा<br/>इस मुल्क में जैसे कोई सरकार नहीं है"</p>
<p><br/>'जम्मू' जी दिलों में ही वो रब सोता रहेगा<br/>हाकिम भी इधर नफरतें ही बोता रहेगा<br/>यूँ बोझ जहालत का बशर ढोता रहेगा<br/>"ये खून खराबा तो ''समर" होता रहेगा<br/>तालीम का जब तक कोई मैयार नहीं है"</p>
<p></p>
<p> (मौलिक व अप्रकाशित )</p>
<p> (गुरप्रीत सिंह जम्मू)</p>ग़ज़ल - गुरप्रीत सिंह जम्मूtag:openbooksonline.com,2023-01-29:5170231:BlogPost:10979532023-01-29T11:57:48.000ZGurpreet Singh jammuhttp://openbooksonline.com/profile/GurpreetSingh624
<p>(22- 22- 22- 22)</p>
<p></p>
<p>जिसको हासिल तेरी सोहबत<br></br>क्यों चाहेगा कोई जन्नत</p>
<p></p>
<p>ऐ पत्थर तुझ में ये नज़ाकत<br></br>हां वो इक तितली की निस्बत</p>
<p></p>
<p>आप ने आंख से आंख मिलाकर<br></br>भर दी हर मंज़र में रंगत</p>
<p></p>
<p>दिल धक-धक करने से हटे तो<br></br>खोल के पढ़ लूँ मैं उनका ख़त</p>
<p></p>
<p>उसके हुस्न पे हैरां हूँ मैं<br></br>रोज ही बढ़ती जाए हैरत</p>
<p></p>
<p>मैं बिकने वालों में नहीं हूँ <br></br>यूँ तुमने कम आंकी कीमत</p>
<p></p>
<p>उसको पाना ही पाना है<br></br>कैसा मुकद्दर कौन सी…</p>
<p>(22- 22- 22- 22)</p>
<p></p>
<p>जिसको हासिल तेरी सोहबत<br/>क्यों चाहेगा कोई जन्नत</p>
<p></p>
<p>ऐ पत्थर तुझ में ये नज़ाकत<br/>हां वो इक तितली की निस्बत</p>
<p></p>
<p>आप ने आंख से आंख मिलाकर<br/>भर दी हर मंज़र में रंगत</p>
<p></p>
<p>दिल धक-धक करने से हटे तो<br/>खोल के पढ़ लूँ मैं उनका ख़त</p>
<p></p>
<p>उसके हुस्न पे हैरां हूँ मैं<br/>रोज ही बढ़ती जाए हैरत</p>
<p></p>
<p>मैं बिकने वालों में नहीं हूँ <br/>यूँ तुमने कम आंकी कीमत</p>
<p></p>
<p>उसको पाना ही पाना है<br/>कैसा मुकद्दर कौन सी किस्मत</p>
<p></p>
<p>दिल का शीशा टूट गया ना!<br/>और करो पत्थर से मुहब्बत</p>
<p></p>
<p>कब तक करवाओगे 'जम्मू'<br/>टूटे फूटे दिल की मुरम्मत</p>
<p></p>
<p>(मौलिक व अप्रकाशित)</p>ग़ज़ल - गुरप्रीत सिंह जम्मूtag:openbooksonline.com,2021-12-02:5170231:BlogPost:10744102021-12-02T14:09:19.000ZGurpreet Singh jammuhttp://openbooksonline.com/profile/GurpreetSingh624
<p>22-22-22-22-22-22-22-2</p>
<p></p>
<p>उस लड़की को डेट करूँ ये मेरी पहली ख़्वाहिश है। <br></br>और ये ख़्वाहिश पूरी हो जाए बस ये दूजी विश है।</p>
<p></p>
<p>हँसना, शर्माना, भरमाना और फिर ना ना ना करना,<br></br>उस लड़की का हर इक नख़रा सचमुच कितना गर्लिश है।</p>
<p></p>
<p>मेरा बांकपना और उसकी मस्ती जब आपस में मिले,<br></br>ये जो प्यार हमारा है ये उस पल की पैदाइश है।</p>
<p></p>
<p>मेरे ख़्वाब में आना हो तो छाता लेकर आना तुम,<br></br>मेरी आँखों के ख़ित्ते में अक्सर रहती बारिश है।</p>
<p></p>
<p>क्यों न हुई वो मेरी?…</p>
<p>22-22-22-22-22-22-22-2</p>
<p></p>
<p>उस लड़की को डेट करूँ ये मेरी पहली ख़्वाहिश है। <br/>और ये ख़्वाहिश पूरी हो जाए बस ये दूजी विश है।</p>
<p></p>
<p>हँसना, शर्माना, भरमाना और फिर ना ना ना करना,<br/>उस लड़की का हर इक नख़रा सचमुच कितना गर्लिश है।</p>
<p></p>
<p>मेरा बांकपना और उसकी मस्ती जब आपस में मिले,<br/>ये जो प्यार हमारा है ये उस पल की पैदाइश है।</p>
<p></p>
<p>मेरे ख़्वाब में आना हो तो छाता लेकर आना तुम,<br/>मेरी आँखों के ख़ित्ते में अक्सर रहती बारिश है।</p>
<p></p>
<p>क्यों न हुई वो मेरी? जाँच कराओ सी.बी.आई. से,<br/>मुझको लगता है इस में भी पाकिस्तान की साज़िश है।</p>
<p></p>
<p>तूने अपने ख़्वाब का ख़ून किया है लाख छुपा 'जम्मू',<br/>बोल रही है सब कुछ तेरी आँख जो रेड्डिश-रेड्डिश है।</p>
<p></p>
<p> (मौलिक व अप्रकाशित)</p>ग़ज़ल - गुरप्रीत सिंह जम्मूtag:openbooksonline.com,2021-11-15:5170231:BlogPost:10732852021-11-15T06:00:00.000ZGurpreet Singh jammuhttp://openbooksonline.com/profile/GurpreetSingh624
<p>22-22-22-22-22-2</p>
<p></p>
<p>तुम कोई पैग़ाम कभी तो भिजवाओ।<br></br> वरना मेरे कबूतर वापिस दे जाओ।</p>
<p></p>
<p>जिसको तुमने अपने दिल से भुलाया है,<br></br> क्या ये वाजिब है खुद उसको याद आओ ?</p>
<p></p>
<p>मैने कहा जब,तुमने दिल को ज़ख़्म दिया,<br></br> वो बोले, कितना गहरा है, दिखलाओ।</p>
<p></p>
<p>जब से तुम बिछड़े हो, खुद से दूर हूं मैं,<br></br> प्लीज़ किसी दिन मुझ को मुझ से मिलवाओ।</p>
<p></p>
<p>आंखों में हैं ख्वाब भरे, पर नींद उड़ी,<br></br> गर ये प्यार नहीं तो क्या है, समझाओ।</p>
<p></p>
<p>'वो' कब के…</p>
<p>22-22-22-22-22-2</p>
<p></p>
<p>तुम कोई पैग़ाम कभी तो भिजवाओ।<br/> वरना मेरे कबूतर वापिस दे जाओ।</p>
<p></p>
<p>जिसको तुमने अपने दिल से भुलाया है,<br/> क्या ये वाजिब है खुद उसको याद आओ ?</p>
<p></p>
<p>मैने कहा जब,तुमने दिल को ज़ख़्म दिया,<br/> वो बोले, कितना गहरा है, दिखलाओ।</p>
<p></p>
<p>जब से तुम बिछड़े हो, खुद से दूर हूं मैं,<br/> प्लीज़ किसी दिन मुझ को मुझ से मिलवाओ।</p>
<p></p>
<p>आंखों में हैं ख्वाब भरे, पर नींद उड़ी,<br/> गर ये प्यार नहीं तो क्या है, समझाओ।</p>
<p></p>
<p>'वो' कब के गुलशन से बाहर जा पहुंचे,<br/> ऐ फूलो, कुछ होश करो, मुरझा जाओ।</p>
<p></p>
<p>तारों भरे आकाश से भी सुंदर कुछ है,<br/> ऐसा करो तुम अपनी चुनरी लहराओ।</p>
<p></p>
<p>(मौलिक एवं अप्रकाशित)</p>
<p></p>दो ग़ज़लें (2122-1212-22)tag:openbooksonline.com,2019-07-14:5170231:BlogPost:9877232019-07-14T07:00:00.000ZGurpreet Singh jammuhttp://openbooksonline.com/profile/GurpreetSingh624
<p>1.</p>
<p>शमअ देखी न रोशनी देखी । </p>
<p>मैने ता उम्र तीरगी देखी । </p>
<p></p>
<p>देखा जो आइना तो आंखों में, </p>
<p>ख़्वाब की लाश तैरती देखी । </p>
<p></p>
<p>टूटे दिल का हटाया मलबा तो, </p>
<p>आरज़ू इक दबी पड़ी देखी । </p>
<p></p>
<p>एक इक पल डरावना सा लगा, </p>
<p>इतने पास आ के ज़िन्दगी देखी । </p>
<p></p>
<p>मैने इंसानियत रह ए हक़ पर, </p>
<p>दो कदम चल के हांफती देखी </p>
<p></p>
<p>2.</p>
<p>आप ने क्या कभी परी देखी । </p>
<p>मैने यारो अभी अभी देखी । </p>
<p></p>
<p>उसकी आँखों में सुब्ह सी…</p>
<p>1.</p>
<p>शमअ देखी न रोशनी देखी । </p>
<p>मैने ता उम्र तीरगी देखी । </p>
<p></p>
<p>देखा जो आइना तो आंखों में, </p>
<p>ख़्वाब की लाश तैरती देखी । </p>
<p></p>
<p>टूटे दिल का हटाया मलबा तो, </p>
<p>आरज़ू इक दबी पड़ी देखी । </p>
<p></p>
<p>एक इक पल डरावना सा लगा, </p>
<p>इतने पास आ के ज़िन्दगी देखी । </p>
<p></p>
<p>मैने इंसानियत रह ए हक़ पर, </p>
<p>दो कदम चल के हांफती देखी </p>
<p></p>
<p>2.</p>
<p>आप ने क्या कभी परी देखी । </p>
<p>मैने यारो अभी अभी देखी । </p>
<p></p>
<p>उसकी आँखों में सुब्ह सी देखी, </p>
<p>और ज़ुल्फ़ों में शाम भी देखी । </p>
<p></p>
<p>लब थे अंगार आँख थी बिजली, </p>
<p>फ़िर भी चहरे पे सादगी देखी । </p>
<p></p>
<p>उस से ज्यूँ ही नज़र मिली यारो, </p>
<p>गिरती मैने तो बर्क़ सी देखी । </p>
<p></p>
<p>उस नज़र सा सुरूर फ़िर ना हुआ, </p>
<p>हर तरह की शराब पी देखी । </p>
<p></p>
<p> (मौलिक व अप्रकाशित )</p>
<p></p>
<p></p>ग़ज़लtag:openbooksonline.com,2018-07-08:5170231:BlogPost:9387842018-07-08T02:20:06.000ZGurpreet Singh jammuhttp://openbooksonline.com/profile/GurpreetSingh624
<p>(2122-2122-2122-212)</p>
<p></p>
<p>मुश्किलें कितनी हैं अपने दरमियाँ गिनता रहा । <br></br>बैठ कर मैं राह की दुश्वारियाँ गिनता रहा ।</p>
<p></p>
<p>आँखों में अश्कों का दरिया चढ़ के जब उतरा तो फ़िर, <br></br>मैं तो बस ख़्वाबों की डूबी कश्तियाँ गिनता रहा ।</p>
<p></p>
<p>और करता भी तो क्या वो नौजवां बेरोज़गार, <br></br>दी हैं कितनी नौकरी कीअरज़ियाँ गिनता रहा ।</p>
<p></p>
<p>राजनेता को न था मतलब किसी इंसान से, <br></br>वो तो केवल धोतियाँ और टोपियाँ गिनता रहा ।</p>
<p></p>
<p>वो रहे गिनते मुनाफ़ा कारख़ाने का उधर,…</p>
<p>(2122-2122-2122-212)</p>
<p></p>
<p>मुश्किलें कितनी हैं अपने दरमियाँ गिनता रहा । <br/>बैठ कर मैं राह की दुश्वारियाँ गिनता रहा ।</p>
<p></p>
<p>आँखों में अश्कों का दरिया चढ़ के जब उतरा तो फ़िर, <br/>मैं तो बस ख़्वाबों की डूबी कश्तियाँ गिनता रहा ।</p>
<p></p>
<p>और करता भी तो क्या वो नौजवां बेरोज़गार, <br/>दी हैं कितनी नौकरी कीअरज़ियाँ गिनता रहा ।</p>
<p></p>
<p>राजनेता को न था मतलब किसी इंसान से, <br/>वो तो केवल धोतियाँ और टोपियाँ गिनता रहा ।</p>
<p></p>
<p>वो रहे गिनते मुनाफ़ा कारख़ाने का उधर, <br/>मैं इधर दरिया में मरती मछलियाँ गिनता रहा ।</p>
<p></p>
<p>नाम पर आतंकियों के ले के निर्दोषों की जान, <br/>वो लगीं कंधों पे अपनी फीतियाँ गिनता रहा ।</p>
<p></p>
<p>लहलहाती फ़स्ल पर जब बर्फ़ बारी हो गई<br/>खेत में दहक़ान टूटी बालियाँ गिनता रहा । </p>
<p></p>
<p>क्या ग़ज़ल पढ़ता भला ' जम्मू' गया जब मंच पर, <br/>धीरे धीरे ख़ाली होती कुर्सियाँ गिनता रहा ।</p>
<p></p>
<p>(मौलिक व अप्रकाशित )</p>(ग़ज़ल - इस्लाह के लिए) अक्सर तन्हाई में रोया करता हूँ -(गुरप्रीत सिंह)tag:openbooksonline.com,2017-11-04:5170231:BlogPost:8950512017-11-04T06:00:00.000ZGurpreet Singh jammuhttp://openbooksonline.com/profile/GurpreetSingh624
22-22-22-22-22-2<br />
<br />
अक्सर तन्हाई में रोया करता हूँ।<br />
अपने आँसू ख़ुद ही पोंछा करता हूँ।<br />
<br />
देर तलक आईना देखा करता हूँ।<br />
जाने उसमें किसको ढूँढा करता हूँ।<br />
<br />
दिल में दर्द उठे तो फ़िर क्या करता हूँ?<br />
बस उसकी तस्वीर से शिक्वा करता हूँ।<br />
<br />
क्या वो अब भी याद मुझे करता होगा?<br />
ख़ुद से ऐसी बातें पूछा करता हूँ।<br />
<br />
एक न इक दिन पत्थर पिघलेगा पगले!<br />
ये कह के दिल को बहलाया करता हूँ।<br />
<br />
शाम ढले वो तोड़ दिया करता हूँ मैं,<br />
सुब्ह जो अक्सर ख़ुद से वादा करता हूँ।<br />
<br />
मौलिक एवं अप्रकाशित
22-22-22-22-22-2<br />
<br />
अक्सर तन्हाई में रोया करता हूँ।<br />
अपने आँसू ख़ुद ही पोंछा करता हूँ।<br />
<br />
देर तलक आईना देखा करता हूँ।<br />
जाने उसमें किसको ढूँढा करता हूँ।<br />
<br />
दिल में दर्द उठे तो फ़िर क्या करता हूँ?<br />
बस उसकी तस्वीर से शिक्वा करता हूँ।<br />
<br />
क्या वो अब भी याद मुझे करता होगा?<br />
ख़ुद से ऐसी बातें पूछा करता हूँ।<br />
<br />
एक न इक दिन पत्थर पिघलेगा पगले!<br />
ये कह के दिल को बहलाया करता हूँ।<br />
<br />
शाम ढले वो तोड़ दिया करता हूँ मैं,<br />
सुब्ह जो अक्सर ख़ुद से वादा करता हूँ।<br />
<br />
मौलिक एवं अप्रकाशिततरही ग़ज़ल (पहले ये बतला दो उसने छुप कर तीर चलाए तो)- गुरप्रीत सिंहtag:openbooksonline.com,2017-11-02:5170231:BlogPost:8944772017-11-02T08:00:54.000ZGurpreet Singh jammuhttp://openbooksonline.com/profile/GurpreetSingh624
लाख करे कोशिश सोने की फ़िर भी नींद न आए तो।<br />
एक अधूरा ख़्वाब किसी को सारी रात जगाए तो ।<br />
<br />
तुम तो हौले से 'ना' कह के अपने रस्ते चल दोगे,<br />
लेकिन किसी का अम्बर टूटे और धरती फट जाए तो ।<br />
<br />
हाँ मैं तेरे ज़ुल्म के बारे में न ज़ुबाँ से बोलूँगा,<br />
पर क्या होगा गर महफ़िल में आँख मेरी भर आए तो ।<br />
<br />
फ़िर बतलाना सीने ऊपर वार बचाना है कैसे,<br />
पहले ये बतला दो उसने छुप कर तीर चलाए तो ।<br />
<br />
वो गर नज़रों से ही छू ले तो दिल धक धक करने लगे,<br />
जाने क्या हो गर वो सचमुच आकर हाथ लगाए तो ।<br />
<br />
वो अँगड़ाई ले के उठे तो कुदरत जागे सुब्ह चले,<br />
पंछी…
लाख करे कोशिश सोने की फ़िर भी नींद न आए तो।<br />
एक अधूरा ख़्वाब किसी को सारी रात जगाए तो ।<br />
<br />
तुम तो हौले से 'ना' कह के अपने रस्ते चल दोगे,<br />
लेकिन किसी का अम्बर टूटे और धरती फट जाए तो ।<br />
<br />
हाँ मैं तेरे ज़ुल्म के बारे में न ज़ुबाँ से बोलूँगा,<br />
पर क्या होगा गर महफ़िल में आँख मेरी भर आए तो ।<br />
<br />
फ़िर बतलाना सीने ऊपर वार बचाना है कैसे,<br />
पहले ये बतला दो उसने छुप कर तीर चलाए तो ।<br />
<br />
वो गर नज़रों से ही छू ले तो दिल धक धक करने लगे,<br />
जाने क्या हो गर वो सचमुच आकर हाथ लगाए तो ।<br />
<br />
वो अँगड़ाई ले के उठे तो कुदरत जागे सुब्ह चले,<br />
पंछी लौट घरों को आएं वो ज़ुल्फ़ें बिखराए तो ।<br />
<br />
रूह की प्यास बुझा लेंगे, सुन लेंगे तेरी ग़ज़लें भी,<br />
पहले कोई आए पापी पेट की आग बुझाए तो ।<br />
<br />
जनता भी हनुमान जी जैसे अपनी ताकत भूल चुकी,<br />
फ़िर से ख़ुद को पहचानेगी कोई स्मर्ण कराए तो ।<br />
<br />
(मौलिक व अप्रकाशित)ग़ज़ल --इस्लाह के लिएtag:openbooksonline.com,2017-08-16:5170231:BlogPost:8739732017-08-16T11:00:00.000ZGurpreet Singh jammuhttp://openbooksonline.com/profile/GurpreetSingh624
<p> (122-122-122-12)</p>
<p></p>
<p>रहे हम तो नादां ये क्या कर चले <br></br> कि दौर ए जफ़ा में वफ़ा कर चले।</p>
<p></p>
<p>वो तूफ़ान के जैसे आ कर चले <br></br> मेरा आशियाना फ़ना कर चले।</p>
<p></p>
<p>रक़ीबों की तारीफ़ की इस क़दर<br></br>कि चहरा मेरा ज़र्द सा कर चले'</p>
<p></p>
<p>कहीं जाग जाएँ न इस ख़ौफ़ से<br></br>हम आँखों में सपने सुला कर चले</p>
<p></p>
<p>ज़मीं हमको बुज़दिल का ताना न दे<br></br>तो फिर हम ये नज़रें उठा कर चले।</p>
<p></p>
<p>तड़पते रहे अधजले कुछ हरूफ़ <br></br> वो जब मेरे खत को जला कर…</p>
<p> (122-122-122-12)</p>
<p></p>
<p>रहे हम तो नादां ये क्या कर चले <br/> कि दौर ए जफ़ा में वफ़ा कर चले।</p>
<p></p>
<p>वो तूफ़ान के जैसे आ कर चले <br/> मेरा आशियाना फ़ना कर चले।</p>
<p></p>
<p>रक़ीबों की तारीफ़ की इस क़दर<br/>कि चहरा मेरा ज़र्द सा कर चले'</p>
<p></p>
<p>कहीं जाग जाएँ न इस ख़ौफ़ से<br/>हम आँखों में सपने सुला कर चले</p>
<p></p>
<p>ज़मीं हमको बुज़दिल का ताना न दे<br/>तो फिर हम ये नज़रें उठा कर चले।</p>
<p></p>
<p>तड़पते रहे अधजले कुछ हरूफ़ <br/> वो जब मेरे खत को जला कर चले।</p>
<p></p>
<p>बताओ मुझे नींद आएगी क्या <br/> कि वो मेरा बिस्तर बिछा कर.... चले।</p>
<p></p>
<p><span> </span></p>इस्लाह की गुज़ारिश के साथ एक ग़ज़ल पेश है (गुरप्रीत सिंह )tag:openbooksonline.com,2017-07-20:5170231:BlogPost:8678072017-07-20T08:11:46.000ZGurpreet Singh jammuhttp://openbooksonline.com/profile/GurpreetSingh624
<p>2122 -1212 -22</p>
<p></p>
<p>मुझ पे तू मेहरबां नहीं होता <br/>मैं तेरा क़द्रदां नहीं होता।</p>
<p></p>
<p>बोलने वाले कब ये समझेंगे <br/>चुप है जो बेज़ुबां नहीं होता।</p>
<p></p>
<p>कोई अरमान हम भी बोते. . .गर <br/>मौसम-ए-दिल ख़िज़ाँ नहीं होता।</p>
<p></p>
<p>ख्वाहिशो सीने पे न दस्तक दो <br/>अब मेरा दिल यहां नहीं होता।</p>
<p></p>
<p>जो बचाए किसी को कातिल से <br/>वो सदा पासबाँ नहीं होता।</p>
<p></p>
<p>चाहे कितना उठे धुआँ ऊपर <br/>वो कभी आसमाँ नहीं होता। <br/> (मौलिक व् अप्रकाशित)</p>
<p>2122 -1212 -22</p>
<p></p>
<p>मुझ पे तू मेहरबां नहीं होता <br/>मैं तेरा क़द्रदां नहीं होता।</p>
<p></p>
<p>बोलने वाले कब ये समझेंगे <br/>चुप है जो बेज़ुबां नहीं होता।</p>
<p></p>
<p>कोई अरमान हम भी बोते. . .गर <br/>मौसम-ए-दिल ख़िज़ाँ नहीं होता।</p>
<p></p>
<p>ख्वाहिशो सीने पे न दस्तक दो <br/>अब मेरा दिल यहां नहीं होता।</p>
<p></p>
<p>जो बचाए किसी को कातिल से <br/>वो सदा पासबाँ नहीं होता।</p>
<p></p>
<p>चाहे कितना उठे धुआँ ऊपर <br/>वो कभी आसमाँ नहीं होता। <br/> (मौलिक व् अप्रकाशित)</p>ग़ज़ल इस्लाह के लिए (गुरप्रीत सिंह)tag:openbooksonline.com,2017-07-11:5170231:BlogPost:8662382017-07-11T07:56:23.000ZGurpreet Singh jammuhttp://openbooksonline.com/profile/GurpreetSingh624
<p>2122 -1212 -22</p>
<p><br/>आस दिल में दबी रही होगी <br/>और फिर ख़्वाब बन गई होगी।</p>
<p></p>
<p>टूट जाए सभी का दिल या रब <br/>दिलजले को बड़ी ख़ुशी होगी।</p>
<p></p>
<p>ज़ह्न हारा हुआ सा बैठा है <br/>दिल से तक़रार हो गई होगी।</p>
<p></p>
<p>जिसकी खातिर लुटा दी जान उसने <br/>चीज़ वो भी तो कीमती होगी।</p>
<p></p>
<p>जब मुड़ा तेरी ओर परवाना <br/>शमअ बेइन्तहा जली होगी।</p>
<p></p>
<p>(मौलिक व् अप्रकाशित)</p>
<p>2122 -1212 -22</p>
<p><br/>आस दिल में दबी रही होगी <br/>और फिर ख़्वाब बन गई होगी।</p>
<p></p>
<p>टूट जाए सभी का दिल या रब <br/>दिलजले को बड़ी ख़ुशी होगी।</p>
<p></p>
<p>ज़ह्न हारा हुआ सा बैठा है <br/>दिल से तक़रार हो गई होगी।</p>
<p></p>
<p>जिसकी खातिर लुटा दी जान उसने <br/>चीज़ वो भी तो कीमती होगी।</p>
<p></p>
<p>जब मुड़ा तेरी ओर परवाना <br/>शमअ बेइन्तहा जली होगी।</p>
<p></p>
<p>(मौलिक व् अप्रकाशित)</p>ग़ज़ल --इस्लाह के लिए (गुरप्रीत सिंह )tag:openbooksonline.com,2017-05-23:5170231:BlogPost:8582772017-05-23T04:34:14.000ZGurpreet Singh jammuhttp://openbooksonline.com/profile/GurpreetSingh624
<p></p>
<p>(2122-2122-2122-212)</p>
<p></p>
<p>पहले सूरज सा तपें खुद को ज़रा रोशन करें <br></br>फिर थमें मत फिर किसी को चाँद सा रोशन करें।</p>
<p></p>
<p>ये नहीं, कोई दिया बस इक दफ़ा रोशन करें <br></br>गर करें, बुझने पे उसको बारहा रोशन करें।</p>
<p></p>
<p>मेरी भी वो ही तमन्ना है जो सारे शह्र की <br></br>आप मेरे घर में आएं घर मेरा रोशन करें।</p>
<p></p>
<p>सामने है इक चराग़ और आप के हाथों में शमअ <br></br>आप किस उलझन में हैं जी?क्या हुआ? रोशन करें!</p>
<p></p>
<p>तीरगी के हैं नुमाइंदे सभी इस शह्र में <br></br>कौन है…</p>
<p></p>
<p>(2122-2122-2122-212)</p>
<p></p>
<p>पहले सूरज सा तपें खुद को ज़रा रोशन करें <br/>फिर थमें मत फिर किसी को चाँद सा रोशन करें।</p>
<p></p>
<p>ये नहीं, कोई दिया बस इक दफ़ा रोशन करें <br/>गर करें, बुझने पे उसको बारहा रोशन करें।</p>
<p></p>
<p>मेरी भी वो ही तमन्ना है जो सारे शह्र की <br/>आप मेरे घर में आएं घर मेरा रोशन करें।</p>
<p></p>
<p>सामने है इक चराग़ और आप के हाथों में शमअ <br/>आप किस उलझन में हैं जी?क्या हुआ? रोशन करें!</p>
<p></p>
<p>तीरगी के हैं नुमाइंदे सभी इस शह्र में <br/>कौन है ये अजनबी?किस ने कहा रोशन करें</p>
<p></p>
<p> (मौलिक व् अप्रकाशित )</p>ग़ज़ल (22-22-22-22-22-22-22-2)tag:openbooksonline.com,2017-05-05:5170231:BlogPost:8544002017-05-05T05:30:00.000ZGurpreet Singh jammuhttp://openbooksonline.com/profile/GurpreetSingh624
<p> </p>
<p>22 22 22 22 22 22 22 2</p>
<p><br></br> दिल के तख़्त पे हाए हमने किस ज़ालिम को बिठा लिया <br></br> दिल की बस्ती को ही उजाड़ा उसने ऐसा काम किया।</p>
<p> </p>
<p>'लुटे हुए अरमानों को वापिस लाऊंगा' बोला था <br></br>लेकिन जो था पास हमारे वो भी हमसे छीन लिया।</p>
<p> </p>
<p>अब कहता है, इश्क़ में सब आशिक़ ऐसा ही करते हैं <br></br> मैंने भी गर झूठे वादे किए तो कोई पाप किया।</p>
<p> </p>
<p>कितनी बार रकीबों ने अरमानों के सर काटे हैं <br></br> और वो बस इतना कहते हैं बुरा किया भई बुरा…</p>
<p> </p>
<p>22 22 22 22 22 22 22 2</p>
<p><br/> दिल के तख़्त पे हाए हमने किस ज़ालिम को बिठा लिया <br/> दिल की बस्ती को ही उजाड़ा उसने ऐसा काम किया।</p>
<p> </p>
<p>'लुटे हुए अरमानों को वापिस लाऊंगा' बोला था <br/>लेकिन जो था पास हमारे वो भी हमसे छीन लिया।</p>
<p> </p>
<p>अब कहता है, इश्क़ में सब आशिक़ ऐसा ही करते हैं <br/> मैंने भी गर झूठे वादे किए तो कोई पाप किया।</p>
<p> </p>
<p>कितनी बार रकीबों ने अरमानों के सर काटे हैं <br/> और वो बस इतना कहते हैं बुरा किया भई बुरा किया।</p>
<p> </p>
<p>ये शुहरत का युग है झाड़ी ने ये बात समझ ली है <br/> खार को गुलदस्ता कहने का तभी तो भारी दाम दिया।</p>
<p> </p>
<p>अब लगता है पहला दिलबर इससे कुछ तो अच्छा था <br/> इतना भी वो बुरा नहीं था जितना उसे बदनाम किया। <br/> (मौलिक व् अप्रकाशित)</p>तरही ग़ज़ल (212-212-212-212)tag:openbooksonline.com,2017-05-05:5170231:BlogPost:8371862017-05-05T05:17:05.000ZGurpreet Singh jammuhttp://openbooksonline.com/profile/GurpreetSingh624
<p>(212-212-212-212)</p>
<p>मेरे सुर से तेरा सुर मिलाना हुआ<br></br> और जीवन मेरा इक तराना हुआ ॥<br></br> <br></br> मैने देखी है इक चलती फ़िरती ग़ज़ल<br></br> है मिजाज इस लिए शायराना हुआ ॥<br></br> <br></br> आइए हमनशी बैठिए पलकों पर<br></br>ये कहें ख्वाब में कैसे आना हुआ ॥<br></br> <br></br> थी दवा तो वही काम तब कर गई<br></br> जब तेरा अपने हाथों पिलाना हुआ ॥<br></br> <br></br> वो भी लगने लगे अब मुझे अपने से<br></br> "जब से गैरों के घर आना जाना हुआ ॥"<br></br><br></br> हज़्म कैसे करेंगे मेरी ये ग़ज़ल<br></br> वो जो खाते हैं बारीक छाना हुआ ॥<br></br> <br></br> देख के…</p>
<p>(212-212-212-212)</p>
<p>मेरे सुर से तेरा सुर मिलाना हुआ<br/> और जीवन मेरा इक तराना हुआ ॥<br/> <br/> मैने देखी है इक चलती फ़िरती ग़ज़ल<br/> है मिजाज इस लिए शायराना हुआ ॥<br/> <br/> आइए हमनशी बैठिए पलकों पर<br/>ये कहें ख्वाब में कैसे आना हुआ ॥<br/> <br/> थी दवा तो वही काम तब कर गई<br/> जब तेरा अपने हाथों पिलाना हुआ ॥<br/> <br/> वो भी लगने लगे अब मुझे अपने से<br/> "जब से गैरों के घर आना जाना हुआ ॥"<br/><br/> हज़्म कैसे करेंगे मेरी ये ग़ज़ल<br/> वो जो खाते हैं बारीक छाना हुआ ॥<br/> <br/> देख के तुझ को ये ठण्डी आहें भरे<br/> दिल मेरा बर्फ़ का कारखाना हुआ ॥<br/> <br/> (मौलिक एवम अप्रकाशित)</p>ग़ज़ल (12122-12122-12122-12122)tag:openbooksonline.com,2017-04-18:5170231:BlogPost:8499252017-04-18T05:20:05.000ZGurpreet Singh jammuhttp://openbooksonline.com/profile/GurpreetSingh624
<p></p>
<p>न बैठो इतने करीब मेरे कहीं मेरा दिल मचल न जाए</p>
<p>अब इतनी भी दूर तो न जाओ ये जान मेरी निकल न जाए ।।</p>
<p> </p>
<p>जो बर्फ़ अरमानों पर जमी है तेरी तपिश से पिघल न जाए</p>
<p>पिघल गई गर तो मेरी आँखों की झील भर के उछल न जाए ।।</p>
<p> </p>
<p>बड़ा ही शातिर ये वक़्त है फिर नई कोई चाल चल न जाए</p>
<p>मिलन से पहले घड़ी विरह की मिलन का लम्हा निगल न जाए ।।</p>
<p> </p>
<p>तेरी छुअन से हुई वो जुम्बिश की दिल की धड़कन बिखर गई है</p>
<p> न छूना मुझ को सनम दुबारा ये साँस जब तक सँभल न जाए…</p>
<p></p>
<p>न बैठो इतने करीब मेरे कहीं मेरा दिल मचल न जाए</p>
<p>अब इतनी भी दूर तो न जाओ ये जान मेरी निकल न जाए ।।</p>
<p> </p>
<p>जो बर्फ़ अरमानों पर जमी है तेरी तपिश से पिघल न जाए</p>
<p>पिघल गई गर तो मेरी आँखों की झील भर के उछल न जाए ।।</p>
<p> </p>
<p>बड़ा ही शातिर ये वक़्त है फिर नई कोई चाल चल न जाए</p>
<p>मिलन से पहले घड़ी विरह की मिलन का लम्हा निगल न जाए ।।</p>
<p> </p>
<p>तेरी छुअन से हुई वो जुम्बिश की दिल की धड़कन बिखर गई है</p>
<p> न छूना मुझ को सनम दुबारा ये साँस जब तक सँभल न जाए ।।</p>
<p> </p>
<p>मैं उस की खातिर हूँ सज के बैठा है शौक दिल में और एक डर भी</p>
<p>कि मेरे कातिल को फ़िर भी मुझ में कमी कहीं कोई खल न जाए ।।</p>
<p> </p>
<p> (मौलिक व अप्रकाशित)</p>गज़ल इस्लाह के लिए (2122-2122-2122-212)tag:openbooksonline.com,2017-04-01:5170231:BlogPost:8464522017-04-01T04:30:00.000ZGurpreet Singh jammuhttp://openbooksonline.com/profile/GurpreetSingh624
<p>मेरी आँखों में नज़र ये ढूँढती क्या चीज़ है<br></br> कुछ तो बतला दे कि तेरी खो गई क्या चीज़ है ॥<br></br> <br></br> रात दिन सीने की दीवारों पे ये पटके है सर<br></br> ऐ खुदा इस बुत में तूने डाल दी क्या चीज़ है ॥<br></br> <br></br> हिज्र में जिस ने सुनी हों ग़ज़लें तन्हा बैठ कर<br></br> उससे जाकर पूछिए ये शायरी क्या चीज़ है ॥<br></br> <br></br> तेरे ख्वाबों से उठा तुझ को न पाया सामने<br></br> अब समझ में आ रहा है तिश्नगी क्या चीज़ है ॥<br></br> <br></br> यूँ तो जीने का तजुर्बाहै बहुत हम को मगर<br></br> अब तलक समझे नहीं हैं ज़िंदगी क्या चीज़ है…</p>
<p>मेरी आँखों में नज़र ये ढूँढती क्या चीज़ है<br/> कुछ तो बतला दे कि तेरी खो गई क्या चीज़ है ॥<br/> <br/> रात दिन सीने की दीवारों पे ये पटके है सर<br/> ऐ खुदा इस बुत में तूने डाल दी क्या चीज़ है ॥<br/> <br/> हिज्र में जिस ने सुनी हों ग़ज़लें तन्हा बैठ कर<br/> उससे जाकर पूछिए ये शायरी क्या चीज़ है ॥<br/> <br/> तेरे ख्वाबों से उठा तुझ को न पाया सामने<br/> अब समझ में आ रहा है तिश्नगी क्या चीज़ है ॥<br/> <br/> यूँ तो जीने का तजुर्बाहै बहुत हम को मगर<br/> अब तलक समझे नहीं हैं ज़िंदगी क्या चीज़ है ॥<br/> <br/> नाम है गुरप्रीत सिंह है शौक लिखने का मुझे<br/> ओ बी ओ पर सीखता हूँ शायरी क्या चीज़ है ॥</p>
<p>.<br/> मौलिक व अप्रकाशित</p>गज़ल (12122-12122)tag:openbooksonline.com,2016-11-12:5170231:BlogPost:8138082016-11-12T14:00:00.000ZGurpreet Singh jammuhttp://openbooksonline.com/profile/GurpreetSingh624
गज़ल (12122-12122)<br />
<br />
हमें मुहब्बत जतानी होगी<br />
ये दिल की लब तक तो लानी होगी॥<br />
दीवार चुप की गिरानी होगी<br />
कि बात कुछ तो बनानी होगी॥<br />
जो फेंक डाली है तूने बोतल<br />
तो आँख से अब पिलानी होगी॥<br />
शराब भी तो है इश्क जैसी<br />
चढ़ेगी जितनी पुरानी होगी॥<br />
जो चाहता है धुआँ न उठ्ठे<br />
तो आग ज़्यादा बढ़ानी होगी॥<br />
तू हँस के चाहे निभा ले रो के<br />
तुझे मुहब्बत निभानी होगी॥<br />
जुबान चुप है,है आँख पत्थर<br />
ज़ुरूर दिल में विरानी होगी॥<br />
(मौलिक व अप्रकाशित)
गज़ल (12122-12122)<br />
<br />
हमें मुहब्बत जतानी होगी<br />
ये दिल की लब तक तो लानी होगी॥<br />
दीवार चुप की गिरानी होगी<br />
कि बात कुछ तो बनानी होगी॥<br />
जो फेंक डाली है तूने बोतल<br />
तो आँख से अब पिलानी होगी॥<br />
शराब भी तो है इश्क जैसी<br />
चढ़ेगी जितनी पुरानी होगी॥<br />
जो चाहता है धुआँ न उठ्ठे<br />
तो आग ज़्यादा बढ़ानी होगी॥<br />
तू हँस के चाहे निभा ले रो के<br />
तुझे मुहब्बत निभानी होगी॥<br />
जुबान चुप है,है आँख पत्थर<br />
ज़ुरूर दिल में विरानी होगी॥<br />
(मौलिक व अप्रकाशित)मुसीबत और हो जाती (मिजाहिया गज़ल)tag:openbooksonline.com,2016-10-04:5170231:BlogPost:8055062016-10-04T04:00:00.000ZGurpreet Singh jammuhttp://openbooksonline.com/profile/GurpreetSingh624
<p>अगर ना भागता छुट कर मुसीबत और हो जाती<br></br> तेरे घरवालों से मेरी मुरम्मत और हो जाती।</p>
<p>.<br></br> बुला कर घर में पिटवाना कहीं इतना ज़रूरी था<br></br> तू खुद ही डाँट देती तो नसीहत और हो जाती।</p>
<p>.</p>
<p>खुदा का शुक्र है भाई तुझे दो ही दिए उसने<br></br> अगर दो और दे देता क़यामत और हो जाती।</p>
<p>.</p>
<p>बड़ी मुश्किल तेरे कुत्ते से हमने कफ़ था छुड़वाया<br></br> जो फ़ट पतलून जाती तो फजीहत और हो जाती।</p>
<p>.</p>
<p>कि रस्ते में तो बिल्ली ने इशारा भी किया था पर<br></br> अगर कुछ बोल कर कहती सहूलत और हो…</p>
<p>अगर ना भागता छुट कर मुसीबत और हो जाती<br/> तेरे घरवालों से मेरी मुरम्मत और हो जाती।</p>
<p>.<br/> बुला कर घर में पिटवाना कहीं इतना ज़रूरी था<br/> तू खुद ही डाँट देती तो नसीहत और हो जाती।</p>
<p>.</p>
<p>खुदा का शुक्र है भाई तुझे दो ही दिए उसने<br/> अगर दो और दे देता क़यामत और हो जाती।</p>
<p>.</p>
<p>बड़ी मुश्किल तेरे कुत्ते से हमने कफ़ था छुड़वाया<br/> जो फ़ट पतलून जाती तो फजीहत और हो जाती।</p>
<p>.</p>
<p>कि रस्ते में तो बिल्ली ने इशारा भी किया था पर<br/> अगर कुछ बोल कर कहती सहूलत और हो जाती।</p>
<p>.</p>
<p>जो पहले दर्द दिल में था वो अब सारे बदन में है<br/> कि बेहतर था जहाँ से जान रुख्सत और हो जाती।</p>
<p>.</p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित </p>
<p></p>