Zohaib Ambar's Posts - Open Books Online2024-03-28T22:03:43ZZohaib Ambarhttp://openbooksonline.com/profile/Zohaibhttp://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/2991298311?profile=RESIZE_48X48&width=48&height=48&crop=1%3A1http://openbooksonline.com/profiles/blog/feed?user=2x0zzbgmvcmnq&xn_auth=noग़ज़लtag:openbooksonline.com,2020-01-26:5170231:BlogPost:10000562020-01-26T16:25:02.000ZZohaib Ambarhttp://openbooksonline.com/profile/Zohaib
<p>माना नशात ए ज़ीस्त है बेज़ार आज भी,<br></br>हम हैं मता ए ग़म के ख़रीदार आज भी..</p>
<p></p>
<p>माना बदल चुकी है ज़माने कि हर रविश,<br></br>दो चार फिर भी मिलते हैं गम-ख़्वार आज भी..</p>
<p></p>
<p>बच कर जहां पे बैठ सकें ग़म की धूप से,<br></br>मिलता नहीं वो सायए दीवार आज भी..</p>
<p></p>
<p>सुलझेंगी किस तरह मिरि किस्मत की उलझनें,<br></br>उलझे हुऐ हैं गेसुए-ख़मदार आज भी..</p>
<p></p>
<p>यारों हमारे नाम से है मयक़दे की शान,<br></br>मशहूर है तो हम ही गुनहगार आज भी..</p>
<p></p>
<p>आवाज़-ए-हक़ दबाये दबी है न दब सके,<br></br>मन्सूर…</p>
<p>माना नशात ए ज़ीस्त है बेज़ार आज भी,<br/>हम हैं मता ए ग़म के ख़रीदार आज भी..</p>
<p></p>
<p>माना बदल चुकी है ज़माने कि हर रविश,<br/>दो चार फिर भी मिलते हैं गम-ख़्वार आज भी..</p>
<p></p>
<p>बच कर जहां पे बैठ सकें ग़म की धूप से,<br/>मिलता नहीं वो सायए दीवार आज भी..</p>
<p></p>
<p>सुलझेंगी किस तरह मिरि किस्मत की उलझनें,<br/>उलझे हुऐ हैं गेसुए-ख़मदार आज भी..</p>
<p></p>
<p>यारों हमारे नाम से है मयक़दे की शान,<br/>मशहूर है तो हम ही गुनहगार आज भी..</p>
<p></p>
<p>आवाज़-ए-हक़ दबाये दबी है न दब सके,<br/>मन्सूर है बहुत से सर-ए-दार आज भी..</p>
<p></p>
<p>सींचा है अपने ख़ून से हमने भी ये चमन,<br/>"अम्बर" हमीं नहीं है वफ़ादार आज भी..!!</p>
<p></p>
<p>मौलिक एवं अप्रकाशित</p>ग़ज़ल (ज़ख्म सारे दर्द बन कर)tag:openbooksonline.com,2018-10-20:5170231:BlogPost:9562132018-10-20T21:15:50.000ZZohaib Ambarhttp://openbooksonline.com/profile/Zohaib
<p>दर्द सारे ज़ख्म बन कर ख़ुद-नुमा हो ही गये,<br></br>राज़-ए-पोशीदा थे आख़िर बरमला हो ही गये..</p>
<p></p>
<p>तू ना समझेगा हमें थी कौन सी मजबूरियाँ,<br></br>तेरी नज़रों में तो अब हम बे-वफ़ा हो ही गये..</p>
<p></p>
<p>इश्क़ क्या है, क्या हवस है और क्या है नफ़्स ये,<br></br>उठते उठते ये सवाल अब मुद्द'आ हो ही गये..</p>
<p></p>
<p>एक मुददत बाद उस का शहर में आना हुआ,<br></br>बे-वफ़ा को फिर से देखा औ फ़िदा हो ही गये..</p>
<p></p>
<p>फिर सुख़न में रंग आया उस ख़्याल-ए-ख़ास का,<br></br>फिर ग़ज़ल के शेर सारे मरसिया हो ही…</p>
<p>दर्द सारे ज़ख्म बन कर ख़ुद-नुमा हो ही गये,<br/>राज़-ए-पोशीदा थे आख़िर बरमला हो ही गये..</p>
<p></p>
<p>तू ना समझेगा हमें थी कौन सी मजबूरियाँ,<br/>तेरी नज़रों में तो अब हम बे-वफ़ा हो ही गये..</p>
<p></p>
<p>इश्क़ क्या है, क्या हवस है और क्या है नफ़्स ये,<br/>उठते उठते ये सवाल अब मुद्द'आ हो ही गये..</p>
<p></p>
<p>एक मुददत बाद उस का शहर में आना हुआ,<br/>बे-वफ़ा को फिर से देखा औ फ़िदा हो ही गये..</p>
<p></p>
<p>फिर सुख़न में रंग आया उस ख़्याल-ए-ख़ास का,<br/>फिर ग़ज़ल के शेर सारे मरसिया हो ही गये..</p>
<p></p>
<p>भूल कर उनको नया इक हमसफ़र ढूंढेगें अब,<br/>रास्ते ज़ोहेब उनसे जब जुदा हो ही गये..!!</p>
<p></p>
<p></p>
<p><strong>मौलिक व अप्रकाशित</strong></p>ग़ज़ल (सुन कर ये तिरी ज़ुल्फ़ के मुबहम से फ़साने)tag:openbooksonline.com,2018-10-20:5170231:BlogPost:9562142018-10-20T21:00:00.000ZZohaib Ambarhttp://openbooksonline.com/profile/Zohaib
<p>सुन कर ये तिरी ज़ुल्फ़ के मुबहम से फ़साने,<br></br> दश्ते जुनुं में फिरते हैं कितने ही दीवाने..</p>
<p></p>
<p>कब साथ दिया उसका दुआ ने या दवा ने,<br></br> आशिक़ को कहाँ मिलते हैं जीने के बहाने..</p>
<p></p>
<p>मुमकिन है तुम्हें दर्स मिले इनसे वफ़ा का,<br></br> पढ़ते कुँ नहीं तुम ये वफ़ाओं के फ़साने..</p>
<p></p>
<p>इस दौर के गीतों में नहीं कोई हरारत,<br></br> पुर-सोज़ जो नग़में हैं वो नग़में हैं पुराने..</p>
<p></p>
<p>इस इश्क़ मुहब्बत में फ़क़त उन की बदौलत,<br></br> ज़ोहेब तुम्हें मिल तो गये ग़म के…</p>
<p>सुन कर ये तिरी ज़ुल्फ़ के मुबहम से फ़साने,<br/> दश्ते जुनुं में फिरते हैं कितने ही दीवाने..</p>
<p></p>
<p>कब साथ दिया उसका दुआ ने या दवा ने,<br/> आशिक़ को कहाँ मिलते हैं जीने के बहाने..</p>
<p></p>
<p>मुमकिन है तुम्हें दर्स मिले इनसे वफ़ा का,<br/> पढ़ते कुँ नहीं तुम ये वफ़ाओं के फ़साने..</p>
<p></p>
<p>इस दौर के गीतों में नहीं कोई हरारत,<br/> पुर-सोज़ जो नग़में हैं वो नग़में हैं पुराने..</p>
<p></p>
<p>इस इश्क़ मुहब्बत में फ़क़त उन की बदौलत,<br/> ज़ोहेब तुम्हें मिल तो गये ग़म के ख़ज़ाने..</p>
<p></p>
<p>22112211221122</p>
<p></p>
<p><strong>मौलिक व अप्रकाशित</strong></p>किस कि सुनता है (ग़ज़ल)tag:openbooksonline.com,2018-09-11:5170231:BlogPost:9482742018-09-11T05:00:00.000ZZohaib Ambarhttp://openbooksonline.com/profile/Zohaib
<p>किसकी सुनता है मन की करता है,</p>
<p>मुँह में रखता ज़बान-ए-गोया है..</p>
<p></p>
<p>हक़ बयानी ही उसका शेवा है,<br/> कब उसे ज़िन्दगी की परवा है..</p>
<p></p>
<p>मौत पर ये जवाब उसका है,<br/> क्या अजब है कि इक तमाशा है..</p>
<p></p>
<p>वो जो हर ग़म में इक मसीहा है,<br/> कौन जाने कहाँ वो रहता है..</p>
<p></p>
<p>क्यूँ ख़्यालों में है अबस मेरे<br/> किस ने ज़ोहेब उसको देखा है..??</p>
<p></p>
<p>मौलिक एवं अप्रकाशित।</p>
<p>किसकी सुनता है मन की करता है,</p>
<p>मुँह में रखता ज़बान-ए-गोया है..</p>
<p></p>
<p>हक़ बयानी ही उसका शेवा है,<br/> कब उसे ज़िन्दगी की परवा है..</p>
<p></p>
<p>मौत पर ये जवाब उसका है,<br/> क्या अजब है कि इक तमाशा है..</p>
<p></p>
<p>वो जो हर ग़म में इक मसीहा है,<br/> कौन जाने कहाँ वो रहता है..</p>
<p></p>
<p>क्यूँ ख़्यालों में है अबस मेरे<br/> किस ने ज़ोहेब उसको देखा है..??</p>
<p></p>
<p>मौलिक एवं अप्रकाशित।</p>ग़ज़ल (हर धड़कन पर इक आहट)tag:openbooksonline.com,2018-08-25:5170231:BlogPost:9462142018-08-25T15:01:17.000ZZohaib Ambarhttp://openbooksonline.com/profile/Zohaib
<p>हर धड़कन पर इक आहट,<br/>सोचूँ तो हो घबराहट..</p>
<p></p>
<p>यारों उससे पूंछो तो,<br/>क्यूँ है मुझसे उकताहट..</p>
<p></p>
<p>लहजा उसका है शीरीं,<br/>आँखें उसकी कड़वाहट..</p>
<p></p>
<p>मुझसे इतनी दूरी क्यूँ,<br/>हर लम्हा है झुंझलाहट..</p>
<p></p>
<p>उससे हाले दिल कह कर,<br/>देखी उसकी तिर्याहट..!!</p>
<p></p>
<p>मौलिक एवं अप्रकाशित।</p>
<p>हर धड़कन पर इक आहट,<br/>सोचूँ तो हो घबराहट..</p>
<p></p>
<p>यारों उससे पूंछो तो,<br/>क्यूँ है मुझसे उकताहट..</p>
<p></p>
<p>लहजा उसका है शीरीं,<br/>आँखें उसकी कड़वाहट..</p>
<p></p>
<p>मुझसे इतनी दूरी क्यूँ,<br/>हर लम्हा है झुंझलाहट..</p>
<p></p>
<p>उससे हाले दिल कह कर,<br/>देखी उसकी तिर्याहट..!!</p>
<p></p>
<p>मौलिक एवं अप्रकाशित।</p>ग़ज़लtag:openbooksonline.com,2018-08-02:5170231:BlogPost:9432382018-08-02T22:00:00.000ZZohaib Ambarhttp://openbooksonline.com/profile/Zohaib
<p dir="ltr">ज़माने की जहालत कम नहीं थी,<br></br> इधर अपनी बग़ावत कम नही थी..</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">लिये ख़ंजर वो देखो ताक में हैं,<br></br> हमारी जिस को चाहत कम नहीं थी..</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">सभी की थी दिखावे की मुहब्बत,<br></br> दिलों में वैसे नफ़रत कम नहीं थी..</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">जहाँ पर ज़िन्दगी की खुशबुएं थी,<br></br> उसी महफ़िल में ग़ीबत कम नहीं थी..</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">हमारे पास रुसवाई की दौलत,<br></br> अरे उनकी बदौलत कम नहीं थी..…</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">ज़माने की जहालत कम नहीं थी,<br/> इधर अपनी बग़ावत कम नही थी..</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">लिये ख़ंजर वो देखो ताक में हैं,<br/> हमारी जिस को चाहत कम नहीं थी..</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">सभी की थी दिखावे की मुहब्बत,<br/> दिलों में वैसे नफ़रत कम नहीं थी..</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">जहाँ पर ज़िन्दगी की खुशबुएं थी,<br/> उसी महफ़िल में ग़ीबत कम नहीं थी..</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">हमारे पास रुसवाई की दौलत,<br/> अरे उनकी बदौलत कम नहीं थी..</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">तुम्हारे पास था ये दिल अमानत,<br/> अमानत में ख़यानत कम नहीं थी..</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">नहीं था आशना दिल इश्क़ से जब,<br/> बड़ी फ़ुर्सत थी फ़ुर्सत कम नहीं थी..</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">वो पत्थर था मगर था ख़ूबसूरत,<br/> औ<u>र</u> उस पर भी नज़ाकत कम नहीं थी..</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">ज़रा सी शेख़ जी को भी चखाते,<br/> शराब ए नाब नुदरत कम नहीं थी..</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">मुझे सोने में तुलते देखते हो,<br/> मुझे मिट्टी की अज़मत कम नहीं थी..</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">ग़ज़ल ख़ुद कह के पढ़ना चाहता था,<br/> मगर इसमे भी मेहनत कम नहीं थी..</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">दिया ज़ोहेब आंधी में जलाते,<br/> हवा की यार दहशत कम नहीं थी..!!</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">मौलिक एवं अप्रकाशित।</p>ग़ज़लtag:openbooksonline.com,2018-08-02:5170231:BlogPost:9431402018-08-02T22:00:00.000ZZohaib Ambarhttp://openbooksonline.com/profile/Zohaib
<p>किसी ने तेरी सूरत देख ली है,<br></br> यही समझो क़यामत देख ली है..</p>
<p></p>
<p>अभी अंजाम-ए-दिल मालूम क्या है,<br></br> अजी तुमने तो आफत देख ली है..</p>
<p></p>
<p>कि ईजा हिज्र की देखी कहाँ थी,<br></br> फ़क़त तेरी बदौलत देख ली है..</p>
<p></p>
<p>चुराता है वो काफ़िर आँख मुझसे,<br></br> निगाह-ए-चश्म-ए-हसरत देख ली है..</p>
<p></p>
<p>शराफत आज हमने तर्क कर दी,<br></br> ज़माने की शराफत देख ली है..</p>
<p></p>
<p>ज़रा शिकवा किया था आज उनसे,<br></br> अरे उल्टी नदामत देख ली है..</p>
<p></p>
<p>संभल जाओ मियां ज़ोहेब तुम भी,…<br></br></p>
<p>किसी ने तेरी सूरत देख ली है,<br/> यही समझो क़यामत देख ली है..</p>
<p></p>
<p>अभी अंजाम-ए-दिल मालूम क्या है,<br/> अजी तुमने तो आफत देख ली है..</p>
<p></p>
<p>कि ईजा हिज्र की देखी कहाँ थी,<br/> फ़क़त तेरी बदौलत देख ली है..</p>
<p></p>
<p>चुराता है वो काफ़िर आँख मुझसे,<br/> निगाह-ए-चश्म-ए-हसरत देख ली है..</p>
<p></p>
<p>शराफत आज हमने तर्क कर दी,<br/> ज़माने की शराफत देख ली है..</p>
<p></p>
<p>ज़रा शिकवा किया था आज उनसे,<br/> अरे उल्टी नदामत देख ली है..</p>
<p></p>
<p>संभल जाओ मियां ज़ोहेब तुम भी,<br/> तुम्हारी सब ने आदत देख ली है..!!</p>
<p></p>
<p>मौलिक एवम अप्रकाशित।</p>