Rajni chhabra's Posts - Open Books Online2024-03-28T19:30:17Zrajni chhabrahttp://openbooksonline.com/profile/rajnichhabrahttp://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/2991271130?profile=RESIZE_48X48&width=48&height=48&crop=1%3A1http://openbooksonline.com/profiles/blog/feed?user=2gknd1iuhu7e6&xn_auth=noक्या फूल ,क्या कलियाँtag:openbooksonline.com,2012-12-18:5170231:BlogPost:3020222012-12-18T17:30:00.000Zrajni chhabrahttp://openbooksonline.com/profile/rajnichhabra
<p>यह कविता 10/4/2007 को लिखी थी और आज बहुत भारी मन से आप सब के साथ फिर से शेयर कर रही हूँ/</p>
<p></p>
<p></p>
<p>क्या फूल ,क्या कलियाँ</p>
<p>===============</p>
<p>फिजाओं के रंग</p>
<p>क्यों होने लगे बदरंग</p>
<p></p>
<p>क्या फूल,क्या कलियाँ</p>
<p>ऐय्याशों के लिए</p>
<p>सभी रंगरलियाँ</p>
<p>किल्क्कारियाँ बन गयी</p>
<p>सिसकारियाँ</p>
<p>अवाक इंसान</p>
<p>अवाक भगवान्</p>
<p></p>
<p>हैवानियत की देख हद</p>
<p>निगाहें दंग ,ज़िंदगी परेशान</p>
<p>घर घरोंदे ,रहें,गुलशन</p>
<p>सब बन जायेंगे…</p>
<p>यह कविता 10/4/2007 को लिखी थी और आज बहुत भारी मन से आप सब के साथ फिर से शेयर कर रही हूँ/</p>
<p></p>
<p></p>
<p>क्या फूल ,क्या कलियाँ</p>
<p>===============</p>
<p>फिजाओं के रंग</p>
<p>क्यों होने लगे बदरंग</p>
<p></p>
<p>क्या फूल,क्या कलियाँ</p>
<p>ऐय्याशों के लिए</p>
<p>सभी रंगरलियाँ</p>
<p>किल्क्कारियाँ बन गयी</p>
<p>सिसकारियाँ</p>
<p>अवाक इंसान</p>
<p>अवाक भगवान्</p>
<p></p>
<p>हैवानियत की देख हद</p>
<p>निगाहें दंग ,ज़िंदगी परेशान</p>
<p>घर घरोंदे ,रहें,गुलशन</p>
<p>सब बन जायेंगे बियाबान</p>
<p></p>
<p>शर्म ओ हया के</p>
<p>सब परदे तार तार</p>
<p>ज़िन्दगी को</p>
<p> बना दिया व्यापार</p>
<p>अस्मत लूटने मैं भी</p>
<p>होने लगी सांझेदारी</p>
<p>समाज मैं पनपने लगे</p>
<p>यह कैसे व्यापारी</p>
<p></p>
<p>आहत मन,आहत तन</p>
<p>दरिंदगी की हो रही इन्तहा</p>
<p>क्या औरत होना ही</p>
<p> हुआ गुनाह ?</p>
<p></p>
<p>देवियों के देश का</p>
<p>क्यों कर बदला परिवेश</p>
<p>शालीन्ता, मर्यादा की</p>
<p>उड़ती धज्जियां</p>
<p>कयामत से पहले</p>
<p>हुए कयामत</p>
<p>फार्म हाउस ,गाँव ,शहर</p>
<p>टूट रहा हर सू क़हर</p>
<p></p>
<p>सुप्त समाज</p>
<p>तुम फिर से जाग जाओ</p>
<p>चेतो और चेताओ</p>
<p>सभी,सचेत</p>
<p>सावधान रखो निगाहें तुम्हारी</p>
<p>बनो मर्यादा के प्रहरी</p>
<p>फिर न उभरने पाए कोई</p>
<p>धौलपुर,नसीराबाद या निठारी /</p>
<p></p>
<p>रजनी छाबडा</p>
<p></p>
<p></p>
<p>खेद है की यह शहरों की फेरहिस्त बढ़ते बढ़ते राजधानी तक पहुँच चुकी हैं</p>
<p> </p>
<p></p>
<p>रजनी छाबड़ा</p>ज़रा याद करो कुर्बानीtag:openbooksonline.com,2012-08-15:5170231:BlogPost:2600182012-08-15T07:00:00.000Zrajni chhabrahttp://openbooksonline.com/profile/rajnichhabra
<div><font size="+0">आज़ादी बेमोल नहीं मिलती</font></div>
<div><font size="+0">नायाब कीमत अदा करनी पड़ती है</font></div>
<div> </div>
<div><font size="+0">सुहागिनों का सिंदूर</font></div>
<div><font size="+0">बहनों के प्रेम सूत्र</font></div>
<div><font size="+0">अबोध काया का साया</font></div>
<div><font size="+0">पिता का दुलार</font></div>
<div><font size="+0">ममतामयी माँ का</font></div>
<div><font size="+0">आँचल बिसरा</font></div>
<div> </div>
<div><font size="+0">निकल पड़ते…</font></div>
<div><font size="+0">आज़ादी बेमोल नहीं मिलती</font></div>
<div><font size="+0">नायाब कीमत अदा करनी पड़ती है</font></div>
<div> </div>
<div><font size="+0">सुहागिनों का सिंदूर</font></div>
<div><font size="+0">बहनों के प्रेम सूत्र</font></div>
<div><font size="+0">अबोध काया का साया</font></div>
<div><font size="+0">पिता का दुलार</font></div>
<div><font size="+0">ममतामयी माँ का</font></div>
<div><font size="+0">आँचल बिसरा</font></div>
<div> </div>
<div><font size="+0">निकल पड़ते है</font></div>
<div><font size="+0">वीर जवान</font></div>
<div><font size="+0">देश की खातिर</font></div>
<div><font size="+0">करने सब कुर्बान</font></div>
<div> </div>
<div><font size="+0">रखना है हमवतनों को</font></div>
<div><font size="+0">वतन की आन का मान</font></div>
<div><font size="+0">उनके लिए</font></div>
<div><font size="+0">क्या मायना रखती है</font></div>
<div><font size="+0">अपनी जान</font></div>
<div> </div>
<div><font size="+0">मारेंगे या मर मिटेंगे</font></div>
<div><font size="+0">हो जायेंगे कुर्बान</font></div>
<div><font size="+0">वो रहें न रहें</font></div>
<div><font size="+0">सलामत रहेगी</font></div>
<div><font size="+0">देश की आन</font></div>
<div> </div>
<div> </div>
<div><font size="+0">रजनी छाबड़ा</font></div>
<div><font size="+0"> </font></div>
<div> </div>
<div> </div>क्या शहर ,क्या गाँवtag:openbooksonline.com,2012-05-01:5170231:BlogPost:2208022012-05-01T07:30:00.000Zrajni chhabrahttp://openbooksonline.com/profile/rajnichhabra
<p>मेरे लिए <br></br> क्या शहर ,क्या गाँव<br></br> जीवन तपती दुपहरी <br></br> नहीं ममता की छाँव<br></br> <br></br> गाँव <strong>में</strong>,भाई को <br></br> मेरी देख रख <strong>में</strong> डाल<br></br> माँ जाती ,भोर से<br></br> खेती की करने <br></br> सार सम्भाल<br></br> <br></br> शहर <strong>में</strong>,बड़ा भाई<br></br> जाता है कारखाने<br></br> गृहस्थी का बोझ बंटाने <br></br> खुद को काम <strong>में</strong> खपाने<br></br> <br></br> कच्ची उम्र की मजबूरी<br></br> काम पूरा,मजदूरी मिलती अधूरी<br></br> हाथ <strong>में</strong> कलम पकड़ने की उम्र…</p>
<p>मेरे लिए <br/> क्या शहर ,क्या गाँव<br/> जीवन तपती दुपहरी <br/> नहीं ममता की छाँव<br/> <br/> गाँव <strong>में</strong>,भाई को <br/> मेरी देख रख <strong>में</strong> डाल<br/> माँ जाती ,भोर से<br/> खेती की करने <br/> सार सम्भाल<br/> <br/> शहर <strong>में</strong>,बड़ा भाई<br/> जाता है कारखाने<br/> गृहस्थी का बोझ बंटाने <br/> खुद को काम <strong>में</strong> खपाने<br/> <br/> कच्ची उम्र की मजबूरी<br/> काम पूरा,मजदूरी मिलती अधूरी<br/> हाथ <strong>में</strong> कलम पकड़ने की उम्र <strong>में</strong><br/> बनाता है ,कारखाने <strong>में</strong> बीड़ी<br/> बाल श्रम का यह रोग<br/> पहुँचता जाएगा <br/> पीढ़ी दर पीढ़ी<br/> <br/> छोटे भाई की देख रख का<br/> नहीं हैं मलाल <br/> पर मेरे लिए,जाने कब <br/> आयेगा वह साल<br/> जब मैं भी <br/> जा सकूंगी स्कूल<br/> <br/> ज़िंदगी की चक्की से<br/> गर दो घंटे भी <br/> फुर्सत पाऊँ<br/> खुद पढूँ ,साथ मैं<br/> छोटे भैया को भी पढाऊँ</p>
<p> <br/> कुछ कर गुजरने की चाह <br/> मन <strong>में</strong> संवारती<br/> छोटे भाई को दुलारती<br/> गीली लकड़ियाँ सुलगाती<br/> रांधती हूँ दाल भात<br/> माँ वापिस आती,थकी हारी<br/> लिए शिथिल गात<br/> <br/> दिन भर की थकान से पस्त<br/> सो जाती,बिन किये कोई बात<br/> ममता के दो बोल को तरसता <br/> जीवन मेरा,मेरे जीवन का नाम अभाव<br/> मेरे लिए क्या शहर ,क्या गाँव <br/> जीवन तपती दुपहरी,नहीं ममता की छाँव<br/> </p>
<ul>
<li>रजनी छाबड़ा</li>
</ul>वामन वृक्षtag:openbooksonline.com,2011-05-04:5170231:BlogPost:768422011-05-04T09:30:00.000Zrajni chhabrahttp://openbooksonline.com/profile/rajnichhabra
<div id=":172">वामन वृक्ष </div>
<div id=":172">यूं तो वामन वृक्षों मैं भी<div>उगते हैं फल फूल और पत्ते </div>
<div>पर उनमें लहलहाते वृक्षों से उपजे</div>
<div>फल फूलों की सहजता और सरसता कहाँ</div>
<div>कब हैं वो उन्हें सा महकते</div>
<div>वक़्त से पहले</div>
<div>गर बेटी को ब्याहोगे</div>
<div> उसका विकास रोक कर</div>
<div>क्या खुद सुकून पाओगे</div>
<div>सींचो उस नन्ही बेल को</div>
<div>अपने स्नेह की शीतल छाया से</div>
<div>पोषण दो उसे </div>
<div>शिक्षा और संस्कार का</div>
<div>पूर्ण रुपें…</div>
</div>
<div id=":172">वामन वृक्ष </div>
<div id=":172">यूं तो वामन वृक्षों मैं भी<div>उगते हैं फल फूल और पत्ते </div>
<div>पर उनमें लहलहाते वृक्षों से उपजे</div>
<div>फल फूलों की सहजता और सरसता कहाँ</div>
<div>कब हैं वो उन्हें सा महकते</div>
<div>वक़्त से पहले</div>
<div>गर बेटी को ब्याहोगे</div>
<div> उसका विकास रोक कर</div>
<div>क्या खुद सुकून पाओगे</div>
<div>सींचो उस नन्ही बेल को</div>
<div>अपने स्नेह की शीतल छाया से</div>
<div>पोषण दो उसे </div>
<div>शिक्षा और संस्कार का</div>
<div>पूर्ण रुपें विकसित </div>
<div>हो जाये वो जब</div>
<div>तभी दायित्व डालो </div>
<div>उस पर,घर परिवार का </div>
<div>रजनी छाबड़ा </div>
</div>कस्तूरी मृगtag:openbooksonline.com,2011-04-27:5170231:BlogPost:742432011-04-27T17:00:00.000Zrajni chhabrahttp://openbooksonline.com/profile/rajnichhabra
कस्तूरी की गंध<br/>
<div>खुद मैं सहेजे</div>
<div>भ्रमित,</div>
<div> भटक रहा था</div>
<div>कस्तूरी मृग</div>
<div>आनंद का सागर </div>
<div>खुद मैं समेटे </div>
<div>कदम</div>
<div>भटक रहें थे</div>
<div>दसों दिग्</div>
<div><div>रजनी छाबरा</div>
</div>
कस्तूरी की गंध<br/>
<div>खुद मैं सहेजे</div>
<div>भ्रमित,</div>
<div> भटक रहा था</div>
<div>कस्तूरी मृग</div>
<div>आनंद का सागर </div>
<div>खुद मैं समेटे </div>
<div>कदम</div>
<div>भटक रहें थे</div>
<div>दसों दिग्</div>
<div><div>रजनी छाबरा</div>
</div>सपने हसीन क्यों होते हैंtag:openbooksonline.com,2011-04-26:5170231:BlogPost:740112011-04-26T07:30:00.000Zrajni chhabrahttp://openbooksonline.com/profile/rajnichhabra
स्नेह,दुलार,प्रीत<br></br>
<div>मिलन,समर्पण</div>
<div>आस, विश्वास के </div>
<div>सतरंगी </div>
<div>ताने बाने से बुने</div>
<div>सपने इस कदर </div>
<div>हसीन क्यों होते हैं</div>
<div>कभी मिल जाते हैं </div>
<div>नींद को पंख</div>
<div>कभी आ जाती है</div>
<div>पंखों को नींद</div>
<div>हम सोते मैं जागते</div>
<div>ओर जागते मैं सोते हैं</div>
<div>सपने इस कदर </div>
<div>हसीन क्यों होते हैं</div>
<div>बे नूर आँखों मैं </div>
<div>नूर जगाते</div>
<div>उदास लबों पर </div>
<div>मुस्कान…</div>
स्नेह,दुलार,प्रीत<br/>
<div>मिलन,समर्पण</div>
<div>आस, विश्वास के </div>
<div>सतरंगी </div>
<div>ताने बाने से बुने</div>
<div>सपने इस कदर </div>
<div>हसीन क्यों होते हैं</div>
<div>कभी मिल जाते हैं </div>
<div>नींद को पंख</div>
<div>कभी आ जाती है</div>
<div>पंखों को नींद</div>
<div>हम सोते मैं जागते</div>
<div>ओर जागते मैं सोते हैं</div>
<div>सपने इस कदर </div>
<div>हसीन क्यों होते हैं</div>
<div>बे नूर आँखों मैं </div>
<div>नूर जगाते</div>
<div>उदास लबों पर </div>
<div>मुस्कान खिलाते</div>
<div>मायूस सी ज़िंदगी को</div>
<div>ज़िंदगी का साज सुनाते</div>
<div>सपने इस कदर</div>
<div> हसीन क्यों होते है</div>
<div>कल्पना के पंख पसारे</div>
<div>जी लेते हैं कुछ पल</div>
<div>इनके सहारे</div>
<div>अँधेरे के आखिरी छोर पर</div>
<div>कौंधती बिजली से यह सपने</div>
<div>इस कदर हसीन </div>
<div>क्यों होते हैं</div>
<div>जिस पल मेरे सपनों पर</div>
<div>लग जायेगा पूर्ण विराम</div>
<div>मेरी ज़िंदगी के चरखे को भी</div>
<div>मिल जायेगा अनंत विश्राम</div>
<div>रजनी छाबरा</div>पक्षपातtag:openbooksonline.com,2011-04-24:5170231:BlogPost:730392011-04-24T11:00:00.000Zrajni chhabrahttp://openbooksonline.com/profile/rajnichhabra
<span class="font-size-3"><strong>पक्षपात</strong></span><br></br>
<br></br>
<br></br>
<span class="font-size-3">दोष लगेगा उस पर</span><br></br><span class="font-size-3">
पक्षपात का</span><br></br><span class="font-size-3">
गर ज़रा सा भी दुःख</span><br></br><span class="font-size-3">
न वो देगा मुझे</span><br></br><span class="font-size-3">
मैं भी तो एक ज़र्रा हूँ</span><br></br><span class="font-size-3">
उसकी कायनात का</span><br></br><span class="font-size-3">
उसी कारवां की</span><br></br><span class="font-size-3">
एक…</span>
<span class="font-size-3"><strong>पक्षपात</strong></span><br/>
<br/>
<br/>
<span class="font-size-3">दोष लगेगा उस पर</span><br/><span class="font-size-3">
पक्षपात का</span><br/><span class="font-size-3">
गर ज़रा सा भी दुःख</span><br/><span class="font-size-3">
न वो देगा मुझे</span><br/><span class="font-size-3">
मैं भी तो एक ज़र्रा हूँ</span><br/><span class="font-size-3">
उसकी कायनात का</span><br/><span class="font-size-3">
उसी कारवां की</span><br/><span class="font-size-3">
एक मुसाफिर</span><br/><span class="font-size-3">
सुख दुःख की छावों मैं</span><br/><span class="font-size-3">
चलते हैं जहां सभी</span><br/><span class="font-size-3">
अछूती रही गर</span><br/><span class="font-size-3">
दुनिया के दस्तूर से</span><br/><span class="font-size-3">
क्या रूस्वाँ न होगा</span><br/><span class="font-size-3">
मेरा मुक्कदर</span><br/><span class="font-size-3">
लिखने वाला</span><br/>
<br/><span class="font-size-3">
रजनी छाबरा</span>मैं कोई मसीहा नहींtag:openbooksonline.com,2011-04-22:5170231:BlogPost:721602011-04-22T07:30:00.000Zrajni chhabrahttp://openbooksonline.com/profile/rajnichhabra
<div> ------</div>
मैं कोई मसीहा नहीं<br/>
<div>जो चढ़ सकूं </div>
<div>सलीब पर</div>
<div>हँसते हँसते </div>
<div>एक अदना इंसान हूँ मैं</div>
<div>मुन्तजिर हूँ में </div>
<div>मेरे दर्द के</div>
<div> मसीहा की</div>
<div><br/><div><br/><div><br/><div> </div>
</div>
</div>
</div>
<div> ------</div>
मैं कोई मसीहा नहीं<br/>
<div>जो चढ़ सकूं </div>
<div>सलीब पर</div>
<div>हँसते हँसते </div>
<div>एक अदना इंसान हूँ मैं</div>
<div>मुन्तजिर हूँ में </div>
<div>मेरे दर्द के</div>
<div> मसीहा की</div>
<div><br/><div><br/><div><br/><div> </div>
</div>
</div>
</div>KHELtag:openbooksonline.com,2011-03-24:5170231:BlogPost:645112011-03-24T17:36:40.000Zrajni chhabrahttp://openbooksonline.com/profile/rajnichhabra
खेल खेले जाते है<br />
<div>विश्व भर मै.लिए सद्भावना</div>
<div> और सहकारिता का आधार</div>
<div>जीवन भी तो खेल है,</div>
<div>आईए इस पर करें विचार</div>
<div>शबनमी धुप पाने से पहले</div>
<div>गुजरना पड़ता है</div>
<div>सर्द हवाओं के दौर से</div>
<div>जीत हासिल करने से पहले</div>
<div>गुजरना पड़ता है</div>
<div>कठिन श्रम के दौर से</div>
<div>हारे गर आज तो </div>
<div>जीतेंगे कल </div>
<div>यही विचार </div>
<div>बढाए रखता है मनोबल</div>
<div>लिए श्रम ओर विश्वास का सम्बल</div>
<div>हार जाओ तो भी रहो…</div>
खेल खेले जाते है<br />
<div>विश्व भर मै.लिए सद्भावना</div>
<div> और सहकारिता का आधार</div>
<div>जीवन भी तो खेल है,</div>
<div>आईए इस पर करें विचार</div>
<div>शबनमी धुप पाने से पहले</div>
<div>गुजरना पड़ता है</div>
<div>सर्द हवाओं के दौर से</div>
<div>जीत हासिल करने से पहले</div>
<div>गुजरना पड़ता है</div>
<div>कठिन श्रम के दौर से</div>
<div>हारे गर आज तो </div>
<div>जीतेंगे कल </div>
<div>यही विचार </div>
<div>बढाए रखता है मनोबल</div>
<div>लिए श्रम ओर विश्वास का सम्बल</div>
<div>हार जाओ तो भी रहो अविचल.</div>
<div>सेकड़ों प्रयास से </div>
<div>सफलता,चींटी को मिली</div>
<div>ग्रहण लगने से कभी,</div>
<div>छवि सूरज कि न घटी</div>
<div>नितन्तर प्रयास से तू</div>
<div>,खुद को इतना सबल बना ले</div>
<div>विजयश्री खुद आकर,</div>
<div>तुझे गले लगा ले</div>
<div> </div>ANK JYOTISH 09.02.2011tag:openbooksonline.com,2011-02-08:5170231:BlogPost:525142011-02-08T16:50:10.000Zrajni chhabrahttp://openbooksonline.com/profile/rajnichhabra
<p> </p>
<p>अंक १ आज का दिन कोई विशेष बदलाव आपकी स्थिति में नहीं होगा/परन्तु आज नव निवेश न कर व अपने सहचर की किसी प्रकार की अवहेलना न केरे,अन्यथा पेरशानी का सामना करना पड़ेगा/</p>
<p> अंक २</p>
<p>आज अपने क्रोध पर नियंत्रण रखें/आहार और सेहत पर भी विशेष ध्यान दें/</p>
<p>सोंदर्य प्रसाधन विक्रेता,चोकोलेट,कोफी</p>
<p>,चमड़े के उत्पादों के व्यवसायी ,फैशन व ग्लैमर की गतिविधियों से जुड़े लोगों के लिए अनुकूल दिन है/</p>
<p>अंक ३</p>
<p>ग्रहस्थ व् व्यवसाय,नौकरी की जिम्मेवारियां सहजता से निभा …</p>
<p> </p>
<p>अंक १ आज का दिन कोई विशेष बदलाव आपकी स्थिति में नहीं होगा/परन्तु आज नव निवेश न कर व अपने सहचर की किसी प्रकार की अवहेलना न केरे,अन्यथा पेरशानी का सामना करना पड़ेगा/</p>
<p> अंक २</p>
<p>आज अपने क्रोध पर नियंत्रण रखें/आहार और सेहत पर भी विशेष ध्यान दें/</p>
<p>सोंदर्य प्रसाधन विक्रेता,चोकोलेट,कोफी</p>
<p>,चमड़े के उत्पादों के व्यवसायी ,फैशन व ग्लैमर की गतिविधियों से जुड़े लोगों के लिए अनुकूल दिन है/</p>
<p>अंक ३</p>
<p>ग्रहस्थ व् व्यवसाय,नौकरी की जिम्मेवारियां सहजता से निभा पाएंगे/सेना,न्यायपालिका,कृषक वर्ग,भवन निर्माताओं,बहुरंगी वस्तुओं व भूमि से प्राप्त उत्पादों के व्यापार के लिए उत्तम दिन है.</p>
<p>अंक ४</p>
<p>आज आपके विरोधी आप की पेरशानी का कारण बन सकते है/अपने जीवन साथी से भी आपके सम्बन्ध मधुर बनाये रखने का प्रयास करें/आज किसी प्रकार का आर्थिक जोखिम मत उतयिये/</p>
<p>अंक ५</p>
<p>आज अपनी सेहत व आहार की और विशेष ध्यान दीजिये/अपने गुस्से पर भी काबू रखिये/आज के दिन सम्पति में निवेश न कीजिये/</p>
<p>अंक ६</p>
<p>आज आपकी आर्थिक स्थिति सुदढ़ रहेगी</p>
<p>भूरे रंग की वस्तुओं व सौन्दर्य प्रसाधनों का व्यापार लाभप्रद रहेगा/परन्तु सेहत की और विशेष ध्यान दे न आहार में लापरवाही न बरतें/</p>
<p>अंक ७</p>
<p>आज मन को शांत रखने की कोशिश कीजिये व किसी से भी वाद विवाद में न उलझे/आहार व स्वास्थ्य की और विशेष ध्यान दे/कल्त्म्क अभिरुचियों की और झुकाव रहेगा/फैशन,ग्लैमर न फिल्म निर्माण,आंतरिक सज्जा से जुड़े लोग लाभप्रद स्थिति मे रहेंगे</p>
<p>अंक ८</p>
<p>आध्यात्मिक क्रिया कलापों में रूचि रहेगी/</p>
<p>ईंधन,सम्पति व बहुरंगी वस्तुओं में निवेश फायदा देगा/आज आप अपनी बात को सुगमता से मनवाने की स्थिति में रहेंगे/</p>
<p>अंक ९आज आपके मान सम्मान में वृद्धि होगी/भूगर्भ शास्त्री,कृषक,पत्रकार.भवन निर्माता,ईंधन के व्यापारी लाभप्रद स्थिति में रहेंगे/धार्मिक प्रवृति विकसित होगी/</p>वर्ष 2011 में आपके भाग्य में क्या है ?tag:openbooksonline.com,2010-12-31:5170231:BlogPost:437462010-12-31T09:25:23.000Zrajni chhabrahttp://openbooksonline.com/profile/rajnichhabra
अंक 1 <br></br>
<div>यह वर्ष बिना किसी उल्लेखनीय बदलाव के आपके लिए तटस्थ साबित होने वाला है ! <br></br><br></br>अंक 2 <br></br>यह वर्ष आपके लिए बहुत ही सुचारू रहने वाला है ! <br></br> <br></br> अंक 3 <br></br>यह वर्ष आपके लिए बहुत ही सुचारू रहने वाला है ! <br></br>
<br></br>
अंक 4 <br></br>
यह वर्ष आपके लिए नवपरिवर्तन, प्रशासनिक, रोमांच, नेतृत्व के कार्यों में नये आयामों की दृष्टि से बड़ा आशाजनक रहने वाला है ! <br></br>
<br></br>
अंक 5 <br></br>यह वर्ष आपके लिए नेतृत्व की इच्छापूर्ति, प्रशासनिक अनुग्रह एवं दान इत्यादि के लिए बहुत अच्छा रहने…</div>
अंक 1 <br/>
<div>यह वर्ष बिना किसी उल्लेखनीय बदलाव के आपके लिए तटस्थ साबित होने वाला है ! <br/><br/>अंक 2 <br/>यह वर्ष आपके लिए बहुत ही सुचारू रहने वाला है ! <br/> <br/>
अंक 3 <br/>यह वर्ष आपके लिए बहुत ही सुचारू रहने वाला है ! <br/>
<br/>
अंक 4 <br/>
यह वर्ष आपके लिए नवपरिवर्तन, प्रशासनिक, रोमांच, नेतृत्व के कार्यों में नये आयामों की दृष्टि से बड़ा आशाजनक रहने वाला है ! <br/>
<br/>
अंक 5 <br/>यह वर्ष आपके लिए नेतृत्व की इच्छापूर्ति, प्रशासनिक अनुग्रह एवं दान इत्यादि के लिए बहुत अच्छा रहने वाला है ! <br/><br/>
अंक 6 <br/>
यह वर्ष बिना किसी उल्लेखनीय बदलाव के आपके लिए तटस्थ साबित होने वाला है ! <br/>
<br/>
अंक 7 <br/>
यह वर्ष आपको आगे बढ़ने के लिए एक निर्बाध मार्ग प्रदान करेगा ! <br/>
<br/>
अंक 8 <br/>
आप प्रशासनिक द्वंद का सामना कर सकते हैं, अपने अहम् पर नियंत्रण रखें ! <br/>
<br/>
अंक 9 <br/>
यह वर्ष बिना किसी विशेष बदलाव के आपके लिए तटस्थ है ! <br/>
<br/>
</div>राम या रहमानtag:openbooksonline.com,2010-09-30:5170231:BlogPost:236692010-09-30T09:30:00.000Zrajni chhabrahttp://openbooksonline.com/profile/rajnichhabra
वह बोझिल मन लिए<br />
उदास उदास<br />
निहार रहा अपनी कुदरत<br />
खड़ा क्षितिज के पास<br />
मिल कर भी<br />
नहीं मिलते जहाँ<br />
दो जहां<br />
<br />
अपनी अपनी आस्था की धरा पे<br />
कायम हैं उसके बनाये इंसान<br />
हो गए हैं जिनके मन प्रेम विहीन<br />
बिसरा दिए हैं जिन्होंने दुनिया और दीं<br />
<br />
इस रक्त रंजित धरा पर बिखरे<br />
खून के निशाँ<br />
वही नही बता सकता<br />
उन्हें में कौन है<br />
राम और कौन रहमान<br />
<br />
बिसूरती मानवता के यह अवशेष<br />
लुटती अस्मत,मलिन चेहरे,बिखरे केश<br />
<br />
सुर्ख उनीदीं आँखें<br />
जिन्हें सोने नहीं देता यह खौफ<br />
जाने कौन घड़ी जला दिया जाये<br />
उनका आशियाना<br />
जब सारा समाज ही<br />
हो रहा…
वह बोझिल मन लिए<br />
उदास उदास<br />
निहार रहा अपनी कुदरत<br />
खड़ा क्षितिज के पास<br />
मिल कर भी<br />
नहीं मिलते जहाँ<br />
दो जहां<br />
<br />
अपनी अपनी आस्था की धरा पे<br />
कायम हैं उसके बनाये इंसान<br />
हो गए हैं जिनके मन प्रेम विहीन<br />
बिसरा दिए हैं जिन्होंने दुनिया और दीं<br />
<br />
इस रक्त रंजित धरा पर बिखरे<br />
खून के निशाँ<br />
वही नही बता सकता<br />
उन्हें में कौन है<br />
राम और कौन रहमान<br />
<br />
बिसूरती मानवता के यह अवशेष<br />
लुटती अस्मत,मलिन चेहरे,बिखरे केश<br />
<br />
सुर्ख उनीदीं आँखें<br />
जिन्हें सोने नहीं देता यह खौफ<br />
जाने कौन घड़ी जला दिया जाये<br />
उनका आशियाना<br />
जब सारा समाज ही<br />
हो रहा वहिशयाना<br />
<br />
जहां सजता था<br />
खुशियों का आशियाना<br />
वहां बसर कर रहे<br />
ख़ामोशी और वीराना<br />
<br />
कुदरत बनाने वाला<br />
शर्मिंदा है खुद<br />
देख कर अपने<br />
बन्दों के कर्म<br />
और चाहता है सिर्फ<br />
इंसानियत का धर्म<br />
प्रेम,संवेदना और सहिष्न्नुता का मर्म<br />
वरना न तो कुदरत रहेगी<br />
न इंसान,न धर्म.<br />
<br />
aurइंतज़ारtag:openbooksonline.com,2010-09-22:5170231:BlogPost:223002010-09-22T17:30:00.000Zrajni chhabrahttp://openbooksonline.com/profile/rajnichhabra
आ<br />
तू<br />
लौट आ<br />
वेरना<br />
मैं यूँ ही<br />
जागती रहूंगी<br />
रात रात भर<br />
चाँदनी रातों मैं<br />
लिख लिख कर<br />
मिटाती रहूंगी<br />
तेरा नाम<br />
रेत पर<br />
और हेर सुबह<br />
नींद से<br />
बोझिल पलकें लिए<br />
सुर्ख,उनींदी<br />
आंखों से<br />
काटती<br />
रहूंगी<br />
कलेंडर से<br />
एक और तारीख<br />
इस सच का<br />
सबूत<br />
बनते हुए<br />
की<br />
एक<br />
और रोज़<br />
तुझे<br />
याद किया<br />
तेरा नाम लिया<br />
तुझे याद किया<br />
तेरा नाम लिया
आ<br />
तू<br />
लौट आ<br />
वेरना<br />
मैं यूँ ही<br />
जागती रहूंगी<br />
रात रात भर<br />
चाँदनी रातों मैं<br />
लिख लिख कर<br />
मिटाती रहूंगी<br />
तेरा नाम<br />
रेत पर<br />
और हेर सुबह<br />
नींद से<br />
बोझिल पलकें लिए<br />
सुर्ख,उनींदी<br />
आंखों से<br />
काटती<br />
रहूंगी<br />
कलेंडर से<br />
एक और तारीख<br />
इस सच का<br />
सबूत<br />
बनते हुए<br />
की<br />
एक<br />
और रोज़<br />
तुझे<br />
याद किया<br />
तेरा नाम लिया<br />
तुझे याद किया<br />
तेरा नाम लियावो ज़हान मेरा नहीtag:openbooksonline.com,2010-09-04:5170231:BlogPost:181072010-09-04T10:00:00.000Zrajni chhabrahttp://openbooksonline.com/profile/rajnichhabra
वो ज़हान<br />
मेरा नही<br />
जहाँ<br />
तेरी खुशबू<br />
न हो<br />
तेरी यादें न हो<br />
जिक्र न हो<br />
जहाँ तेरा<br />
वो महफिल<br />
मुझे रास आती नही
वो ज़हान<br />
मेरा नही<br />
जहाँ<br />
तेरी खुशबू<br />
न हो<br />
तेरी यादें न हो<br />
जिक्र न हो<br />
जहाँ तेरा<br />
वो महफिल<br />
मुझे रास आती नहीनिर्झरtag:openbooksonline.com,2010-08-25:5170231:BlogPost:164342010-08-25T19:00:57.000Zrajni chhabrahttp://openbooksonline.com/profile/rajnichhabra
निर्झर<br />
----<br />
पर्वत के शिखर की<br />
उतुन्गता से उपजे<br />
शुभ्र,धवल<br />
निर्झर से तुम<br />
कटीली उलझी राहों<br />
अवरोधों को अनदेखा कर<br />
कल कल करते<br />
गुनगुनाते<br />
सम गति से चलते<br />
अपनी राह बनाते जाना<br />
गतिशीलता धर्म तुम्हारा<br />
रुकने झुकना<br />
नहीं कर्म तुम्हारा<br />
प्रशस्त राहों के रही<br />
बनाना है तुम्हे<br />
अंधियारे मैं<br />
दीप सा<br />
जलते रहना<br />
रजनी छाबरा
निर्झर<br />
----<br />
पर्वत के शिखर की<br />
उतुन्गता से उपजे<br />
शुभ्र,धवल<br />
निर्झर से तुम<br />
कटीली उलझी राहों<br />
अवरोधों को अनदेखा कर<br />
कल कल करते<br />
गुनगुनाते<br />
सम गति से चलते<br />
अपनी राह बनाते जाना<br />
गतिशीलता धर्म तुम्हारा<br />
रुकने झुकना<br />
नहीं कर्म तुम्हारा<br />
प्रशस्त राहों के रही<br />
बनाना है तुम्हे<br />
अंधियारे मैं<br />
दीप सा<br />
जलते रहना<br />
रजनी छाबराyeh kaisaa saawantag:openbooksonline.com,2010-08-06:5170231:BlogPost:129392010-08-06T17:53:50.000Zrajni chhabrahttp://openbooksonline.com/profile/rajnichhabra
यह कैसा सावन<br />
--------------<br />
सावन के झूलों के संग<br />
हिलोरे लेती मैं<br />
और मेरी<br />
सतरंगी चुनर के रंग<br />
कहाँ खो गए<br />
अब के क्यों<br />
बर्फ सी जमी है<br />
सावन मैं<br />
एहसास भी बर्फ सी<br />
सफ़ेद चादर ओढ़े<br />
सो गए.
यह कैसा सावन<br />
--------------<br />
सावन के झूलों के संग<br />
हिलोरे लेती मैं<br />
और मेरी<br />
सतरंगी चुनर के रंग<br />
कहाँ खो गए<br />
अब के क्यों<br />
बर्फ सी जमी है<br />
सावन मैं<br />
एहसास भी बर्फ सी<br />
सफ़ेद चादर ओढ़े<br />
सो गए.बंजारा मनtag:openbooksonline.com,2010-07-12:5170231:BlogPost:100652010-07-12T16:43:13.000Zrajni chhabrahttp://openbooksonline.com/profile/rajnichhabra
जब बंजारा मन<br />
ज़िन्दगी के किसी<br />
अनजान मोड़ पे<br />
पा जाता है<br />
मनचाहा हमसफ़र<br />
चाहता है,कभी न<br />
रुके यह सफ़र<br />
एक एक पल बन जाये<br />
एक युग का और<br />
सफ़र यूं ही चलता रहे<br />
युग युगांतर
जब बंजारा मन<br />
ज़िन्दगी के किसी<br />
अनजान मोड़ पे<br />
पा जाता है<br />
मनचाहा हमसफ़र<br />
चाहता है,कभी न<br />
रुके यह सफ़र<br />
एक एक पल बन जाये<br />
एक युग का और<br />
सफ़र यूं ही चलता रहे<br />
युग युगांतरएक दुआtag:openbooksonline.com,2010-07-07:5170231:BlogPost:92222010-07-07T19:00:00.000Zrajni chhabrahttp://openbooksonline.com/profile/rajnichhabra
एक दुआ<br />
--------<br />
वोह उम्र के उस रुपहले दौर से<br />
गुज़र रही है<br />
जब दिन सोने के और<br />
रातें चांदी सी<br />
नज़र आती हैं<br />
जब जी चाहता है<br />
आँचल में समेट ले तारे<br />
बहारों से बटोर ले रंग सारे<br />
जब आईने में खुद को निहार<br />
आता है गालों पर<br />
सिंदूरी गुलाब सा निखार<br />
और खुद पर ही गरूर हो जाता है<br />
जब सतरंगी सपनों की दुनिया मे खोये<br />
इंसान खुद से ही बेखबर नज़र आता है<br />
जब तितली सी शोख उड़ान लिए<br />
बगिया में इतराने को जी चाहता है<br />
जब पतंग सी पुलकित उमंग लिए<br />
आकाश नापने को जी चाहता है<br />
जब मन की छोटी से छोटी बात<br />
बताई जाती है सहेली को<br />
जब महसूस होता…
एक दुआ<br />
--------<br />
वोह उम्र के उस रुपहले दौर से<br />
गुज़र रही है<br />
जब दिन सोने के और<br />
रातें चांदी सी<br />
नज़र आती हैं<br />
जब जी चाहता है<br />
आँचल में समेट ले तारे<br />
बहारों से बटोर ले रंग सारे<br />
जब आईने में खुद को निहार<br />
आता है गालों पर<br />
सिंदूरी गुलाब सा निखार<br />
और खुद पर ही गरूर हो जाता है<br />
जब सतरंगी सपनों की दुनिया मे खोये<br />
इंसान खुद से ही बेखबर नज़र आता है<br />
जब तितली सी शोख उड़ान लिए<br />
बगिया में इतराने को जी चाहता है<br />
जब पतंग सी पुलकित उमंग लिए<br />
आकाश नापने को जी चाहता है<br />
जब मन की छोटी से छोटी बात<br />
बताई जाती है सहेली को<br />
जब महसूस होता है,सुलझा सकते हैं<br />
जीवन की हर पहेली को<br />
<br />
पर वोह मासूम नहीं जानती<br />
कितनी नादान है वोह<br />
डोर किसी हाथ में थामे बिना पतंग उढ़ नहीं सकती<br />
तितले भी बगिया में बेखौफ घूम नहीं सकती<br />
धूमिल हो जाती है सतरंगी इन्द्रधनुषी छवि भी<br />
सिर्फ पैदा करते हैं खुद के जज़्बात<br />
सुनहले दिन और रुपहले तारों भरी रात<br />
<br />
या खुदा!उसकी मासूमियत यूं हो बनाये रखना<br />
ज़िन्दगी में आशा के दीप जलाये रखना<br />
सतरंगी सपनों का संसार न बिखरे कभी<br />
उसके जीवन में बहारों के रंग सजाये रखनाkirdaartag:openbooksonline.com,2010-07-01:5170231:BlogPost:84572010-07-01T08:58:03.000Zrajni chhabrahttp://openbooksonline.com/profile/rajnichhabra
किरदार<br />
-------<br />
वक़्त के लम्बे सफ़र में<br />
किरदार<br />
यूं बदल जाते हैं<br />
वोह, जो कल<br />
चला करते थे<br />
थामे अंगुली हमारी<br />
वही आज<br />
आगे बढ़<br />
हमें राह<br />
दिखाते हैं
किरदार<br />
-------<br />
वक़्त के लम्बे सफ़र में<br />
किरदार<br />
यूं बदल जाते हैं<br />
वोह, जो कल<br />
चला करते थे<br />
थामे अंगुली हमारी<br />
वही आज<br />
आगे बढ़<br />
हमें राह<br />
दिखाते हैंघरtag:openbooksonline.com,2010-06-21:5170231:BlogPost:77972010-06-21T05:25:47.000Zrajni chhabrahttp://openbooksonline.com/profile/rajnichhabra
घर<br />
प्यार औ अपनत्व<br />
जब दीवारों की<br />
छत बन जाता है<br />
वो मकान<br />
घर कहलाता है<br />
रजनी छाबरा
घर<br />
प्यार औ अपनत्व<br />
जब दीवारों की<br />
छत बन जाता है<br />
वो मकान<br />
घर कहलाता है<br />
रजनी छाबराAAS KA PANCHHItag:openbooksonline.com,2010-06-18:5170231:BlogPost:75152010-06-18T19:30:00.000Zrajni chhabrahttp://openbooksonline.com/profile/rajnichhabra
आस का पंछी<br />
मन इक् आस का पंछी<br />
मत क़ैद करो इसे<br />
क़ैद होंने के लिए<br />
क्यां इंसान के<br />
तन कम हैं
आस का पंछी<br />
मन इक् आस का पंछी<br />
मत क़ैद करो इसे<br />
क़ैद होंने के लिए<br />
क्यां इंसान के<br />
तन कम हैंSAATHtag:openbooksonline.com,2010-06-15:5170231:BlogPost:72992010-06-15T19:10:43.000Zrajni chhabrahttp://openbooksonline.com/profile/rajnichhabra
उमर भर<br />
का साथ<br />
निभ जाता<br />
कभी एक ही<br />
पल मैं<br />
बुलबुले मैं<br />
उभरने वाले<br />
अक्स की उमर<br />
होती है<br />
फक्त एक ही<br />
पल की
उमर भर<br />
का साथ<br />
निभ जाता<br />
कभी एक ही<br />
पल मैं<br />
बुलबुले मैं<br />
उभरने वाले<br />
अक्स की उमर<br />
होती है<br />
फक्त एक ही<br />
पल कीमाँ के आँचल सीtag:openbooksonline.com,2010-06-14:5170231:BlogPost:71422010-06-14T11:05:38.000Zrajni chhabrahttp://openbooksonline.com/profile/rajnichhabra
सर्दी मैं गर्मी और<br />
गरमी मैं शीतलता<br />
का एहसास<br />
प्यार के ताने बने से बुनी<br />
ममतामयी माँ<br />
के आँचल सी<br />
खादी केवल नाम नही हैं<br />
खादी केवल काम नहीं हैं<br />
खादी परिचायक है<br />
सवाव्लंबन का<br />
स्वाभिमान का<br />
देश के प्रति<br />
आपके अभिमान का<br />
रंग उमंग और<br />
प्यार के धागे से बुनी<br />
देश ही नहीं<br />
विदेश मैं भी पाए विस्तार<br />
खादी को बनाइये<br />
अपना जूनून<br />
खादी दे<br />
तन मन को सुकून
सर्दी मैं गर्मी और<br />
गरमी मैं शीतलता<br />
का एहसास<br />
प्यार के ताने बने से बुनी<br />
ममतामयी माँ<br />
के आँचल सी<br />
खादी केवल नाम नही हैं<br />
खादी केवल काम नहीं हैं<br />
खादी परिचायक है<br />
सवाव्लंबन का<br />
स्वाभिमान का<br />
देश के प्रति<br />
आपके अभिमान का<br />
रंग उमंग और<br />
प्यार के धागे से बुनी<br />
देश ही नहीं<br />
विदेश मैं भी पाए विस्तार<br />
खादी को बनाइये<br />
अपना जूनून<br />
खादी दे<br />
तन मन को सुकूनTakdeertag:openbooksonline.com,2010-06-04:5170231:BlogPost:54552010-06-04T03:20:44.000Zrajni chhabrahttp://openbooksonline.com/profile/rajnichhabra
तकदीर<br />
गर रोने सी ही<br />
बदल सकती तकदीर<br />
यह ज़मीन बस सैलाब होती<br />
गर अश्क बहाने सी होती<br />
हर गम की तदबीर<br />
यह नम आंखें<br />
कभी बेआब न होती
तकदीर<br />
गर रोने सी ही<br />
बदल सकती तकदीर<br />
यह ज़मीन बस सैलाब होती<br />
गर अश्क बहाने सी होती<br />
हर गम की तदबीर<br />
यह नम आंखें<br />
कभी बेआब न होतीkaash!tag:openbooksonline.com,2010-06-02:5170231:BlogPost:51902010-06-02T03:30:00.000Zrajni chhabrahttp://openbooksonline.com/profile/rajnichhabra
काश!<br />
<br />
<br />
काश!अपना कह देने भर से ही<br />
<br />
गैर अपने होते<br />
<br />
तो अनजान शहर में भी<br />
<br />
अजनबी लोगों से घिरे<br />
<br />
खुशनमा सपने होते<br />
<br />
मगर हकीकत तो यह की<br />
<br />
अपने ही शहर में अपने<br />
<br />
बेगानों सा मिला करते हैं<br />
<br />
क्यों खफा रहते हैं आप हम से<br />
<br />
इस पर यह गिला करते हैं<br />
<br />
<br />
<br />
रजनी छाबरा
काश!<br />
<br />
<br />
काश!अपना कह देने भर से ही<br />
<br />
गैर अपने होते<br />
<br />
तो अनजान शहर में भी<br />
<br />
अजनबी लोगों से घिरे<br />
<br />
खुशनमा सपने होते<br />
<br />
मगर हकीकत तो यह की<br />
<br />
अपने ही शहर में अपने<br />
<br />
बेगानों सा मिला करते हैं<br />
<br />
क्यों खफा रहते हैं आप हम से<br />
<br />
इस पर यह गिला करते हैं<br />
<br />
<br />
<br />
रजनी छाबराबाल श्रमिकtag:openbooksonline.com,2010-05-31:5170231:BlogPost:50282010-05-31T20:03:50.000Zrajni chhabrahttp://openbooksonline.com/profile/rajnichhabra
बाल श्रमिक<br />
वह जा रहा है बाल श्रमिक<br />
अधनंगे बदन पर लू के थपेड़े सहते<br />
तपती,सुलगती दुपहरी मैं,सर पर उठाये<br />
ईंटों से भरी तगारी<br />
सिर्फ तगारी का बोझ नहीं<br />
मृत आकांक्षाओं की अर्थी<br />
सर पर उठाये<br />
नन्हे श्रमिक के बोझिल कदम डगमगाए<br />
तन मन की व्यथा किसे सुनाये<br />
याद आ रहा है उसे<br />
मां जब मजदूरी पर जाती और रखती<br />
अपने सर पर ईंटों से भरी तगारी<br />
साथ ही रख देती दो ईंटें उसके सर पर भी<br />
जिन हालात मैं खुद जे रही थी<br />
ढाल दिया उसी मैं बालक को भी<br />
माँ के पथ का बालक<br />
नित करता अनुकरण<br />
लीक पर चलते चलते,<br />
खो गया कहीं मासूम बचपन<br />
शिखा की डगर…
बाल श्रमिक<br />
वह जा रहा है बाल श्रमिक<br />
अधनंगे बदन पर लू के थपेड़े सहते<br />
तपती,सुलगती दुपहरी मैं,सर पर उठाये<br />
ईंटों से भरी तगारी<br />
सिर्फ तगारी का बोझ नहीं<br />
मृत आकांक्षाओं की अर्थी<br />
सर पर उठाये<br />
नन्हे श्रमिक के बोझिल कदम डगमगाए<br />
तन मन की व्यथा किसे सुनाये<br />
याद आ रहा है उसे<br />
मां जब मजदूरी पर जाती और रखती<br />
अपने सर पर ईंटों से भरी तगारी<br />
साथ ही रख देती दो ईंटें उसके सर पर भी<br />
जिन हालात मैं खुद जे रही थी<br />
ढाल दिया उसी मैं बालक को भी<br />
माँ के पथ का बालक<br />
नित करता अनुकरण<br />
लीक पर चलते चलते,<br />
खो गया कहीं मासूम बचपन<br />
शिखा की डगर पे चलने का अवसर<br />
मिला ही नहीं कभी<br />
उसे तो विरासत मैं मिली<br />
अशिक्षा की यही कटीली राह<br />
<br />
काश वह रोज़ी रोटी की फिक्र के<br />
दायरे से निकल पाए<br />
थोडा वक़्त खुद के लिए बचाए<br />
जिसमे पड़ लिख कर<br />
संवार ले वोह बाकी की उम्र<br />
बचपन के मरने का जी दुःख उसने झेला<br />
आने वाले वक़्त में,वह कहानी<br />
उसकी संतान न दोहराए<br />
पड़ने की उम्र में ,श्रमिक न बने<br />
कंधे पर बस्ता उठाये<br />
शान से पाठशाला जाए<br />
<br />
रजनी छाबराzara soch lotag:openbooksonline.com,2010-05-28:5170231:BlogPost:46842010-05-28T09:10:05.000Zrajni chhabrahttp://openbooksonline.com/profile/rajnichhabra
ज़रा सोच लो<br />
------------<br />
दूसरों को ठोकरें मारने वालो<br />
ज़रा सोच लो एक पल को<br />
पराये दर्द का एहसास<br />
तुम्हे भी सालेगा तब<br />
ज़ख़्मी हो जायेंगे<br />
तुम्हारे ही पाँव जब<br />
दूसरों को ठोकरें मारते मारते<br />
<br />
रजनी छाबरा
ज़रा सोच लो<br />
------------<br />
दूसरों को ठोकरें मारने वालो<br />
ज़रा सोच लो एक पल को<br />
पराये दर्द का एहसास<br />
तुम्हे भी सालेगा तब<br />
ज़ख़्मी हो जायेंगे<br />
तुम्हारे ही पाँव जब<br />
दूसरों को ठोकरें मारते मारते<br />
<br />
रजनी छाबराLORItag:openbooksonline.com,2010-05-22:5170231:BlogPost:42062010-05-22T04:45:03.000Zrajni chhabrahttp://openbooksonline.com/profile/rajnichhabra
लोरी---एक राजस्थानी लघुकथा<br />
फुटपाथ पर जीवन बितानेवाली एक गरीब औरत,भूखे बालक को गोद में लिए बैठी थी.भूखे बालक की हालत बिगड़ती जा रही थी.<br />
थोड़ी दूरी पर,बरसों से जनता को सुंदर,सुंदर,मीठे मीठे सपने दिखने वाले नेताजी भाषण बाँट रहे थे.<br />
भाषण के बीच में बालक रो दिया.माँ ने कह,"चुप,सुन,नेताजी कितनी मीठी लोरी सुना रहें हैं." नेताजी कह रहे थे,"मैं देश से गरीबी-महंगाई मिटा दूंगा.देश फिर से सोने की चिड़िया बन जायेगा,घी दूध की नदियाँ बहेंगी<br />
.कोई भूखा नहीं मरेगा...."<br />
यह सुन कर खुश होती हुई माँ ने सुख समाचार…
लोरी---एक राजस्थानी लघुकथा<br />
फुटपाथ पर जीवन बितानेवाली एक गरीब औरत,भूखे बालक को गोद में लिए बैठी थी.भूखे बालक की हालत बिगड़ती जा रही थी.<br />
थोड़ी दूरी पर,बरसों से जनता को सुंदर,सुंदर,मीठे मीठे सपने दिखने वाले नेताजी भाषण बाँट रहे थे.<br />
भाषण के बीच में बालक रो दिया.माँ ने कह,"चुप,सुन,नेताजी कितनी मीठी लोरी सुना रहें हैं." नेताजी कह रहे थे,"मैं देश से गरीबी-महंगाई मिटा दूंगा.देश फिर से सोने की चिड़िया बन जायेगा,घी दूध की नदियाँ बहेंगी<br />
.कोई भूखा नहीं मरेगा...."<br />
यह सुन कर खुश होती हुई माँ ने सुख समाचार सुनाने के लिए,बालक को झकझोरा.बालक भूख से मर चुका था.<br />
लेखक:श्री लक्ष्मीनारायण रंगा<br />
अनुवाद :रजनी छाबरामन की पतंगtag:openbooksonline.com,2010-05-15:5170231:BlogPost:37332010-05-15T08:30:00.000Zrajni chhabrahttp://openbooksonline.com/profile/rajnichhabra
पतंग सा शोख मन<br />
लिए <strong>चंचलता</strong> अपार<br />
छूना चाहता है<br />
पूरे नभ का विस्तार<br />
पर्वत,सागर,अट्टालिकाएं<br />
अनदेखी कर<br />
सब बाधाएं<br />
पग आगे ही आगे बढाएं<br />
<br />
ज़िंदगी की थकान को<br />
दूर करने के चाहिए<br />
मन की पतंग<br />
और सपनो का आस्मां<br />
जिसमे मन भेर सके<br />
बेहिचक,सतरंगी उड़ान<br />
<br />
पर क्यों थमाएं डोर<br />
पराये हाथों मैं<br />
हर पल खौफ<br />
रहे मन मैं<br />
जाने कब कट जाएँ<br />
कब लुट जाएँ<br />
<br />
चंचलता,चपलता<br />
लिए देखे मन<br />
ज़िन्दगी के आईने<br />
पर सच के धरातल<br />
पर टिके कदम ही<br />
देते ज़िंदगी को मायेने
पतंग सा शोख मन<br />
लिए <strong>चंचलता</strong> अपार<br />
छूना चाहता है<br />
पूरे नभ का विस्तार<br />
पर्वत,सागर,अट्टालिकाएं<br />
अनदेखी कर<br />
सब बाधाएं<br />
पग आगे ही आगे बढाएं<br />
<br />
ज़िंदगी की थकान को<br />
दूर करने के चाहिए<br />
मन की पतंग<br />
और सपनो का आस्मां<br />
जिसमे मन भेर सके<br />
बेहिचक,सतरंगी उड़ान<br />
<br />
पर क्यों थमाएं डोर<br />
पराये हाथों मैं<br />
हर पल खौफ<br />
रहे मन मैं<br />
जाने कब कट जाएँ<br />
कब लुट जाएँ<br />
<br />
चंचलता,चपलता<br />
लिए देखे मन<br />
ज़िन्दगी के आईने<br />
पर सच के धरातल<br />
पर टिके कदम ही<br />
देते ज़िंदगी को मायेनेSAANJH KE ANDHERE MAINtag:openbooksonline.com,2010-05-13:5170231:BlogPost:36352010-05-13T03:39:54.000Zrajni chhabrahttp://openbooksonline.com/profile/rajnichhabra
सांझ<br />
के झुटपुट<br />
अंधेरे मैं<br />
दुआ के लिए<br />
उठा कर हाथ<br />
क्या<br />
मांगना<br />
टूटते<br />
हुए तारे से<br />
जो अपना<br />
ही<br />
अस्तित्व<br />
नहीं रख सकता<br />
कायम<br />
माँगना ही है तो मांगो<br />
डूबते<br />
हुए सूरज से<br />
जो अस्त हो कर भी<br />
नही होता पस्त<br />
अस्त होता है वो,<br />
एक नए सूर्योदय के लिए<br />
अपनी स्वर्णिम किरणों से<br />
रोशन करने को<br />
सारा ज़हान
सांझ<br />
के झुटपुट<br />
अंधेरे मैं<br />
दुआ के लिए<br />
उठा कर हाथ<br />
क्या<br />
मांगना<br />
टूटते<br />
हुए तारे से<br />
जो अपना<br />
ही<br />
अस्तित्व<br />
नहीं रख सकता<br />
कायम<br />
माँगना ही है तो मांगो<br />
डूबते<br />
हुए सूरज से<br />
जो अस्त हो कर भी<br />
नही होता पस्त<br />
अस्त होता है वो,<br />
एक नए सूर्योदय के लिए<br />
अपनी स्वर्णिम किरणों से<br />
रोशन करने को<br />
सारा ज़हान