नयना(आरती)कानिटकर's Posts - Open Books Online
2024-03-28T21:37:20Z
नयना(आरती)कानिटकर
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"किनारा "
tag:openbooksonline.com,2021-03-19:5170231:BlogPost:1056943
2021-03-19T16:30:00.000Z
नयना(आरती)कानिटकर
http://openbooksonline.com/profile/NayanaAratiKanitkar
<p>मानो उन्हें किसी की प्रतीक्षा थी . उनका मन कुछ बैचैन हो रहा था ,वे अंदर ही अंदर कुछ असहाय सा महसूस कर रहे थे .हाथ पीछे की ओर बांधे वे द्वार पर आकर खड़े हो गए तभी उनकी नजर सामने की और गई .वो धीमे-धीमे चलकर वह आती हुई कुछ दूरी पर खड़ी हो गई . दोनों ने एक दूसरे को देखा .</p>
<p>"तुम ? मुझे विश्वास ही नहीं हो रहा .कितना बदल गई हो ,ये सफेद केश , ये कृश काया..." वे बोले </p>
<p>"फिर तुमने मुझे पहचाना कैसे ?" उसका प्रतिप्रश्न </p>
<p>" तुम्हारी हँसी का वो नूर, चहरे की निश्चलता आज भी वैसी ही है…</p>
<p>मानो उन्हें किसी की प्रतीक्षा थी . उनका मन कुछ बैचैन हो रहा था ,वे अंदर ही अंदर कुछ असहाय सा महसूस कर रहे थे .हाथ पीछे की ओर बांधे वे द्वार पर आकर खड़े हो गए तभी उनकी नजर सामने की और गई .वो धीमे-धीमे चलकर वह आती हुई कुछ दूरी पर खड़ी हो गई . दोनों ने एक दूसरे को देखा .</p>
<p>"तुम ? मुझे विश्वास ही नहीं हो रहा .कितना बदल गई हो ,ये सफेद केश , ये कृश काया..." वे बोले </p>
<p>"फिर तुमने मुझे पहचाना कैसे ?" उसका प्रतिप्रश्न </p>
<p>" तुम्हारी हँसी का वो नूर, चहरे की निश्चलता आज भी वैसी ही है राधे ." </p>
<p>"मतलब तुम मुझे भूले नहीं हो." और वो लौटने को हुई </p>
<p>" नहीं ! नहीं ! तुम बस ऐसे ही द्वार से नहीं जा सकती . अंदर आओ राधा ." अनुनय के स्वर में माधव ने कहा </p>
<p>" नहीं माधव ......ये ठीक न होगा ." राधा बोली </p>
<p>"अच्छा बताओ! तो फिर मैं तुम्हें कहा मिलू ? माधव ने हँसते हुए पूछा </p>
<p>"तुम आ पाओगे ? राजा हो अब तुम . मैं तो जीवन संध्या के इन अंतिम क्षणों में तुम्हें बस एक बार देखना चाहती थी ."</p>
<p>" हां ! हां ! जरूर आऊंगा राधे . संध्या समय समुद्र के किनारे एक छोटा सा मंदिर है वहाँ. थोड़ी देर और रुकती राधा. उसने विनती की पर वो लौट गई .</p>
<p>कृष्ण उसे जाते देखते रहे और पुनः कक्ष की ओर मुड़ने लगे तो देखा रुक्मिणी उनके पीछे ही खड़ी थी . रुक्मिणी ने कृष्ण की हथेली को कसकर पकड़ते हुए कहा " मैं ! मैं! भी मिलाना चाहती हूँ उससे एक बार . कितने वर्षो की अस्वस्थता हे मरी ..कि ऐसा क्या है उसमें.....वो मुझसे मिले बिना नहीं जा सकती </p>
<p>"कहूंगा उससे " माधव ने हलके से उत्तर दिया </p>
<p>" सिर्फ़ कहूंगा नहीं , मुझे वचन चाहिए . कब मिलने वाले हो उससे ."</p>
<p>" ठीक हे वचन देता हूँ . संध्या प्रहर में मिलूंगा. माधव कुछ असहज हो रहे थे </p>
<p>"संध्याकाल क्यों ? अपरान्ह में भी उन्नत मस्तक से जा सकते हो. मुझे कोई आक्षेप नहीं है . रुक्मिणी ने कटाक्ष करते हुए कहा </p>
<p>----------------</p>
<p>उस छोटे से मंदिर में एक दिया जल रहा था जो हवा से फडफडा रहा था. अंदर की मूर्ती के प्रति उसे कोई उत्सुकता नहीं थी . उसे एकदम उदास लगाने लगा. क्यों आयी वो यहाँ. </p>
<p>राधा मंदिर की सीढ़ियों पर पीठ टिकाकर बैठ गई .सूर्यास्त के बाद का प्रकाश अभी अँधेरे की और नहीं बढ़ा था. श्याम उसे आते हुए दिखाई दिए , मोहक आकृति में बहती हवा से उनका उत्तरीय लहरा रहा था . राधा ने उठने का प्रयास किया पर .... श्याम ने काँधे पर हाथ धर उसे बैठने का इशारा किया ओर वो भी सहज होकर उसके पास सीढ़ी पर बैठ गए. <br/> राधा का हाथ हाथों में लेकर अपनी अंगुलियाँ उसमे फ़सा दी ओर दूसरे हाथ से सहलाने लगे. कुछ क्षणों बाद राधा ने हाथ छुड़ाते हुए पूछा " बांसुरी नहीं लाये ? एक बार फिर से बजाते तो .."</p>
<p>" नहीं राधा ! द्वारिका के समुद्र में वो तुम्हें सुनाई नहीं देती . हवा ओर पानी की आवाज ओर फिर अब मेरे पास बांसुरी ..."</p>
<p>" मतलब?" राधा ने बीच में ही टोकते हुए पूछा</p>
<p>"मतलब पगली गोकुल से निकलते वक्त तुमने ही तो छीन ली थी ,फिर मैंने कभी बजने की कोशिश भी नहीं की . माधव ने हँसते हुए कहा </p>
<p>" और! तुम्हारे आने के बाद मेरे मन में क्या हुआ जानते हो ? राधा ने पूछा </p>
<p>" मैं! समझा नहीं ."<br/> </p>
<p>" कैसे निर्दयी हो श्याम . इतने साल सब कुछ सहकर बाल सफेद हो जाने के बाद मैं क्यों आयी यहाँ. "</p>
<p>श्याम हाथ में हाथ डालकर हौले से उसे उठाते समुद्र किनारे चलने लगे. रुक्मिणी , भामा ,द्रौपदी सभी की बातें करते हुए करीब करीब सारी रात गुजार दी . राधा थककर चूर हो गई थी . पूर्व की ओर सूर्य के लालिमा की दस्तक होने को थी. वो झट नीचे बैठ गई.उसकी नजर श्याम के कदमों पर गई -रेत पर उनके पदचिन्ह स्पष्ट उभर आए थे .झट उसने उनके पैरों के पास से रेत उठाकर मुठ्ठी में भर ली ओर धीरे से पल्लू के किनार में उसे बाँध लिया <br/> .</p>
<p>" ये क्या राधा ? मुझे भी दो उसमे से थोड़ी ." माधव ने आतुरता से कहा </p>
<p>"अरे! ये क्या क्यों ?.."</p>
<p>" मैंने वचन दिया है रुक्मिणी को ." माधव ने कहा </p>
<p>"श्रीरंग! ये लो. कहते हुए राधा ने रेत के साथ एक हल्का सा गुलाबी रंग लिए छोटी सी सिंपी भी हथेली पर रख दी . </p>
<p>माधव ने आँखे बंद कर ली मानों उनके भीतर हृदयस्थल के अंतस तक सब कुछ पहुँच गया था. </p>
<p>"आता हूँ अब" कहते श्याम तेजी से आगे बढ़ा गये .</p>
<p>"हे श्याम ! कहते राधा उसके निरंजन पदचिन्हों को अकेले ही समुद्र के किनारे देखती रही.सच तो यह था की वह अकेले श्याम को नहीं देख रही थी.</p>
<p>क्षितिज पर सूर्य भी इस विलक्षण दृश्य का साक्षी था.</p>
<p></p>
<p>-------------<br/> <strong>मौलिक,अप्रकाशित </strong></p>
साक्षात्कार
tag:openbooksonline.com,2020-05-08:5170231:BlogPost:1006111
2020-05-08T14:22:25.000Z
नयना(आरती)कानिटकर
http://openbooksonline.com/profile/NayanaAratiKanitkar
<p>उत्कर्षा का सारा शरीर थककर चूर हो चुका था कब नींद के आगोश में चली गयी पता ही नहीं चला ।<br></br><br></br>"हे ईश्वर ये किस पाप की सजा दी है तूने ये जन्म देकर जहाँ दो घड़ी का चैन नहीं ।"<br></br><br></br>"ऐसा क्यों कहती हो ,सतत कर्मशीलता ही तो भरी है मैंने तुम्हारी पेशियों में . क्या गलत किया?"<br></br><br></br>"प्रभु ! मैं भी कोई मशीन तो नहीं हूँ की ये सतत परिश्रमशीलता.."<br></br><br></br>"जानता हूँ ये सब सोचकर ही मैंने तुम्हें अष्टभुजा का प्रतिक रूप दिया है।"<br></br><br></br>"अष्टभुजा??? या कि...सारा श्रेय तो ..किंतु…</p>
<p>उत्कर्षा का सारा शरीर थककर चूर हो चुका था कब नींद के आगोश में चली गयी पता ही नहीं चला ।<br/><br/>"हे ईश्वर ये किस पाप की सजा दी है तूने ये जन्म देकर जहाँ दो घड़ी का चैन नहीं ।"<br/><br/>"ऐसा क्यों कहती हो ,सतत कर्मशीलता ही तो भरी है मैंने तुम्हारी पेशियों में . क्या गलत किया?"<br/><br/>"प्रभु ! मैं भी कोई मशीन तो नहीं हूँ की ये सतत परिश्रमशीलता.."<br/><br/>"जानता हूँ ये सब सोचकर ही मैंने तुम्हें अष्टभुजा का प्रतिक रूप दिया है।"<br/><br/>"अष्टभुजा??? या कि...सारा श्रेय तो ..किंतु .."<br/><br/>"किन्तु क्या , देखो ना तुम्हें किसी के सहारे की जरुरत कहाँ पडी बल्कि तुम तो मजबूती से ऊपर उठी हो ।"<br/><br/>ये कैसा मजाक है,है ईश्वर !"<br/><br/>"सच कहा रहा हूँ इन दिनों के कठिन परिस्थितियों में तुमने माली से लेकर थाली(भोजन ) तक , व्यवसाय से लेकर व्यस्थापन तक सभी काम बड़ी खूबी से निभा रही हो ।"<br/><br/>"हां !! सो तो है मगर .."<br/><br/>"अगर मगर कुछ नहीं बस ! अब अपना मूल्यांकन तुम्हें खुद करना है ।"<br/><br/>उगते सूर्य का कोमल लाल बिम्ब उसकी खिड़की से अंदर झांक रहा था उसकी रेशमी किरणों ने उसमें फिर से शक्ति का संचार कर दिया ।<br/>अब उसे पीछे मुड़कर देखने कि आवश्यकता ना थी न ही सहारे की ।<br/><br/>मौलिक,अप्रकाशित व अप्रसारित<br/><br/> </p>
"मैं आ रही हूँ माँ....."
tag:openbooksonline.com,2020-03-14:5170231:BlogPost:1002079
2020-03-14T10:30:00.000Z
नयना(आरती)कानिटकर
http://openbooksonline.com/profile/NayanaAratiKanitkar
<p><strong>"मैं आ रही हूँ माँ..."</strong></p>
<p></p>
<p>कितनी बार कहा था माँ ने "बेटा! बस एक बार तुम ग्रेजुएट हो जाओ फिर जहाँ भी किस्मत आजमाना चाहोगी तुम्हें रोकूँगी नही। ये पूरा का पूरा आकाश तुम्हारा हैं।" किंतु तब मैंने उनकी बातों को यूंही हवा में उड़ा दिया था।</p>
<p></p>
<p>संयुक्त परिवार में घर की सबसे खूबसूरत बेटी थी वह। बस! यही ज़रूर उसे ले डूबेगा कहाँ जानती थी। बारहवी के बाद ही अपनी रिश्तेदार के घर इस नगरी में आयी तो वापस लौटी ही नहीं कभी। माँ समझा-बुझाकर ले जाने आई थी उसे तब उन्हें…</p>
<p><strong>"मैं आ रही हूँ माँ..."</strong></p>
<p></p>
<p>कितनी बार कहा था माँ ने "बेटा! बस एक बार तुम ग्रेजुएट हो जाओ फिर जहाँ भी किस्मत आजमाना चाहोगी तुम्हें रोकूँगी नही। ये पूरा का पूरा आकाश तुम्हारा हैं।" किंतु तब मैंने उनकी बातों को यूंही हवा में उड़ा दिया था।</p>
<p></p>
<p>संयुक्त परिवार में घर की सबसे खूबसूरत बेटी थी वह। बस! यही ज़रूर उसे ले डूबेगा कहाँ जानती थी। बारहवी के बाद ही अपनी रिश्तेदार के घर इस नगरी में आयी तो वापस लौटी ही नहीं कभी। माँ समझा-बुझाकर ले जाने आई थी उसे तब उन्हें झिड़कते हुए कहा था...</p>
<p></p>
<p>"तुम भी तो परास्नातक और <span>लॉ</span> ग्रेजुएट हो । क्या कर लिया आज तक।" मैं अपने हिसाब से...</p>
<p></p>
<p>"ठीक हैं तुम अपने मन की करना। पहले पढाई पूरी कर लो।" माँ ने बीच में ही टोकते हुए कहा था।</p>
<p></p>
<p>" माँ! यहाँ किताबी ज्ञान नहीं खूबसूरती और सुंदर देहयष्टि काम आती हैं । आप वापस लौट जाओ ।करीब-करीब चिल्लाते हुए कहा था।</p>
<p></p>
<p>और वे खाली हाथ लौट गयी थी कभी ना आने के लिए. बस खबर आई थी कि वह ...नहीं रही।</p>
<p></p>
<p>वो <span>सीढ़ियाँ</span> चढती रही किंतु अकेली और फिर बहुत कम सालों में ही वक्त हाथ से फिसल गया ।</p>
<p></p>
<p>उसके चारों और अँधेरा छाया हुआ था।<br/> <br/> खुली खिडकी से दिखने वाला आसमां जहाँ कभी असंख्य तारों की जगमगाहट थी आज घूसर नजर आने लगा।</p>
<p><br/> मौलिक व अप्रकाशित</p>
मैं और मेरा मन
tag:openbooksonline.com,2019-06-20:5170231:BlogPost:986240
2019-06-20T04:30:00.000Z
नयना(आरती)कानिटकर
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<p>पहन रखा हैं <br></br> मैने गले में, एक</p>
<p>गुलाबी चमक युक्त<br></br> <span class="goog-spellcheck-word" id=":dh.1">बडा</span><span> </span>सा<span> </span><span class="goog-spellcheck-word" id=":dh.2">मोती</span><br></br> जिसकी<span> </span><span class="goog-spellcheck-word" id=":dh.3">आभा</span><span> </span>से दमकता हैं <span> </span><br></br> मेरा मुखमंडल <br></br> मैं भी घूमती हूँ <span> </span><span class="goog-spellcheck-word" id=":dh.5">इतराती</span><span> </span>हुई<br></br> उसके नभमंडल में…<br></br></p>
<p>पहन रखा हैं <br/> मैने गले में, एक</p>
<p>गुलाबी चमक युक्त<br/> <span class="goog-spellcheck-word" id=":dh.1">बडा</span><span> </span>सा<span> </span><span class="goog-spellcheck-word" id=":dh.2">मोती</span><br/> जिसकी<span> </span><span class="goog-spellcheck-word" id=":dh.3">आभा</span><span> </span>से दमकता हैं <span> </span><br/> मेरा मुखमंडल <br/> मैं भी घूमती हूँ <span> </span><span class="goog-spellcheck-word" id=":dh.5">इतराती</span><span> </span>हुई<br/> उसके नभमंडल में<br/> किंतु नहीं जानती थी<br/> समय के साथ होगा<br/> बदलाव उसमें भी<br/> <span class="goog-spellcheck-word" id=":dh.6">धूप</span>, बादल, बारिश<br/> आंधी के थपेड़ो को<span> </span><span class="goog-spellcheck-word" id=":dh.9">झेलते</span><br/> <span class="goog-spellcheck-word" id=":dh.10">बदलेगा</span><span> </span>उसका<span> </span><span class="goog-spellcheck-word" id=":dh.11">तेज</span><br/> बुरी, काली,<span class="goog-spellcheck-word" id=":dh.12">झपटने</span><span> </span>को आतुर <br/> <span class="goog-spellcheck-word" id=":dh.13">लोंगो</span><span> </span>की नज़रों से<br/> <span class="goog-spellcheck-word" id=":dh.15">बदलेगा</span><span> </span>उसका वैभव<br/> अब तक उसे हथेली की<br/> <span class="goog-spellcheck-word" id=":dh.16">अंजुरी</span><span> </span>में रख<span> </span><span class="goog-spellcheck-word" id=":dh.17">निहारने</span><span> </span>वाली मैं<br/> <span class="goog-spellcheck-word" id=":dh.18">निस्तब्ध</span><span> </span>हूँ<br/> कोशिश में लगी हूँ कि<br/> अब ढ<span class="goog-spellcheck-word" id=":dh.19">क</span><span> </span><span class="goog-spellcheck-word" id=":dh.20">लू</span><span> </span>उसे<span> </span><span class="goog-spellcheck-word" id=":dh.21">हथेलियों</span><span> </span>से कि<br/> ना पड़े ऐसी कोई दृष्टि<br/> जो खत्म कर दे <br/> उसकी<span> </span><span class="goog-spellcheck-word" id=":dh.23">भव्यता</span> <br/> और तब गले में लटका वह<span> </span><span class="goog-spellcheck-word" id=":dh.24">मोती</span><br/> <span class="goog-spellcheck-word" id=":dh.25">पिरो</span><span> </span>लेती हूँ एक<br/> लंबे से<span> </span><span class="goog-spellcheck-word" id=":dh.26">धागे</span><span> </span>में<span> </span><span class="goog-spellcheck-word" id=":dh.27">लटकाते हुए</span><br/> जो अब रहेगा मेरे<br/> सीने में बिल्कुल <br/> हृदय के निकट<span> </span><span class="goog-spellcheck-word" id=":dh.29">स्पर्श</span><span> </span>करता हुआ.<br/> <br/> <span><strong>"मौलिक व अप्रकाशित"</strong></span><span> </span><br/> ©नयना(<span class="goog-spellcheck-word" id=":dh.30">आरती</span>)<span class="goog-spellcheck-word" id=":dh.31">कानिटकर</span><br/> १९/०६/२०१९</p>
सुबह की धूप
tag:openbooksonline.com,2018-01-06:5170231:BlogPost:908098
2018-01-06T13:15:43.000Z
नयना(आरती)कानिटकर
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<p></p>
<p> खुद को<span> </span><span class="goog-spellcheck-word" id=":dh.1">भूली</span><span> </span>वो जब दिन भर के काम निपटा कर अपने आप को बिस्तर पर<span> </span><span class="goog-spellcheck-word" id=":dh.3">धकेलती</span><span> </span>तो आँखें बंद करते ही उसके अंदर का<span> </span><span class="goog-spellcheck-word" id=":dh.5">स्व</span><span> </span>जाग जाता और पूछता " फिर तुम्हारा क्या". उसका एक ही जवाब "मुझे कुछ नहीं चाहिए. कभी ना कभी तो मेरा भी वक्त आएगा. उसे याद है अपने छोटे से घर की…</p>
<p></p>
<p> खुद को<span> </span><span class="goog-spellcheck-word" id=":dh.1">भूली</span><span> </span>वो जब दिन भर के काम निपटा कर अपने आप को बिस्तर पर<span> </span><span class="goog-spellcheck-word" id=":dh.3">धकेलती</span><span> </span>तो आँखें बंद करते ही उसके अंदर का<span> </span><span class="goog-spellcheck-word" id=":dh.5">स्व</span><span> </span>जाग जाता और पूछता " फिर तुम्हारा क्या". उसका एक ही जवाब "मुझे कुछ नहीं चाहिए. कभी ना कभी तो मेरा भी वक्त आएगा. उसे याद है अपने छोटे से घर की खिड़की के पास हमेशा<span> </span><span class="goog-spellcheck-word" id=":dh.8">डेरा</span><span> </span>डाले रहती. हाथ में अभ्यास की पुस्तक और बाहर के<span> </span><span class="goog-spellcheck-word" id=":dh.9">आंगन</span><span> </span>का सारा नज़ारा उसका अपना होता. कभी ढेर सारे तोते आ बैठे<span> </span><span class="goog-spellcheck-word" id=":dh.11">अमरुद</span><span> </span>पर खूब शोर<span> </span><span class="goog-spellcheck-word" id=":dh.13">मचाते</span>. कभी-कभी चिड़िया आ<span> </span><span class="goog-spellcheck-word" id=":dh.15">बैठती</span><span> </span><span class="goog-spellcheck-word" id=":dh.16">मुंडेर</span><span> </span>पर वो<span> </span><span class="goog-spellcheck-word" id=":dh.17">दौडकर</span><span> </span><span class="goog-spellcheck-word" id=":dh.18">दाना</span><span> </span>लाती और जैसे ही<span> </span><span class="goog-spellcheck-word" id=":dh.19">बिखेरती</span><span> </span>वो<span> </span><span class="goog-spellcheck-word" id=":dh.20">फुर्र</span><span> </span>से<span> </span><span class="goog-spellcheck-word" id=":dh.21">उड</span><span> </span>जाती मगर फिर धीरे-धीरे उनकी दोस्ती हो गई थी. घर में सिर्फ़ बाबा थे जो काम पर निकल जाते . माँ तो थी ही नही जो उसे<span> </span><span class="goog-spellcheck-word" id=":dh.22">टोकती</span><span> </span>क्या ताक-<span class="goog-spellcheck-word" id=":dh.23">झाक</span><span> </span>करती रहती है. पेड़ो पक्षियों के बीच कितना<span> </span><span class="goog-spellcheck-word" id=":dh.25">उन्मुकत</span><span> </span>जीती थी.<span> </span><span class="goog-spellcheck-word" id=":dh.26">सोती</span><span> </span>भी तो खिड़की के नीचे ही बिस्तर लगा कर. आँख<span> </span><span class="goog-spellcheck-word" id=":dh.28">खुलती</span><span> </span>भी उससे<span> </span><span class="goog-spellcheck-word" id=":dh.29">छनकर</span><span> </span>आने वाली रोशनी से तब जब पक्षियों का झुंड गुजरता था शोर<span> </span><span class="goog-spellcheck-word" id=":dh.31">मचाते</span><span> </span>हुए उसके सामने से.<br/><br/>" क्या हुआ रमा? नींद में<span> </span><span class="goog-spellcheck-word" id=":dh.32">बडा</span><span> </span><span class="goog-spellcheck-word" id=":dh.33">हँस</span><span> </span>रही हो. कुछ सपना देखा है क्या"<span> </span><span class="goog-spellcheck-word" id=":dh.34">कान्हा</span><span> </span>ने उसे<span> </span><span class="goog-spellcheck-word" id=":dh.35">हिलाते</span><span> </span>हुए पूछा<br/><br/>" नहीं तो! नही तो! " <br/>" तुम भी ना पता नहीं किस दुनिया में जीती हो"<span> </span><span class="goog-spellcheck-word" id=":dh.37">उठो</span><span> </span>अब<span> </span><span class="goog-spellcheck-word" id=":dh.38">भोर</span><span> </span>होने को हैं. "<br/><br/>"<span> </span><span class="goog-spellcheck-word" id=":dh.39">हा</span><span> </span>!<span> </span><span class="goog-spellcheck-word" id=":dh.40">कान्हा</span><span> </span>मैने सपने में उस खिड़की से<span> </span><span class="goog-spellcheck-word" id=":dh.42">बगुलो</span><span> </span>का एक झुंड का झुंड हवा में<span> </span><span class="goog-spellcheck-word" id=":dh.43">उन्मुक्त</span><span> </span>उड़ते देखा ." अंगड़ाई लेते रमा उठ खड़ी हुई.<br/>" अब ज्यादा उडो मत. ढेर सा काम पडा है."<span> </span><span class="goog-spellcheck-word" id=":dh.48">कान्हा</span><span> </span>ने<span> </span><span class="goog-spellcheck-word" id=":dh.49">झल्लाते</span><span> </span>हुए कहा<br/><br/>उसने अपनी<span> </span><span class="goog-spellcheck-word" id=":dh.50">अस्तव्यस्त</span> <span> </span><span class="goog-spellcheck-word" id=":dh.51">साडी</span><span> </span>को ठीक किया , खिड़की से<span> </span><span class="goog-spellcheck-word" id=":dh.53">छनकर</span><span> </span>आती सुबह की<span> </span><span class="goog-spellcheck-word" id=":dh.54">धूप</span><span> </span>को प्रणाम किया और एक निर्णय के साथ बाहर को निकल<span> </span><span class="goog-spellcheck-word" id=":dh.55">पडी</span> <br/>मौलिक व<span> </span><span class="goog-spellcheck-word" id=":dh.56">अप्रकाशित</span><br/><br/></p>
हस्तरेखा (लघुकथा)
tag:openbooksonline.com,2017-10-07:5170231:BlogPost:887352
2017-10-07T10:30:00.000Z
नयना(आरती)कानिटकर
http://openbooksonline.com/profile/NayanaAratiKanitkar
<p><span>"</span><span>इतना मान-सम्मान पाने वाली, फिर भी इनकी हथेली खुरदरी और मैली सी क्यों है?"-- हृदय रेखा ने धीरे-धीरे बुदबुदाते हुए दूसरी से पूछा तो हथेली के कान खड़े हो गए। <br></br></span> <span>"बडे साहसी, इनका जीवन उत्साह से भरपूर है,फिर भी देखो ना..." मस्तिष्क रेखा ने फुसफुसा कर ज़बाब दिया। <br></br></span> <span>" देखो ना! मैं भी कितनी ऊर्जा लिए यहाँ हूँ, किंतु हथेली की इस कठोरता और गदंगी से.....!" जीवन रेखा भी कसामसाई। <br></br></span> <span>"अरे! क्यों नाहक क्लेष करती हो तुम तीनों? भाग्य रेखा…</span></p>
<p><span>"</span><span>इतना मान-सम्मान पाने वाली, फिर भी इनकी हथेली खुरदरी और मैली सी क्यों है?"-- हृदय रेखा ने धीरे-धीरे बुदबुदाते हुए दूसरी से पूछा तो हथेली के कान खड़े हो गए। <br/></span> <span>"बडे साहसी, इनका जीवन उत्साह से भरपूर है,फिर भी देखो ना..." मस्तिष्क रेखा ने फुसफुसा कर ज़बाब दिया। <br/></span> <span>" देखो ना! मैं भी कितनी ऊर्जा लिए यहाँ हूँ, किंतु हथेली की इस कठोरता और गदंगी से.....!" जीवन रेखा भी कसामसाई। <br/>
</span><span>"अरे! क्यों नाहक क्लेष करती हो तुम तीनों? भाग्य रेखा तो तुम अपने संग लेकर ही नहीं आई, तब मैं क्या करती" हथेली से अब चुप ना रहा गया, वह ऊँचे स्वर में बोल पड़ी। <br/>
</span><span>तीनों रेखाएँ अकबका कर एक दूसरे को देखने लगी। <br/>
"हुँह!... इतनी ढेर सारी कटी-पिटी रेखाएँ भी साध ली तुमने अपनी हथेली पर तो हम भी क्या करते".----तीनों फिर से अपनी कमान संभाली। <br/>
</span><span>"तभी तो मैनें तुम सभी को मुट्ठी में कस, छेंनी-ह्थौडा उठा, कर्म रूपी पत्थर को तोडा , अब तक तोड़ रही हूँ। " हथेली का आत्मविश्वास छलक उठा। <br/>
</span><span>कठोर, मैली, खुरदरी-सी सशक्त हथेली पर उभरती हुई मजबूत भाग्य रेखा को देख, कसी हुई हथेली में वे अपना-अपना वजूद ढूँढने लगी। <br/>
<br/>
</span> <span>मौलिक व अप्रकाशित</span></p>
वो दिन---
tag:openbooksonline.com,2017-09-25:5170231:BlogPost:884333
2017-09-25T16:00:00.000Z
नयना(आरती)कानिटकर
http://openbooksonline.com/profile/NayanaAratiKanitkar
<p><span>"तुम रातभर बैचेन थी। हो सके तो आज आराम करो। मैंने चाय बनाकर थर्मस में डाल दी हैं। मैं नाश्ता, खाना आफ़िस में ही ली लूँगा, तुम बस अपना बनवा लेना। आफ़िस से छुट्टी ले लो।" <br></br>पास तकिए पर रखे कागज को पढा और चूमकर सीने पर रख लिया। आफ़िस में इस एक दिन के अवकाश की लड़ाई लड़ी और जीती भी थी। <br></br></span><font>चाय का कप लेकर बालकनी में आई तो सहज ही प्लास्टिक की पन्नियाँ बीनती उन लड़कियों पर नजर गयी। उफ्फ, ये लोग क्या करती होंगी इन दिनों? कप हाथ में लिए-लिए ही झट नीचे आयी। उन्हें आवाज लगाकर अपने…</font></p>
<p><span>"तुम रातभर बैचेन थी। हो सके तो आज आराम करो। मैंने चाय बनाकर थर्मस में डाल दी हैं। मैं नाश्ता, खाना आफ़िस में ही ली लूँगा, तुम बस अपना बनवा लेना। आफ़िस से छुट्टी ले लो।" <br/>पास तकिए पर रखे कागज को पढा और चूमकर सीने पर रख लिया। आफ़िस में इस एक दिन के अवकाश की लड़ाई लड़ी और जीती भी थी। <br/></span><font>चाय का कप लेकर बालकनी में आई तो सहज ही प्लास्टिक की पन्नियाँ बीनती उन लड़कियों पर नजर गयी। उफ्फ, ये लोग क्या करती होंगी इन दिनों? कप हाथ में लिए-लिए ही झट नीचे आयी। उन्हें आवाज लगाकर अपने पास बुलाया " कितने साल की हो तुम लोग, महावारी आती है? जब आती है तब क्या करती हो?" <br/>पहले तो वे सकुचाई मगर उनमें से एक धीरे-धीरे खुल गयी। झोपडे में ही रहते है कभी राख या मिट्टी...जो उन्होंने बताया वो मेरे लिए "आँख खोलने वाली बात थी।" पैड इत्यादि की इतनी सुविधाओं में भी हम ऑफिस के कर्मचारी अपने लिए लड़कर क्या साबित करते है। नारी सशक्तिकरण बातें अब बेमानी लगने लगी थी.<br/><br/>मौलिक व अप्रकाशित</font></p>
"दो घडी का सुख"
tag:openbooksonline.com,2017-07-31:5170231:BlogPost:870709
2017-07-31T14:15:21.000Z
नयना(आरती)कानिटकर
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<p>उसने सिला गये बेसन को थाली में फैलाकर चूल्हे की गरम राख को थोडा सार कर उस पर रख दिया था ताकि पसीजन से आई बदबू खत्म हो जाए. आज पहली बार रमेश्या ने उसे ढाई सौ ग्राम तेल लाकर दिया था घर में. वरना तो वह अपनी सारी कमाई शराब में ही फूक देता था. वह भी काम से आते वक्त बीबी जी से दो प्याज माँगकर ले आई थी.</p>
<p>बाहर आसमान भी आज उसके घर में खुशी बरसाने के भाव मे था. चाँद का उजाला ना सही इस छोटे से सुख में घुमडते बादलों सा उसका मन झूम-झूम उठा था.</p>
<p></p>
<p>"आज ही तो तू आई थी मेरे जीवन में…</p>
<p>उसने सिला गये बेसन को थाली में फैलाकर चूल्हे की गरम राख को थोडा सार कर उस पर रख दिया था ताकि पसीजन से आई बदबू खत्म हो जाए. आज पहली बार रमेश्या ने उसे ढाई सौ ग्राम तेल लाकर दिया था घर में. वरना तो वह अपनी सारी कमाई शराब में ही फूक देता था. वह भी काम से आते वक्त बीबी जी से दो प्याज माँगकर ले आई थी.</p>
<p>बाहर आसमान भी आज उसके घर में खुशी बरसाने के भाव मे था. चाँद का उजाला ना सही इस छोटे से सुख में घुमडते बादलों सा उसका मन झूम-झूम उठा था.</p>
<p></p>
<p>"आज ही तो तू आई थी मेरे जीवन में और तूने मुझे संवार दिया, "अब से तेरे मन की" , कसम से अब कभी भी बोतल को हात ना लगाउँगा. उसने वादा किया था. मैं तेरे लिए चोली-कपडा लेकर आता हूँ , कुछ रुपये तू भी मिला दे इसमे. रुपये लेकर वह निकल गया था घर से.</p>
<p>वो पगली भी सब दुख भूल गई उसके दो मीठे बोल में . हाथ मूँह धोकर साफ़-सुथरे कपडे पहने. पहले दो-दो घूँट चाय बना बच्चो को पिलाई. प्याज काटकर पकौडॊ की तैयारी की. साग-रोटी बनाया. बच्चे बडे उमंग मे थे आज अपनी माँ का बदला रूप देखकर.</p>
<p>" अम्मा कुछ खास है क्या आज?"</p>
<p>"हा रे! तुम्हारा बापू आज एक वादा करके गया है मुझसे ."</p>
<p>बच्चो ने बस एक दूसरे को देखा और खा-पीकर सो गये.</p>
<p>वह इंतजार में थी कि रमेश आए तो संग खाए. तभी गरम-गरम <font color="#4B4F56" face=""helvetica" , "arial" , sans-serif">पकौड़ीयां</font> उतार लेगी. . बाहर बादल चमकने के साथ-साथ जोर-जोर से गडगडा कर बरस रहे थे. ठंडी हवा की मीठी छुअन से उसकी आँखे उनिंदा हो चली थी कि जोर जोर से दरवाजे की खडखडाहट से चेतन हुई</p>
<p></p>
<p>" कहाँ मर गई हरामजादी...हाथ में बोतल लिए ही ... पकौडे...चल जल्दी ...उतार... ."</p>
<p>रमिया ने उसके हाथ से बोतल छीन उसके ही सर पर दे मारी. वो औंधा गिर पडा. नशे ने उसे वैसे भी कमजोर कर दिया था.</p>
<p>अब बादल अंदर भी बरसने लगे. बस! पानी खारा था.</p>
<p></p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित</p>
एक पहलू ये भी---
tag:openbooksonline.com,2017-06-09:5170231:BlogPost:861475
2017-06-09T17:15:06.000Z
नयना(आरती)कानिटकर
http://openbooksonline.com/profile/NayanaAratiKanitkar
<p><span>"</span><span class="goog-spellcheck-word" id=":dh.1">अरे</span><span>! सुनंदा सुनो भाई कब से फोन पर बातें कर रही हो. चलो अब खाना </span><span class="goog-spellcheck-word" id=":dh.2">लगाओ</span><span> जी. </span><span class="goog-spellcheck-word" id=":dh.3">बडी</span><span> भूख लगी है. क्या इतनी लंबी बातें किए जा रही हो." </span><br></br><br></br><span>"जी! "</span><span class="goog-spellcheck-word" id=":dh.5">अंकुर"</span><span> से. बता रहा आज किसे बिज़नेस …</span></p>
<p><span>"</span><span class="goog-spellcheck-word" id=":dh.1">अरे</span><span>! सुनंदा सुनो भाई कब से फोन पर बातें कर रही हो. चलो अब खाना </span><span class="goog-spellcheck-word" id=":dh.2">लगाओ</span><span> जी. </span><span class="goog-spellcheck-word" id=":dh.3">बडी</span><span> भूख लगी है. क्या इतनी लंबी बातें किए जा रही हो." </span><br/><br/><span>"जी! "</span><span class="goog-spellcheck-word" id=":dh.5">अंकुर"</span><span> से. बता रहा आज किसे बिज़नेस </span><span class="goog-spellcheck-word" id=":dh.7">मीट</span><span> की डिनर पार्टी पर जाना है. रात देर हो जाएँगी , तो अभी काल कर लिया."</span><br/><br/><span>" वो अब क्या बच्चा है. कितनी हिदायत दे रही थी तुम उसे क्यों </span><span class="goog-spellcheck-word" id=":dh.9">पिछे</span><span> </span><span class="goog-spellcheck-word" id=":dh.10">पडी</span><span> रहती हो उसके . वो अब </span><span class="goog-spellcheck-word" id=":dh.11">कमाता</span><span> पुत्र है तुम्हारा. अच्छा खासा नौजवान. अब उसके दिन उपभोग करने के दिन हैं." </span><span class="goog-spellcheck-word" id=":dh.12">सुदेश</span><span> थोड़ा </span><span class="goog-spellcheck-word" id=":dh.14">खीजते</span><span> हुए</span><br/><br/><span>" तो! क्या </span><span class="goog-spellcheck-word" id=":dh.15">बुराईयो</span><span> से आगाह कराना भी..." </span><br/><br/><span>" ऑफ़िस के सब लोग उसे </span><span class="goog-spellcheck-word" id=":dh.17">मम्माज</span><span> बाय कहते होगें". </span><br/><br/><span>" तो कहते रहे . मुझे जो गलत लगेगा मैं उसे और आपको </span><span class="goog-spellcheck-word" id=":dh.19">टोकती</span><span> रहूँगी. मानना ना मानना आपकी </span><span class="goog-spellcheck-word" id=":dh.20">आपनी</span><span>-अपनी </span><span class="goog-spellcheck-word" id=":dh.21">मर्जी</span><span>." सुनंदा भी अब थोड़ा उत्तेजित होकर बोली</span><br/><br/><span>" चलो अब भोजन </span><span class="goog-spellcheck-word" id=":dh.23">लगाओ</span><span> और </span><span class="goog-spellcheck-word" id=":dh.24">हा</span><span>! वो "</span><span class="goog-spellcheck-word" id=":dh.25">धरा"</span><span> बेटी का फोन आया या नहीं. बहुत रात हो गई है अब तक क्या कर रही है ऑफ़िस में. उससे कहो हमारे घर के कुछ संस्कार है उन्हे उसे मानना ही हैं. सात बजे तक घर आ जाया करे." </span><span class="goog-spellcheck-word" id=":dh.27">सुदेश</span><span> अब तनातनी पर उतर आए थे.</span><br/><br/><span>ओह! तो </span><span class="goog-spellcheck-word" id=":dh.28">धरा</span><span> तो आपको </span><span class="goog-spellcheck-word" id=":dh.29">उर्वरा</span><span> चाहिए तो फिर बीज का </span><span class="goog-spellcheck-word" id=":dh.30">निरोगी</span><span> होना ज़रूरी नहीं है क्या?<br/><br/></span></p>
<p><span>मौलिक व अप्रकाशित</span></p>
संक्रमण--लघुकथा
tag:openbooksonline.com,2016-08-28:5170231:BlogPost:796008
2016-08-28T09:34:53.000Z
नयना(आरती)कानिटकर
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<p><span>" </span><span class="goog-spellcheck-word" id=":11.1">हैलो</span><span>.." </span><span class="goog-spellcheck-word" id=":11.2">ट्रीन</span><span>-</span><span class="goog-spellcheck-word" id=":11.3">ट्रीन</span><span> की घंटी </span><span class="goog-spellcheck-word" id=":11.4">बजते</span><span> ही </span><span class="goog-spellcheck-word" id=":11.5">स्नेहा</span><span> फोन</span><span> उठाते हुए बोली</span><br></br><span>" …</span></p>
<p><span>" </span><span class="goog-spellcheck-word" id=":11.1">हैलो</span><span>.." </span><span class="goog-spellcheck-word" id=":11.2">ट्रीन</span><span>-</span><span class="goog-spellcheck-word" id=":11.3">ट्रीन</span><span> की घंटी </span><span class="goog-spellcheck-word" id=":11.4">बजते</span><span> ही </span><span class="goog-spellcheck-word" id=":11.5">स्नेहा</span><span> फोन</span><span> उठाते हुए बोली</span><br/><span>" </span><span class="goog-spellcheck-word" id=":11.6">हैलो</span><span> स्नेह! कैसी हो. बहुत व्यस्त हो क्या." उधर से </span><span class="goog-spellcheck-word" id=":11.8">बडे</span><span> </span><span class="goog-spellcheck-word" id=":11.9">भैया</span><span> की </span><span class="goog-spellcheck-word" id=":11.10">आवाज</span><span> थी.</span><br/><span>" </span><span class="goog-spellcheck-word" id=":11.11">अरे</span><span>! </span><span class="goog-spellcheck-word" id=":11.12">भैया</span><span> व्यस्त ही नही </span><span class="goog-spellcheck-word" id=":11.13">अस्तव्यस्त</span><span> भी हूँ."</span><br/><span>" क्यो क्या हुआ..."</span><br/><span>"क्या बताऊँ समझ नही पा रही. तुमने जो रिश्ता सुझाया था ना अपनी भांजी ले लिए कहती है </span><span class="goog-spellcheck-word" id=":11.15">प्रोफ़ाइल</span><span> तो अच्छा है. मगर पाँच साल </span><span class="goog-spellcheck-word" id=":11.16">बडा</span><span> है वो मेरे सामने अंकल लगेगा. आजकल तो एक साल मे ही </span><span class="goog-spellcheck-word" id=":11.17">गेनेरेशन</span><span> </span><span class="goog-spellcheck-word" id=":11.18">गेप</span><span> आ जाता है माँ. अब तुम ही </span><span class="goog-spellcheck-word" id=":11.19">बताओ</span><span> </span><span class="goog-spellcheck-word" id=":11.20">मैं</span><span> तो थक गई हूँ समझा कर भी और..."</span><br/><span>" बहना! इधर भी यही हाल है. </span><span class="goog-spellcheck-word" id=":11.21">सोमेश</span><span> को कोई भी </span><span class="goog-spellcheck-word" id=":11.22">लड़की</span><span> </span><span class="goog-spellcheck-word" id=":11.23">दिखाओ</span><span> कहता है पापा! मुझसे पाँच- छह साल छोटी हो वरना शादी के </span><span class="goog-spellcheck-word" id=":11.24">एकाध</span><span> साल मे ही वो </span><span class="goog-spellcheck-word" id=":11.25">आंटी</span><span> दिखने लगेगी."</span><br/><span>"सच! बहुत मुश्किल है </span><span class="goog-spellcheck-word" id=":11.27">दादू</span><span> इस </span><span class="goog-spellcheck-word" id=":11.28">पीढी</span><span> को समझाना."</span><br/><span>"कोई ना छोटी संक्रमण काल है ये हमारी </span><span class="goog-spellcheck-word" id=":11.29">पीढी</span><span> का."</span><br/><span>ना तो पुराना </span><span class="goog-spellcheck-word" id=":11.30">सहेजा</span><span> जा रहा और ना ही नई </span><span class="goog-spellcheck-word" id=":11.31">पीढी</span><span> के साथ </span><span class="goog-spellcheck-word" id=":11.32">सामंजस्य</span><span> बैठ रहा.</span><br/><br/><span>मौलिक एंव अप्रकाशित</span><br/><br/></p>
लूली---लघुकथा
tag:openbooksonline.com,2016-08-23:5170231:BlogPost:794466
2016-08-23T16:30:00.000Z
नयना(आरती)कानिटकर
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<p> पास ही की झुग्गी के बच्चे और यहाँ तक की कुत्ते भी अचानक से उस और <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.1">दौड़</span> <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.2">पडे</span> .<br></br> "अ<span class="goog-spellcheck-word" id=":11.3">रे</span> मुन्ना! वो देख जा जल्दी बहुत सारा खाना आया दिखता है." <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.4">लूली</span> ने <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.5">जोर</span> देकर अपने भाई से कहा और …</p>
<p> पास ही की झुग्गी के बच्चे और यहाँ तक की कुत्ते भी अचानक से उस और <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.1">दौड़</span> <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.2">पडे</span> .<br/> "अ<span class="goog-spellcheck-word" id=":11.3">रे</span> मुन्ना! वो देख जा जल्दी बहुत सारा खाना आया दिखता है." <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.4">लूली</span> ने <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.5">जोर</span> देकर अपने भाई से कहा और <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.6">लंगडाते</span> हुए वह भी <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.7">दौडने</span> का प्रयास करने लगी.<br/> जिसके हाथ में जो आया लेकर भागने लगे थे की लू<span class="goog-spellcheck-word" id=":11.8">ली</span> के हाथ में आई रोटी का <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.9">टुकड़ा</span> एक कुत्ते के <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.10">पिल्ले</span> ने छिनकर दौड लगा दी.<br/> <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.11">खचाक</span>!!! की <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.12">आवाज़</span> के साथ <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.13">गाड़ी</span> रुकी.<br/> दो मिनट मे ही <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.14">कुई</span>!<span class="goog-spellcheck-word" id=":11.15">कुई</span>!<span class="goog-spellcheck-word" id=":11.16">कीआवाज</span> बंद हो गई .<br/> <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.17">डीजे</span> का शोर, उस पर <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.18">नाचती</span> नौजवान <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.19">पीढी</span>. लक-<span class="goog-spellcheck-word" id=":11.20">दक</span> <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.21">कपड़ों</span> मे <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.22">सजे</span> एक दूसरे से औपचारिकता निभाते मेहमान . दूल्हा-<span class="goog-spellcheck-word" id=":11.23">दुल्हन</span> की आठ <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.24">इंची</span> मुस्कान <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.25">आशीर्वाद</span> लेने मे मस्त. <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.26">पांडाल</span> की <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.27">गहमा</span>-<span class="goog-spellcheck-word" id=":11.28">गहमी</span> में किसी का ध्यान इस ओर नही था.</p>
<p><span class="goog-spellcheck-word" id=":11.29">लूली</span> मुन्ना का हाथ <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.30">थामे</span> <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.31">लथपथ</span> <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.32">पडे</span> <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.33">पिल्ले</span> के मुँह मे <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.34">दबे</span> रोटी के <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.35">टुकड़े</span> को <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.36">निहार</span> रही थी.<br/> <br/> मौलिक <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.37">एंव</span> <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.38">अप्रकाशित</span><br/></p>
"विसर्जन" लघुकथा
tag:openbooksonline.com,2016-07-23:5170231:BlogPost:786808
2016-07-23T10:00:00.000Z
नयना(आरती)कानिटकर
http://openbooksonline.com/profile/NayanaAratiKanitkar
<p>अखबार हाथ में लेकर सृजन लगभग दौड़ते हुए घर मे <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.2">घुसा</span><font color="#1D2129" face=""helvetica" , "arial" , sans-serif">।</font></p>
<p>"<span class="goog-spellcheck-word" id=":11.3">मम्मा</span>!, पापा! ये देखो ये तो वही है ने जो हमारे <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.4">गणपति</span> <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.5">बप्पा</span> को..."…</p>
<p></p>
<p>अखबार हाथ में लेकर सृजन लगभग दौड़ते हुए घर मे <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.2">घुसा</span><font color="#1D2129" face=""helvetica" , "arial" , sans-serif">।</font></p>
<p>"<span class="goog-spellcheck-word" id=":11.3">मम्मा</span>!, पापा! ये देखो ये तो वही है ने जो हमारे <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.4">गणपति</span> <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.5">बप्पा</span> को..."</p>
<p><span class="goog-spellcheck-word" id=":11.6">सुदेश</span> ने उसके हाथ से <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.7">पेपर</span> <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.8">झपटकर</span> <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.9">टेबल</span> पर <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.10">फ़ैलाया</span><font color="#1D2129" face=""helvetica" , "arial" , sans-serif">।</font></p>
<p>"देखो दिशा! ये तो वही लड़का है ना, इसका नाम तो रहमान लिखा है इन्होंने तो क्या ये गैर... <font color="#1D2129" face=""helvetica" , "arial" , sans-serif">।</font>"</p>
<p><span class="goog-spellcheck-word" id=":11.12">अरे</span> <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.13">हा</span>! कहते वो भी समाचार पत्र पर झुक गई. सब कुछ <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.14">चल चित्र</span> सा उसकी आँखो से <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.15">गुज़र</span> गया<font color="#1D2129" face=""helvetica" , "arial" , sans-serif">।</font></p>
<p>यही कोई १४-१५ बरस का <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.16">दूबला</span>-<span class="goog-spellcheck-word" id=":11.17">पतला</span> सा किशोर होगा वह. उसका असली नाम तो नहीं जानते थे पर उसके रूप-रंग को देखकर सब उसे <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.19">कल्लू</span> के नाम से <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.20">पुकारते</span> थे. वह हमेशा ही उन्हें <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.21">बडे</span> तालाब के किनारे मिल जाया करता था. अंग्रेजी नही जानता था फ़िर भी विदेशी <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.22">सैलानियों</span> का दिल जीतकर उन्हे नौका विहार करा देता था. स्वभाव से <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.23">खुश</span> दिल था किंतु उसकी आँखो से <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.24">लाचारी</span> झलकती थी. उसका बाप <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.25">बीमार</span> रहता था. वो ही सहारा था घर का शायद इसलिए वो तालाब की परिक्रमा लगाया करता था.</p>
<p><span class="goog-spellcheck-word" id=":11.26">बप्पा</span> के <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.27">विसर्जन</span> के दिन तो भाग-भाग कर सबसे विनय करता कि लाओ <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.28">मैं</span> <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.29">बप्पा</span> को ठीक <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.30">मध्य भाग</span> मे <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.31">विसर्जित</span> कर दूँगा.आप चाहे अपनी <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.32">दक्षिणा</span> बाद मे दे देना.</p>
<p>तालाब के मध्य भाग मे <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.33">जोर</span>-<span class="goog-spellcheck-word" id=":11.34">जोर</span> से भजन गाकर <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.35">बप्पा</span> को प्रणाम कर उनको जल <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.36">समाधि</span> दिया करता था. इसी <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.37">बिच</span> यदि <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.38">अजान</span> सुनाई देती तो आसमान की ओर <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.39">आँखें</span> उठा कर अपना हाथ <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.40">हृदय</span> से लगा लेता.</p>
<p> कुछ कायर,<span class="goog-spellcheck-word" id=":11.41">भिरुओ</span> को शायद ये बात <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.42">अखर</span> गई थी. एक पवित्र परिसर मे <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.43">छुरा</span> <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.44">घोपकर</span> उसे मार दिया गया था.</p>
<p> उसके मृत <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.45">देह</span> से उसकी वही <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.46">लाचार</span> दृष्टि दिखाई दे रही थी कि अब मेरे <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.47">बप्पा</span> को कौन <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.48">सिराएगा</span> (immerse) .</p>
<p>लगा <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.49">बप्पा</span> भी पास मे ही बैठे है अपने भक्त का <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.50">रक्तरंजित</span> हाथ लेकर मानो कह रहे हो...<span class="goog-spellcheck-word" id=":11.51">विसर्जन</span> तो अब भी होगा. दूसरे बच्चे ये काम करेंगे,<span class="goog-spellcheck-word" id=":11.52">किंतु</span></p>
<p>राम-राम कहने वाला रहमान अब शायद ही कोई हो.</p>
<p></p>
<p></p>
<p>*** विवेक <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.53">सावरीकर</span> "<span class="goog-spellcheck-word" id=":11.54">मृदुल</span>" की मराठी कविता "तो <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.55">पोरगा</span>" से प्रेरित होकर. उनकी अनुमति से<br/> <br/> मौलिक एवं अप्रकाशित</p>
<p></p>
<p></p>
"मौन"कुर्सी मायावी है
tag:openbooksonline.com,2016-07-21:5170231:BlogPost:785661
2016-07-21T15:58:18.000Z
नयना(आरती)कानिटकर
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<p><span>रणवीर सिंह और अशोक </span><span class="goog-spellcheck-word" id=":11.1">कालकर</span><span> दोनो ने गुड़गाँव मे एक साथ एक </span><span class="goog-spellcheck-word" id=":11.3">मल्टीनेशनल</span><span> कंपनी ने </span><span class="goog-spellcheck-word" id=":11.4">ज्वाइन</span><span> किया था<span> ।</span> दो भिन्न संस्कृति, मातृभाषा के वे तीसरी तरह की संस्कृति मे रचने-बसने का प्रयत्न करने लगे थे<span>। </span>धीरे-धीरे आपसी मित्रता गहरा गई. ऑफ़िस के …</span></p>
<p><span>रणवीर सिंह और अशोक </span><span class="goog-spellcheck-word" id=":11.1">कालकर</span><span> दोनो ने गुड़गाँव मे एक साथ एक </span><span class="goog-spellcheck-word" id=":11.3">मल्टीनेशनल</span><span> कंपनी ने </span><span class="goog-spellcheck-word" id=":11.4">ज्वाइन</span><span> किया था<span> ।</span> दो भिन्न संस्कृति, मातृभाषा के वे तीसरी तरह की संस्कृति मे रचने-बसने का प्रयत्न करने लगे थे<span>। </span>धीरे-धीरे आपसी मित्रता गहरा गई. ऑफ़िस के </span><span class="goog-spellcheck-word" id=":11.7">केंटिन</span><span> मे चाय </span><span class="goog-spellcheck-word" id=":11.8">पीते</span><span> -</span><span class="goog-spellcheck-word" id=":11.9">पीते</span><span> रणवीर बोला--</span><br/><br/><span>"यार अशोक! ये बता तुम्हारे प्रांत के नेता लोग </span><span class="goog-spellcheck-word" id=":11.10">बडे</span><span> अजीब है, स्थानीय लोगो को काम के अवसर खत्म ना हो इसलिए आरक्षण की मांग करते है फ़िर भी तुम अपना प्रांत छोड़कर यहाँ काम पर आए हो<span> ।</span>"</span><br/><br/></p>
<div>अशोक कुछ ना बोला, चुपचाप चाय का <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.13">घूँट</span> <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.14">भरता</span> रहा<span> ।</span> फिर अचानक बोल उठा..<br/><br/>" यार रणवीर! ये <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.15">बताओ</span> तुम्हारे प्रांत के बारे मे भी तो यह कहा जाता है कि तुम लोग <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.16">बडे</span> प्रतिभाशाली और बुद्धिमान होते है<span> ।</span>ज्यादातर <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.17">ब्युरोक्रेट्स</span> भी वही..."<br/> </div>
<div>रणवीर के पास भी कुछ जवाब नहीं था<span> ।</span><br/>बस मौन...<br/><br/> दोनो एक दूसरे के गले मे हाथ डाले चल <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.18">पडे</span> और अपनी-अपनी कुर्सी पर बैठ काम मे <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.19">मग्न</span> हो गये<span> ।<br/><br/>मौलिक एवं प्रकाशित</span></div>
रिश्ते की जद्दोजहद
tag:openbooksonline.com,2016-07-15:5170231:BlogPost:784426
2016-07-15T14:30:00.000Z
नयना(आरती)कानिटकर
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<p>शादी मे सारा कुछ अच्छे से निपट गया था<span>।</span>सभी <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.48">मेहमानों</span> को वापसी उपहार, <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.50">मिठाईयो</span> के डिब्बे देकर <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.51">रुखसत</span> किया गया था<span>। </span>घर को भी फ़िर से <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.52">सवार कर</span> पटरी पर ले आई थी कि अचानक एक <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.53">सुटकेस</span> और …</p>
<p>शादी मे सारा कुछ अच्छे से निपट गया था<span>।</span>सभी <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.48">मेहमानों</span> को वापसी उपहार, <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.50">मिठाईयो</span> के डिब्बे देकर <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.51">रुखसत</span> किया गया था<span>। </span>घर को भी फ़िर से <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.52">सवार कर</span> पटरी पर ले आई थी कि अचानक एक <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.53">सुटकेस</span> और <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.54">पर्स</span> के साथ कमरे से आता देख <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.55">निमेश</span> ने पूछा था<br/> "<span class="goog-spellcheck-word" id=":11.56">अरे</span> <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.57">निशी</span>! यू अचानक कहाँ के लिए निकल <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.58">पडी</span><span>। </span>कुछ बताया भी नहीं पहले " <br/> उसकी ओर देखे बिना उसने बस इतना कहा था <span>। </span>" मैने अपने सारे कर्तव्य पूर्ण कर दिए है. अब मेरा यहाँ कोई काम नहीं है<span>।</span> अब <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.59">मैं</span> केवल <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.60">महरी</span> या <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.61">मिसराईन</span> बनकर नही रह सकती<span>।</span> मैने अपने लिए नई जगह तलाश ली है<span>। </span>बस वहाँ व्यवस्थित होने के बाद तुम्हें खबर कर <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.62">दूँगी</span><span>।</span>"<br/> वे उसे जाते देखते रहे <span>। </span>उन्होने एक बार भी कोशिश नही की उसे रोकने की..<br/>बाद में खबर की थी कि वह मुबंई के एक महिला <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.64">वृद्धाश्रम</span> मे रहकर उसकी देखरेख का काम <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.65">सम्हालति </span> है<span>। </span>वही उसके लिए भी रहने की व्यवस्था है<span>। </span>पता <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.66">वग़ैरह</span> कुछ नही बताया बस एक फोन न. <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.67">ज़रुर</span> नोट करा दिया इस हिदायत के साथ कि यहाँ आने की कोई <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.68">जहमत</span> नहीं उठाएगा<span class="goog-spellcheck-word" id=":11.69"><span>। </span>ब्याहता</span> बेटी <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.70">नुपूर</span> तक की कोई खबर कभी नहीं ली थी उन्होने, रिश्तों पर <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.72">ताला</span> डाल दिया था<span>। </span>जिस पर अब जंग <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.73">चढ़</span> चुका था<span>। </span><br/> <br/> <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.74">वृद्धाश्रम</span> के सालाना <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.75">जलसे</span> मे अचानक पहली <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.76">पंक्ति</span> विशेष <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.77">अतिथि</span> के रुप मे बैठे <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.78">जोडे</span> को देख उसकी <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.79">साँसे</span> <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.80">धोकनी</span> की तरह चलने लगी.कही ये बेटी...<br/> तभी <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.81">नूपुर</span> ने उन्हें देखते ही <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.82">दौडकर</span> उन्हें गले लगा लिया तो उसका <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.83">बढा</span> पेट उनके पेट से टकरा गया.आँखो से नदी की धार बह चली. अब एक <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.84">नवांकुर</span> को जो <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.85">सिंचना</span> था.<br/></p>
<p><span> एक रिश्ता खत्म होने से बाकी रिश्तों पर <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.86">काटा</span> नहीं <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.87">फेरा</span> जा सकता। </span><br/> <br/> <br/> मौलिक एवं अप्रकाशित<br/></p>
"सुराख वाले छप्पर"
tag:openbooksonline.com,2016-07-05:5170231:BlogPost:782311
2016-07-05T13:30:00.000Z
नयना(आरती)कानिटकर
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<p>ऑफ़िस से आकर सब काम <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.2">निपटाते</span> -<span class="goog-spellcheck-word" id=":11.3">निपटाते</span> थक कर चूर हो गई थी वह. बस! बर्तन <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.4">जमा कर</span> दूध मे <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.5">जामन</span> लगाना शेष था. उसके हाथ तेजी से <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.6">प्लेटफार्म</span> साफ़ कर रहे थे.<span class="goog-spellcheck-word" id=":11.7">पसीने</span> से …</p>
<p>ऑफ़िस से आकर सब काम <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.2">निपटाते</span> -<span class="goog-spellcheck-word" id=":11.3">निपटाते</span> थक कर चूर हो गई थी वह. बस! बर्तन <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.4">जमा कर</span> दूध मे <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.5">जामन</span> लगाना शेष था. उसके हाथ तेजी से <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.6">प्लेटफार्म</span> साफ़ कर रहे थे.<span class="goog-spellcheck-word" id=":11.7">पसीने</span> से <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.8">तरबतर</span> पीठ पर <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.9">पड़ती</span> उसकी नजर भी उसे <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.10">चुभने</span> लगी थी.<br/> " माँ! रीना-<span class="goog-spellcheck-word" id=":11.11">टीनू</span> का <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.12">समवेत</span> स्वर <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.13">गूँजा</span> था" किंतु उसने उनकी बात सुने बि<span class="goog-spellcheck-word" id=":11.14">ना</span> ही <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.15">चिल्ला कर</span> कहा था<br/> "जब देखो तब माँ-माँ <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.16">दोने</span> <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.17">बडे</span> हो गये हो अपने-अपने काम करना कब <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.18">सिखोगे</span>. जाओ खुद अपना बिस्तर <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.19">लगाओ</span> और अपना सारा <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.20">स्टडी</span> <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.21">टेबल</span> भी <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.22">समेट</span> के रखना." <br/> वो शरीर को बस गद्दे पर <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.23">झोंकना</span> चाहती थी की <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.24">रोज</span> की <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.25">दिनचर्या</span> का एक और काम उसने निपटा दिया था वो पीठ <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.26">घुमाकर</span> सो भी गया था. क्या सारे कर्तव्य बस उसी के है. अब उसकी आँखो से नींद दूर जा चुकी थी. <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.27">बेचारे</span> बच्चे, सारा <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.28">क्लेश</span> उन पर <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.29">उड़ेल </span>दिया कितने मासूम और <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.30">छोटे</span> है अभी. उसकी <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.31">नज़रें</span> <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.32">छत</span> पर टिक गई जहाँ उसे बस सुराख ही सुराख नजर आ रहे थे. सारे आँसू तो पहले ही सूख चुके थे.</p>
<p> उसे अपनी दुखती <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.34">गर्दन</span> की याद आ गई. बाम की <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.35">शीशी</span> <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.36">ढूँढते</span>-<span class="goog-spellcheck-word" id=":11.37">ढूँढते</span> बच्चों के कमरे मे गई. दोनो बस <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.38">बीना</span> कुछ <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.39">ओढे</span> ऐसे ही सो गये थे. उनकी <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.40">मासूमियत</span> पर <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.41">तरस</span> आ गया . उन्हें चादर <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.42">ओढाने </span> <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.43">झुकी</span> ही थी कि हलचल से रीना जाग गई .<span class="goog-spellcheck-word" id=":11.44">टीनू</span> ने बंद <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.45">मुट्ठी</span> <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.46">खोलते</span> उसने <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.47">झंडू</span> बाम की <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.48">शीशी</span> आगे <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.49">बढाते</span> हुए कहा ...</p>
<p>"<span class="goog-spellcheck-word" id=":11.50">मम्मा</span> आपकी <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.51">नेक</span> मे <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.52">पेन</span> है ना, मैने देख लिया था काम करते-करते आप बार-बार दबा रही थी. <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.53">मै</span> आया था आपको देने पर आप तब तक अपने कमरे मे जा <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.54">चुकि</span> थी. "<br/> दोनो <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.55">बच्चो</span> के बाम <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.56">मलते</span> कोमल <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.57">हाथो</span> के <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.58">स्पर्श</span> से वह अपने <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.59">अश्रु</span> नहीं रोक पाई, इसका मतलब वह रोना नहीं भुली थी. <br/> दोनो को <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.60">बाहो</span> में भर कर <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.62">सोते</span> हुए <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.63">डबडबाई</span> <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.64">आँखे</span> से भी अब <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.65">छप्पर</span> उसे साफ़ नजर आ रहा था.<br/> <br/> मौलिक एंव अप्रकाशित</p>
केक्टस मे फूल
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2016-03-17T18:00:00.000Z
नयना(आरती)कानिटकर
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<div>पड़ोस के गुप्ता <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.2">आंटी</span> के घर से आती <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.3">तेज</span> आवाज़ से तन्मय के कदम अचानक <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.5">बालकनी</span> मे <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.6">ठिठक</span> गये<span>। </span><span class="goog-spellcheck-word" id=":11.7">अरे</span>! ये आवाज़ तो <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.9">सौम्या</span> की है<span>।</span> …</div>
<div>पड़ोस के गुप्ता <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.2">आंटी</span> के घर से आती <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.3">तेज</span> आवाज़ से तन्मय के कदम अचानक <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.5">बालकनी</span> मे <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.6">ठिठक</span> गये<span>। </span><span class="goog-spellcheck-word" id=":11.7">अरे</span>! ये आवाज़ तो <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.9">सौम्या</span> की है<span>।</span> <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.10">यथा</span> नाम तथा गुण वाली <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.11">सौम्या</span> को उसमे हरदम बस घर के कामों मे ही <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.12">मगन</span> देखा था या फ़िर चुपचाप कॉलेज जाते हुए<span>। </span> हरदम उनका एक <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.14">जुमला</span> <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.15">जबान</span> पर होता काम ना करेगी तो ससुराल वाले <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.16">लात</span> मार बाहर कर देंगे<span>। </span> वो भी बस चुपचाप क्यो <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.18">सहती</span> समझ ना पाया था और फ़िर वह ब्याह कर चली गई थी शहर छोड़कर...<br/></div>
<div>"माँ! समझती क्यो नहीं हो <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.21">भाभी</span> पेट से है उनसे इतने भारी-भारी काम ..."<br/> "सुन <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.22">सौम्या</span>! अब <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.23">तुझे</span> इस घर मे बोलने का कोई हक नहीं है. जो भी कहना सुनना है... और अब <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.24">भाभी</span> के रहते <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.25">तुझे</span> कोई काम को छूने की जरुरत नही है<span>। </span> वैसे भी वो तेरी <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.27">परकटी</span> आधुनिक सास कुछ काम ना करती होगी<span>। </span>सारे दिन <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.28">पिसती</span> होगी तुम <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.29">कोल्हू</span> सी<span>। </span>"<br/> "बस करो माँ! कई दिनो से <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.30">सौम्या</span> का दबा आवेश बाहर निकल आया था<span>। </span> जिसे तुम <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.31">परकटी</span> कह रही हो ना वो लाख गुना बेहतर है तुमसे<span>। </span> समझती है मेरे मन को भी<span>। </span> पुरी आज़ादी है मुझे <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.33">वहाँ</span> काम के साथ-साथ अपने शौक पूरे करने की और... ना ही भाई की तरह तुम्हारे <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.35">दामाद</span> को उन्होने मुट्ठी मे कर रखा है<span>। </span>"<br/> "माँ!आखिर एक औरत ही औरत को कब <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.37">समझेगी<span>। </span></span>"<br/> पड़ोस के <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.39">आँगन</span> के <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.40">केक्टस</span> मे आज फूल <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.41">खिल</span> <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.42">आये</span> थे और तन्मय के दिल मे <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.43">ठंडक<span>। </span><br/> <br/> मौलिक एंव अप्रकाशित</span></div>
"बदला"
tag:openbooksonline.com,2015-12-10:5170231:BlogPost:722459
2015-12-10T03:56:30.000Z
नयना(आरती)कानिटकर
http://openbooksonline.com/profile/NayanaAratiKanitkar
<p>पुलिस चौकी को कार्यक्रम स्थल मे बदल दिया गया है , सामने लोगो का मजमा लगा हुआ है | उसे देखने के लिये सब बडे आतुर है । आज वो आत्मसमर्पण करने वाली है प्रदेश के सी.एम के सामने । तभी पीली बत्ती की गाड़ी भांय-भांय कर कार्यक्रम स्थल मे प्रविष्ट होती है । तथाकथित सारे उच्चाधिकारी उन्हे घेरे खड़े है ।</p>
<p>कडे सुरक्षा कवच के बीच अंतत वह अपनी बंदूक उनके चरणों मे रख आत्मसमर्पण कर देती है । अन्य औपचारिकता के बाद कार्यक्रम समाप्ती की घोषणा हो जाती है ।</p>
<p>सभी समाचार पत्रों के कुछ तथाकथित …</p>
<p>पुलिस चौकी को कार्यक्रम स्थल मे बदल दिया गया है , सामने लोगो का मजमा लगा हुआ है | उसे देखने के लिये सब बडे आतुर है । आज वो आत्मसमर्पण करने वाली है प्रदेश के सी.एम के सामने । तभी पीली बत्ती की गाड़ी भांय-भांय कर कार्यक्रम स्थल मे प्रविष्ट होती है । तथाकथित सारे उच्चाधिकारी उन्हे घेरे खड़े है ।</p>
<p>कडे सुरक्षा कवच के बीच अंतत वह अपनी बंदूक उनके चरणों मे रख आत्मसमर्पण कर देती है । अन्य औपचारिकता के बाद कार्यक्रम समाप्ती की घोषणा हो जाती है ।</p>
<p>सभी समाचार पत्रों के कुछ तथाकथित पत्रकार उसे घेर लेते है ।</p>
<p>पत्रकार--"महिला होकर भी बंदूक थामने की वजह । "</p>
<p>" वर्ग विशेष से सामूहिक बलात्कार और शोषण के खिलाफ़ बदला । "</p>
<p>"मगर आप ऐसे वर्ग से आती है जो मजदूरी कर पेट पालता है । इतने बडे नर संहार की जगह गाँव छोड उनके चंगुल से बचा जा सकता था ।</p>
<p>"शर्म करो तथाकथित पढे-लिखे लोगो-- कब तक और कहाँ तक भागती ,ये तो मेरा पलायन हो जाता अपने अधिकारों के खिलाफ़ आवाज़ उठाने का । "</p>
<p>"तभी दूसरा--- ये काम तो सरकार का था । शिकायत दर्ज की जा सकती थी उनके खिलाफ़ । बंदूक उठाना तो अपराध हुआ । "</p>
<p> "लोगो के सुरक्षा की ज़िम्मेदारी तो सरकार पर है । अपराध तो सरकार कर रही है ऐसे लोगो को संरक्षण देकर वोट के ख़ातिर ।</p>
<p>"तो अब आगे क्या मुफ़्त की रोटी तोड़कर----- । "</p>
<p>"नही-नही!!-अब निकम्मो के खिलाफ़ सरकार मे जाकर बदला लूंगी । ."</p>
गुजारिश रिश्ते की
tag:openbooksonline.com,2015-12-08:5170231:BlogPost:722183
2015-12-08T07:30:00.000Z
नयना(आरती)कानिटकर
http://openbooksonline.com/profile/NayanaAratiKanitkar
<p>कैलेंडर का पन्ना पलटते ही उसकी नजर तारीख़ पर थम गई। विवाह का दिन उसके आँखो के आगे चलचित्र सा घूम रहा था।.सुशिक्षित खुबसुरत नेहा और आकर्षक व्यक्तित्व के मालिक नीरज की जोडी को देख सब सिर्फ़ वाह-वाह करते रह गये थे.वक्त तेजी से गुज़र रहा था।.<br></br>जल्द ही नेहा की झोली मे प्यारे से दो जुडवा बच्चे बेटा नीरव और बेटी निशीता के रुप मे आ गये।.तभी --<br></br>वक्त ने अचानक करवट बदली बच्चों के पालन-पोषण मे व्यस्त नेहा खुद पर व रिश्ते पर इतना ध्यान ना दे पाई । उसके के हाथ से नीरज मुट्ठी से रेत की तरह फ़िसलता…</p>
<p>कैलेंडर का पन्ना पलटते ही उसकी नजर तारीख़ पर थम गई। विवाह का दिन उसके आँखो के आगे चलचित्र सा घूम रहा था।.सुशिक्षित खुबसुरत नेहा और आकर्षक व्यक्तित्व के मालिक नीरज की जोडी को देख सब सिर्फ़ वाह-वाह करते रह गये थे.वक्त तेजी से गुज़र रहा था।.<br/>जल्द ही नेहा की झोली मे प्यारे से दो जुडवा बच्चे बेटा नीरव और बेटी निशीता के रुप मे आ गये।.तभी --<br/>वक्त ने अचानक करवट बदली बच्चों के पालन-पोषण मे व्यस्त नेहा खुद पर व रिश्ते पर इतना ध्यान ना दे पाई । उसके के हाथ से नीरज मुट्ठी से रेत की तरह फ़िसलता चला गया और एक दिन विवाह की वर्षगांठ पर उस पर अनाकर्षक का तमगा लगाकर हमेशा के लिये चला गया किसी दुसरी किसी दूसरी बेइन्तहां ख़ूबसूरत चित्ताकर्षक यौवना का हाथ थाम कर ।<br/>वो एकल अभिभावक बन गई बच्चों की।<br/>चार दिन की चाँदनी कब तक चमकती अँधेरी रात तो होनी ही थी.वो उसका सब कुछ उसकी सारी धन-दौलत लूट , उसकी बची- खुची इज़्ज़त मिट्टी में मिला कर जा चुकी थी। अब नेहा के पास लौटने अलावा कोई चारा ना था।<br/>अचानक डोर बेल की आवाज से उसकी तंद्रा भंग हुई।दरवाज़ा खोलते ही सामने बढी हुई दाढ़ी और अस्तव्यस्त कपड़ों मे नीरज को देख दरवाज़ा बंद करने--<br/>" रुको नेहा !! मैं तुमसे अपनी ग़लती की माफ़ी मांगता हूँ ,तुमसे सिर्फ़ एक गुज़ारिश है मुझे मेरे बच्चों से दूर ना करो" बच्चों का वास्ता देकर वो---<br/><br/>"कौन से तुम्हारे बच्चे?? ज़िम्मेदारी से हाथ झटकने वाले को मेरे घर मे कोई जगह नही है।"<br/><br/>नयना(आरती) कानिटकर</p>
<p></p>
<p>मौलिक एंव अप्रकाशित<br/> नयना(आरती) कानिटकर<br/> ०८/१२/२०१५</p>
"आभासी रंग"
tag:openbooksonline.com,2015-12-05:5170231:BlogPost:721501
2015-12-05T10:00:00.000Z
नयना(आरती)कानिटकर
http://openbooksonline.com/profile/NayanaAratiKanitkar
<p>"बादल !! देखो कितनी सुन्दर हरियाली , चलो हम कुछ देर यही टहलते है<span><span><span class="UFICommentBody"><span>।</span></span></span></span>"<br></br> वो देखो मानव और प्रकृति भी है .संग नृत्य करेगे<span><span><span class="UFICommentBody"><span>।</span></span></span></span>.<br></br> "बादल ने हवा का हाथ पकडते हुए गुस्से मे कहा-- चलो!! यहाँ से धरती माँ की गोद मे जहाँ सिर्फ़ प्रकृति बहन ही हो. हम वहा नृत्य करेगे".मानव तो कब का उसे छोड चुका है,बेचारी मेरी प्रकृति बहना…</p>
<p>"बादल !! देखो कितनी सुन्दर हरियाली , चलो हम कुछ देर यही टहलते है<span><span><span class="UFICommentBody"><span>।</span></span></span></span>"<br/> वो देखो मानव और प्रकृति भी है .संग नृत्य करेगे<span><span><span class="UFICommentBody"><span>।</span></span></span></span>.<br/> "बादल ने हवा का हाथ पकडते हुए गुस्से मे कहा-- चलो!! यहाँ से धरती माँ की गोद मे जहाँ सिर्फ़ प्रकृति बहन ही हो. हम वहा नृत्य करेगे".मानव तो कब का उसे छोड चुका है,बेचारी मेरी प्रकृति बहना<span><span><span class="UFICommentBody"><span>।</span></span></span></span><br/> " बादल !! ऐसा क्यो कह रहे हो. ये हरा रंग देखो चारो ओर कितना लुभावना है,प्रकृति का ही तो --<span><span><span class="UFICommentBody"><span>।</span></span></span></span>"<br/> " नही नही" हवा!! अब यहाँ ना फूल है ,ना तितली,ना जंगली जानवर<span><span><span class="UFICommentBody"><span>।</span></span></span></span> बस! मानव निर्मित अट्टलिकाऎ है.अब हमे यहाँ नही रहना<span><span><span class="UFICommentBody"><span>।</span></span></span></span><br/> यह तो आभासी है.इसे मानव ने हरे नोटो के साथ हरा रंग दिया है<span><span><span class="UFICommentBody"><span>।</span></span></span></span>"<br/> <br/> नयना(आरती) कानिटकर<br/> 05/12/2015<br/>मौलिक एंव अप्रकाशित</p>
"अब लौट चले"
tag:openbooksonline.com,2015-12-04:5170231:BlogPost:721624
2015-12-04T13:30:00.000Z
नयना(आरती)कानिटकर
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<p><span class="goog-spellcheck-word" id=":11.1">सुरेखा</span> कब से देख रही थी आज माँ-बाबूजी पता नहीं इतना क्या सामान समेट रहे है। बीच मे ही बाबूजी बैंक भी हो आए.एक दो बार उनके कमरे मे <span class="goog-spellcheck-word" id=":11.2">झांक</span> भी आयी चाय देने के बहाने मगर पूछ ना पाई।<br></br> "माँ-बाबूजी नही दिख रहे ,कहाँ है.?"<span class="goog-spellcheck-word" id=":11.3">सुदेश</span> ने पूछा<br></br> "अपने कमरे मे आज दिन भर से ना जाने क्या कर रहे है। मैं तो संकोच के मारे पूछ भी नही पा रही.तभी---…<br></br></p>
<p><span id=":11.1" class="goog-spellcheck-word">सुरेखा</span> कब से देख रही थी आज माँ-बाबूजी पता नहीं इतना क्या सामान समेट रहे है। बीच मे ही बाबूजी बैंक भी हो आए.एक दो बार उनके कमरे मे <span id=":11.2" class="goog-spellcheck-word">झांक</span> भी आयी चाय देने के बहाने मगर पूछ ना पाई।<br/> "माँ-बाबूजी नही दिख रहे ,कहाँ है.?"<span id=":11.3" class="goog-spellcheck-word">सुदेश</span> ने पूछा<br/> "अपने कमरे मे आज दिन भर से ना जाने क्या कर रहे है। मैं तो संकोच के मारे पूछ भी नही पा रही.तभी---<br/> आप कहाँ जा रहे है बाबूजी आप ने पहले कुछ भी नहीं बताया.<span id=":11.6" class="goog-spellcheck-word">सुदेश</span> बोल पडा--<br/> मैं और माँ अब गाँव मे रहेंगे।<br/> "हमसे क्या <span id=":11.9" class="goog-spellcheck-word">गलती</span> हो गई माँ??,बाबूजी??"<br/> बस बेटा गाँव का घर अब हमे <span id=":11.10" class="goog-spellcheck-word">पुकार</span> रहा है.<span id=":11.11" class="goog-spellcheck-word">वहा</span> हमारी १-२ <span id=":11.12" class="goog-spellcheck-word">बीघा</span> ज़मीन है उसी मे <span id=":11.14" class="goog-spellcheck-word">भाजी</span>- <span id=":11.15" class="goog-spellcheck-word">तरकारी</span> लगा <span id=":11.17" class="goog-spellcheck-word">लेगे</span> , फिर मेरी पेंशन काफ़ी है हम-दोनो के लिये,तुम चिंता ना करो।<br/> बहुत भाग-दौड़ कर ली <span id=":11.20" class="goog-spellcheck-word">ता</span> उम्र पैसे और <span id=":11.21" class="goog-spellcheck-word">तुम्हारी</span> शिक्षा के लिये.अब बस सुकून के दो पल प्रकृति के <span id=":11.22" class="goog-spellcheck-word">सानिध्य</span> मे बिताना चाहते है.. ये हमारे <span id=":11.23" class="goog-spellcheck-word">वानप्रस्थाश्रम</span> का समय है।<br/> -- सुरेखा!!!ये लो इस घर की <span id=":11.24" class="goog-spellcheck-word">चाबियाँ</span> आज से यह तुम्हारा हुआ। <br/> पत्नी का हाथ थामते हुए बोले---"चलो <span id=":11.25" class="goog-spellcheck-word">जानकी</span>!! अब लौट चले।"<br/> <span id=":11.26" class="goog-spellcheck-word">नयना</span>(<span id=":11.27" class="goog-spellcheck-word">आरती</span>)<span id=":11.28" class="goog-spellcheck-word">कानिटकर</span><br/> ०४/१२/२०१५<br/> मौलिक एंव अप्रकाशित</p>
मै और तुम
tag:openbooksonline.com,2013-09-01:5170231:BlogPost:426149
2013-09-01T08:47:28.000Z
नयना(आरती)कानिटकर
http://openbooksonline.com/profile/NayanaAratiKanitkar
<p>बिखेरे रंग<br/>प्यार के संग-संग<br/>मै और तुम<br/><br/>बिखेरे हँसी</p>
<p>दोस्तो के संग-संग<br/>मै और तुम<br/><br/>बिखेरे गंध<br/>फूलो के संग-संग<br/>मै और तुम<br/><br/>बिखेरे सुर<br/>कुहू के संग-संग<br/>मै और तुम<br/><br/>बिखेरे शब्द<br/>कलम के संग-संग<br/>मै और तुम<br/><br/>मौलिक अप्रकाशित रचना<br/>नयना(आरती कानिटकर<br/>०१/०९/२०१३</p>
<p>बिखेरे रंग<br/>प्यार के संग-संग<br/>मै और तुम<br/><br/>बिखेरे हँसी</p>
<p>दोस्तो के संग-संग<br/>मै और तुम<br/><br/>बिखेरे गंध<br/>फूलो के संग-संग<br/>मै और तुम<br/><br/>बिखेरे सुर<br/>कुहू के संग-संग<br/>मै और तुम<br/><br/>बिखेरे शब्द<br/>कलम के संग-संग<br/>मै और तुम<br/><br/>मौलिक अप्रकाशित रचना<br/>नयना(आरती कानिटकर<br/>०१/०९/२०१३</p>