Kalipad Prasad Mandal's Posts - Open Books Online2024-03-29T14:02:22ZKalipad Prasad Mandalhttp://openbooksonline.com/profile/KalipadPrasadMandalhttp://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/2991289852?profile=RESIZE_48X48&width=48&height=48&crop=1%3A1http://openbooksonline.com/profiles/blog/feed?user=2wn3wj39nfkyt&xn_auth=noएक व्यंग रचनाtag:openbooksonline.com,2018-02-03:5170231:BlogPost:9124772018-02-03T11:04:02.000ZKalipad Prasad Mandalhttp://openbooksonline.com/profile/KalipadPrasadMandal
<p></p>
<p>कभी है ऊपर कभी नीचे, यह साँप सीडी का खेल</p>
<p>बजट में मंत्री खेलते हैं, यह साँप सीडी का खेल |</p>
<p></p>
<p>आँकड़ों का खेल है सबकुछ, आँकड़े सब जादुई का</p>
<p>टैक्स घटाया सेस बढ़ाया, यह साँप सीडी का खेल |</p>
<p> </p>
<p>एक थैली का मॉल निकाल, रखा दूसरी थैली में</p>
<p>नया बोतल शराब पुरानी, यह साँप सीडी का खेल |</p>
<p></p>
<p>सब चीजों का भाव बढ़ गए, फिर भी बजट गरीबों का</p>
<p>उलटी गंगा बही खेल में, यह साँप सीडी का खेल |</p>
<p></p>
<p>आशाओं के दीप जलाकर, उस पर पानी डाल…</p>
<p></p>
<p>कभी है ऊपर कभी नीचे, यह साँप सीडी का खेल</p>
<p>बजट में मंत्री खेलते हैं, यह साँप सीडी का खेल |</p>
<p></p>
<p>आँकड़ों का खेल है सबकुछ, आँकड़े सब जादुई का</p>
<p>टैक्स घटाया सेस बढ़ाया, यह साँप सीडी का खेल |</p>
<p> </p>
<p>एक थैली का मॉल निकाल, रखा दूसरी थैली में</p>
<p>नया बोतल शराब पुरानी, यह साँप सीडी का खेल |</p>
<p></p>
<p>सब चीजों का भाव बढ़ गए, फिर भी बजट गरीबों का</p>
<p>उलटी गंगा बही खेल में, यह साँप सीडी का खेल |</p>
<p></p>
<p>आशाओं के दीप जलाकर, उस पर पानी डाल दिया</p>
<p>किससे लिया किसको दिया जाने साँप सीडी का खेल |</p>
<p></p>
<p>मुदित बड़े सभी सांसद हुए, जोरदार तालियाँ बजी</p>
<p>वेतन वृद्धि की ख़ुशी अपार, यह साँप सीडी का खेल |</p>
<p></p>
<p>मध्यम वर्गी वेतन भोगी, सरकारी या सिर्फ निजी</p>
<p>हवा हल्क में अटक गयी है, यह साँप सीडी का खेल |</p>
<p></p>
<p>उज्ज्वला योजना निराश है, गैस भरने पैसे नहीं</p>
<p>सिलेंडर संग फोटो खींचा, यह साँप सीडी का खेल|</p>
<p></p>
<p>पाँच करोड़ नियुक्ति चाहिए, वादा किया सत्तर लाख</p>
<p>अब राम नाम भजलो बाकी, यह साँप सीडी का खेल | </p>
<p></p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित </p>लावणी छंद पर आधारित रचना =कालीपद 'प्रसाद'tag:openbooksonline.com,2018-01-28:5170231:BlogPost:9112592018-01-28T04:47:53.000ZKalipad Prasad Mandalhttp://openbooksonline.com/profile/KalipadPrasadMandal
<p></p>
<p>मुसीबतों से लोकतंत्र को, जल्दी उबारना होगा</p>
<p>निर्धनों के हक़ में देश में कानून बदलना होगा |</p>
<p></p>
<p>निर्धन नहीं खड़ा हो सकता, पार्षद के भी चुनाव में</p>
<p>लाखों रुपये चाहिए उसे, चुनाव दंगल लड़ने में |</p>
<p></p>
<p>गणतंत्र अभी धनतंत्र हुआ, धनाढ्य चुनाव लड़ते हैं</p>
<p>गरीब कैसे लडेगा भला, पास न लाखो रूपये हैं’ |</p>
<p></p>
<p>धनबल बाहुबल की प्रचुरता, ताकत बड़ी अमीरों की</p>
<p>निर्धनता ही कमजोरी है, इस देश के गरीबो की |</p>
<p></p>
<p>भ्रष्टाचार और महँगाई, साथ यौन शोषण भी…</p>
<p></p>
<p>मुसीबतों से लोकतंत्र को, जल्दी उबारना होगा</p>
<p>निर्धनों के हक़ में देश में कानून बदलना होगा |</p>
<p></p>
<p>निर्धन नहीं खड़ा हो सकता, पार्षद के भी चुनाव में</p>
<p>लाखों रुपये चाहिए उसे, चुनाव दंगल लड़ने में |</p>
<p></p>
<p>गणतंत्र अभी धनतंत्र हुआ, धनाढ्य चुनाव लड़ते हैं</p>
<p>गरीब कैसे लडेगा भला, पास न लाखो रूपये हैं’ |</p>
<p></p>
<p>धनबल बाहुबल की प्रचुरता, ताकत बड़ी अमीरों की</p>
<p>निर्धनता ही कमजोरी है, इस देश के गरीबो की |</p>
<p></p>
<p>भ्रष्टाचार और महँगाई, साथ यौन शोषण भी है</p>
<p>कालाबाजारी के भीषण संकटों के भँवर भी है |</p>
<p></p>
<p>नेता आफिसर कर्मचारी, सब जेब भरने लगे हैं |</p>
<p>अब तो न्यायाधीशों पर भी, ऊँगली उठाने लगे हैं |</p>
<p></p>
<p>राजनीतिक अपराधीकरण, अब सभी रोकना होगा</p>
<p>विषधरों के सिर को शक्ति से,अब हमें कुचलना होगा |</p>
<p></p>
<p>चुनाव कानून बने ऐसा, अपराधी अपात्र होगा</p>
<p>गुनाह करने वाले सबको, पावक में जलना होगा |</p>
<p></p>
<p>शर्म की बात यह है ‘काली’, बोलने झेंप होती है</p>
<p>मृत्य की प्रमाण पत्र लेने, रिश्वत देने पड़ती है |</p>
<p></p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित <br/> </p>ग़ज़ल-ये' माया मोह का चक्कर है’ कैसे काटे’ बंधन को|tag:openbooksonline.com,2018-01-23:5170231:BlogPost:9106432018-01-23T05:32:55.000ZKalipad Prasad Mandalhttp://openbooksonline.com/profile/KalipadPrasadMandal
<p>काफिया :अन ; रदीफ़ : को</p>
<p>बहर : १२२२ १२२२ १२२२ १२२२</p>
<p></p>
<p>अलग अलग बात करते सब, नहीं जाने ये' जीवन को</p>
<p>ये' माया मोह का चक्कर है’ कैसे काटे’ बंधन को|</p>
<p></p>
<p>किए आईना’दारी मुग्ध नारी जाति को जग में</p>
<p>नयन मुख के सजावट बीच भूले नारी’ कंगन को |</p>
<p></p>
<p>सुधा रस फूल का पीने दो’ अलि को पर कली को छोड़</p>
<p>कली को नाश कर अब क्यों उजाड़ो पुष्प गुलशन को|</p>
<p></p>
<p>बदी की है वही जिसके लिए हमने दुआ माँगी</p>
<p>न ईश्वर दोस्त ऐसे दे मुझे या मेरे…</p>
<p>काफिया :अन ; रदीफ़ : को</p>
<p>बहर : १२२२ १२२२ १२२२ १२२२</p>
<p></p>
<p>अलग अलग बात करते सब, नहीं जाने ये' जीवन को</p>
<p>ये' माया मोह का चक्कर है’ कैसे काटे’ बंधन को|</p>
<p></p>
<p>किए आईना’दारी मुग्ध नारी जाति को जग में</p>
<p>नयन मुख के सजावट बीच भूले नारी’ कंगन को |</p>
<p></p>
<p>सुधा रस फूल का पीने दो’ अलि को पर कली को छोड़</p>
<p>कली को नाश कर अब क्यों उजाड़ो पुष्प गुलशन को|</p>
<p></p>
<p>बदी की है वही जिसके लिए हमने दुआ माँगी</p>
<p>न ईश्वर दोस्त ऐसे दे मुझे या मेरे दुश्मन को |</p>
<p></p>
<p>निगाह तेरी बड़ी पैनी मेरे दिल छेद डाली है</p>
<p>जिगर है खूंचकाँ मेरे सँभालो नज्र सोजन को |</p>
<p></p>
<p>धरा पर है अभी फिर आसमां पर है, ये' मन चंचल</p>
<p> नियंत्रण करना’ है मुश्किल बड़ा मन तीव्र तौसन को |</p>
<p></p>
<p>नया मौसम नया दस्ता नया है खेत खलिहान आज</p>
<p>कभी हम देखते हैं खेत फिर आबाद खिरमन को |</p>
<p></p>
<p>लुटेरा और नेता कर्म से तो एक जैसे हैं</p>
<p>भले दो नेता’ को गाली, दुआ ही देना’ रहजन को</p>
<p>|</p>
<p>घटा छाया दिवाकर भी, छुपा सावन बहुत रोया</p>
<p>सुनाए ना सुने ‘काली’ हरी चूड़ियों की’ खनखन को |</p>
<p> </p>
<p>मौलिक एवं अप्रकाशित </p>ग़ज़ल -महात्मा जो हैं, वो करम देखते हैं=कालीपद 'प्रसद'tag:openbooksonline.com,2018-01-17:5170231:BlogPost:9099442018-01-17T06:00:00.000ZKalipad Prasad Mandalhttp://openbooksonline.com/profile/KalipadPrasadMandal
<p>काफिया : अम रदीफ़: देखते हैं</p>
<p>बह्र : १२२ १२२ १२२ १२२</p>
<p></p>
<p>महात्मा जो हैं, वो करम देखते हैं</p>
<p>अधम लोग उसका, जनम देखते हैं |</p>
<p></p>
<p>बहुत है दुखी कौम गम देखते हैं</p>
<p>सुखी कौम गम को तो’ कम देखते हैं |</p>
<p></p>
<p>अतिथि मुल्क में जो भी’ आये यहाँ पर </p>
<p>मनोहर बियाबाँ, इरम देखते है |</p>
<p></p>
<p>दिशा हीन सब नौजवान और करते क्या</p>
<p>वज़ीरों के’ नक़्शे कदम देखते हैं |</p>
<p></p>
<p>किया देश हित काम जनता ही’ देखे</p>
<p>विपक्षी तो’ केवल सितम देखते हैं…</p>
<p>काफिया : अम रदीफ़: देखते हैं</p>
<p>बह्र : १२२ १२२ १२२ १२२</p>
<p></p>
<p>महात्मा जो हैं, वो करम देखते हैं</p>
<p>अधम लोग उसका, जनम देखते हैं |</p>
<p></p>
<p>बहुत है दुखी कौम गम देखते हैं</p>
<p>सुखी कौम गम को तो’ कम देखते हैं |</p>
<p></p>
<p>अतिथि मुल्क में जो भी’ आये यहाँ पर </p>
<p>मनोहर बियाबाँ, इरम देखते है |</p>
<p></p>
<p>दिशा हीन सब नौजवान और करते क्या</p>
<p>वज़ीरों के’ नक़्शे कदम देखते हैं |</p>
<p></p>
<p>किया देश हित काम जनता ही’ देखे</p>
<p>विपक्षी तो’ केवल सितम देखते हैं |</p>
<p></p>
<p>तमाशा वही फ़क्त आईना’ दारी</p>
<p>वही “काली’” तस्वीर हम देखते हैं |</p>
<p></p>
<p>बियाबाँ=कानन, जंगल</p>
<p>इरम=स्वर्ण भूमि</p>
<p>आईना’दारी=आत्म श्रिंगार</p>
<p><span> </span></p>
<p>मौलिक और अप्रकाशित</p>ग़ज़ल -हुक्म की तामील करना कोई’ बेदाद नहीं-कालीपद 'प्रसाद'tag:openbooksonline.com,2018-01-13:5170231:BlogPost:9090772018-01-13T04:11:25.000ZKalipad Prasad Mandalhttp://openbooksonline.com/profile/KalipadPrasadMandal
<p>काफिया : आद ; रदीफ़ :नहीं</p>
<p>बहर : २१२२ २१२२ २१२२ २२(११२)</p>
<p></p>
<p>हुक्म की तामील करना कोई’ बेदाद नहीं</p>
<p>बादशाही सैनिकों से कोई’ फ़रियाद नहीं |</p>
<p></p>
<p>“देशवासी की तरक्की हो” पुराना नारा</p>
<p>है नई बोतल, सुरा में तो<span>’</span> ईजाद नहीं |</p>
<p></p>
<p>भक्त था वह, मूर्ति पूजा की लगन से उसने</p>
<p>द्रौण से सीखा सही वह, द्रौण उस्ताद नहीं |</p>
<p></p>
<p>देश है आज़ाद, हैं आज़ाद भारतवासी</p>
<p>किन्तु दकियानूसी’ धार्मिक सोच आज़ाद नहीं |</p>
<p></p>
<p>लूटने का मामला…</p>
<p>काफिया : आद ; रदीफ़ :नहीं</p>
<p>बहर : २१२२ २१२२ २१२२ २२(११२)</p>
<p></p>
<p>हुक्म की तामील करना कोई’ बेदाद नहीं</p>
<p>बादशाही सैनिकों से कोई’ फ़रियाद नहीं |</p>
<p></p>
<p>“देशवासी की तरक्की हो” पुराना नारा</p>
<p>है नई बोतल, सुरा में तो<span>’</span> ईजाद नहीं |</p>
<p></p>
<p>भक्त था वह, मूर्ति पूजा की लगन से उसने</p>
<p>द्रौण से सीखा सही वह, द्रौण उस्ताद नहीं |</p>
<p></p>
<p>देश है आज़ाद, हैं आज़ाद भारतवासी</p>
<p>किन्तु दकियानूसी’ धार्मिक सोच आज़ाद नहीं |</p>
<p></p>
<p>लूटने का मामला है, लूटते सब नेता</p>
<p>दीखते ये नेक पर ये, कोई’ अपबाद नहीं |</p>
<p></p>
<p>चोंच से चुगकर सभी खाए परिंदे जैसे</p>
<p>सब गए छुट्टी बिताने कोई सैय्याद नहीं |</p>
<p></p>
<p>प्रेम आँगन में बहारें आती’ थी बिन मधुमास</p>
<p>अब सनम वो प्यार का जागीर आबाद नहीं |</p>
<p></p>
<p>जुमले’ बाजी में मज़ा आता था’ पहले पहले</p>
<p>किन्तु अब तो सब पुराने जुमले’ में शाद नहीं |</p>
<p></p>
<p>करलो’ जितने चाहे’ झूठे वादे’ सब करते हैं</p>
<p>ये चुनावी खेल में कोई भी’ तो बा’द नहीं |</p>
<p></p>
<p>जन्म हिन्दुस्तान, पाकिस्तान की गाते गीत</p>
<p>देश द्रोही जो है’ ‘काली’ बैध औलाद नहीं |</p>
<p></p>
<p>शब्दार्थ :</p>
<p>बेदाद : अत्याचार ; ईजाद =नयापन</p>
<p>सैय्याद = चिड़ीमार, व्याध,</p>
<p>शाद =ख़ुशी , बा’द=पीछे</p>
<p></p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित </p>
<p><span> </span></p>ग़ज़ल -चहरा छुपा रखा है’ सनम ने नकाब में- कालीपद 'प्रसाद'tag:openbooksonline.com,2018-01-08:5170231:BlogPost:9083622018-01-08T04:30:00.000ZKalipad Prasad Mandalhttp://openbooksonline.com/profile/KalipadPrasadMandal
<p></p>
<p>काफिया : आब ; रदीफ़ : में</p>
<p>बहर : २२१ २१२१ १२२१ २१२</p>
<p></p>
<p>चहरा छुपा रखा है’ सनम ने नकाब में</p>
<p>मुहँ बंद किन्तु भौंहे’ चड़ी हैं इताब में |</p>
<p></p>
<p>इंसान जो अज़ीम है’ बेदाग़ है यहाँ </p>
<p>है आग किन्तु दाग नहीं आफताब में |</p>
<p></p>
<p>जाना नहीं है को’ई भी सच और झूठ को</p>
<p>इंसान जी रहे हैं यहाँ’ पर सराब में |</p>
<p></p>
<p>इंसां में’ कर्म दोष है’, जीवात्मा’ में नहीं</p>
<p>है दाग चाँद में, नहीं’ वो ज्योति ताब में |</p>
<p></p>
<p>मदहोश जिस्म और नशीले…</p>
<p></p>
<p>काफिया : आब ; रदीफ़ : में</p>
<p>बहर : २२१ २१२१ १२२१ २१२</p>
<p></p>
<p>चहरा छुपा रखा है’ सनम ने नकाब में</p>
<p>मुहँ बंद किन्तु भौंहे’ चड़ी हैं इताब में |</p>
<p></p>
<p>इंसान जो अज़ीम है’ बेदाग़ है यहाँ </p>
<p>है आग किन्तु दाग नहीं आफताब में |</p>
<p></p>
<p>जाना नहीं है को’ई भी सच और झूठ को</p>
<p>इंसान जी रहे हैं यहाँ’ पर सराब में |</p>
<p></p>
<p>इंसां में’ कर्म दोष है’, जीवात्मा’ में नहीं</p>
<p>है दाग चाँद में, नहीं’ वो ज्योति ताब में |</p>
<p></p>
<p>मदहोश जिस्म और नशीले है’ नैन भी</p>
<p>मय से अधिक नशा है’ तुम्हारे शबाब में |</p>
<p></p>
<p>इक जाम जो पिलाया’ मुझे तुमने’ आँख से</p>
<p>वो अम्न का नशा तो’ नही इस शराब में |</p>
<p></p>
<p>जो एक बार तू ने’ पिलाया सुरा मुझे</p>
<p>कटता तमाम वक्त ते’रे इज़्तिराब में |</p>
<p></p>
<p>क्या हुस्न का बयान करूँ आपके सनम</p>
<p>ऐसा है जो कि आग लगाता है आब में |</p>
<p></p>
<p>मौलिक एवं अप्रकाशित</p>
<p>ज्योतिताब =चाँदनी, उष्मा </p>
<p></p>
<p>मौलिक एवं अप्रकाशित</p>ग़ज़ल-सुन्दर खुशबू फूलों से ही मोहक मंजर लगता है-कालीपद 'प्रसाद'tag:openbooksonline.com,2018-01-02:5170231:BlogPost:9076142018-01-02T03:30:00.000ZKalipad Prasad Mandalhttp://openbooksonline.com/profile/KalipadPrasadMandal
<p>नव वर्ष २०१८ के लिए हार्दिक शुभकामनाओं सहित |</p>
<p>*************************************************</p>
<p></p>
<p>काफिया : अर ;रदीफ़ : लगता है</p>
<p>बहर: २२ २२ २२ २२ २२ २२ २२ २</p>
<p></p>
<p>सुन्दर फूलों की खुशबू मोहक मंजर लगता है |</p>
<p>फागुन आने के पहले ही, होली अवसर लगता है |</p>
<p></p>
<p>मधुमास में’ टेसू चम्पा, और चमेली का है जलवा</p>
<p>श्रृंगार से धरती दुल्हन लगती, गुल जेवर लगता है |</p>
<p></p>
<p>काले बादल बरसे गांवों में, मन का आपा खोकर</p>
<p>जहां भी देखो नीर नीर…</p>
<p>नव वर्ष २०१८ के लिए हार्दिक शुभकामनाओं सहित |</p>
<p>*************************************************</p>
<p></p>
<p>काफिया : अर ;रदीफ़ : लगता है</p>
<p>बहर: २२ २२ २२ २२ २२ २२ २२ २</p>
<p></p>
<p>सुन्दर फूलों की खुशबू मोहक मंजर लगता है |</p>
<p>फागुन आने के पहले ही, होली अवसर लगता है |</p>
<p></p>
<p>मधुमास में’ टेसू चम्पा, और चमेली का है जलवा</p>
<p>श्रृंगार से धरती दुल्हन लगती, गुल जेवर लगता है |</p>
<p></p>
<p>काले बादल बरसे गांवों में, मन का आपा खोकर</p>
<p>जहां भी देखो नीर नीर नीर, महा सागर लगता है |</p>
<p></p>
<p>फैशन शो में सब बच्चे पहने, रंग विरंगे पोषाक</p>
<p>कोई इनमे लगता राजा, कोई जोकर लगता है |</p>
<p></p>
<p>हीरे मोती चुनकर लाये, पहनाई जब ये माला </p>
<p>महँगा है ये हार कहे, वो कंकड़ पत्थर लगता है |</p>
<p></p>
<p>शुभ्र चमकदार चाँदनी का, पर्त पड़ी है पर्वत पर</p>
<p>धरती पर देखो चन्दा का’ बिछाया चादर लगता है |</p>
<p></p>
<p>शीत लहर चलती पहाड़ से, करती सबको दुखी यहाँ</p>
<p>ठण्डी का तीव्र डंक सहना, हमको दूभर लगता है |</p>
<p></p>
<p>पढ़ लिखकर हुए सयाना, टाई बांधे चलता बेटा</p>
<p>ठाठ बाट देखो उसका बेटा तो अफसर लगता है |</p>
<p></p>
<p>मीठी है बोली उनकी, कोयल भी शर्मा जाय किन्तु</p>
<p>‘कालीपद’ का’ करारा तंज ही’, सबको खंजर लगता है |</p>
<p></p>
<p>मौलिक एवं अप्राकाषित</p>
<p><span> </span></p>ग़ज़ल -जिंदगी में है विरल मेरे निराले न्यारे’ दोस्त -कालीपद 'प्रसाद'tag:openbooksonline.com,2017-12-28:5170231:BlogPost:9065302017-12-28T11:19:17.000ZKalipad Prasad Mandalhttp://openbooksonline.com/profile/KalipadPrasadMandal
<p></p>
<p>काफिया :आरे , रदीफ़ दोस्त</p>
<p>२१२२ २१२२ २१२२ २१२ (+१)</p>
<p></p>
<p>जिंदगी में है विरल मेरे निराले न्यारे’ दोस्त</p>
<p>हो गए नाराज़ देखो जो है’ मेरे प्यारे’ दोस्त |</p>
<p></p>
<p>एक जैसे सब नहीं बे-पीर सारी दोस्ती</p>
<p>किन्तु जिसने खाया’ धोखा किसको’ माने प्यारे’ दोस्त |</p>
<p></p>
<p>दोस्ती है नाम के, मैत्री निभाने में नहीं</p>
<p>वक्त मिलते ही शिकायत, और ताने मारे’ दोस्त |</p>
<p></p>
<p>कृष्ण अच्छा था सुदामा से निभाई दोस्ती</p>
<p>ऐसे’ इक आदित्य ज्यो हमको मिले दीदारे’…</p>
<p></p>
<p>काफिया :आरे , रदीफ़ दोस्त</p>
<p>२१२२ २१२२ २१२२ २१२ (+१)</p>
<p></p>
<p>जिंदगी में है विरल मेरे निराले न्यारे’ दोस्त</p>
<p>हो गए नाराज़ देखो जो है’ मेरे प्यारे’ दोस्त |</p>
<p></p>
<p>एक जैसे सब नहीं बे-पीर सारी दोस्ती</p>
<p>किन्तु जिसने खाया’ धोखा किसको’ माने प्यारे’ दोस्त |</p>
<p></p>
<p>दोस्ती है नाम के, मैत्री निभाने में नहीं</p>
<p>वक्त मिलते ही शिकायत, और ताने मारे’ दोस्त |</p>
<p></p>
<p>कृष्ण अच्छा था सुदामा से निभाई दोस्ती</p>
<p>ऐसे’ इक आदित्य ज्यो हमको मिले दीदारे’ दोस्त |</p>
<p></p>
<p>संकटो में साथ दे ऐसा ही’ साथी चाहिए</p>
<p>जिंदगी भर दुःख के साथी है’ वो गम ख्वारे’ दोस्त |</p>
<p></p>
<p>एक या दो चार दिन की दोस्ती अच्छी नहीं</p>
<p>जीस्त भर ‘काली’ खरी यारी निभाने लारे’ दोस्त |</p>
<p></p>
<p>मौलिक एवं अप्रकाशित</p>ग़ज़ल -मैं न कहता था, कि मैं निर्दोष था-कालीपद 'प्रसाद'tag:openbooksonline.com,2017-12-24:5170231:BlogPost:9057202017-12-24T09:00:00.000ZKalipad Prasad Mandalhttp://openbooksonline.com/profile/KalipadPrasadMandal
<p></p>
<p>2122 2122 212</p>
<p></p>
<p>मैं न कहता था, कि मैं निर्दोष था</p>
<p>दोष मुझ पर किन्तु मैं निर्घोष था |</p>
<p></p>
<p>दोष मढने के लिए था चाहिए</p>
<p>देखना इसमें जो’ भी गुणदोष था |</p>
<p></p>
<p>दोष संस्थापन कभी होता था नहीं</p>
<p>पुष्टि वह कानून का उद्घोष था |</p>
<p></p>
<p>किन्तु उनका दोष भी ज्यादा नहीं</p>
<p>शत्रु का तो दृष्टि का वह दोष था |</p>
<p></p>
<p>जान कर भी दोस्त सब रहते तने</p>
<p>मित्र गण भी बोलते दुर्घोष था |</p>
<p></p>
<p>अब तलक थे मानसिक सब कष्ट…</p>
<p></p>
<p>2122 2122 212</p>
<p></p>
<p>मैं न कहता था, कि मैं निर्दोष था</p>
<p>दोष मुझ पर किन्तु मैं निर्घोष था |</p>
<p></p>
<p>दोष मढने के लिए था चाहिए</p>
<p>देखना इसमें जो’ भी गुणदोष था |</p>
<p></p>
<p>दोष संस्थापन कभी होता था नहीं</p>
<p>पुष्टि वह कानून का उद्घोष था |</p>
<p></p>
<p>किन्तु उनका दोष भी ज्यादा नहीं</p>
<p>शत्रु का तो दृष्टि का वह दोष था |</p>
<p></p>
<p>जान कर भी दोस्त सब रहते तने</p>
<p>मित्र गण भी बोलते दुर्घोष था |</p>
<p></p>
<p>अब तलक थे मानसिक सब कष्ट में</p>
<p>फैसला तो ज्यों भरा मधुकोष था |</p>
<p></p>
<p>फैसला सुनकर नए रिश्ते बने </p>
<p>भक्त जन सब ने किया जयघोष था|</p>
<p></p>
<p>निर्घोष= चुप ,नि:शब्द</p>
<p>दुर्घोष= कटु वचन</p>
<p></p>
<p>कालीपद'प्रसाद'</p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित </p>ग़ज़ल -मतभेद दूर करने’ मकालात चाहिए-कालीपद 'प्रसाद'tag:openbooksonline.com,2017-12-22:5170231:BlogPost:9045002017-12-22T03:30:00.000ZKalipad Prasad Mandalhttp://openbooksonline.com/profile/KalipadPrasadMandal
<p></p>
<p>काफिया : आत ; रदीफ़ : चाहिए</p>
<p>बहर : २२१ २१२१ १२२१ २१२</p>
<p><span> </span></p>
<p>मतभेद दूर करने’ मकालात चाहिए</p>
<p>कैसे बने हबीब मुलाक़ात चाहिए |</p>
<p><span> </span></p>
<p>वादा निभाने’ में तुझे’ दिन रात चाहिए</p>
<p>हर क्षेत्र में विकास का’ इस्बात चाहिए |</p>
<p><span> </span></p>
<p>आतंकबाद पल रहा’ है सीमा’ पार में</p>
<p>जासूसी’ करने’ एक अविख्यात चाहिए |</p>
<p><span> </span></p>
<p>तू लाख कर प्रयास नही पा सकेगा’ रब</p>
<p>भगवान को विशेष मनाजात चाहिए…</p>
<p></p>
<p>काफिया : आत ; रदीफ़ : चाहिए</p>
<p>बहर : २२१ २१२१ १२२१ २१२</p>
<p><span> </span></p>
<p>मतभेद दूर करने’ मकालात चाहिए</p>
<p>कैसे बने हबीब मुलाक़ात चाहिए |</p>
<p><span> </span></p>
<p>वादा निभाने’ में तुझे’ दिन रात चाहिए</p>
<p>हर क्षेत्र में विकास का’ इस्बात चाहिए |</p>
<p><span> </span></p>
<p>आतंकबाद पल रहा’ है सीमा’ पार में</p>
<p>जासूसी’ करने’ एक अविख्यात चाहिए |</p>
<p><span> </span></p>
<p>तू लाख कर प्रयास नही पा सकेगा’ रब</p>
<p>भगवान को विशेष मनाजात चाहिए |</p>
<p><span> </span></p>
<p>लातों के’ भूत मानता कब सौम्य बात को</p>
<p>आतंक का अनीफ मकाफ़ात चाहिए |</p>
<p><span> </span></p>
<p>परिवार शह्र में जो भी बेघर हैं’ घर मिले</p>
<p>तब शह्र में अनेक मकानात चाहिए |</p>
<p><span> </span></p>
<p>मदहोश हैं चुनाव ख़ुशी में, मगन सभी</p>
<p>हर गाँव एक एक खराबात चाहिए |</p>
<p><span> </span></p>
<p>नेतायों’ को सुधारने के वास्ते बना</p>
<p>इस कोर्ट का कठोर अशनिपात चाहिए |</p>
<p>शब्दार्थ </p>
<p>मकालात=गूफ्तगू ,बातचीते ( ब ब )</p>
<p>इस्बात= सबूत</p>
<p>अविख्यात =जो ख्याति प्राप्त न हो</p>
<p>मनाजात=ईश प्रार्थना, पूजा</p>
<p>अनीफ –तेज; मकाफात- प्रतिकार</p>
<p>मकानात-मकान (ब ब )</p>
<p>खराबात=मयखाना</p>
<p>अशनिपात=वज्रपात\</p>
<p></p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित </p>ग़ज़ल -सूरते जान जो'रौनक वो, कही' नूर नहीं - कालीपद 'प्रसाद'tag:openbooksonline.com,2017-12-18:5170231:BlogPost:9038612017-12-18T03:00:00.000ZKalipad Prasad Mandalhttp://openbooksonline.com/profile/KalipadPrasadMandal
<p>सूरते जान जो'रौनक वो, कही' नूर नहीं </p>
<p>यह अलग बात है दुनिया में' वो मशहूर नहीं </p>
<p></p>
<p>प्यार करता हूँ’ मैं’ पागल की’ तरह पर क्या’ करूँ</p>
<p>हर समय प्यार जताना उसे’ मंज़ूर नहीं |</p>
<p></p>
<p>सांसदों में अभी’ दागी हैं’ बहुत से नेता</p>
<p>दाग धोना बड़ा’ दू:साध्य है’, नासूर नहीं |</p>
<p></p>
<p>चाह ऐसी कि सज़ा सबको’ मिले जो दोषी</p>
<p>पर सज़ा सबको’ मिले ऐसा’ भी’ दस्तूर नहीं |</p>
<p></p>
<p>लोक सरकार अभी, राज है’ जनता का यह</p>
<p>हैं सभी स्वामी’ यहाँ ,कोई’ भी’ मजदूर नहीं…</p>
<p>सूरते जान जो'रौनक वो, कही' नूर नहीं </p>
<p>यह अलग बात है दुनिया में' वो मशहूर नहीं </p>
<p></p>
<p>प्यार करता हूँ’ मैं’ पागल की’ तरह पर क्या’ करूँ</p>
<p>हर समय प्यार जताना उसे’ मंज़ूर नहीं |</p>
<p></p>
<p>सांसदों में अभी’ दागी हैं’ बहुत से नेता</p>
<p>दाग धोना बड़ा’ दू:साध्य है’, नासूर नहीं |</p>
<p></p>
<p>चाह ऐसी कि सज़ा सबको’ मिले जो दोषी</p>
<p>पर सज़ा सबको’ मिले ऐसा’ भी’ दस्तूर नहीं |</p>
<p></p>
<p>लोक सरकार अभी, राज है’ जनता का यह</p>
<p>हैं सभी स्वामी’ यहाँ ,कोई’ भी’ मजदूर नहीं |</p>
<p></p>
<p>देखने में तो'' महरबां लगे सारे नेता</p>
<p>किन्तु दिल से तो' को’ई भी कभी' अक्रूर नहीं |</p>
<p></p>
<p>थाम कर स्वांस प्रतीक्षा की’ है’ अच्छे दिन का</p>
<p>की है’ जो कोशिशें’ लगता है’ वो’ दिन दूर नहीं |</p>
<p></p>
<p>बन सितारा यहीं ‘काली’ कि गगन नाप लिया</p>
<p>आफताबी है’ चमक पर कभी मगरूर नहीं |</p>
<p></p>
<p>‘अक्रूर= दयाबान, कृपालु</p>
<p></p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित </p>ग़ज़ल -राह सब दुर्गम, लिखाई में है’ आसानी मुझे-कालीपद 'प्रसाद'- संशोधितtag:openbooksonline.com,2017-12-13:5170231:BlogPost:9030632017-12-13T05:00:00.000ZKalipad Prasad Mandalhttp://openbooksonline.com/profile/KalipadPrasadMandal
<p></p>
<p>काफिया आनी : रदीफ़ :मुझे</p>
<p>बह्र :२१२२ २१२२ २१२२ २१२</p>
<p></p>
<p>राह सब दुर्गम, लिखाई में है’ आसानी मुझे</p>
<p>यार दुनिया-ए-सुख़न ही अब है अपनानी मुझे' |</p>
<p></p>
<p>'राज़ की हर बात पर्दे में छुपी थी राज़दाँ</p>
<p>फिर भी जाने क्यों लगी दुश्नाम उरियानी मुझे'|</p>
<p></p>
<p>'मैं नहीं था जानता, ईमान क्या है देश में</p>
<p>ज़ीस्त ने नक़ली बनाया है बलिदानी मुझे'||</p>
<p></p>
<p>अच्छा था वो शाह का शासन, मुकद्दर और था</p>
<p>जीस्त मेरी पलटी खाई, सख्त हैरानी मुझे…</p>
<p></p>
<p>काफिया आनी : रदीफ़ :मुझे</p>
<p>बह्र :२१२२ २१२२ २१२२ २१२</p>
<p></p>
<p>राह सब दुर्गम, लिखाई में है’ आसानी मुझे</p>
<p>यार दुनिया-ए-सुख़न ही अब है अपनानी मुझे' |</p>
<p></p>
<p>'राज़ की हर बात पर्दे में छुपी थी राज़दाँ</p>
<p>फिर भी जाने क्यों लगी दुश्नाम उरियानी मुझे'|</p>
<p></p>
<p>'मैं नहीं था जानता, ईमान क्या है देश में</p>
<p>ज़ीस्त ने नक़ली बनाया है बलिदानी मुझे'||</p>
<p></p>
<p>अच्छा था वो शाह का शासन, मुकद्दर और था</p>
<p>जीस्त मेरी पलटी खाई, सख्त हैरानी मुझे |</p>
<p></p>
<p>शर्त थी मिलकर ही’ हम दोनो करेंगे काम सब</p>
<p>लितलियों सी उड़ती, सौंपी घर की दरबानी मुझे |</p>
<p></p>
<p>'प्रेयसी की बात में माना मधुरता है मगर</p>
<p>जो भी कहती है वही चुभती है क्यों वानी मुझे'|</p>
<p></p>
<p>आना’ जाना तो सनातन सत्य, ‘काली’ सब गए</p>
<p>जिंदगी अब दीखती बेरंग वीरानी मुझे |</p>
<p></p>
<p> </p>
<p>मौलिक & अप्रकाशित </p>ग़ज़ल -दिल को’ जिसने बेकरारी दी वही अहबाब था-कालीपद 'प्रसाद'tag:openbooksonline.com,2017-12-08:5170231:BlogPost:9018932017-12-08T10:00:00.000ZKalipad Prasad Mandalhttp://openbooksonline.com/profile/KalipadPrasadMandal
<p></p>
<p>काफिया :आब ; रदीफ़ ;था</p>
<p>बह्र :२१२२ २१२२ २१२२ २१२</p>
<p></p>
<p>दिल को’ जिसने बेकरारी दी वही ऐराब था</p>
<p>जिंदगी के वो अँधेरी रात में शबताब था |</p>
<p></p>
<p>मेरे जानम प्यार का ईशान था, महताब था</p>
<p>चिडचिडा मैं किन्तु उसमे तो धरा का ताब था |</p>
<p></p>
<p>स्वाभिमानी मान कर खुद को, गँवाया प्यार को</p>
<p>सच यही, मैं प्यार में उनके सदा बेताब था |</p>
<p></p>
<p>आग को मैं था लगाता, बात छोटी या बड़ी</p>
<p>आग को ठंडा किया करता, निराला आब था |</p>
<p></p>
<p>शब कटी बेदारी’…</p>
<p></p>
<p>काफिया :आब ; रदीफ़ ;था</p>
<p>बह्र :२१२२ २१२२ २१२२ २१२</p>
<p></p>
<p>दिल को’ जिसने बेकरारी दी वही ऐराब था</p>
<p>जिंदगी के वो अँधेरी रात में शबताब था |</p>
<p></p>
<p>मेरे जानम प्यार का ईशान था, महताब था</p>
<p>चिडचिडा मैं किन्तु उसमे तो धरा का ताब था |</p>
<p></p>
<p>स्वाभिमानी मान कर खुद को, गँवाया प्यार को</p>
<p>सच यही, मैं प्यार में उनके सदा बेताब था |</p>
<p></p>
<p>आग को मैं था लगाता, बात छोटी या बड़ी</p>
<p>आग को ठंडा किया करता, निराला आब था |</p>
<p></p>
<p>शब कटी बेदारी’ में, बीते नहीं दिन चैन से</p>
<p>आँख में जो अश्क था दिल का वही सैलाब था |</p>
<p></p>
<p>याद है तुमसे मिला मैं, आज तक भूला नहीं </p>
<p>इल्तफाते नाज़ की सौगात वो नायाब था |</p>
<p></p>
<p>लंका’ से ओखी उठी, फिर केरला गुजरात तक</p>
<p>शीत मौसम में उठी आँधी बनी गिर्दाब था |</p>
<p></p>
<p>जिंदगी की नाव, मौजों में रही वो काँपती </p>
<p>डूबना था नाव को, पानी जहाँ पायाब था |</p>
<p></p>
<p>रोज उनकी मुझसे’ आखें चार का था सिलसिला</p>
<p>मेरे’ घर की खिड़की’ उनके सामने का बाब था |</p>
<p></p>
<p>जन्म से इंसान सब, इंसानियत ही धर्म है</p>
<p>मज्हबीयत मानना ‘काली’ खुदा इज्राब था |</p>
<p>___________________________</p>
<p> शब्दार्थ : ऐराब =जो बचाने केलिए सामने खडा हो जाय </p>
<p>शबताब=अँधेरे में चमकने वाले ,जैसे चाँद ,तारे</p>
<p>ताब= सहनशीलता, बेदारी’=जागरण</p>
<p>इल्तफाते नाज़ =अदा से कनखियों से देखना,</p>
<p>गिर्दाब=पानी का भँवर, बाब = दरवाज़ा</p>
<p>इज्राब = अवज्ञा करना, आदेश न मानना </p>
<p></p>
<p>मौलिक और अप्रकाशित </p>ग़ज़ल-प्रयास में असफल लोग नामुराद नहीं |-कालीपद 'प्रसाद'tag:openbooksonline.com,2017-12-06:5170231:BlogPost:9015282017-12-06T04:51:38.000ZKalipad Prasad Mandalhttp://openbooksonline.com/profile/KalipadPrasadMandal
<p></p>
<p>काफिया : आद ,रदीफ़ : नहीं</p>
<p>बहर : १२१२ ११२२ १२१२ ११२ (२२)</p>
<p></p>
<p>अभी किसी को’ भी’ नेता पे’ एतिकाद नहीं</p>
<p>प्रयास में असफल लोग नामुराद नहीं |</p>
<p></p>
<p>किये तमाम मनोहर करार, सब गए भूल</p>
<p>चुनाव बाद, वचन रहनुमा को’ याद नहीं |</p>
<p></p>
<p>गरीब सब हुए’ मुहताज़, रहनुमा लखपति</p>
<p>कहा जनाब ने’ सिद्धांत अर्थवाद नहीं |</p>
<p></p>
<p>जिहाद हो या’ को’ई और, कत्ल धर्म के’ नाम</p>
<p>मतान्ध लोग समझते हैं’, उग्रवाद नहीं |</p>
<p></p>
<p>कृषक सभी है’ दुखी दीन, गाँव…</p>
<p></p>
<p>काफिया : आद ,रदीफ़ : नहीं</p>
<p>बहर : १२१२ ११२२ १२१२ ११२ (२२)</p>
<p></p>
<p>अभी किसी को’ भी’ नेता पे’ एतिकाद नहीं</p>
<p>प्रयास में असफल लोग नामुराद नहीं |</p>
<p></p>
<p>किये तमाम मनोहर करार, सब गए भूल</p>
<p>चुनाव बाद, वचन रहनुमा को’ याद नहीं |</p>
<p></p>
<p>गरीब सब हुए’ मुहताज़, रहनुमा लखपति</p>
<p>कहा जनाब ने’ सिद्धांत अर्थवाद नहीं |</p>
<p></p>
<p>जिहाद हो या’ को’ई और, कत्ल धर्म के’ नाम</p>
<p>मतान्ध लोग समझते हैं’, उग्रवाद नहीं |</p>
<p></p>
<p>कृषक सभी है’ दुखी दीन, गाँव में बसते</p>
<p>वो’ घोषणाएँ’ भलाई की’, ग्राम्यवाद नहीं |</p>
<p></p>
<p>हरेक धर्म में’ कुछ बात काबिले तारीफ़</p>
<p>को’ई भी’ धर्म कभी होता’ शुन्यवाद नहीं |</p>
<p></p>
<p>को’ई भी’ बात में’ विश्वास जो करे बिना’सोच</p>
<p>इसे कहे सभी’ धर्मान्ध, वुद्धिवाद नहीं |</p>
<p></p>
<p>करे यकीन सभी वाद में, सही हैं’ सभी</p>
<p>विवेक पर करे’ विश्वास, भूतवाद नहीं|</p>
<p></p>
<p>सभी चुनाव सभा में बवाल हो जाते</p>
<p>कि धर्म जलसा’ में’ कुछ फ़ित्ना’-ओ-फसाद नहीं |</p>
<p></p>
<p> शब्दार्थ अर्थवाद= पूंजीवाद </p>
<p> ग्राम्यवाद-गाँव/गाँववासी की बराबर उन्नति के कार्य </p>
<p>शुन्यवाद=जिसमे ज्ञान और सत्य का कोई मूल और</p>
<p>वास्तविक आधार न हो |</p>
<p>भूतवाद=भौतिकवाद</p>
<p></p>
<p>मौलिक और अप्रकाशित </p>
<p><span> </span></p>ग़ज़ल -मुहताज़ के लिए कभी’ पत्थर नहीं हूँ’ मैं - कालीपद 'प्रसाद'tag:openbooksonline.com,2017-12-03:5170231:BlogPost:9014092017-12-03T11:09:26.000ZKalipad Prasad Mandalhttp://openbooksonline.com/profile/KalipadPrasadMandal
<p></p>
<p></p>
<p>काफिया : अर ; रदीफ़ : नहीं हूँ मैं</p>
<p>बहर : २२१ २१२१ १२२१ २१२ (२१२१)</p>
<p></p>
<p>तारीफ़ से हबीब कभी तर नहीं हूँ’ मैं</p>
<p>मुहताज़ के लिए कभी’ पत्थर नहीं हूँ’ मैं |</p>
<p></p>
<p>वादा किया किसी से’ निभाया उसे जरूर</p>
<p>इस बात रहनुमा से’ तो’ बदतर नहीं हूँ’ मैं |</p>
<p></p>
<p>वो सोचते गरीब की’ औकात क्या नयी</p>
<p>जनता हूँ’ शाह से कहीं’ कमतर नहीं हूँ’ मैं |</p>
<p></p>
<p>जनमत ने रहनुमा को’ जिताया चुनाव में</p>
<p>हर जन यही कहे अभी’ नौकर नहीं हूँ’ मैं…</p>
<p></p>
<p></p>
<p>काफिया : अर ; रदीफ़ : नहीं हूँ मैं</p>
<p>बहर : २२१ २१२१ १२२१ २१२ (२१२१)</p>
<p></p>
<p>तारीफ़ से हबीब कभी तर नहीं हूँ’ मैं</p>
<p>मुहताज़ के लिए कभी’ पत्थर नहीं हूँ’ मैं |</p>
<p></p>
<p>वादा किया किसी से’ निभाया उसे जरूर</p>
<p>इस बात रहनुमा से’ तो’ बदतर नहीं हूँ’ मैं |</p>
<p></p>
<p>वो सोचते गरीब की’ औकात क्या नयी</p>
<p>जनता हूँ’ शाह से कहीं’ कमतर नहीं हूँ’ मैं |</p>
<p></p>
<p>जनमत ने रहनुमा को’ जिताया चुनाव में</p>
<p>हर जन यही कहे अभी’ नौकर नहीं हूँ’ मैं |</p>
<p></p>
<p>अल्लाह ने दिया मेरा’ जीवन, करीम हैं</p>
<p>उन्नत नसीब लान से ऊपर नहीं हूँ’ मैं |</p>
<p></p>
<p>समझो मुझे प्रवाहिनी’ सरिता, बुझाती’ प्यास</p>
<p>खारा नमक भरा हुआ’ सागर नहीं हूँ’ मैं |</p>
<p></p>
<p>हर बात पर विकाश की’ बातें नहीं मैं’ की</p>
<p>मंत्री या’ बेवफा को’ई’ रहबर नहीं हूँ’ मैं |</p>
<p></p>
<p>इस देश की वजूद, हिफाज़त के’ वास्ते</p>
<p>खुश हो चढ़ूँ सलीब पे’, कायर नहीं हूँ’ मैं |</p>
<p></p>
<p>शब्दार्थ : लान=आजार वैजन के खुबसूरत पर्वत</p>
<p>रहबर-नेता ,अगुआ ; सलीब=सूली</p>
<p></p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित</p>
<p> </p>ग़ज़ल -क्या कहूँ उनकी नज़ाकत, जो दिवाना दिल में’ है--कालीपद 'प्रसाद'tag:openbooksonline.com,2017-11-26:5170231:BlogPost:8989692017-11-26T03:30:00.000ZKalipad Prasad Mandalhttp://openbooksonline.com/profile/KalipadPrasadMandal
<p></p>
<p>काफिया ;इल ; रदीफ़ : में है</p>
<p>बह्र : २१२२ २१२२ २१२२ २१२</p>
<p></p>
<p>क्या कहूँ उनकी नज़ाकत, जो दिवाने दिल में’ है</p>
<p>किन्तु का ज़िक्र दिल से दूगुना महफ़िल में’ है |१|</p>
<p></p>
<p>जानती है वह कि गलती की सही व्याख्या कहाँ</p>
<p>पंख बिन भरती उड़ाने, भूल इस गाफिल में’ है |२|</p>
<p></p>
<p>राम रब कृष्ण और गुरु अल्लाह सब तो एक हैं</p>
<p>बोलकर नेता खुदा पर, पड़ गए मुश्किल में है |३|</p>
<p></p>
<p>गर सफलता चाहिए तुमको करो दृढ मन अभी</p>
<p>जज़्बा’ विद्यार्थी में’ हो वैसा…</p>
<p></p>
<p>काफिया ;इल ; रदीफ़ : में है</p>
<p>बह्र : २१२२ २१२२ २१२२ २१२</p>
<p></p>
<p>क्या कहूँ उनकी नज़ाकत, जो दिवाने दिल में’ है</p>
<p>किन्तु का ज़िक्र दिल से दूगुना महफ़िल में’ है |१|</p>
<p></p>
<p>जानती है वह कि गलती की सही व्याख्या कहाँ</p>
<p>पंख बिन भरती उड़ाने, भूल इस गाफिल में’ है |२|</p>
<p></p>
<p>राम रब कृष्ण और गुरु अल्लाह सब तो एक हैं</p>
<p>बोलकर नेता खुदा पर, पड़ गए मुश्किल में है |३|</p>
<p></p>
<p>गर सफलता चाहिए तुमको करो दृढ मन अभी</p>
<p>जज़्बा’ विद्यार्थी में’ हो वैसा ज्यों’ वो कातिल में’ है |४|</p>
<p></p>
<p>आधे’ रस्ते में कहाँ सुख और दुख, है अंत में</p>
<p>अनकहा आनंद का वह सिलसिला मंजिल में है |५|</p>
<p></p>
<p>उद्यमों का फल मिठाई या नहीं, वो जानना</p>
<p>हर तरह का जायका उद्येश्य के हासिल में है |६|</p>
<p></p>
<p>आपसी झगड़े में’ जनता खुद किये अपना अनिष्ट</p>
<p>है कहाँ वो सूज बूझें और जो आदिल में है |७|</p>
<p></p>
<p>है सभी कानून पर उनका कभी पालन कहाँ</p>
<p>वे नियम पालन की’ जिम्मेदारी’ तो आमिल में है |८|</p>
<p></p>
<p>हिम्मती वीर और जिसमें जोश का आवेश हो</p>
<p>हौसले की जय, पराजय सर्वदा बुझदिल में है |९|</p>
<p></p>
<p>शांत है कश्मीर, जबसे फौज़ मोर्चे में गई</p>
<p>सैनिकों के डर से’ आतंकी सभी बिल में हैं |१०|</p>
<p></p>
<p>रहनुमा तो डालते जनता को’ संभ्रम में सदा</p>
<p>गड़बड़ी का फायदा ‘काली’ सभी धूमिल में है |११|</p>
<p></p>
<p>आदिल=न्यायशील ; आमिल= अमल करने वाला</p>
<p>धूमिल= धुआँ से भरा. भ्रमित अवस्था</p>
<p>बिल = जमीं में छेद जिसमें कीड़े मकोड़े, साँप</p>
<p>रहते हैं |</p>
<p>बुझदिल का अर्थ - जिसके दिल की आग /जोश बुझ चुकी है , कायर</p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित</p>ग़ज़ल -राजाधिराज का गिरा’ दुर्जय कमान है-कालीपद 'प्रसाद'tag:openbooksonline.com,2017-11-20:5170231:BlogPost:8979432017-11-20T10:07:06.000ZKalipad Prasad Mandalhttp://openbooksonline.com/profile/KalipadPrasadMandal
<p></p>
<div class="xj_canvas" id="xg_canvas"><div class="xg_module"><div class="xg_module_body pad"><div class="xg_user_generated"><p>काफिया : आन ,रदीफ़ : है</p>
<p>बह्र : २२१ २१२१ १२२१ २१२</p>
<p></p>
<p>राजाधिराज का गिरा’ दुर्जय कमान है</p>
<p>सब जान ले अभी यही’ विधि का विधान है |</p>
<p></p>
<p>अदभूत जीव जानवरों का जहान है</p>
<p>नीचे धरा, समीर परे आसमान है |</p>
<p></p>
<p>संसार में तमाम चलन है ते’री वजह</p>
<p>हर थरथरी निशान ते’री, तू ही’ जान है |</p>
<p></p>
<p>जो भी जमा किये यहाँ’ रह…</p>
</div>
</div>
</div>
</div>
<p></p>
<div id="xg_canvas" class="xj_canvas"><div class="xg_module"><div class="xg_module_body pad"><div class="xg_user_generated"><p>काफिया : आन ,रदीफ़ : है</p>
<p>बह्र : २२१ २१२१ १२२१ २१२</p>
<p></p>
<p>राजाधिराज का गिरा’ दुर्जय कमान है</p>
<p>सब जान ले अभी यही’ विधि का विधान है |</p>
<p></p>
<p>अदभूत जीव जानवरों का जहान है</p>
<p>नीचे धरा, समीर परे आसमान है |</p>
<p></p>
<p>संसार में तमाम चलन है ते’री वजह</p>
<p>हर थरथरी निशान ते’री, तू ही’ जान है |</p>
<p></p>
<p>जो भी जमा किये यहाँ’ रह जायगा यहीं</p>
<p>कुछ साथ जायगा नहीं’ फिर क्यों गुमान है |</p>
<p></p>
<p>तू कौन है ? नहीं पता’ कुछ भी अभी यहाँ</p>
<p>घर तेरा’ कोई’ है तो’ कहाँ वो मकान है ?</p>
<p></p>
<p>इलज़ाम जो लगाया’ सभी झूठ है सनम</p>
<p>मैं चुप जरूर किन्तु मे’री भी जबान है |</p>
<p></p>
<p>जो ज़ख्म बेवफा ने’ दिया वो नहीं भरा</p>
<p>हृद चोट जो लगी, अभी’ उसका निशान है |</p>
<p></p>
<p>वो नोट से खरीदते’ थे वोट अब तलक</p>
<p>अब गैस मोल में दिया’ ना मेहरबान है |</p>
<p></p>
<p>वो पांच साल राज किये अब हिसाब दे</p>
<p>जन प्रश्न का जवाब ही’ तो इम्तिहान है |</p>
<p></p>
<p>इक अरब है’लोग किन्तु, मिली ताज तुझको’ ही</p>
<p>‘काली’ समझ करोड़ में’, तू भाग्यवान है |</p>
<p></p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित </p>
</div>
</div>
</div>
</div>ग़ज़ल-चनावी दंगलों में स्याह धन की आजमाइश है- कालीपद 'प्रसाद'tag:openbooksonline.com,2017-11-14:5170231:BlogPost:8967602017-11-14T02:00:00.000ZKalipad Prasad Mandalhttp://openbooksonline.com/profile/KalipadPrasadMandal
<p></p>
<p>काफिया : अन ; रफिफ ; की आजमाइश है</p>
<p>बहर : १२२२ १२२२ १२२२ १२२२</p>
<p></p>
<p>चनावी दंगलों में स्याह धन की आजमाइश है</p>
<p>इसी में रहनुमा के मन वचन की आजमाइश है |</p>
<p></p>
<p>सभी नेता किये दावा कि उनकी टोली’ जीतेगी </p>
<p>अदालत में अभी तो अभिपतन की आजमाइश है |</p>
<p></p>
<p>खड़े हैं रहनुमा जनता के’ आँगन जोड़कर दो हाथ</p>
<p>चुने किसको, चुनावी अंजुमन की आजमाइश है |</p>
<p></p>
<p>लगे हैं आग भड़काने में’ स्वार्थी लोग दिन रात और</p>
<p>सरल मासूम जनता की सहन की आजमाइश है…</p>
<p></p>
<p>काफिया : अन ; रफिफ ; की आजमाइश है</p>
<p>बहर : १२२२ १२२२ १२२२ १२२२</p>
<p></p>
<p>चनावी दंगलों में स्याह धन की आजमाइश है</p>
<p>इसी में रहनुमा के मन वचन की आजमाइश है |</p>
<p></p>
<p>सभी नेता किये दावा कि उनकी टोली’ जीतेगी </p>
<p>अदालत में अभी तो अभिपतन की आजमाइश है |</p>
<p></p>
<p>खड़े हैं रहनुमा जनता के’ आँगन जोड़कर दो हाथ</p>
<p>चुने किसको, चुनावी अंजुमन की आजमाइश है |</p>
<p></p>
<p>लगे हैं आग भड़काने में’ स्वार्थी लोग दिन रात और</p>
<p>सरल मासूम जनता की सहन की आजमाइश है |</p>
<p></p>
<p>लिया है जन्म इस भारत में’,यह है माँ समान आराध्य</p>
<p>विवेकी कठघरा में हमवतन की आजमाइश है | </p>
<p></p>
<p>ग़ज़ल नज़्म और वो किस्से लिखे जो भी अभी तक वे</p>
<p>महफ़िल में अब सभी माहिर सुखन की आजमाइश है |</p>
<p></p>
<p>चमनआरा कभी भी कुछ कसर छोड़ा नहीं है फिर</p>
<p>यही कहना सही होगा, चमन की आजमाइश है |</p>
<p></p>
<p>लहंगा और चोली सब हुई है जीर्ण नव युग में</p>
<p>नए युग में स्वदेशी पैरहन की आजमाइश है |</p>
<p></p>
<p>मदारी जिंदगी ‘काली’ नचाई है बहुत त्रय हद</p>
<p>जवानी प्रौढ़ बीते, चौथपन की आजमाइश है |</p>
<p></p>
<p>शब्दार्थ :- चमनआरा=माली <br/> अभिपतन=पूर्ण पतन, पैरहन=वस्त्र </p>
<p>त्रय हद= तीन भाग [बाल्य काल. यौवन काल</p>
<p>प्रौढ़ काल ] चौथपन= चौथा काल, बुढापा</p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित</p>ग़ज़ल -ये जिंदगी तो’ हो गयी’ दूभर कहे बगैर-कालीपद 'प्रसाद'tag:openbooksonline.com,2017-11-09:5170231:BlogPost:8958192017-11-09T16:00:00.000ZKalipad Prasad Mandalhttp://openbooksonline.com/profile/KalipadPrasadMandal
<p>काफिया :अर ; रदीफ़ : कहे बगैर </p>
<p>बह्र :२२१ २१२१ १२२१ २१२ (१)</p>
<p></p>
<p>ये जिंदगी तो’ हो गयी’ दूभर कहे बग़ैर </p>
<p>आता सदा वही बुरा’ अवसर कहे बग़ैर |</p>
<p></p>
<p>बलमा नहीं गया कभी’ बाहर कहे बग़ैर</p>
<p>आता कभी नहीं यहाँ’, जाकर कहे बग़ैर |</p>
<p></p>
<p>है धर्म कर्म शील सभी व्यक्ति जागरूक</p>
<p>दिन रात परिक्रमा करे’ दिनकर कहे बग़ैर | </p>
<p></p>
<p>दुर्बल के क़र्ज़ मुक्ति सभी होनी चाहिए</p>
<p>क्यों ले ज़मीनदार सभी कर कहे बग़ैर |</p>
<p></p>
<p>सब धर्म पालते मे’रे’ साजन, मगर…</p>
<p>काफिया :अर ; रदीफ़ : कहे बगैर </p>
<p>बह्र :२२१ २१२१ १२२१ २१२ (१)</p>
<p></p>
<p>ये जिंदगी तो’ हो गयी’ दूभर कहे बग़ैर </p>
<p>आता सदा वही बुरा’ अवसर कहे बग़ैर |</p>
<p></p>
<p>बलमा नहीं गया कभी’ बाहर कहे बग़ैर</p>
<p>आता कभी नहीं यहाँ’, जाकर कहे बग़ैर |</p>
<p></p>
<p>है धर्म कर्म शील सभी व्यक्ति जागरूक</p>
<p>दिन रात परिक्रमा करे’ दिनकर कहे बग़ैर | </p>
<p></p>
<p>दुर्बल के क़र्ज़ मुक्ति सभी होनी चाहिए</p>
<p>क्यों ले ज़मीनदार सभी कर कहे बग़ैर |</p>
<p></p>
<p>सब धर्म पालते मे’रे’ साजन, मगर है’ दूर</p>
<p>आकर गए तमाम निभाकर, कहे बग़ैर |</p>
<p></p>
<p>मिलने में’ थी हँसी ख़ुशी’ अब चैन भी नहीं </p>
<p>सुख चैन ले गए वो’ चुराकर कहे बग़ैर |</p>
<p></p>
<p>चौकस रहो सदा सभी’, गलती न कर कभी</p>
<p>बैरी चलाते’ विष बुझी’ नस्तर कहे बग़ैर |</p>
<p></p>
<p>जीवन सदैव धन्य हो’ चौकस विवेक हो</p>
<p>आती विपत्तियाँ सभी’ ‘अक्सर कहे बग़ैर | <br/></p>
<p>मौलिक /अप्रकाशित </p>ग़ज़ल-रहनुमा का’ मन काला, शक्ल पर उजाला है |tag:openbooksonline.com,2017-11-06:5170231:BlogPost:8954172017-11-06T02:00:00.000ZKalipad Prasad Mandalhttp://openbooksonline.com/profile/KalipadPrasadMandal
<p>काफिया : आला . रदीफ़ : है</p>
<p>बह्र : २१२ १२२२ २१२ १२२२</p>
<p>हाथ में वही अंगूरी सुरा,पियाला है</p>
<p>रहनुमा का’ मन काला, शक्ल पर उजाला है |</p>
<p></p>
<p>छीन ली गई है आजीविका, दिवाला है</p>
<p>ढूंढ़ते रहे हैं सब, स्रोत को खँगाला है ||</p>
<p></p>
<p>आसमान पर जुगनू, चाँद सूर्य धरती पर</p>
<p>धर्म कर्म सब कुछ, भगवान का निराला है |</p>
<p></p>
<p>सब गड़े हुए मुर्दों को, उखाड़ते नेता</p>
<p>अब चुनाव क्या आया, भूत को उछाला है |</p>
<p></p>
<p>राज नीति में रिश्तेदार ही, अहम है सब</p>
<p>वो…</p>
<p>काफिया : आला . रदीफ़ : है</p>
<p>बह्र : २१२ १२२२ २१२ १२२२</p>
<p>हाथ में वही अंगूरी सुरा,पियाला है</p>
<p>रहनुमा का’ मन काला, शक्ल पर उजाला है |</p>
<p></p>
<p>छीन ली गई है आजीविका, दिवाला है</p>
<p>ढूंढ़ते रहे हैं सब, स्रोत को खँगाला है ||</p>
<p></p>
<p>आसमान पर जुगनू, चाँद सूर्य धरती पर</p>
<p>धर्म कर्म सब कुछ, भगवान का निराला है |</p>
<p></p>
<p>सब गड़े हुए मुर्दों को, उखाड़ते नेता</p>
<p>अब चुनाव क्या आया, भूत को उछाला है |</p>
<p></p>
<p>राज नीति में रिश्तेदार ही, अहम है सब</p>
<p>वो कहीं बहन भाई, या हबीब साला है |</p>
<p></p>
<p>समतलों में सब मस्जिद चर्च, बात है अद्भूत</p>
<p>उस पहाड़ पर जो कोठी, वही शिवाला है |</p>
<p></p>
<p>वो बड़ी बड़ी आँखें, प्रेयसी की हैं कातिल</p>
<p>शोख वो नयन लगते, चश्म- ए- गज़ाला है |</p>
<p></p>
<p>है समानता मन्दिर और, मद्य खाने में</p>
<p>बारहा चढ़े जो ‘काली’ के’ सिर, वो’ हाला है |</p>
<p></p>
<p>मौलिक/ अप्रकाशित</p>गज़ल -अक्सीर दवा भी अभी’ नाकाम बहुत हैtag:openbooksonline.com,2017-11-02:5170231:BlogPost:8944652017-11-02T02:54:22.000ZKalipad Prasad Mandalhttp://openbooksonline.com/profile/KalipadPrasadMandal
<p>काफिया आम, रदीफ़ : बहुत है</p>
<p>बह्र : २२१ १२२१ १२२१ १२२ (१)</p>
<p></p>
<p>अकसीर दवा भी अभी’ नाकाम बहुत है</p>
<p>बेहोश मुझे करने’ मय-ए-जाम बहुत है |</p>
<p></p>
<p>वादा किया’ देंगे सभी’ को घर, नहीं’ आशा</p>
<p>टूटी है’ कुटी पर मुझे’ आराम बहुत है |</p>
<p></p>
<p>प्रासाद विशाल और सुभीता सभी’ भरपूर </p>
<p>इंसान हैं’ दागी सभी’, बदनाम बहुत हैं |</p>
<p></p>
<p>है राजनयिक दंड से’ ऊपर, यही’ अभिमान</p>
<p>शासन करे स्वीकार, कि इलज़ाम बहुत है |</p>
<p></p>
<p>साकी की’ इनायत क्या’ कहे,दिल का…</p>
<p>काफिया आम, रदीफ़ : बहुत है</p>
<p>बह्र : २२१ १२२१ १२२१ १२२ (१)</p>
<p></p>
<p>अकसीर दवा भी अभी’ नाकाम बहुत है</p>
<p>बेहोश मुझे करने’ मय-ए-जाम बहुत है |</p>
<p></p>
<p>वादा किया’ देंगे सभी’ को घर, नहीं’ आशा</p>
<p>टूटी है’ कुटी पर मुझे’ आराम बहुत है |</p>
<p></p>
<p>प्रासाद विशाल और सुभीता सभी’ भरपूर </p>
<p>इंसान हैं’ दागी सभी’, बदनाम बहुत हैं |</p>
<p></p>
<p>है राजनयिक दंड से’ ऊपर, यही’ अभिमान</p>
<p>शासन करे स्वीकार, कि इलज़ाम बहुत है |</p>
<p></p>
<p>साकी की’ इनायत क्या’ कहे,दिल का फ़साना</p>
<p>आगोश में’ थी मेरे’ ये ईनाम बहुत है |</p>
<p></p>
<p>अकसीर=बहु गुणकारी</p>
<p></p>
<p>मौलिक /अप्रकाशित </p>ग़ज़ल-कभी दुख कभी सुख, दुआ चाहता हूँ (संशोधित )tag:openbooksonline.com,2017-10-31:5170231:BlogPost:8934572017-10-31T05:30:00.000ZKalipad Prasad Mandalhttp://openbooksonline.com/profile/KalipadPrasadMandal
<p></p>
<p>तरही ग़ज़ल अल्लामा इकबाल जी का मिसरा </p>
<p>“ तेरे इश्क की इम्तिहाँ चाहता हूँ “</p>
<p>काफिया : आ ; रदीफ़ :चाहता हूँ</p>
<p>बहर : १२२ १२२ १२२ १२२</p>
<p>*****************************</p>
<p>कभी दुख कभी सुख, दुआ चाहता हूँ</p>
<p>इनायत तेरी आजमा चाहता हूँ |</p>
<p></p>
<p>'वफ़ाओं के बदले वफ़ा चाहता हूँ<br></br> <b>तेरे इश्क की इम्तिहा चाहता हूँ |</b></p>
<p></p>
<p>जो’ भी कोशिशे की हुई सब विफल अब</p>
<p>हूँ’ बेघर मैं’ अब आसरा चाहता हूँ |</p>
<p></p>
<p>ज़माना हमेशा छकाया मुझे है</p>
<p>अभी…</p>
<p></p>
<p>तरही ग़ज़ल अल्लामा इकबाल जी का मिसरा </p>
<p>“ तेरे इश्क की इम्तिहाँ चाहता हूँ “</p>
<p>काफिया : आ ; रदीफ़ :चाहता हूँ</p>
<p>बहर : १२२ १२२ १२२ १२२</p>
<p>*****************************</p>
<p>कभी दुख कभी सुख, दुआ चाहता हूँ</p>
<p>इनायत तेरी आजमा चाहता हूँ |</p>
<p></p>
<p>'वफ़ाओं के बदले वफ़ा चाहता हूँ<br/> <b>तेरे इश्क की इम्तिहा चाहता हूँ |</b></p>
<p></p>
<p>जो’ भी कोशिशे की हुई सब विफल अब</p>
<p>हूँ’ बेघर मैं’ अब आसरा चाहता हूँ |</p>
<p></p>
<p>ज़माना हमेशा छकाया मुझे है</p>
<p>अभी मैं उसे जीतना चाहता हूँ |</p>
<p></p>
<p>'दिये हैं बहुत दुख ज़माने ने मुझको'</p>
<p>मैं’ तेरी कृपा की दवा चाहता हूँ |</p>
<p></p>
<p>तू’ ने क्यों बनाया यही विश्व ब्रह्माण्ड</p>
<p>छुपे राज़ को जानना चाहता हूँ |</p>
<p></p>
<p>निरपराध जो है, उसे क्यों सज़ा हो</p>
<p>बता अब तेरा फैसला चाहता हूँ |</p>
<p></p>
<p>'रिवाज आदमी ने सभी हैं बनाए'</p>
<p>अहितकर सभी तोड़ना चाहता हूँ |</p>
<p></p>
<p>मौलिक/अप्रकाशित</p>
<p></p>ग़ज़ल -वज़ीरों में हुआ आज़म, बना वह अब सिकंदर हैtag:openbooksonline.com,2017-10-25:5170231:BlogPost:8917622017-10-25T05:30:00.000ZKalipad Prasad Mandalhttp://openbooksonline.com/profile/KalipadPrasadMandal
<p></p>
<p>काफिया : अर ;रदीफ़ : है</p>
<p>बह्र ; १२२२ १२२२ १२२२ १२२२</p>
<p></p>
<p>वज़ीरों में हुआ आज़म, बना वह अब सिकंदर है</p>
<p>विपक्षी मौन, जनता में खमोशी, सिर्फ डरकर है |</p>
<p></p>
<p>समय बदला, जमाने संग सब इंसान भी बदले</p>
<p>दया माया सभी गायब, कहाँ मानव? ये’ पत्थर हैं |</p>
<p></p>
<p>लिया चन्दा जो’ नेता अब वही तो है अरब धनपति </p>
<p>जमाकर जल नदी नाले, बना इक गूढ़ सागर है |</p>
<p></p>
<p>ज़माना बदला’ शासन बदला’ बदली रात दिन अविराम</p>
<p>गरीबो के सभी युग काल में अपमान मुकद्दर है…</p>
<p></p>
<p>काफिया : अर ;रदीफ़ : है</p>
<p>बह्र ; १२२२ १२२२ १२२२ १२२२</p>
<p></p>
<p>वज़ीरों में हुआ आज़म, बना वह अब सिकंदर है</p>
<p>विपक्षी मौन, जनता में खमोशी, सिर्फ डरकर है |</p>
<p></p>
<p>समय बदला, जमाने संग सब इंसान भी बदले</p>
<p>दया माया सभी गायब, कहाँ मानव? ये’ पत्थर हैं |</p>
<p></p>
<p>लिया चन्दा जो’ नेता अब वही तो है अरब धनपति </p>
<p>जमाकर जल नदी नाले, बना इक गूढ़ सागर है |</p>
<p></p>
<p>ज़माना बदला’ शासन बदला’ बदली रात दिन अविराम</p>
<p>गरीबो के सभी युग काल में अपमान मुकद्दर है |</p>
<p></p>
<p>अदालत में सफल मुक्तार जज के मन को’ पढ़ लेता</p>
<p>करे जो शाह की गुणगान वो विजयी सुखनवर है |</p>
<p></p>
<p>सभी व्याकुल हैं, क्या इंसान, पशु, पक्षी, सकल है त्रस्त</p>
<p>तृषित सब जीव, मीठा जल कहाँ ? प्यासा समंदर है |</p>
<p></p>
<p>हिफाज़त देश की है फ़र्ज़ नेता, आम, सैनिक का</p>
<p>रहे तैयार करने जान सीमा पर निछावर है |</p>
<p></p>
<p>अनूठा ताज को क्यों तर्क का मुद्या बनाया अब</p>
<p>किसी ने भी किया निर्मित, यही अनुपम धरोहर है |</p>
<p></p>
<p>मनोहर बात करके आम को वो मोहते हरबार</p>
<p>दबाकर भोगते सुख सुविधा, जनता जीस्त दूभर है |</p>
<p></p>
<p>सगा कोई नहीं पैसा ही’ माई बाप है सबका</p>
<p>सहोदर से सहोदर क़त्ल, ‘काली’ कैसा’ मंज़र है |</p>
<p></p>
<p>मौलिक/अप्रकाशित </p>
<p> </p>ग़ज़लtag:openbooksonline.com,2017-10-22:5170231:BlogPost:8912452017-10-22T09:20:01.000ZKalipad Prasad Mandalhttp://openbooksonline.com/profile/KalipadPrasadMandal
<p></p>
<p>काफिया –आँ , रदीफ़ –पर</p>
<p>बहर : १२२२ १२२२ १२२२ १२२२</p>
<p></p>
<p>कुटिल जैसे बिना कारण, किया आघात नादाँ पर</p>
<p>भरोषा दुश्मनों पर है, नहीं है फ़क्त यकजाँ पर |</p>
<p><br></br> अयाचित आपदा का फल, कहे क्या? अब पडा जाँ पर</p>
<p>गुनाहों की सज़ा मिलती है’, फिर क्यों प्रश्न जिन्दां पर ?</p>
<p></p>
<p>चुनावों में शरारत कर, सभी सीटों को’ जीता है</p>
<p>सिकंदर है वही जो जीता,’ क्यों आरोप गल्तां पर ?</p>
<p></p>
<p>वो’ मूसलधार बारिश, कड़कती धूप सूरज की</p>
<p>सभी मिलकर उजाड़े बाग़ को,…</p>
<p></p>
<p>काफिया –आँ , रदीफ़ –पर</p>
<p>बहर : १२२२ १२२२ १२२२ १२२२</p>
<p></p>
<p>कुटिल जैसे बिना कारण, किया आघात नादाँ पर</p>
<p>भरोषा दुश्मनों पर है, नहीं है फ़क्त यकजाँ पर |</p>
<p><br/> अयाचित आपदा का फल, कहे क्या? अब पडा जाँ पर</p>
<p>गुनाहों की सज़ा मिलती है’, फिर क्यों प्रश्न जिन्दां पर ?</p>
<p></p>
<p>चुनावों में शरारत कर, सभी सीटों को’ जीता है</p>
<p>सिकंदर है वही जो जीता,’ क्यों आरोप गल्तां पर ?</p>
<p></p>
<p>वो’ मूसलधार बारिश, कड़कती धूप सूरज की</p>
<p>सभी मिलकर उजाड़े बाग़ को, निंदा गुलिस्ताँ पर |</p>
<p></p>
<p>बुराई ही नहीं अच्छाई’ भी है, फिल्म में जो कुछ </p>
<p>बताती है कहानी पूर्ण, क्यों आक्षेप उन्वाँ पर |</p>
<p></p>
<p>विपक्षी नेता’ के आरोप बेबुनियाद, पर अब तक</p>
<p>कभी कोई नहीं आपत्ति की, उसके नमकदां पर |</p>
<p></p>
<p>की’. मानव ने ही’ सब बर्बाद अंतरजात सुन्दरता</p>
<p>मनोहरता हुई खुद ध्वस्त, क्यों आरोप तूफाँ पर ?</p>
<p></p>
<p>बसें रेलें चली सब किन्तु हाई स्पीड है गायब</p>
<p>किया है खर्च बेहद, रेल गाड़ी छोड़ अरमां पर |</p>
<p></p>
<p>अरण्य अब और ज्यादा है नहीं, थोड़ा बचा ‘काली’</p>
<p>उजाडो मत हरी धरती, फसल निर्भर बयाबाँ पर |</p>
<p> </p>
<p>शब्दार्थ : यकजाँ=घनिष्ट ,दिली</p>
<p>जिन्दां=कैद , गल्तां= लुडके हुए, हारे हुए</p>
<p>उन्वाँ=शीर्षक , नमकदां=नमक छिड़कना</p>
<p>बयाबाँ=जंगल</p>
<p>मौलिक एवं अप्रकाशित </p>ग़ज़ल -कहीं वही तो’ नहीं वो बशर दिल-ओ-दिलदारtag:openbooksonline.com,2017-10-14:5170231:BlogPost:8892072017-10-14T04:30:00.000ZKalipad Prasad Mandalhttp://openbooksonline.com/profile/KalipadPrasadMandal
<p>काफिया :अर ; रदीफ़ :दिल –ओ- दिलदार</p>
<p>बहर : १२१२ ११२२ १२१२ २२(१ )</p>
<p></p>
<p>कहीं वही तो’ नहीं वो बशर दिल-ओ-दिलदार</p>
<p>जिसे तलाशती’ मेरी नज़र दिल-ओ-दिलदार |</p>
<p></p>
<p>हवा के’ झोंके’ ज्यों’ आते सदा सनम मेरे </p>
<p>नसीम शोख व महका मुखर दिल-ओ-दिलदार |</p>
<p></p>
<p>सूना उसे कई’ गोष्टी में’, फिर भी’ प्यासा मन</p>
<p>अज़ीज़ है वही आवाज़ हर दिल-ओ-दिलदार |</p>
<p></p>
<p>कभी हुई न समागम, कभी नहीं कुछ बात</p>
<p>हिजाब में सदा रहती मगर दिल-ओ–दिलदार |</p>
<p></p>
<p>गए विदेश को’ महबूब…</p>
<p>काफिया :अर ; रदीफ़ :दिल –ओ- दिलदार</p>
<p>बहर : १२१२ ११२२ १२१२ २२(१ )</p>
<p></p>
<p>कहीं वही तो’ नहीं वो बशर दिल-ओ-दिलदार</p>
<p>जिसे तलाशती’ मेरी नज़र दिल-ओ-दिलदार |</p>
<p></p>
<p>हवा के’ झोंके’ ज्यों’ आते सदा सनम मेरे </p>
<p>नसीम शोख व महका मुखर दिल-ओ-दिलदार |</p>
<p></p>
<p>सूना उसे कई’ गोष्टी में’, फिर भी’ प्यासा मन</p>
<p>अज़ीज़ है वही आवाज़ हर दिल-ओ-दिलदार |</p>
<p></p>
<p>कभी हुई न समागम, कभी नहीं कुछ बात</p>
<p>हिजाब में सदा रहती मगर दिल-ओ–दिलदार |</p>
<p></p>
<p>गए विदेश को’ महबूब छोड़कर मुझको</p>
<p>ख़याल में बसे’ चारो पहर दिल-ओ-दिलदार |</p>
<p></p>
<p>कभी नहीं सके’ हम भूल, वर्ष कई बीते</p>
<p>शरीर मेरा’ उसी का जिगर दिल-ओ-दिलदार |</p>
<p></p>
<p>सनम मेरे है’ निराला, अनन्य दुनिया में</p>
<p>जवाहरों में’ अनूठा, गुहर दिल-ओ-दिलदार |</p>
<p></p>
<p>विरह के’ शोक में. डूबी है’ प्रेयसी ‘काली’</p>
<p>उसे नहीं पता’ कुछ, वज्द बेखबर दिलो दिलदार |</p>
<p></p>
<p>शब्दार्थ : नसीम = मृदुल हवा ; वज्द = आत्म विस्मृत</p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित </p>ग़ज़ल -ये’ बातचीत में’ खरसान बैर बू क्या है?(संशोधित)tag:openbooksonline.com,2017-10-09:5170231:BlogPost:8877012017-10-09T03:00:00.000ZKalipad Prasad Mandalhttp://openbooksonline.com/profile/KalipadPrasadMandal
<p>१२१२ ११२२ १२१२ २२</p>
<p></p>
<p>सटीक बात की’, आक्षेप बाँधनू क्या है</p>
<p>ये’ बातचीत में’ खरसान बैर बू क्या है?</p>
<p></p>
<p>नया ज़माना’ नया है तमाम पैराहन</p>
<p>अगर पहन लिया’ वो वस्त्र, फ़ालतू क्या है |</p>
<p></p>
<p>हसीन मानता’ हूँ मैं उसे, नहीं शोले</p>
<p>नजाकतें जहाँ’ है इश्क, तुन्दखू क्या है |</p>
<p></p>
<p>किया करार बहुत आम से चुनावों में</p>
<p>वजीर बनके’ कही रहबरी, कि तू क्या है ?</p>
<p></p>
<p>हो’ वुध्दिमान मिला राज, अब करो कुछ भी </p>
<p>उलट पलट करो’ खुद आप, गुफ्तगू क्या…</p>
<p>१२१२ ११२२ १२१२ २२</p>
<p></p>
<p>सटीक बात की’, आक्षेप बाँधनू क्या है</p>
<p>ये’ बातचीत में’ खरसान बैर बू क्या है?</p>
<p></p>
<p>नया ज़माना’ नया है तमाम पैराहन</p>
<p>अगर पहन लिया’ वो वस्त्र, फ़ालतू क्या है |</p>
<p></p>
<p>हसीन मानता’ हूँ मैं उसे, नहीं शोले</p>
<p>नजाकतें जहाँ’ है इश्क, तुन्दखू क्या है |</p>
<p></p>
<p>किया करार बहुत आम से चुनावों में</p>
<p>वजीर बनके’ कही रहबरी, कि तू क्या है ?</p>
<p></p>
<p>हो’ वुध्दिमान मिला राज, अब करो कुछ भी </p>
<p>उलट पलट करो’ खुद आप, गुफ्तगू क्या है |</p>
<p></p>
<p>ये’ कर्ण फूल, गले हार, हाथ में कंगन </p>
<p>पहन लिया सभी’ कुछ, और आरजू क्या है ?</p>
<p></p>
<p>जला जो’ आग से’ कश्मीर, भष्म में है क्या</p>
<p>वो’ खंडहर में’ बची लाश जुस्तजू क्या है ?</p>
<p></p>
<p>सभी को’ है पता’ मंत्री बना अभी “काली”</p>
<p>नहीं तो’ देश में’ उसकी भी’ आबरू क्या है |</p>
<p></p>
<p>शब्दार्थ :-</p>
<p>बाँधनू – मन गढ़ंत , खरसान –तेज , बू –गंध</p>
<p>तुन्दखू-गुस्सैल;तेज मिज़ाज़, जुस्तजू –खोज, गवेषणा</p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित </p>ग़ज़ल -रिश्तों’ का रंग बदलता ही’ गया तेरे बादtag:openbooksonline.com,2017-10-05:5170231:BlogPost:8868882017-10-05T03:00:00.000ZKalipad Prasad Mandalhttp://openbooksonline.com/profile/KalipadPrasadMandal
<p>२१२२ ११२२ ११२२ २२(१)/ ११२(१) ११२२</p>
<p> </p>
<p>रिश्तों’ का रंग बदलता ही’ गया तेरे बाद</p>
<p>रौशनी हीन अलग चाँद दिखा तेरे बाद |</p>
<p></p>
<p>जीस्त में कुछ नया’ बदलाव हुआ तेरे बाद</p>
<p>मैं नहीं जानता’ क्यों दुनिया’ खफा तेरे बाद |</p>
<p></p>
<p>हरिक त्यौहार में’ आनन्द मिला तेरे साथ</p>
<p>जिंदगी से हुए’ सब मोह जुदा तेरे बाद |</p>
<p></p>
<p>रात छोटी हो’ गयी और बहुत लम्बा दिन</p>
<p>अब तो’ जीना हो’ गई एक सज़ा तेरे बाद |</p>
<p></p>
<p>साथ आई थीं’ वो’ आपत्तियाँ’, तुझको ले’…</p>
<p>२१२२ ११२२ ११२२ २२(१)/ ११२(१) ११२२</p>
<p> </p>
<p>रिश्तों’ का रंग बदलता ही’ गया तेरे बाद</p>
<p>रौशनी हीन अलग चाँद दिखा तेरे बाद |</p>
<p></p>
<p>जीस्त में कुछ नया’ बदलाव हुआ तेरे बाद</p>
<p>मैं नहीं जानता’ क्यों दुनिया’ खफा तेरे बाद |</p>
<p></p>
<p>हरिक त्यौहार में’ आनन्द मिला तेरे साथ</p>
<p>जिंदगी से हुए’ सब मोह जुदा तेरे बाद |</p>
<p></p>
<p>रात छोटी हो’ गयी और बहुत लम्बा दिन</p>
<p>अब तो’ जीना हो’ गई एक सज़ा तेरे बाद |</p>
<p></p>
<p>साथ आई थीं’ वो’ आपत्तियाँ’, तुझको ले’ गयी</p>
<p>नहीं’ अब तक टली’ वो बलवा’ बला तेरे बाद |</p>
<p></p>
<p>इश्क में मस्त थे’ हम जिंदगी’ में साथ सदा</p>
<p>अब मुहब्बत से’ भी’ दिलगीर हुआ तेरे बाद |</p>
<p></p>
<p>बेखुदी में था’सदा तेरे’ मुहब्बत-मय में </p>
<p>साकिया से भी’ मे’रे ध्यान हटा तेरे बाद |</p>
<p></p>
<p>मौलिक एवं अप्रकाशित</p>ग़ज़ल -दुश्मनों को मिटा’ देना यही’ काल अच्छा हैtag:openbooksonline.com,2017-10-01:5170231:BlogPost:8862342017-10-01T05:30:00.000ZKalipad Prasad Mandalhttp://openbooksonline.com/profile/KalipadPrasadMandal
<p>काफिया : आल ; रदीफ़ अच्छा है</p>
<p>बहर : २१२२ ११२२ ११२२ २२(११२)</p>
<p> ११२२</p>
<p>दुश्मनों को मिटा’ देना यही’ काल अच्छा है</p>
<p>खुद करो भूल, अदू को सज़ा’ ख्याल अच्छा है |</p>
<p></p>
<p>नाम है रहनुमा’ क्या राह दिखाई किसी’ को</p>
<p>झूठ पर झूठ, तुम्हारा ये’ कमाल अच्छा है |</p>
<p></p>
<p>आज कोई नहीं’ सुनते किसी’ की दुनिया में</p>
<p>उत्तरी कोरिया’ का बम्ब धमाल अच्छा है |</p>
<p></p>
<p>चाँद में दाग है’, मालूम है’ दुनिया को भी</p>
<p>प्रियतमा मेरी' तो' बेदाग़ जमाल अच्छा है…</p>
<p>काफिया : आल ; रदीफ़ अच्छा है</p>
<p>बहर : २१२२ ११२२ ११२२ २२(११२)</p>
<p> ११२२</p>
<p>दुश्मनों को मिटा’ देना यही’ काल अच्छा है</p>
<p>खुद करो भूल, अदू को सज़ा’ ख्याल अच्छा है |</p>
<p></p>
<p>नाम है रहनुमा’ क्या राह दिखाई किसी’ को</p>
<p>झूठ पर झूठ, तुम्हारा ये’ कमाल अच्छा है |</p>
<p></p>
<p>आज कोई नहीं’ सुनते किसी’ की दुनिया में</p>
<p>उत्तरी कोरिया’ का बम्ब धमाल अच्छा है |</p>
<p></p>
<p>चाँद में दाग है’, मालूम है’ दुनिया को भी</p>
<p>प्रियतमा मेरी' तो' बेदाग़ जमाल अच्छा है |</p>
<p></p>
<p>खाद्य द्रव्यों में’ मिलावट,अनियंत्रित हो’गई </p>
<p>और कहते हैं,कि बाज़ार में' माल अच्छा है |</p>
<p></p>
<p>वादा' जो भी किया’ उसको न निभाया तो क्या</p>
<p>कुछ मिले ना सही’ पाने का ख़याल अच्छा है |</p>
<p></p>
<p>देश में आमदनी और खपत कैसी हो </p>
<p>अर्थ आयोग नया खूब निहाल अच्छा है |</p>
<p></p>
<p>वक्त अनुकूल है’ ऐसा कहा’ नेता जी ने</p>
<p>बीते’ कालों से’ अभी का यही’ काल अच्छा है |</p>
<p></p>
<p>काला’ धन सब हो’ गया लुप्त, कि “काली” भी चुप</p>
<p>पूछने वाला’ भी’ चुप किन्तु, सवाल अच्छा है |</p>
<p></p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित </p>ग़ज़ल --पाक आतंकी कभी बाज़ आएँ क्याtag:openbooksonline.com,2017-09-23:5170231:BlogPost:8834082017-09-23T04:23:04.000ZKalipad Prasad Mandalhttp://openbooksonline.com/profile/KalipadPrasadMandal
<p>काफिया : आएँ , रदीफ़: क्या </p>
<p>२१२२ २१२२ २१२</p>
<p></p>
<p>पाक आतंकी कभी बाज़ आएँ क्या</p>
<p>बारहा दुश्मन से’ धोखा खाएँ क्या ?</p>
<p></p>
<p>गोलियाँ खाते ज़माने हो गये </p>
<p>राइफल बन्दुक से’ हम घबराएँ क्या ?</p>
<p></p>
<p>जान न्योछावर शहीदों ने की’ जब</p>
<p>सरहदों को हम मिटाते जाएँ क्या ?</p>
<p></p>
<p>सर्जिकल तो फिल्म की झलकी ही’ थी</p>
<p>फिल्म पूरा अब मियाँ दिखलाएँ क्या ?</p>
<p></p>
<p>आपका विश्वास अब मुझ पर नहीं</p>
<p>अनकही बातें जो’ हैं बतलाएँ क्या ?</p>
<p></p>
<p>खो दिया…</p>
<p>काफिया : आएँ , रदीफ़: क्या </p>
<p>२१२२ २१२२ २१२</p>
<p></p>
<p>पाक आतंकी कभी बाज़ आएँ क्या</p>
<p>बारहा दुश्मन से’ धोखा खाएँ क्या ?</p>
<p></p>
<p>गोलियाँ खाते ज़माने हो गये </p>
<p>राइफल बन्दुक से’ हम घबराएँ क्या ?</p>
<p></p>
<p>जान न्योछावर शहीदों ने की’ जब</p>
<p>सरहदों को हम मिटाते जाएँ क्या ?</p>
<p></p>
<p>सर्जिकल तो फिल्म की झलकी ही’ थी</p>
<p>फिल्म पूरा अब मियाँ दिखलाएँ क्या ?</p>
<p></p>
<p>आपका विश्वास अब मुझ पर नहीं</p>
<p>अनकही बातें जो’ हैं बतलाएँ क्या ?</p>
<p></p>
<p>खो दिया है सब्र जिसने बेवज़ह</p>
<p>बेसब्री को और हम भड़काएँ क्या ?</p>
<p></p>
<p>बेवज़ह करता अदावत मसखरा</p>
<p>ना समझ को और हम समझाएँ क्या ?</p>
<p></p>
<p>बोलते हैं झूठ हरदम रहनुमा</p>
<p>झूठ का बाज़ार है झुठलायें क्या ?</p>
<p></p>
<p>बावफा नादान है, गलती की’ है</p>
<p>बज़्म में ‘काली’ अभी बुलवाएँ क्या ?</p>
<p></p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित</p>ग़ज़लtag:openbooksonline.com,2017-09-20:5170231:BlogPost:8826232017-09-20T02:40:30.000ZKalipad Prasad Mandalhttp://openbooksonline.com/profile/KalipadPrasadMandal
<p>काफिया : आये ; रदीफ़ :न बने</p>
<p>बहर : ११२२-| ११२२ ११२२ २२/११२</p>
<p> २१२२}</p>
<p></p>
<p>तंज़ सुनना तो’ विवशता है’, सुनाये न बने</p>
<p>दर्द दिल का न दिखे और दिखाए न बने | </p>
<p></p>
<p>पाक से हम करे’ क्या बात बिना कुछ मतलब </p>
<p>क्यों करे श्रम जहाँ’ की बात बनाए न बने |</p>
<p></p>
<p>क्या कहूँ उनके’ हुनर की, है’ अनोखा अनजान</p>
<p>यही’ तारीफ़ कि हमको न सताए न बने |</p>
<p></p>
<p>कर्म इंसान का’ हो ठीक सितारा जैसा</p>
<p>कर्म काला किया’ तो चेहरा’ दिखाए न बने…</p>
<p>काफिया : आये ; रदीफ़ :न बने</p>
<p>बहर : ११२२-| ११२२ ११२२ २२/११२</p>
<p> २१२२}</p>
<p></p>
<p>तंज़ सुनना तो’ विवशता है’, सुनाये न बने</p>
<p>दर्द दिल का न दिखे और दिखाए न बने | </p>
<p></p>
<p>पाक से हम करे’ क्या बात बिना कुछ मतलब </p>
<p>क्यों करे श्रम जहाँ’ की बात बनाए न बने |</p>
<p></p>
<p>क्या कहूँ उनके’ हुनर की, है’ अनोखा अनजान</p>
<p>यही’ तारीफ़ कि हमको न सताए न बने |</p>
<p></p>
<p>कर्म इंसान का’ हो ठीक सितारा जैसा</p>
<p>कर्म काला किया’ तो चेहरा’ दिखाए न बने |</p>
<p></p>
<p>हाथ की रेखा’ बताती है’ कि आगे क्या है</p>
<p>मर्द तक़दीर जो’ बिगड़े तो’ बनाए न बने |</p>
<p></p>
<p>प्रेम करने गया’ था पर बना’ बेचारा बैर</p>
<p>नफरतों की जो’ लगी आग बुझाए न बने |</p>
<p></p>
<p>न हुई गंगा’ सफाई कई’ सालों के बाद</p>
<p>भक्त जाते हैं’ नहाने तो’ नहाए न बने |</p>
<p></p>
<p>मौलिक और अप्रकाशित </p>