Poonam Shukla's Posts - Open Books Online2024-03-28T21:53:46ZPoonam Shuklahttp://openbooksonline.com/profile/PoonamShuklahttp://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/2991284672?profile=RESIZE_48X48&width=48&height=48&crop=1%3A1http://openbooksonline.com/profiles/blog/feed?user=3aux5av8oye3c&xn_auth=noग़ज़ल - कुछ तो उसने कभी कहा होगा -पूनम शुक्लाtag:openbooksonline.com,2015-04-25:5170231:BlogPost:6452992015-04-25T04:25:32.000ZPoonam Shuklahttp://openbooksonline.com/profile/PoonamShukla
2122 1212 22<br />
ऐसे कैसे कोई मरा होगा<br />
कुछ तो उसने कभी कहा होगा<br />
जब भी देखा जो आइना उसने<br />
खुद से कह कर वो थक गया होगा<br />
कितनी रातें गुजार दी होंगी<br />
जाने कब तक वो जागता होगा<br />
आँसू भी जब नहीं रहे साथी<br />
मौत का साथ चुन लिया होगा<br />
कितनी हैरत में जिन्दगी होगी<br />
जब किसी ने नहीं सुना होगा<br />
ख़ाक उड़ती है अब हवा में क्यों<br />
जब कि घर लापता हुआ होगा<br />
रूहे तामीर आज रोती है<br />
जिसका कोई न अब पता होगा<br />
<br />
पूनम शुक्ला<br />
<br />
मौलिक एवं अप्रकाशित
2122 1212 22<br />
ऐसे कैसे कोई मरा होगा<br />
कुछ तो उसने कभी कहा होगा<br />
जब भी देखा जो आइना उसने<br />
खुद से कह कर वो थक गया होगा<br />
कितनी रातें गुजार दी होंगी<br />
जाने कब तक वो जागता होगा<br />
आँसू भी जब नहीं रहे साथी<br />
मौत का साथ चुन लिया होगा<br />
कितनी हैरत में जिन्दगी होगी<br />
जब किसी ने नहीं सुना होगा<br />
ख़ाक उड़ती है अब हवा में क्यों<br />
जब कि घर लापता हुआ होगा<br />
रूहे तामीर आज रोती है<br />
जिसका कोई न अब पता होगा<br />
<br />
पूनम शुक्ला<br />
<br />
मौलिक एवं अप्रकाशितगीत - होली कैसे खेलूँtag:openbooksonline.com,2015-03-03:5170231:BlogPost:6252472015-03-03T06:00:51.000ZPoonam Shuklahttp://openbooksonline.com/profile/PoonamShukla
मैं होली कैसे खेलूँ रे<br />
साँवरिया तोरे संग<br />
बादल अपनी पिचकारी से<br />
रंग भंग कर जाते हैं<br />
रखा गुलाल धुंध उड़ती है<br />
राग जंग कर जाते हैं<br />
कोई रोको इस धरती की<br />
हरियाली हो गई तंग<br />
मैं होली कैसे .............. ।<br />
सूरज ने आँखें ना खोलीं<br />
सिमटा उसका ताप<br />
तारों की झिलमिल रंगोली<br />
गायब अपने आप<br />
कहीं सिमट बैठे हैं सारे<br />
रंग बिरंगे रंग<br />
मैं होली कैसे खेलूँ रे<br />
साँवरिया तोरे संग ।<br />
<br />
पूनम शुक्ला<br />
मौलिक एवं अप्रकाशित
मैं होली कैसे खेलूँ रे<br />
साँवरिया तोरे संग<br />
बादल अपनी पिचकारी से<br />
रंग भंग कर जाते हैं<br />
रखा गुलाल धुंध उड़ती है<br />
राग जंग कर जाते हैं<br />
कोई रोको इस धरती की<br />
हरियाली हो गई तंग<br />
मैं होली कैसे .............. ।<br />
सूरज ने आँखें ना खोलीं<br />
सिमटा उसका ताप<br />
तारों की झिलमिल रंगोली<br />
गायब अपने आप<br />
कहीं सिमट बैठे हैं सारे<br />
रंग बिरंगे रंग<br />
मैं होली कैसे खेलूँ रे<br />
साँवरिया तोरे संग ।<br />
<br />
पूनम शुक्ला<br />
मौलिक एवं अप्रकाशितग़ज़ल - रात गहरी पहले तो आती ही हैtag:openbooksonline.com,2014-11-24:5170231:BlogPost:5898372014-11-24T08:30:00.000ZPoonam Shuklahttp://openbooksonline.com/profile/PoonamShukla
2122 2122. 212<br />
<br />
बात आ ना जाए अपने होठ पर<br />
देखिए पीछे पड़ा सारा शहर<br />
<br />
मत कहो तुम हाले दिल चुप ही रहो<br />
क्यों कहें हम खुद कहेगी ये नजर<br />
<br />
देखो कलियाँ खुद ही खिलती जाएँगी<br />
गीत अब खुद गुनगुनाएँगे भ्रमर<br />
<br />
हाथ थामें जब चलेंगे साथ हम<br />
वक्त थम जाएगा हमको देखकर<br />
<br />
रात गहरी पहले तो आती ही है<br />
पर पलट करती है ऐलाने- सहर<br />
<br />
पूनम शुक्ला<br />
मौलिक एवं अप्रकाशित
2122 2122. 212<br />
<br />
बात आ ना जाए अपने होठ पर<br />
देखिए पीछे पड़ा सारा शहर<br />
<br />
मत कहो तुम हाले दिल चुप ही रहो<br />
क्यों कहें हम खुद कहेगी ये नजर<br />
<br />
देखो कलियाँ खुद ही खिलती जाएँगी<br />
गीत अब खुद गुनगुनाएँगे भ्रमर<br />
<br />
हाथ थामें जब चलेंगे साथ हम<br />
वक्त थम जाएगा हमको देखकर<br />
<br />
रात गहरी पहले तो आती ही है<br />
पर पलट करती है ऐलाने- सहर<br />
<br />
पूनम शुक्ला<br />
मौलिक एवं अप्रकाशितग़ज़ल - धरती दीपक से जगमगानी है - पूनम शुक्लाtag:openbooksonline.com,2014-10-16:5170231:BlogPost:5821562014-10-16T04:30:00.000ZPoonam Shuklahttp://openbooksonline.com/profile/PoonamShukla
<p>2122 2212 22<br></br> फिर अमावस की रात आनी है<br></br> हमने भी पर लड़ने की ठानी है</p>
<p><br></br> है अँधेरा औ चाँद खोया फिर<br></br> ये तो पहचानी इक कहानी है</p>
<p><br></br> रात आएगी जग छुपा लेगी<br></br> धरती दीपक से जगमगानी है</p>
<p><br></br> ऐ खुदा तुमने तो सजा दी थी<br></br> प्रेम की ये भी इक निशानी है</p>
<p><br></br> गम के भीतर ही सुख छुपा होगा<br></br> बात ये भी तो जानी मानी है</p>
<p><br></br> बीज सूरज के आओ बो दें फिर<br></br> खेती आतिश की लहलहानी है</p>
<p><br></br> चल अमावस को फिर बना पूनम<br></br> ये तो आदत तेरी पुरानी है ।…<br></br></p>
<p>2122 2212 22<br/> फिर अमावस की रात आनी है<br/> हमने भी पर लड़ने की ठानी है</p>
<p><br/> है अँधेरा औ चाँद खोया फिर<br/> ये तो पहचानी इक कहानी है</p>
<p><br/> रात आएगी जग छुपा लेगी<br/> धरती दीपक से जगमगानी है</p>
<p><br/> ऐ खुदा तुमने तो सजा दी थी<br/> प्रेम की ये भी इक निशानी है</p>
<p><br/> गम के भीतर ही सुख छुपा होगा<br/> बात ये भी तो जानी मानी है</p>
<p><br/> बीज सूरज के आओ बो दें फिर<br/> खेती आतिश की लहलहानी है</p>
<p><br/> चल अमावस को फिर बना पूनम<br/> ये तो आदत तेरी पुरानी है ।<br/> <br/> मौलिक एवं अप्रकाशित<br/> पूनम शुक्ला</p>ग़ज़ल - तेरी यादों में ़ज़ालिम गुजर जाएगी - पूनम शुक्लाtag:openbooksonline.com,2014-09-08:5170231:BlogPost:5735872014-09-08T14:54:45.000ZPoonam Shuklahttp://openbooksonline.com/profile/PoonamShukla
2122. 1221. 2212<br />
<br />
तेरी यादों में ज़ालिम गुजर जाएगी<br />
जिन्दगी अब न जाने किधर जाएगी<br />
<br />
इक नजर देखिए बस जरा सा हमें<br />
आपको देखकर ये सँवर जाएगी<br />
<br />
रोशनी अब ये पा लेगी लगता तो है<br />
चीर देगी अँधेरा जिधर जाएगी<br />
<br />
आँसुओं की लड़ी बह रही थी कहीं<br />
बह के जानूँ न वो किस नहर जाएगी<br />
<br />
कुछ कहेंगे नहीं फिर भी हम तो सनम<br />
बात अपनी दिलों तक मगर जाएगी<br />
<br />
पूनम शुक्ला ।<br />
<br />
मौलिक एवं अप्रकाशित
2122. 1221. 2212<br />
<br />
तेरी यादों में ज़ालिम गुजर जाएगी<br />
जिन्दगी अब न जाने किधर जाएगी<br />
<br />
इक नजर देखिए बस जरा सा हमें<br />
आपको देखकर ये सँवर जाएगी<br />
<br />
रोशनी अब ये पा लेगी लगता तो है<br />
चीर देगी अँधेरा जिधर जाएगी<br />
<br />
आँसुओं की लड़ी बह रही थी कहीं<br />
बह के जानूँ न वो किस नहर जाएगी<br />
<br />
कुछ कहेंगे नहीं फिर भी हम तो सनम<br />
बात अपनी दिलों तक मगर जाएगी<br />
<br />
पूनम शुक्ला ।<br />
<br />
मौलिक एवं अप्रकाशितग़ज़ल - क्यों शरमाने लगे थे - पूनम शुक्ला tag:openbooksonline.com,2014-05-07:5170231:BlogPost:5378212014-05-07T06:47:17.000ZPoonam Shuklahttp://openbooksonline.com/profile/PoonamShukla
२१२२ / २१२२ / २१२२<br />
दूर से तो गीत वो गाने लगे थे<br />
पास आते ही क्यों शरमाने लगे थे<br />
मेरे दिल में बस गए थे वो उसी दिन<br />
जब से मेरा दिल वो बहलाने लगे थे<br />
दूर थे पर पास ही थीं उनकी यादें<br />
हमने कहा कब आप अनजाने लगे थे<br />
धड़कनों नें खुद ही घुल मिल बात कर ली<br />
तेरे तरन्नुम सारे पहचाने लगे थे<br />
हम हैं तुममें तुम हो हम में अब ये जाना<br />
पर नजारे कब से समझाने लगे थे<br />
<br />
मौलिक एवं अप्रकाशित<br />
<br />
पूनम शुक्ला
२१२२ / २१२२ / २१२२<br />
दूर से तो गीत वो गाने लगे थे<br />
पास आते ही क्यों शरमाने लगे थे<br />
मेरे दिल में बस गए थे वो उसी दिन<br />
जब से मेरा दिल वो बहलाने लगे थे<br />
दूर थे पर पास ही थीं उनकी यादें<br />
हमने कहा कब आप अनजाने लगे थे<br />
धड़कनों नें खुद ही घुल मिल बात कर ली<br />
तेरे तरन्नुम सारे पहचाने लगे थे<br />
हम हैं तुममें तुम हो हम में अब ये जाना<br />
पर नजारे कब से समझाने लगे थे<br />
<br />
मौलिक एवं अप्रकाशित<br />
<br />
पूनम शुक्लाग़ज़ल - सबके सत्कर्म ही फलते तो अच्छा था - पूनम शुक्लाtag:openbooksonline.com,2014-03-24:5170231:BlogPost:5237142014-03-24T11:22:13.000ZPoonam Shuklahttp://openbooksonline.com/profile/PoonamShukla
2122 1222 2222<br />
<br />
आप बस रोज यूँ मिलते तो अच्छा था<br />
दर्द दिल के सभी टलते तो अच्छा था<br />
<br />
काट डालीं कतारें तुमने पेड़ों की<br />
पेड़ ठंढ़ी हवा झलते तो अच्छा था<br />
<br />
झाँकते क्यों हैं पत्तों से अब अंगारे<br />
शाख पर फूल ही खिलते तो अच्छा था<br />
<br />
आग में क्यों यूँ जल जाते हैं परवाने<br />
उनके मद लोभ ही जलते तो अच्छा था<br />
<br />
अब तो तौकीर भी दौलत से मिलती है<br />
सबके सत्कर्म ही फलते तो अच्छा था<br />
<br />
हाँ सज़ावार को मिलती है अय्याशी<br />
वो तो बस हाथ ही मलते तो अच्छा था<br />
<br />
पूनम शुक्ला<br />
मौलिक एवं अप्रकाशित
2122 1222 2222<br />
<br />
आप बस रोज यूँ मिलते तो अच्छा था<br />
दर्द दिल के सभी टलते तो अच्छा था<br />
<br />
काट डालीं कतारें तुमने पेड़ों की<br />
पेड़ ठंढ़ी हवा झलते तो अच्छा था<br />
<br />
झाँकते क्यों हैं पत्तों से अब अंगारे<br />
शाख पर फूल ही खिलते तो अच्छा था<br />
<br />
आग में क्यों यूँ जल जाते हैं परवाने<br />
उनके मद लोभ ही जलते तो अच्छा था<br />
<br />
अब तो तौकीर भी दौलत से मिलती है<br />
सबके सत्कर्म ही फलते तो अच्छा था<br />
<br />
हाँ सज़ावार को मिलती है अय्याशी<br />
वो तो बस हाथ ही मलते तो अच्छा था<br />
<br />
पूनम शुक्ला<br />
मौलिक एवं अप्रकाशितग़ज़ल - जीत गाएगी थोड़ा सबर कीजिए - पूनम शुक्लाtag:openbooksonline.com,2014-02-27:5170231:BlogPost:5163312014-02-27T06:35:18.000ZPoonam Shuklahttp://openbooksonline.com/profile/PoonamShukla
2122. 1221. 2212<br />
<br />
<br />
जा चुकी यामिनी मुश्तहर कीजिए<br />
हो सके अब तो थोड़ा सहर कीजिए<br />
<br />
भेज दें गंध जो भी हो आकाश में<br />
गुलशनों को कहीं तो खबर कीजिए<br />
<br />
हर तरफ आग ही आग जलती तो है<br />
तान सीना उसे बेअसर कीजिए<br />
<br />
झूठ की आज चारों तरफ जीत है<br />
सत्यता की कहानी अमर कीजिए<br />
<br />
जुल्म की रात हरदम डराती हमें<br />
जालिमों का खुलासा मगर कीजिए<br />
<br />
तीरगी घेर ले गर कभी राह में.<br />
अश्क से फिर न दामन यूँ तर कीजिए.<br />
<br />
रेत सी जिन्दगी हाथ आती नहीं<br />
पत्थरों पर लिखा कुछ मगर कीजिए<br />
<br />
रोशनी आने से फिर भी शरमाती हो<br />
जानकर इनको बारे- दिगर कीजिए<br />
<br />
एक आवाज़ आएगी…
2122. 1221. 2212<br />
<br />
<br />
जा चुकी यामिनी मुश्तहर कीजिए<br />
हो सके अब तो थोड़ा सहर कीजिए<br />
<br />
भेज दें गंध जो भी हो आकाश में<br />
गुलशनों को कहीं तो खबर कीजिए<br />
<br />
हर तरफ आग ही आग जलती तो है<br />
तान सीना उसे बेअसर कीजिए<br />
<br />
झूठ की आज चारों तरफ जीत है<br />
सत्यता की कहानी अमर कीजिए<br />
<br />
जुल्म की रात हरदम डराती हमें<br />
जालिमों का खुलासा मगर कीजिए<br />
<br />
तीरगी घेर ले गर कभी राह में.<br />
अश्क से फिर न दामन यूँ तर कीजिए.<br />
<br />
रेत सी जिन्दगी हाथ आती नहीं<br />
पत्थरों पर लिखा कुछ मगर कीजिए<br />
<br />
रोशनी आने से फिर भी शरमाती हो<br />
जानकर इनको बारे- दिगर कीजिए<br />
<br />
एक आवाज़ आएगी आकाश से<br />
बात इतनी हमारी अगर कीजिए<br />
<br />
इम्तेहाँ हर कदम में तो आते ही हैं<br />
जीत गाएगी थोड़ा सबर कीजिए<br />
<br />
जिन्दगी का दुखों से सरोकार है<br />
हो सके गर बसर तो बसर कीजिए<br />
<br />
पूनम शुक्ला<br />
<br />
मौलिक एवं अप्रकाशितग़ज़ल- रंग हैं क्यों सात मत पूछो - पूनम शुक्लाtag:openbooksonline.com,2014-02-14:5170231:BlogPost:5119372014-02-14T04:30:00.000ZPoonam Shuklahttp://openbooksonline.com/profile/PoonamShukla
<p>2122. 2122 2<br></br> <br></br> कहनी क्या थी बात मत पूछो<br></br> कब ढ़लेगी रात मत पूछो<br></br> <br></br> जिन्दगी ने खेल है खेला<br></br> किसने दी है मात मत पूछो<br></br> <br></br> थाम कर तुम को चले थे हम<br></br> कब थमेगी रात मत पूछो<br></br> <br></br> बैठ हँसते हर तरफ जाबिर<br></br> देश के हालात मत पूछो<br></br> <br></br> देखना तासीर भी उनकी<br></br> आदमी की जात मत पूछो<br></br> <br></br> जौफ़ ही है हर तरफ बरहम<br></br> रंग हैं क्यों सात मत पूछो<br></br> <br></br> है यहाँ हर राह सरगश्ता<br></br> क्यों नहीं प्रभात मत पूछो<br></br> <br></br> तासीर- गुण ,प्रभाव<br></br> जाबिर -…</p>
<p>2122. 2122 2<br/> <br/> कहनी क्या थी बात मत पूछो<br/> कब ढ़लेगी रात मत पूछो<br/> <br/> जिन्दगी ने खेल है खेला<br/> किसने दी है मात मत पूछो<br/> <br/> थाम कर तुम को चले थे हम<br/> कब थमेगी रात मत पूछो<br/> <br/> बैठ हँसते हर तरफ जाबिर<br/> देश के हालात मत पूछो<br/> <br/> देखना तासीर भी उनकी<br/> आदमी की जात मत पूछो<br/> <br/> जौफ़ ही है हर तरफ बरहम<br/> रंग हैं क्यों सात मत पूछो<br/> <br/> है यहाँ हर राह सरगश्ता<br/> क्यों नहीं प्रभात मत पूछो<br/> <br/> तासीर- गुण ,प्रभाव<br/> जाबिर - अन्यायी,ज़ालिम<br/> जौफ़ - खोखलापन<br/> बरहम - कुपित<br/> सरगश्ता - भटका हुआ<br/> <br/> पूनम शुक्ला<br/> मौलिक एवं अप्रकाशित</p>ग़ज़ल - वही जाने रज़ा उसकी - पूनम शुक्लाtag:openbooksonline.com,2014-01-22:5170231:BlogPost:5030252014-01-22T10:31:23.000ZPoonam Shuklahttp://openbooksonline.com/profile/PoonamShukla
1222. 1222<br />
<br />
दिखी अबकी सबा उसकी<br />
कहीं गुम थी सदा उसकी<br />
<br />
ठिकाना ढ़ूँढ़ते थे हम<br />
बताने को ज़फा उसकी<br />
<br />
लगा वो अब तलक अबतर<br />
न देखी थी सफ़ा उसकी<br />
<br />
कहाँ था आज तक अनवर<br />
छुपी क्यों थी वफा़ उसकी<br />
<br />
हमें मालूम हो कैसे<br />
वही जाने रज़ा उसकी<br />
<br />
पूनम शुक्ला<br />
मौलिक एवं अप्रकाशित
1222. 1222<br />
<br />
दिखी अबकी सबा उसकी<br />
कहीं गुम थी सदा उसकी<br />
<br />
ठिकाना ढ़ूँढ़ते थे हम<br />
बताने को ज़फा उसकी<br />
<br />
लगा वो अब तलक अबतर<br />
न देखी थी सफ़ा उसकी<br />
<br />
कहाँ था आज तक अनवर<br />
छुपी क्यों थी वफा़ उसकी<br />
<br />
हमें मालूम हो कैसे<br />
वही जाने रज़ा उसकी<br />
<br />
पूनम शुक्ला<br />
मौलिक एवं अप्रकाशितग़ज़ल - जादुई बात थी सजाओं में - पूनम शुक्लाtag:openbooksonline.com,2013-11-13:5170231:BlogPost:4703862013-11-13T04:32:14.000ZPoonam Shuklahttp://openbooksonline.com/profile/PoonamShukla
2122. 1212. 22<br />
<br />
जाने क्या बात है हवाओं में<br />
मीठी मिश्री घुली सदाओं में<br />
<br />
ऐसी वैसी नहीं ये रातें हैं<br />
चाँदनी खोजतीं खलाओं में<br />
<br />
शबनमी रात ने कहा कुछ है<br />
कुछ नई बात है सबाओं में<br />
<br />
रात का है असर अभी ऐसा<br />
जामुनी रंग है अदाओं में<br />
<br />
रोशनी छीन ले जो वो मेरी<br />
ऐसी ताकत नहीं ज़फाओं में<br />
<br />
जिन्दगी आज सोचती है ये<br />
जादुई बात थी सजाओं में<br />
<br />
पूनम शुक्ला<br />
<br />
मौलिक एवं अप्रकाशित
2122. 1212. 22<br />
<br />
जाने क्या बात है हवाओं में<br />
मीठी मिश्री घुली सदाओं में<br />
<br />
ऐसी वैसी नहीं ये रातें हैं<br />
चाँदनी खोजतीं खलाओं में<br />
<br />
शबनमी रात ने कहा कुछ है<br />
कुछ नई बात है सबाओं में<br />
<br />
रात का है असर अभी ऐसा<br />
जामुनी रंग है अदाओं में<br />
<br />
रोशनी छीन ले जो वो मेरी<br />
ऐसी ताकत नहीं ज़फाओं में<br />
<br />
जिन्दगी आज सोचती है ये<br />
जादुई बात थी सजाओं में<br />
<br />
पूनम शुक्ला<br />
<br />
मौलिक एवं अप्रकाशितग़ज़ल - कुछ नई बात है सबाओं में - पूनम शुक्लाtag:openbooksonline.com,2013-11-12:5170231:BlogPost:4696902013-11-12T04:07:14.000ZPoonam Shuklahttp://openbooksonline.com/profile/PoonamShukla
2122. 1212. 22<br />
<br />
जाने क्या बात है हवाओं में<br />
मीठी मिश्री घुली सदाओं में<br />
<br />
ऐसी वैसी नहीं ये रातें हैं<br />
चाँदनी खोजतीं खलाओं में<br />
<br />
शबनमी रात ने कहा कुछ है<br />
कुछ नई बात है सबाओं में<br />
<br />
रात का है असर अभी ऐसा<br />
जामुनी रंग है अदाओं में<br />
<br />
रोशनी छीन ले जो वो मेरी<br />
ऐसी ताकत नहीं ज़फाओं में<br />
<br />
जिन्दगी आज सोचती है ये<br />
जादुई बात थी सजाओं में<br />
<br />
पूनम शुक्ला<br />
<br />
मौलिक एवं अप्रकाशित
2122. 1212. 22<br />
<br />
जाने क्या बात है हवाओं में<br />
मीठी मिश्री घुली सदाओं में<br />
<br />
ऐसी वैसी नहीं ये रातें हैं<br />
चाँदनी खोजतीं खलाओं में<br />
<br />
शबनमी रात ने कहा कुछ है<br />
कुछ नई बात है सबाओं में<br />
<br />
रात का है असर अभी ऐसा<br />
जामुनी रंग है अदाओं में<br />
<br />
रोशनी छीन ले जो वो मेरी<br />
ऐसी ताकत नहीं ज़फाओं में<br />
<br />
जिन्दगी आज सोचती है ये<br />
जादुई बात थी सजाओं में<br />
<br />
पूनम शुक्ला<br />
<br />
मौलिक एवं अप्रकाशितग़ज़ल - हँसती फ़िजा का जवाब देखिए - पूनम शुक्लाtag:openbooksonline.com,2013-11-11:5170231:BlogPost:4693882013-11-11T08:30:00.000ZPoonam Shuklahttp://openbooksonline.com/profile/PoonamShukla
2212 . 2121. 212<br />
<br />
<br />
जीवन की ऐसी किताब देखिए<br />
काँटों में खिलता गुलाब देखिए<br />
<br />
रोती ज़मी आसमान रो रहा<br />
हँसता रुदन ये जनाब देखिए<br />
<br />
सोई सबा पर न सोई ये रज़ा<br />
जलता हुआ आफताब देखिए<br />
<br />
जन्नत हुई तिश्नगी है इस कदर<br />
मालिक दिलों के हुबाब देखिए<br />
<br />
कीमत हँसी की चुकाई भी तो क्या<br />
हँसती फिज़ा का जवाब देखिए<br />
<br />
आँगन मेरा रोशनी से भर गया<br />
ऐसा मेरा माहताब देखिए<br />
<br />
दीवानगी घेरती है इस कदर<br />
निखरा है ऐसा शबाब देखिए<br />
<br />
पूनम शुक्ला<br />
<br />
मौलिक एवं अप्रकाशित
2212 . 2121. 212<br />
<br />
<br />
जीवन की ऐसी किताब देखिए<br />
काँटों में खिलता गुलाब देखिए<br />
<br />
रोती ज़मी आसमान रो रहा<br />
हँसता रुदन ये जनाब देखिए<br />
<br />
सोई सबा पर न सोई ये रज़ा<br />
जलता हुआ आफताब देखिए<br />
<br />
जन्नत हुई तिश्नगी है इस कदर<br />
मालिक दिलों के हुबाब देखिए<br />
<br />
कीमत हँसी की चुकाई भी तो क्या<br />
हँसती फिज़ा का जवाब देखिए<br />
<br />
आँगन मेरा रोशनी से भर गया<br />
ऐसा मेरा माहताब देखिए<br />
<br />
दीवानगी घेरती है इस कदर<br />
निखरा है ऐसा शबाब देखिए<br />
<br />
पूनम शुक्ला<br />
<br />
मौलिक एवं अप्रकाशितग़ज़ल - समुन्दर को डगर कर दूँ - पूनम शुक्लाtag:openbooksonline.com,2013-11-08:5170231:BlogPost:4682682013-11-08T09:50:55.000ZPoonam Shuklahttp://openbooksonline.com/profile/PoonamShukla
1222. 1222<br />
<br />
सबा हाजिर अगर कर दूँ<br />
कहानी इक अमर कर दूँ<br />
<br />
अँधेरा घेरता फिर से<br />
सितारों को खबर कर दूँ<br />
<br />
हवा थोड़ी तुफानी है<br />
इसे मैं बेअसर कर दूँ<br />
<br />
कलम की रोशनाई से<br />
फलक रंगीं अगर कर दूँ<br />
<br />
ख़ला की हिकमती कैसी<br />
अगर थोड़ी सहर कर दूँ<br />
<br />
जरा सा वक्त तुम दे दो<br />
जहन्नुम को न घर कर दूँ<br />
<br />
चलूँगी राह जब अपनी<br />
समुन्दर को डगर कर दूँ<br />
<br />
हिकमती - उपाय<br />
<br />
पूनम शुक्ला<br />
<br />
मौलिक एवं अप्रकाशित
1222. 1222<br />
<br />
सबा हाजिर अगर कर दूँ<br />
कहानी इक अमर कर दूँ<br />
<br />
अँधेरा घेरता फिर से<br />
सितारों को खबर कर दूँ<br />
<br />
हवा थोड़ी तुफानी है<br />
इसे मैं बेअसर कर दूँ<br />
<br />
कलम की रोशनाई से<br />
फलक रंगीं अगर कर दूँ<br />
<br />
ख़ला की हिकमती कैसी<br />
अगर थोड़ी सहर कर दूँ<br />
<br />
जरा सा वक्त तुम दे दो<br />
जहन्नुम को न घर कर दूँ<br />
<br />
चलूँगी राह जब अपनी<br />
समुन्दर को डगर कर दूँ<br />
<br />
हिकमती - उपाय<br />
<br />
पूनम शुक्ला<br />
<br />
मौलिक एवं अप्रकाशितगज़ल - राहों में दीवारें हैं - पूनम शुक्लाtag:openbooksonline.com,2013-11-07:5170231:BlogPost:4676582013-11-07T05:00:00.000ZPoonam Shuklahttp://openbooksonline.com/profile/PoonamShukla
2222. 222<br />
<br />
बजती क्यों झंकारें हैं<br />
जब सजती तलवारें हैं<br />
<br />
मुँह पर ताले ऐसे क्यों<br />
अब उठती ललकारें हैं<br />
<br />
आँखों में देखो पानी<br />
उफ इतनी मनुहारें हैं<br />
<br />
कब बदलेगी ये झुग्गी<br />
हाँ बदली सरकारें हैं<br />
<br />
काँटे ही काँटे हैं बस<br />
राहों में दीवारें हैं<br />
<br />
बहना इतना मुश्किल क्यों<br />
दिखती बस मझधारें हैं ।<br />
पूनम शुक्ला<br />
मौलिक एवं अप्रकाशित
2222. 222<br />
<br />
बजती क्यों झंकारें हैं<br />
जब सजती तलवारें हैं<br />
<br />
मुँह पर ताले ऐसे क्यों<br />
अब उठती ललकारें हैं<br />
<br />
आँखों में देखो पानी<br />
उफ इतनी मनुहारें हैं<br />
<br />
कब बदलेगी ये झुग्गी<br />
हाँ बदली सरकारें हैं<br />
<br />
काँटे ही काँटे हैं बस<br />
राहों में दीवारें हैं<br />
<br />
बहना इतना मुश्किल क्यों<br />
दिखती बस मझधारें हैं ।<br />
पूनम शुक्ला<br />
मौलिक एवं अप्रकाशितग़ज़ल - अँधेरा चीर दे नश्तर कहाँ है - पूनम शुक्लाtag:openbooksonline.com,2013-10-18:5170231:BlogPost:4568672013-10-18T04:07:49.000ZPoonam Shuklahttp://openbooksonline.com/profile/PoonamShukla
1222. 1222. 122<br />
<br />
कहाँ है आज मेरा घर कहाँ है<br />
नहीं मिलती कहीं चादर कहाँ है<br />
<br />
नमी है आँख में नींदें उड़ी हैं<br />
नहीं मालूम अब बिस्तर कहाँ है<br />
<br />
शगूफे इस तरह मुरझा रहे हैं<br />
खला को नाप दे मिस्तर कहाँ है<br />
<br />
छुपाएँ किस तरह अपने बदन को<br />
कहीं मिलता नहीं अस्तर कहाँ है<br />
<br />
नहीं ये घर नहीं मेरा तभी वो<br />
अँधेरा चीर दे नश्तर कहाँ है<br />
<br />
नदी सी दौड़ती मैं तो चली थी<br />
मुझे रोके जो वो पत्थर कहाँ है<br />
<br />
समा जाऊँ कहीं बोलो कहाँ अब<br />
मगर वो खौलता सागर कहाँ है<br />
<br />
सदा आई नहीं तेरी अभी तक<br />
सबा लाए अभी मज़हर कहाँ है<br />
<br />
<br />
शगूफे - कलियाँ<br />
मिस्तर -…
1222. 1222. 122<br />
<br />
कहाँ है आज मेरा घर कहाँ है<br />
नहीं मिलती कहीं चादर कहाँ है<br />
<br />
नमी है आँख में नींदें उड़ी हैं<br />
नहीं मालूम अब बिस्तर कहाँ है<br />
<br />
शगूफे इस तरह मुरझा रहे हैं<br />
खला को नाप दे मिस्तर कहाँ है<br />
<br />
छुपाएँ किस तरह अपने बदन को<br />
कहीं मिलता नहीं अस्तर कहाँ है<br />
<br />
नहीं ये घर नहीं मेरा तभी वो<br />
अँधेरा चीर दे नश्तर कहाँ है<br />
<br />
नदी सी दौड़ती मैं तो चली थी<br />
मुझे रोके जो वो पत्थर कहाँ है<br />
<br />
समा जाऊँ कहीं बोलो कहाँ अब<br />
मगर वो खौलता सागर कहाँ है<br />
<br />
सदा आई नहीं तेरी अभी तक<br />
सबा लाए अभी मज़हर कहाँ है<br />
<br />
<br />
शगूफे - कलियाँ<br />
मिस्तर - नापनी,स्केल<br />
सबा - सुबह<br />
मज़हर - नूर<br />
<br />
पूनम शुक्ला<br />
मौलिक एवं अप्रकाशितग़ज़ल - हँसती जाती है दहशत क्योंकर - पूनम शुक्लाtag:openbooksonline.com,2013-10-15:5170231:BlogPost:4552202013-10-15T05:30:00.000ZPoonam Shuklahttp://openbooksonline.com/profile/PoonamShukla
2222. 2222. 2<br />
इतनी फैली है गीबत क्योंकर<br />
शफ़्क़त आनें में शिद्दत क्योंकर<br />
<br />
आबे दरिया सा रास्ता सबका<br />
रुक ही जाती है बहजत क्योंकर<br />
<br />
ताबो ताकत बैठी रोती है<br />
इतनी बरकत में दौलत क्योंकर<br />
<br />
आसाइश इतनी दरहम बरहम<br />
हँसती जाती है दहशत क्योंकर<br />
<br />
कितना बेकस है इंसा बेबस<br />
तब भी शातिर ही हिकमत क्योंकर<br />
<br />
पूनम शुक्ला<br />
मौलिक एवं अप्रकाशित<br />
<br />
गीबत - बदबू<br />
बहजत - खुशी<br />
ताबो ताकत - योग्यता<br />
आसाइश - सुख समृद्धि<br />
दरहम बरहम - अस्त व्यस्त<br />
बेकस - बेचारा<br />
हिकमत - उपाय
2222. 2222. 2<br />
इतनी फैली है गीबत क्योंकर<br />
शफ़्क़त आनें में शिद्दत क्योंकर<br />
<br />
आबे दरिया सा रास्ता सबका<br />
रुक ही जाती है बहजत क्योंकर<br />
<br />
ताबो ताकत बैठी रोती है<br />
इतनी बरकत में दौलत क्योंकर<br />
<br />
आसाइश इतनी दरहम बरहम<br />
हँसती जाती है दहशत क्योंकर<br />
<br />
कितना बेकस है इंसा बेबस<br />
तब भी शातिर ही हिकमत क्योंकर<br />
<br />
पूनम शुक्ला<br />
मौलिक एवं अप्रकाशित<br />
<br />
गीबत - बदबू<br />
बहजत - खुशी<br />
ताबो ताकत - योग्यता<br />
आसाइश - सुख समृद्धि<br />
दरहम बरहम - अस्त व्यस्त<br />
बेकस - बेचारा<br />
हिकमत - उपायग़ज़ल - वो तो खूने हिजाब पीता है - पूनम शुक्लाtag:openbooksonline.com,2013-10-13:5170231:BlogPost:4540722013-10-13T06:30:00.000ZPoonam Shuklahttp://openbooksonline.com/profile/PoonamShukla
<p>2122. 1212. 22<br></br> <br></br> कब वो खाली शराब पीता है<br></br> हुस्ने ताजा शबाब पीता है<br></br> <br></br> कैसे खिलती वहाँ कली अबतर<br></br> वो तो खूने हिजाब पीता है<br></br> <br></br> इतनी भोली खला कि क्या जाने<br></br> फिर वो अर्के गुलाब पीता है<br></br> <br></br> ऐसी तदबीर जानता है वो<br></br> दिल में उठते हुबाब पीता है<br></br> <br></br> जाने तसतीर भी नहीं उसकी<br></br> तब भी सारे खिताब पीता है<br></br> <br></br> ऐसी तौक़ीर दूरतक जानिब<br></br> सबकी खाली किताब पीता है<br></br> <br></br> पीना फितरत बना लिया उसने<br></br> बैठे ही लाजवाब पीता है<br></br> <br></br> हिजाब -…</p>
<p>2122. 1212. 22<br/> <br/> कब वो खाली शराब पीता है<br/> हुस्ने ताजा शबाब पीता है<br/> <br/> कैसे खिलती वहाँ कली अबतर<br/> वो तो खूने हिजाब पीता है<br/> <br/> इतनी भोली खला कि क्या जाने<br/> फिर वो अर्के गुलाब पीता है<br/> <br/> ऐसी तदबीर जानता है वो<br/> दिल में उठते हुबाब पीता है<br/> <br/> जाने तसतीर भी नहीं उसकी<br/> तब भी सारे खिताब पीता है<br/> <br/> ऐसी तौक़ीर दूरतक जानिब<br/> सबकी खाली किताब पीता है<br/> <br/> पीना फितरत बना लिया उसने<br/> बैठे ही लाजवाब पीता है<br/> <br/> हिजाब - लज्जा<br/> हुबाब - बुलबुला<br/> अबतर - तितर बितर<br/> खला - अन्धकारमय शून्य<br/> तदबीर - उपाय<br/> तसतीर - लेखन<br/> तौक़ीर - प्रतिष्ठा<br/> <br/> पूनम शुक्ला<br/> मौलिक एवं अप्रकाशित</p>ग़ज़ल - आज तू दर्द को ज़जा कहना । - पूनम शुक्लाtag:openbooksonline.com,2013-10-10:5170231:BlogPost:4522862013-10-10T05:04:00.000ZPoonam Shuklahttp://openbooksonline.com/profile/PoonamShukla
2122 1212 22<br />
खत्म होती नहीं सजा कहना<br />
बेरहम क्यों हुई रज़ा कहना<br />
<br />
आशियाना सजा लिया हमने<br />
तीरगी घेरती वज़ा कहना<br />
<br />
आज फिर याद खूब आती है<br />
मोतबर दर्द को मज़ा कहना<br />
<br />
चाह कर भी सजा नहीं होगी<br />
आज तू दर्द को ज़जा कहना<br />
<br />
जान पर खेल कर कभी अपनी<br />
जिन्दगी बाँटना क़जा़ कहना ।<br />
<br />
दिन ब दिन बदलियाँ हटेंगी भी<br />
जिन्दगी को न बेमज़ा कहना<br />
<br />
कज़ा- ईश्वरीय आदेश<br />
रज़ा - इच्छा<br />
ज़जा - फल<br />
मोतबर=जिसका एतबार किया हो,विश्वस्त<br />
<br />
मौलिक एवं अप्रकाशित
2122 1212 22<br />
खत्म होती नहीं सजा कहना<br />
बेरहम क्यों हुई रज़ा कहना<br />
<br />
आशियाना सजा लिया हमने<br />
तीरगी घेरती वज़ा कहना<br />
<br />
आज फिर याद खूब आती है<br />
मोतबर दर्द को मज़ा कहना<br />
<br />
चाह कर भी सजा नहीं होगी<br />
आज तू दर्द को ज़जा कहना<br />
<br />
जान पर खेल कर कभी अपनी<br />
जिन्दगी बाँटना क़जा़ कहना ।<br />
<br />
दिन ब दिन बदलियाँ हटेंगी भी<br />
जिन्दगी को न बेमज़ा कहना<br />
<br />
कज़ा- ईश्वरीय आदेश<br />
रज़ा - इच्छा<br />
ज़जा - फल<br />
मोतबर=जिसका एतबार किया हो,विश्वस्त<br />
<br />
मौलिक एवं अप्रकाशितग़ज़ल - रुक जाते हैं चलते रेले - पूनम शुक्लाtag:openbooksonline.com,2013-10-07:5170231:BlogPost:4513312013-10-07T15:00:00.000ZPoonam Shuklahttp://openbooksonline.com/profile/PoonamShukla
<p>2222. 2222<br/> <br/> हाँ ऊँचा अंबर होता है<br/> पर धरती पर घर होता है<br/> <br/> तुम हो आगे हम हैं पीछे<br/> ऐसा तो अक्सर होता है<br/> <br/> इक लय में गाते जब दोनों<br/> हर इक आखर तर होता है<br/> <br/> होती खाली तू तू मैं मैं<br/> वो भी कोई घर होता है<br/> <br/> बन जाता है जो रेतीला<br/> वो भी तो पत्थर होता है<br/> <br/> रुक जाते हैं चलते रेले<br/> देखा तेरा दर होता है<br/> <br/> तू ही जाने किस गरदन पर<br/> जाने किसका सर होता है<br/> <br/> पूनम शुक्ला<br/> मौलिक एवं अप्रकाशित</p>
<p>2222. 2222<br/> <br/> हाँ ऊँचा अंबर होता है<br/> पर धरती पर घर होता है<br/> <br/> तुम हो आगे हम हैं पीछे<br/> ऐसा तो अक्सर होता है<br/> <br/> इक लय में गाते जब दोनों<br/> हर इक आखर तर होता है<br/> <br/> होती खाली तू तू मैं मैं<br/> वो भी कोई घर होता है<br/> <br/> बन जाता है जो रेतीला<br/> वो भी तो पत्थर होता है<br/> <br/> रुक जाते हैं चलते रेले<br/> देखा तेरा दर होता है<br/> <br/> तू ही जाने किस गरदन पर<br/> जाने किसका सर होता है<br/> <br/> पूनम शुक्ला<br/> मौलिक एवं अप्रकाशित</p>ग़ज़ल- लगा दूँ आग पानी मेंtag:openbooksonline.com,2013-10-07:5170231:BlogPost:4508852013-10-07T07:30:00.000ZPoonam Shuklahttp://openbooksonline.com/profile/PoonamShukla
1222. 1222. 1222<br />
<br />
जरा ठहरो लगा दूँ आग पानी में<br />
कहीं गुम हो न जाए फाग पानी में<br />
<br />
कहीं तो डोलती होगी हवा मीठी<br />
पकड़ कर खींच लाऊँ राग पानी में<br />
<br />
चले तो थे कदम उसके यहीं शायद<br />
चहकता तो नहीं है काग पानी में<br />
<br />
फिज़ाओं में कभी तो रौनकें होंगी<br />
लहकता बोलता है बाग पानी में<br />
<br />
न आ जाए कहीं सैलाब उठ जा भी<br />
कहीं तू बह न जाए जाग पानी में<br />
पूनम शुक्ला<br />
<br />
मौलिक एवं अप्रकाशित
1222. 1222. 1222<br />
<br />
जरा ठहरो लगा दूँ आग पानी में<br />
कहीं गुम हो न जाए फाग पानी में<br />
<br />
कहीं तो डोलती होगी हवा मीठी<br />
पकड़ कर खींच लाऊँ राग पानी में<br />
<br />
चले तो थे कदम उसके यहीं शायद<br />
चहकता तो नहीं है काग पानी में<br />
<br />
फिज़ाओं में कभी तो रौनकें होंगी<br />
लहकता बोलता है बाग पानी में<br />
<br />
न आ जाए कहीं सैलाब उठ जा भी<br />
कहीं तू बह न जाए जाग पानी में<br />
पूनम शुक्ला<br />
<br />
मौलिक एवं अप्रकाशितग़ज़ल - कुर्बतों की बात आखिर क्यों करेंtag:openbooksonline.com,2013-10-03:5170231:BlogPost:4471152013-10-03T10:00:00.000ZPoonam Shuklahttp://openbooksonline.com/profile/PoonamShukla
2122 2122. 2122. 212<br />
<br />
खो गई है प्यार की पतवार लगता है यही<br />
नाव अपनी पास ही मझधार लगता है यही<br />
<br />
कुर्बतों की बात आखिर क्यों करें हम बोलना<br />
कर रहे हैं मौत का व्यापार लगता है यही<br />
<br />
रोज ही गढ़ते कहानी बारहा बढ़ते कदम<br />
दिख गया कोई नया बाजार लगता है यही<br />
<br />
मौत का मंजर कहीं रस्ते न आ जाए यहाँ<br />
देखकर तैयारियाँ खूँखार लगता है यही<br />
<br />
जुल्मतों नें घेर ली है राह चारो ओर से<br />
हाथ में है सो गई तलवार लगता है यही<br />
<br />
जीत का आलम कभी दीदार था हमने किया<br />
हाथ में टिकते नहीं हथियार लगता है यही<br />
<br />
आँख नम है कोर पर कैसी उदासी छोड़…
2122 2122. 2122. 212<br />
<br />
खो गई है प्यार की पतवार लगता है यही<br />
नाव अपनी पास ही मझधार लगता है यही<br />
<br />
कुर्बतों की बात आखिर क्यों करें हम बोलना<br />
कर रहे हैं मौत का व्यापार लगता है यही<br />
<br />
रोज ही गढ़ते कहानी बारहा बढ़ते कदम<br />
दिख गया कोई नया बाजार लगता है यही<br />
<br />
मौत का मंजर कहीं रस्ते न आ जाए यहाँ<br />
देखकर तैयारियाँ खूँखार लगता है यही<br />
<br />
जुल्मतों नें घेर ली है राह चारो ओर से<br />
हाथ में है सो गई तलवार लगता है यही<br />
<br />
जीत का आलम कभी दीदार था हमने किया<br />
हाथ में टिकते नहीं हथियार लगता है यही<br />
<br />
आँख नम है कोर पर कैसी उदासी छोड़ दो<br />
आँसुओं में बह गया दीदार लगता है यही<br />
<br />
पूनम शुक्ला<br />
मौलिक एवं अप्रकाशितग़ज़ल -ऐसा प्यार अमर होता है - पूनम शुक्लाtag:openbooksonline.com,2013-09-30:5170231:BlogPost:4445612013-09-30T05:31:28.000ZPoonam Shuklahttp://openbooksonline.com/profile/PoonamShukla
2222 2222<br />
<br />
हाँ ऊँचा अंबर होता है<br />
पर धरती पर घर होता है<br />
<br />
तुम हो आगे हम हैं पीछे<br />
ऐसा तो अक्सर होता है<br />
<br />
इक लय में गाते जब दोनों<br />
ऐसा प्यार अमर होता है<br />
<br />
प्रेम नहीं बस तू तू मैं मैं<br />
वो भी कोई घर होता है<br />
<br />
बन जाता जो रेत सजीला<br />
वो भी तो पत्थर होता है<br />
<br />
रुक जाते हैं पाँव जहाँ पर<br />
देखा तेरा दर होता है<br />
<br />
तू ही जाने किस गरदन पर<br />
जाने किसका सर होता है<br />
<br />
पूनम शुक्ला<br />
मौलिक एवं अप्रकाशित
2222 2222<br />
<br />
हाँ ऊँचा अंबर होता है<br />
पर धरती पर घर होता है<br />
<br />
तुम हो आगे हम हैं पीछे<br />
ऐसा तो अक्सर होता है<br />
<br />
इक लय में गाते जब दोनों<br />
ऐसा प्यार अमर होता है<br />
<br />
प्रेम नहीं बस तू तू मैं मैं<br />
वो भी कोई घर होता है<br />
<br />
बन जाता जो रेत सजीला<br />
वो भी तो पत्थर होता है<br />
<br />
रुक जाते हैं पाँव जहाँ पर<br />
देखा तेरा दर होता है<br />
<br />
तू ही जाने किस गरदन पर<br />
जाने किसका सर होता है<br />
<br />
पूनम शुक्ला<br />
मौलिक एवं अप्रकाशितग़ज़ल - सितम सारे सहें कुछ यूँtag:openbooksonline.com,2013-09-22:5170231:BlogPost:4391402013-09-22T04:50:24.000ZPoonam Shuklahttp://openbooksonline.com/profile/PoonamShukla
1222. 1222<br />
<br />
चलो चल कर कहें कुछ यूँ<br />
सितम सारे सहें कुछ यूँ<br />
<br />
रियावत ओढ़ लें थोड़ा<br />
जुदाई को सहें कुछ यूँ<br />
<br />
सफीना कागजों का था<br />
लहर से हम कहें कुछ यूँ<br />
<br />
नशेमन नम न हो कोई<br />
नयन अपने बहें कुछ यूँ<br />
<br />
सितारें खोज लें हमको<br />
अँधेरों में रहें कुछ यूँ<br />
<br />
रियावत - परंपरा<br />
सफीना - नाव<br />
नशेमन - घोंसला<br />
<br />
पूनम शुक्ला<br />
मौलिक एवं अप्रकाशित
1222. 1222<br />
<br />
चलो चल कर कहें कुछ यूँ<br />
सितम सारे सहें कुछ यूँ<br />
<br />
रियावत ओढ़ लें थोड़ा<br />
जुदाई को सहें कुछ यूँ<br />
<br />
सफीना कागजों का था<br />
लहर से हम कहें कुछ यूँ<br />
<br />
नशेमन नम न हो कोई<br />
नयन अपने बहें कुछ यूँ<br />
<br />
सितारें खोज लें हमको<br />
अँधेरों में रहें कुछ यूँ<br />
<br />
रियावत - परंपरा<br />
सफीना - नाव<br />
नशेमन - घोंसला<br />
<br />
पूनम शुक्ला<br />
मौलिक एवं अप्रकाशितगज़ल - गांधियों के रूप में ढलते गएtag:openbooksonline.com,2013-09-20:5170231:BlogPost:4377812013-09-20T07:30:00.000ZPoonam Shuklahttp://openbooksonline.com/profile/PoonamShukla
बह्र -- रमल मुसद्दस महजूफ<br />
२१२२, २१२२, २१२<br />
हम चले थे आस में चलते गए<br />
और वो सब हाथ ही मलते गए<br />
<br />
खूबसूरत रुत न थी औ रहगुज़र<br />
तीरगी की बाढ़ को छलते गए<br />
<br />
खूब रोका कंटकों नें राह में<br />
राह में हम फूल सा खिलते गए<br />
<br />
कह रहीं थीं आँधियाँ रुक जा जरा<br />
आँधियों सा राह में चलते गए<br />
<br />
झूठ आया रूप धर के सामने<br />
गांधियों के रूप में ढ़लते गए<br />
<br />
देख सुन कह मत गलत बुनते रहे<br />
वानरों के पेट भी पलते गए<br />
<br />
या खुदा तूने न देखा कारवाँ<br />
चाँदनी ले हाथ में चलते गए<br />
<br />
पूनम शुक्ला<br />
<br />
मौलिक एवं अप्रकाशित
बह्र -- रमल मुसद्दस महजूफ<br />
२१२२, २१२२, २१२<br />
हम चले थे आस में चलते गए<br />
और वो सब हाथ ही मलते गए<br />
<br />
खूबसूरत रुत न थी औ रहगुज़र<br />
तीरगी की बाढ़ को छलते गए<br />
<br />
खूब रोका कंटकों नें राह में<br />
राह में हम फूल सा खिलते गए<br />
<br />
कह रहीं थीं आँधियाँ रुक जा जरा<br />
आँधियों सा राह में चलते गए<br />
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झूठ आया रूप धर के सामने<br />
गांधियों के रूप में ढ़लते गए<br />
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देख सुन कह मत गलत बुनते रहे<br />
वानरों के पेट भी पलते गए<br />
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या खुदा तूने न देखा कारवाँ<br />
चाँदनी ले हाथ में चलते गए<br />
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पूनम शुक्ला<br />
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मौलिक एवं अप्रकाशित