Roli Pathak's Posts - Open Books Online2024-03-28T09:37:48ZRoli Pathakhttp://openbooksonline.com/profile/RoliPathakhttp://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/2991276632?profile=RESIZE_48X48&width=48&height=48&crop=1%3A1http://openbooksonline.com/profiles/blog/feed?user=30d3m1otbx78h&xn_auth=noवीरगति.....tag:openbooksonline.com,2010-11-02:5170231:BlogPost:307182010-11-02T17:30:00.000ZRoli Pathakhttp://openbooksonline.com/profile/RoliPathak
सन्नाटे की साँय-साँय<br />
झींगुर की झाँय-झाँय<br />
सूखे पत्तों पे कीट की सरसराहट<br />
दर्जनों ह्रदयों की बढाती घबराहट<br />
हरेक मानो मौत की डगर पर...<br />
चलने को अग्रसर...<br />
पपडाए होंठ सूखा हलक<br />
ज़िन्दगी नहीं दूर तलक<br />
चाँद की रौशनी भी<br />
हो चली मद्धम जहाँ..<br />
ऐसे मौत के घने जंगल हैं यहाँ,<br />
हाथ में बन्दूक,ऊँगली घोड़े पर<br />
ह्रदय है विचलित पर स्थिर है नज़र..<br />
ना जाने और कितनी साँसें लिखी हैं तकदीर में..<br />
एक बार फिर तुझे देख लूं तस्वीर में..<br />
जेब को अपनी टटोलता-खंगालता,<br />
बटुएनुमा एक वस्तु निकालता,<br />
हौले से उसके पटों को खोलता,<br />
मन-ही-मन उस…
सन्नाटे की साँय-साँय<br />
झींगुर की झाँय-झाँय<br />
सूखे पत्तों पे कीट की सरसराहट<br />
दर्जनों ह्रदयों की बढाती घबराहट<br />
हरेक मानो मौत की डगर पर...<br />
चलने को अग्रसर...<br />
पपडाए होंठ सूखा हलक<br />
ज़िन्दगी नहीं दूर तलक<br />
चाँद की रौशनी भी<br />
हो चली मद्धम जहाँ..<br />
ऐसे मौत के घने जंगल हैं यहाँ,<br />
हाथ में बन्दूक,ऊँगली घोड़े पर<br />
ह्रदय है विचलित पर स्थिर है नज़र..<br />
ना जाने और कितनी साँसें लिखी हैं तकदीर में..<br />
एक बार फिर तुझे देख लूं तस्वीर में..<br />
जेब को अपनी टटोलता-खंगालता,<br />
बटुएनुमा एक वस्तु निकालता,<br />
हौले से उसके पटों को खोलता,<br />
मन-ही-मन उस तस्वीर से बोलता,<br />
सन्नाटे से डरता,<br />
आवाज़ से घबराता,<br />
मन-ही-मन वो है बुदबुदाता,<br />
छूट जाये जो साथ अपना,<br />
तो गम ना करना...<br />
माँ-बाबू और बच्चों को संभालना,<br />
आँख तुम नम ना करना..<br />
ना जाने ये दानव जीने देंगे या नहीं..<br />
मै अपना, तुम अपना फ़र्ज़ अदा करना..<br />
रह गया अधूरा ये वार्तालाप<br />
सन्नाटे को चीरती आई मौत की आवाज़..<br />
धंस गयी कलेजे में उसके वह गोली..<br />
कोई और नहीं वे थे नक्सली...<br />
गिरा बटुआ एक ओर<br />
भीग गए नैनो के कोर<br />
चारों ओर है दावानल<br />
चीखों और मृत्यु का शोर<br />
ज़िन्दगी मानो उससे दूर जा रही है...<br />
एक मीठी सी नींद आ रही है...<br />
प्रिये, इस जनम में अपने देश का क़र्ज़ चुकाया<br />
अगले जनम तुम्हारा चुकाऊंगा<br />
यदि तुम चाहोगी तो तुम्हारा सहचर<br />
बनकर फिर आऊंगा...<br />
दुआ करना हमारे वतन में हो तब अमन औ शांति...<br />
वर्ना फिर किसी जंग की भेंट चढ़ जाऊंगा...............!!!<br />
- रोली पाठकदो बैल...tag:openbooksonline.com,2010-11-02:5170231:BlogPost:305622010-11-02T08:30:00.000ZRoli Pathakhttp://openbooksonline.com/profile/RoliPathak
कल मर गया<br />
किशनु का बूढा बैल,<br />
अब क्या होगा...<br />
कैसे होगा...<br />
चिंतातुर,सोचता-विचारता<br />
मन ही मन बिसूरता<br />
थाली में पड़ी रोटी<br />
टुकड़ों में तोड़ता<br />
सोचता,,,बस सोचता...<br />
बोहनी है सिर पर,<br />
हल पर<br />
गडाए नज़र,<br />
एक ही बैल बचा...<br />
हे प्रभु,<br />
ये कैसी सज़ा...!!!<br />
स्वयं को बैल के<br />
रिक्तस्थान पे देखता..<br />
मन-ही-मन देता तसल्ली<br />
खुद से ही कहता,<br />
मै ही करूँगा...हाँ मै ही करूँगा...<br />
बैल ही तो हूँ मै,<br />
जीवन भर ढोया बोझ,<br />
इस हल का भी ढोऊंगा<br />
कितनी भी विपत आये,<br />
फसल अवश्य बोऊंगा...<br />
छोड़ खात,मुह अँधेरे ही..<br />
निकाल पड़ा खेत की ओर,<br />
दो बैल जोत रहे…
कल मर गया<br />
किशनु का बूढा बैल,<br />
अब क्या होगा...<br />
कैसे होगा...<br />
चिंतातुर,सोचता-विचारता<br />
मन ही मन बिसूरता<br />
थाली में पड़ी रोटी<br />
टुकड़ों में तोड़ता<br />
सोचता,,,बस सोचता...<br />
बोहनी है सिर पर,<br />
हल पर<br />
गडाए नज़र,<br />
एक ही बैल बचा...<br />
हे प्रभु,<br />
ये कैसी सज़ा...!!!<br />
स्वयं को बैल के<br />
रिक्तस्थान पे देखता..<br />
मन-ही-मन देता तसल्ली<br />
खुद से ही कहता,<br />
मै ही करूँगा...हाँ मै ही करूँगा...<br />
बैल ही तो हूँ मै,<br />
जीवन भर ढोया बोझ,<br />
इस हल का भी ढोऊंगा<br />
कितनी भी विपत आये,<br />
फसल अवश्य बोऊंगा...<br />
छोड़ खात,मुह अँधेरे ही..<br />
निकाल पड़ा खेत की ओर,<br />
दो बैल जोत रहे खेत,<br />
होने लगी देखो भोर.........<br />
<br />
- रोली पाठक