Ajay Kumar Sharma's Posts - Open Books Online2024-03-19T10:19:29ZAjay Kumar Sharmahttp://openbooksonline.com/profile/AjayKumarSharma805http://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/10795498486?profile=RESIZE_48X48&width=48&height=48&crop=1%3A1http://openbooksonline.com/profiles/blog/feed?user=3o5cmxtcl1ruz&xn_auth=noमन में ही हार, जीत मन में..tag:openbooksonline.com,2018-08-10:5170231:BlogPost:9441512018-08-10T04:57:52.000ZAjay Kumar Sharmahttp://openbooksonline.com/profile/AjayKumarSharma805
मन में ही हार, जीत मन में,<br />
मन में ही अर्थ-अनर्थ लिखा,<br />
लेखनी बदल दे मनोभाव,<br />
तो समझो सत्य, समर्थ लिखा !<br />
<br />
यदि प्रेम प्रस्फुटित हो मन में,<br />
अनुराग परस्पर संचित हो,<br />
नि:स्वार्थ भावना हो शाश्वत,<br />
कोई भी नहीं अपवंचित हो,<br />
जब हो समाज में रामराज्य,<br />
तो समझो सार्थक अर्थ लिखा !<br />
<br />
यदि छद्म भेष, छल दम्भ द्वेष,<br />
मानव में ही घर कर जाये,<br />
यदि राम कृष्ण की जन्मभूमि,<br />
पर मानवता ही मर जाये,<br />
यदि मन मलीन हो, जड़वत हो,<br />
तो लगा, कदाचित् व्यर्थ लिखा !<br />
<br />
मन में ही हार, जीत मन में,<br />
मन में ही अर्थ-अनर्थ लिखा,<br />
लेखनी बदल दे…
मन में ही हार, जीत मन में,<br />
मन में ही अर्थ-अनर्थ लिखा,<br />
लेखनी बदल दे मनोभाव,<br />
तो समझो सत्य, समर्थ लिखा !<br />
<br />
यदि प्रेम प्रस्फुटित हो मन में,<br />
अनुराग परस्पर संचित हो,<br />
नि:स्वार्थ भावना हो शाश्वत,<br />
कोई भी नहीं अपवंचित हो,<br />
जब हो समाज में रामराज्य,<br />
तो समझो सार्थक अर्थ लिखा !<br />
<br />
यदि छद्म भेष, छल दम्भ द्वेष,<br />
मानव में ही घर कर जाये,<br />
यदि राम कृष्ण की जन्मभूमि,<br />
पर मानवता ही मर जाये,<br />
यदि मन मलीन हो, जड़वत हो,<br />
तो लगा, कदाचित् व्यर्थ लिखा !<br />
<br />
मन में ही हार, जीत मन में,<br />
मन में ही अर्थ-अनर्थ लिखा,<br />
लेखनी बदल दे मनोभाव,<br />
तो समझो सत्य, समर्थ लिखा !<br />
<br />
अजय शर्मा " अज्ञात "<br />
मौलिक एवं अप्रकाशित.जमकर नींद सताये रेtag:openbooksonline.com,2018-05-05:5170231:BlogPost:9293632018-05-05T11:24:50.000ZAjay Kumar Sharmahttp://openbooksonline.com/profile/AjayKumarSharma805
<p>इम्तहान के दिन में काहे ,</p>
<p>जमकर नींद सताये रे.</p>
<p></p>
<p>पुस्तक पर जब नजर पड़े ,</p>
<p>तो दुविधा से मन काँप उठे ,</p>
<p>काश,कहीं मिल जाती सुविधा, नइया पार कराये रे .</p>
<p></p>
<p>हर पन्ना पर्वत सा लागे ,</p>
<p>लगे पंक्तियां भी भारी ,</p>
<p>प्रश्नों की तलवार दुधारी ,</p>
<p>रह रह आँख दिखाये रे.</p>
<p></p>
<p>चार दिनों में होना ही है ,</p>
<p>दो दो हाथ पुस्तिका से ,</p>
<p>क्या लिक्खूंगा उत्तर उस पर ,</p>
<p>मन मेरा भरमाये रे…</p>
<p>इम्तहान के दिन में काहे ,</p>
<p>जमकर नींद सताये रे.</p>
<p></p>
<p>पुस्तक पर जब नजर पड़े ,</p>
<p>तो दुविधा से मन काँप उठे ,</p>
<p>काश,कहीं मिल जाती सुविधा, नइया पार कराये रे .</p>
<p></p>
<p>हर पन्ना पर्वत सा लागे ,</p>
<p>लगे पंक्तियां भी भारी ,</p>
<p>प्रश्नों की तलवार दुधारी ,</p>
<p>रह रह आँख दिखाये रे.</p>
<p></p>
<p>चार दिनों में होना ही है ,</p>
<p>दो दो हाथ पुस्तिका से ,</p>
<p>क्या लिक्खूंगा उत्तर उस पर ,</p>
<p>मन मेरा भरमाये रे .</p>
<p></p>
<p>इम्तहान के दिन में काहे ,</p>
<p>जमकर नींद सताये रे...</p>
<p></p>
<p>मौलिक एवं अप्रकाशित.</p>
<p></p>कैसे करे व्यंग रे...tag:openbooksonline.com,2018-02-03:5170231:BlogPost:9126632018-02-03T17:00:00.000ZAjay Kumar Sharmahttp://openbooksonline.com/profile/AjayKumarSharma805
<p>बीत गई सर्दी , बीत गई ठंड रे ,</p>
<p>दिनभर लुआर बहे गर्मी प्रचंड रे ,</p>
<p></p>
<p>चार दिन की चाँदनी सा प्यारा बसंत था,</p>
<p>पसीने की बूंदों से भीगा अंग-अंग रे ,</p>
<p></p>
<p>स्वेटर,कमीज,कोट लिपटे कई असन वस्त्र,</p>
<p>छोड़छाड़ देह को हुए खंड-खंड रे ,</p>
<p></p>
<p>गर्मी की चुभन से हाल बेहाल हुआ ,</p>
<p>"अज्ञात" कैसे ! कैसे करे व्यंग रे .</p>
<p></p>
<p>मौलिक एवं अप्रकाशित</p>
<p></p>
<p></p>
<p>बीत गई सर्दी , बीत गई ठंड रे ,</p>
<p>दिनभर लुआर बहे गर्मी प्रचंड रे ,</p>
<p></p>
<p>चार दिन की चाँदनी सा प्यारा बसंत था,</p>
<p>पसीने की बूंदों से भीगा अंग-अंग रे ,</p>
<p></p>
<p>स्वेटर,कमीज,कोट लिपटे कई असन वस्त्र,</p>
<p>छोड़छाड़ देह को हुए खंड-खंड रे ,</p>
<p></p>
<p>गर्मी की चुभन से हाल बेहाल हुआ ,</p>
<p>"अज्ञात" कैसे ! कैसे करे व्यंग रे .</p>
<p></p>
<p>मौलिक एवं अप्रकाशित</p>
<p></p>
<p></p>तिरंगे की खातिरtag:openbooksonline.com,2017-08-13:5170231:BlogPost:8737252017-08-13T04:59:51.000ZAjay Kumar Sharmahttp://openbooksonline.com/profile/AjayKumarSharma805
तिरंगे की खातिर....<br />
<br />
इस शुभ दिन पर मैं गाता हूँ,<br />
एक गान तिरंगे की खातिर,<br />
हर एक युवा के दिल में है,<br />
सम्मान तिरंगे की खातिर,<br />
उस माटी पर श्रद्धा अगाध,<br />
उस माटी का यशगान सदा,<br />
अनगिनत वीर हो गये जहाँ,<br />
कुर्बान तिरंगे की खातिर.<br />
हम जहर हलाहल पी सकते,<br />
हम तिल तिल कर मर सकते हैं,<br />
सह सकते हैं सारे हम,<br />
अपमान तिरंगे की खातिर.<br />
कुछ पाने की चाहत भी नहीं,<br />
गर मिले बादशाहत भी नहीं,<br />
कदमों के नीचे रखते हैं,<br />
अरमान तिरंगे की खातिर,<br />
हम वीर शहीदों के वंशज,<br />
भारत माँ की औलाद हैं हम,<br />
हम हैं कठोर चट्टानों से,<br />
हम फूल नहीं,…
तिरंगे की खातिर....<br />
<br />
इस शुभ दिन पर मैं गाता हूँ,<br />
एक गान तिरंगे की खातिर,<br />
हर एक युवा के दिल में है,<br />
सम्मान तिरंगे की खातिर,<br />
उस माटी पर श्रद्धा अगाध,<br />
उस माटी का यशगान सदा,<br />
अनगिनत वीर हो गये जहाँ,<br />
कुर्बान तिरंगे की खातिर.<br />
हम जहर हलाहल पी सकते,<br />
हम तिल तिल कर मर सकते हैं,<br />
सह सकते हैं सारे हम,<br />
अपमान तिरंगे की खातिर.<br />
कुछ पाने की चाहत भी नहीं,<br />
गर मिले बादशाहत भी नहीं,<br />
कदमों के नीचे रखते हैं,<br />
अरमान तिरंगे की खातिर,<br />
हम वीर शहीदों के वंशज,<br />
भारत माँ की औलाद हैं हम,<br />
हम हैं कठोर चट्टानों से,<br />
हम फूल नहीं, फौलाद हैं हम,<br />
भारत के लिये कतरा कतरा,<br />
यदि लहू बहा सकते हैं हम,<br />
ले भी सकते हैं दुश्मन की,<br />
हम जान तिरंगे की खातिर.<br />
<br />
अजय शर्मा अज्ञात<br />
मौलिक एवं अप्रकाशित'अजय' बीते जमाने में कहीं कुछ छोड़कर आया,tag:openbooksonline.com,2017-07-05:5170231:BlogPost:8654132017-07-05T18:27:36.000ZAjay Kumar Sharmahttp://openbooksonline.com/profile/AjayKumarSharma805
जरा सा सोंचकर देखा तो मुझको याद कर आया,<br />
'अजय' बीते जमाने में कहीं कुछ छोड़कर आया,<br />
<br />
सजी यारों की महफिल थी बड़ा बेखौफ बचपन था,<br />
बड़ी मजबूरियों ने रास्तों पर जाल बिछवाया,<br />
<br />
ज़माने को समझने की बड़ी पुरजोर कोशिश की,<br />
ज़माने की नसीहत ने ही मुझको और भरमाया,<br />
<br />
जिन्हें अपना समझ बैठे थे सारी भूलकर शर्तें,<br />
उन्हीं के कारनामों ने ही मुझको और तड़पाया,<br />
<br />
सिवा तेरे जहाँ में और कोई है नहीं मेरा,<br />
मेरे मौला , मेरे मौला तू मेरी रूह में छाया,<br />
<br />
अजय शर्मा अज्ञात<br />
मौलिक एवं अप्रकाशित
जरा सा सोंचकर देखा तो मुझको याद कर आया,<br />
'अजय' बीते जमाने में कहीं कुछ छोड़कर आया,<br />
<br />
सजी यारों की महफिल थी बड़ा बेखौफ बचपन था,<br />
बड़ी मजबूरियों ने रास्तों पर जाल बिछवाया,<br />
<br />
ज़माने को समझने की बड़ी पुरजोर कोशिश की,<br />
ज़माने की नसीहत ने ही मुझको और भरमाया,<br />
<br />
जिन्हें अपना समझ बैठे थे सारी भूलकर शर्तें,<br />
उन्हीं के कारनामों ने ही मुझको और तड़पाया,<br />
<br />
सिवा तेरे जहाँ में और कोई है नहीं मेरा,<br />
मेरे मौला , मेरे मौला तू मेरी रूह में छाया,<br />
<br />
अजय शर्मा अज्ञात<br />
मौलिक एवं अप्रकाशित21 जून अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस पर विशेषtag:openbooksonline.com,2017-06-28:5170231:BlogPost:8637562017-06-28T16:00:00.000ZAjay Kumar Sharmahttp://openbooksonline.com/profile/AjayKumarSharma805
<p>21 जून अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस पर विशेष.....<br></br> <br></br> प्रतिदिन योग करे जो कोई,<br></br> वो रोगों से दूर रहे,<br></br> तन मन में स्फूर्ती आये ,<br></br> चेहरे पेे चमकता नूर रहे,<br></br> जो सुबह सुबह भस्त्रिका करे,<br></br> और शुद्ध वायु तन मन में भरे,<br></br> जो करे नित्य प्रति शशकासन,<br></br> उत्साह से वो भरपूर रहे,<br></br> अनुलोम विलोम , कपालभाति,<br></br> सुखमय जीवन की थाती है,<br></br> ना उदर रोग ना तन मन में,<br></br> कोई पीड़ा रह पाती है,<br></br> रह खाली पेट करें योगा ,<br></br> बस इतना ध्यान जरूर रहे.<br></br> हो नाम देश का ऊँचा…</p>
<p>21 जून अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस पर विशेष.....<br/> <br/> प्रतिदिन योग करे जो कोई,<br/> वो रोगों से दूर रहे,<br/> तन मन में स्फूर्ती आये ,<br/> चेहरे पेे चमकता नूर रहे,<br/> जो सुबह सुबह भस्त्रिका करे,<br/> और शुद्ध वायु तन मन में भरे,<br/> जो करे नित्य प्रति शशकासन,<br/> उत्साह से वो भरपूर रहे,<br/> अनुलोम विलोम , कपालभाति,<br/> सुखमय जीवन की थाती है,<br/> ना उदर रोग ना तन मन में,<br/> कोई पीड़ा रह पाती है,<br/> रह खाली पेट करें योगा ,<br/> बस इतना ध्यान जरूर रहे.<br/> हो नाम देश का ऊँचा तब,<br/> हम करें रोज ही योगा जब,<br/> अग्रणी योग में भी हैं हम,<br/> सब कहें योग में ही है दम,<br/> भारत हो जग का योग गुरू,<br/> हाँ, स्वयं में यही गुरूर रहे.<br/> <br/> अजय शर्मा अज्ञात<br/> मौलिक एवं अप्रकाशित</p>मरना भी हो देश पे मरना। "अज्ञात "tag:openbooksonline.com,2015-12-06:5170231:BlogPost:7218452015-12-06T08:06:37.000ZAjay Kumar Sharmahttp://openbooksonline.com/profile/AjayKumarSharma805
<p>राम कृष्ण की जन्मभूमि, </p>
<p>है कर्म-स्थली वीरों की, </p>
<p>भारत की पावन माटी सी, </p>
<p>होगी कहीं जमीन कहाँ । </p>
<p> <br></br>यूँ तो रंग अनेकों होंगे, </p>
<p>दुनिया में सब देशों के, </p>
<p>मगर तिरंगे के रंग जैसा, </p>
<p>होगा भी रंग तीन कहाँ।</p>
<p> <br></br>शिरोधार्य कर माँ की…</p>
<p>राम कृष्ण की जन्मभूमि, </p>
<p>है कर्म-स्थली वीरों की, </p>
<p>भारत की पावन माटी सी, </p>
<p>होगी कहीं जमीन कहाँ । </p>
<p> <br/>यूँ तो रंग अनेकों होंगे, </p>
<p>दुनिया में सब देशों के, </p>
<p>मगर तिरंगे के रंग जैसा, </p>
<p>होगा भी रंग तीन कहाँ।</p>
<p> <br/>शिरोधार्य कर माँ की इच्छा, </p>
<p>महलों को जिसने त्यागा, </p>
<p>रामचन्द्र सा आज्ञाकारी, </p>
<p>होगा धरमधुरीन कहाँ।</p>
<p> <br/>मरना भी हो देश पे मरना, </p>
<p>मरने से भी डरना क्या, </p>
<p>सरहद पर मरने से ज्यादा, </p>
<p>होगी मौत हसीन कहाँ।</p>
<p> अजय शर्मा " अज्ञात "</p>
<p>मौलिक एवं अप्रकाशित</p>जिन्दगी की ठोकरों ने मुस्कुरा कर ये कहा। " अज्ञात "tag:openbooksonline.com,2015-11-22:5170231:BlogPost:7169042015-11-22T06:22:26.000ZAjay Kumar Sharmahttp://openbooksonline.com/profile/AjayKumarSharma805
<p>जिन्दगी में जीत का तब, </p>
<p>कुछ नहीं संशय रहा, </p>
<p>धैर्य का जब जब सहारा, </p>
<p>हर घड़ी , हरशय रहा ।</p>
<p>जिन्दगी में दिन सितम के, </p>
<p>भी सभी कट जायेंगे । </p>
<p>जिन्दगी की ठोकरों ने , </p>
<p>जब मुस्कुरा कर ये कहा। </p>
<p>रात काली भी गुजर…</p>
<p>जिन्दगी में जीत का तब, </p>
<p>कुछ नहीं संशय रहा, </p>
<p>धैर्य का जब जब सहारा, </p>
<p>हर घड़ी , हरशय रहा ।</p>
<p>जिन्दगी में दिन सितम के, </p>
<p>भी सभी कट जायेंगे । </p>
<p>जिन्दगी की ठोकरों ने , </p>
<p>जब मुस्कुरा कर ये कहा। </p>
<p>रात काली भी गुजर जायेगी, </p>
<p>बस, कुछ पल रुको, </p>
<p>जब सुबह की एक किरण ने, </p>
<p>पास आकर ये कहा। </p>
<p>हसरतें भी सब हों पूरी, </p>
<p>ये मुनासिब है नहीं, </p>
<p>दस्तूर ने दुनिया के जब, </p>
<p>दिल में समाकर ये कहा। </p>
<p>है अकेले ही निपटना , </p>
<p>जद्दोजहद से जिन्दगी की, </p>
<p>मुश्किलों ने पास में, </p>
<p>अपने बुलाकर ये कहा। </p>
<p>जिन्दगी की राह में, </p>
<p>जो चल पड़ा विश्वास से, </p>
<p>खुदबखुद मैं आ गई फिर, </p>
<p>मंजिलों ने पास आकर ये कहा ।</p>
<p></p>
<p>अजय शर्मा " अज्ञात "</p>
<p></p>
<p>मौलिक एवं अप्रकाशित।</p>बढ़ती हुई महंगाई में हाल बुरा है। " अज्ञात "tag:openbooksonline.com,2015-11-20:5170231:BlogPost:7166112015-11-20T15:35:16.000ZAjay Kumar Sharmahttp://openbooksonline.com/profile/AjayKumarSharma805
<p>बढ़ती हुई महंगाई में हाल बुरा है, </p>
<p>कुछ पूछो तो कहते हैं, सवाल बुरा है।</p>
<p></p>
<p>पेट्रोल, डीजल, सब्जियां आकाश छू रहीं,</p>
<p>कम होने की उम्मीद का, खयाल बुरा है।</p>
<p><br></br>संसद में अमन चैन है, धमाल हो रहा, </p>
<p>जनता की रसोई में अब, बवाल बुरा है।</p>
<p> <br></br>ठोकते हैं ताल, अपने राग में तल्लीन, </p>
<p>उठा पटक का इनका सब, चाल बुरा है।</p>
<p><br></br>दुश्मन हैं ये आपसी, दुनिया की नज़र में, </p>
<p>नेता की शकल में हर, दलाल बुरा है…</p>
<p>बढ़ती हुई महंगाई में हाल बुरा है, </p>
<p>कुछ पूछो तो कहते हैं, सवाल बुरा है।</p>
<p></p>
<p>पेट्रोल, डीजल, सब्जियां आकाश छू रहीं,</p>
<p>कम होने की उम्मीद का, खयाल बुरा है।</p>
<p><br/>संसद में अमन चैन है, धमाल हो रहा, </p>
<p>जनता की रसोई में अब, बवाल बुरा है।</p>
<p> <br/>ठोकते हैं ताल, अपने राग में तल्लीन, </p>
<p>उठा पटक का इनका सब, चाल बुरा है।</p>
<p><br/>दुश्मन हैं ये आपसी, दुनिया की नज़र में, </p>
<p>नेता की शकल में हर, दलाल बुरा है ।</p>
<p><br/>"अज्ञात " देश छोड़कर जाये भी कहाँ, </p>
<p>दुनिया पर जो बिछाये हैं, जाल बुरा है। </p>
<p><br/>अजय शर्मा " अज्ञात </p>
<p>मौलिक एवं अप्रकाशित।</p>
<p></p>
<p></p>अज्ञात था अज्ञात हूँ अज्ञात रहने दे मुझे।tag:openbooksonline.com,2015-11-19:5170231:BlogPost:7163242015-11-19T14:38:08.000ZAjay Kumar Sharmahttp://openbooksonline.com/profile/AjayKumarSharma805
<p>मौन रहकर साज भी, </p>
<p>हैं ध्वनित होते नहीं, </p>
<p>कुछ बोलने दे आज, </p>
<p>मन की बात कहने दे मुझे । </p>
<p>है नहीं ख्वाहिश कि, </p>
<p>सुन्दर सा सरोवर मैं बनूँ, </p>
<p>धार हूँ नदिया की मैं, </p>
<p>मत रोक बहने दे मुझे । हर एक पल भी…</p>
<p>मौन रहकर साज भी, </p>
<p>हैं ध्वनित होते नहीं, </p>
<p>कुछ बोलने दे आज, </p>
<p>मन की बात कहने दे मुझे । </p>
<p>है नहीं ख्वाहिश कि, </p>
<p>सुन्दर सा सरोवर मैं बनूँ, </p>
<p>धार हूँ नदिया की मैं, </p>
<p>मत रोक बहने दे मुझे । हर एक पल भी खुशनुमा, </p>
<p>होता नहीं तकदीर में, </p>
<p>हौसलों के साथ में, </p>
<p>कुछ गम भी सहने दे मुझे । </p>
<p>चाह इतनी भी नहीं, </p>
<p>सब लोग पहचाने मुझे, </p>
<p>अज्ञात था,अज्ञात हूँ, </p>
<p>अज्ञात रहने दे मुझे । </p>
<p>तू मेरा आधार है बस, </p>
<p>तू ही मेरा हमसफ़र, </p>
<p>मत छोड़ मेरा हाथ, </p>
<p>अपने साथ रहने दे मुझे। <br/>अजय शर्मा " अज्ञात "</p>
<p></p>
<p>मौलिक एवं अप्रकाशित।</p>
<p></p>इंसानियत का जनाज़ा देखा । "अज्ञात "tag:openbooksonline.com,2015-11-15:5170231:BlogPost:7155242015-11-15T08:30:00.000ZAjay Kumar Sharmahttp://openbooksonline.com/profile/AjayKumarSharma805
<p>हाँ, कल एक समाचार ताजा देखा, </p>
<p>इंसानियत का जनाज़ा देखा, </p>
<p>आतंक की भाषा क्या, </p>
<p>परिभाषा क्या, </p>
<p>चीख, चीत्कार, </p>
<p>रक्त रंजित मानव शरीर , </p>
<p>बिखरी मानवता, </p>
<p>ध्वस्त होते स्वप्न, </p>
<p>बिलखते नौनिहाल, कराहती ममता, </p>
<p>असहाय सुरक्षा एजेंसियां…</p>
<p>हाँ, कल एक समाचार ताजा देखा, </p>
<p>इंसानियत का जनाज़ा देखा, </p>
<p>आतंक की भाषा क्या, </p>
<p>परिभाषा क्या, </p>
<p>चीख, चीत्कार, </p>
<p>रक्त रंजित मानव शरीर , </p>
<p>बिखरी मानवता, </p>
<p>ध्वस्त होते स्वप्न, </p>
<p>बिलखते नौनिहाल, कराहती ममता, </p>
<p>असहाय सुरक्षा एजेंसियां , </p>
<p>आततायियों की गोलियों से, </p>
<p>छलनी होती मानवीयता । </p>
<p>आतंक की भाषा क्या, </p>
<p>परिभाषा क्या, </p>
<p>हाँ , स्वार्थपरता का परिणाम है यह, </p>
<p>मेरा नहीं, तेरा काम है यह, </p>
<p>इन स्वार्थ परक शब्दकोश से, </p>
<p>बाहर निकलना होगा, </p>
<p>दुनिया को एकजुट हो, </p>
<p>अब आतंक से लड़ना होगा। </p>
<p>*******************<br/> अजय शर्मा " अज्ञात "। </p>
<p>मौलिक एवं अप्रकाशित</p>अन्तर्मन के दीप जलाकर। " अज्ञात "tag:openbooksonline.com,2015-11-11:5170231:BlogPost:7141552015-11-11T02:26:49.000ZAjay Kumar Sharmahttp://openbooksonline.com/profile/AjayKumarSharma805
<p>अंतर्मन के दीप जलाकर, </p>
<p>जग में उजियारा कर दो। </p>
<p>जले प्रेम का दीपक जगमग, </p>
<p>जगमग जग सारा कर दो। <br></br>शीतलता का घृत हो अनुपम, </p>
<p>अति सनेह का दीपक हो, </p>
<p>ज्ञान की बाती उल्लासित कर, </p>
<p>पुलकित मन प्यारा कर…</p>
<p>अंतर्मन के दीप जलाकर, </p>
<p>जग में उजियारा कर दो। </p>
<p>जले प्रेम का दीपक जगमग, </p>
<p>जगमग जग सारा कर दो। <br/>शीतलता का घृत हो अनुपम, </p>
<p>अति सनेह का दीपक हो, </p>
<p>ज्ञान की बाती उल्लासित कर, </p>
<p>पुलकित मन प्यारा कर दो। <br/>प्रगतिशील हो राह लक्ष्य की, </p>
<p>दृढ़ निश्चय हो ठाह चित्त की, </p>
<p>सबको सुगमित राह दिखाकर, </p>
<p>विजयी हर हारा कर दो , <br/>खण्ड खण्ड हो अवगुण प्रतिपल, </p>
<p>हो अखण्ड अब समुचित कौशल, </p>
<p>मन के भीतर अंधकार है , </p>
<p>प्रज्ज्वल एक तारा कर दो ।<br/>नर नारी में नैतिक बल हो , </p>
<p>नवल, नीतिगत, स्वच्छ, धवल हो, </p>
<p>शक्ति,साधना,चाह प्रबल हो, प्रभु परिणति प्यारा कर दो । <br/>अन्तर्मन के दीप जलाकर, </p>
<p>जग में उजियारा कर दो। <br/>अजय शर्मा " अज्ञात "</p>
<p>मौलिक एवं अप्रकाशित।</p>नर- नारी से बली नहीं। " अज्ञात "tag:openbooksonline.com,2015-11-09:5170231:BlogPost:7138912015-11-09T10:14:37.000ZAjay Kumar Sharmahttp://openbooksonline.com/profile/AjayKumarSharma805
<p>पुरुष प्रधान देश में कोई, </p>
<p>'नर' नारी से बली नहीं , </p>
<p>सदियों से है अब तक घर में, </p>
<p>दाल किसी की गली नहीं।<br></br>त्रेता युग में दशरथ जी ने , </p>
<p>दुष्टों का संहार किया, </p>
<p>धर्म परायण रघुवंशी ने, </p>
<p>अपनी प्रजा से प्यार किया, </p>
<p>पर कैकेई के सम्मुख उनकी, </p>
<p>चाल एक भी चली…</p>
<p>पुरुष प्रधान देश में कोई, </p>
<p>'नर' नारी से बली नहीं , </p>
<p>सदियों से है अब तक घर में, </p>
<p>दाल किसी की गली नहीं।<br/>त्रेता युग में दशरथ जी ने , </p>
<p>दुष्टों का संहार किया, </p>
<p>धर्म परायण रघुवंशी ने, </p>
<p>अपनी प्रजा से प्यार किया, </p>
<p>पर कैकेई के सम्मुख उनकी, </p>
<p>चाल एक भी चली नहीं। सदियों से ---<br/>द्वापर में द्रौपदी के कारण, </p>
<p>युद्ध हुआ महाभारत का, </p>
<p>दो परिवारों के झगड़े में, </p>
<p>नर संहार अकारण का, </p>
<p>खून की नदियां बह निकली थीं, </p>
<p>प्रेम की गंगा बही नहीं। सदियों से --- <br/>घर-घर में है आज द्रौपदी , </p>
<p>कैकेई भी निवास रही, </p>
<p>क्यों सीता सी अब बहू नहीं, </p>
<p>कौशल्या जैसी सास नहीं, </p>
<p>कलियुग में अब कौन सा घर है, </p>
<p>जहाँ मची खलबली नहीं। सदियों से---<br/>अजय शर्मा "अज्ञात"</p>
<p></p>
<p>मौलिक एवं अप्रकाशित।</p>वर्तमान में जियो। " अज्ञात "tag:openbooksonline.com,2015-11-07:5170231:BlogPost:7138262015-11-07T12:16:15.000ZAjay Kumar Sharmahttp://openbooksonline.com/profile/AjayKumarSharma805
<p>क्षण कठिन हो या सरल, </p>
<p>एक समान में जियो, </p>
<p>भूल कर अतीत को, </p>
<p>वर्तमान में जियो। </p>
<p>हो सुखों की संपदा, </p>
<p>दु:ख का पहाड़ हो, </p>
<p>नेक नियति मानकर, </p>
<p>तुम गरल-सुधा पियो। </p>
<p>जीत है कभी तो, </p>
<p>कभी हार भी मिले,…</p>
<p>क्षण कठिन हो या सरल, </p>
<p>एक समान में जियो, </p>
<p>भूल कर अतीत को, </p>
<p>वर्तमान में जियो। </p>
<p>हो सुखों की संपदा, </p>
<p>दु:ख का पहाड़ हो, </p>
<p>नेक नियति मानकर, </p>
<p>तुम गरल-सुधा पियो। </p>
<p>जीत है कभी तो, </p>
<p>कभी हार भी मिले, </p>
<p>संताप में भी धीर धर, </p>
<p>बहार में जियो । </p>
<p>आज अखिल विश्व में, </p>
<p>मिथक सर्वसुलभ है, </p>
<p>तोड़ मिथक, तथ्य से, </p>
<p>तुम प्रमाण में जियो । </p>
<p></p>
<p>अजय शर्मा "अज्ञात"</p>
<p>मौलिक एवं अप्रकाशित।</p>औकात बेटों ने दिखाई। "अज्ञात "tag:openbooksonline.com,2015-11-06:5170231:BlogPost:7134792015-11-06T14:17:32.000ZAjay Kumar Sharmahttp://openbooksonline.com/profile/AjayKumarSharma805
<p>आँधियों के थपेड़े और, </p>
<p>गर्मी की तपिश ने, </p>
<p>उगते हुए पौधे की जड़ हिलाई, </p>
<p>वट वृक्ष की तब याद आई। <br></br>कर दिया क्यों दूर, </p>
<p>जिसने जन्म दे, पाला तुझे, </p>
<p>कर बड़ा काबिल बनाया, </p>
<p>सारी लगाकर पाई पाई । <br></br>चलते हुए घुटनों के बल, </p>
<p>पहले पहल था जब…</p>
<p>आँधियों के थपेड़े और, </p>
<p>गर्मी की तपिश ने, </p>
<p>उगते हुए पौधे की जड़ हिलाई, </p>
<p>वट वृक्ष की तब याद आई। <br/>कर दिया क्यों दूर, </p>
<p>जिसने जन्म दे, पाला तुझे, </p>
<p>कर बड़ा काबिल बनाया, </p>
<p>सारी लगाकर पाई पाई । <br/>चलते हुए घुटनों के बल, </p>
<p>पहले पहल था जब उठा, </p>
<p>गिर न जाये तू कहीं, </p>
<p>दौड़कर उंगली बढ़ाई। <br/>लड़खड़ाते बोल को, </p>
<p>कर रहा क्यों अनसुना, </p>
<p>सुन कर तेरी किलकारियाँ, </p>
<p>हर्ष से ताली बजाई, <br/>जिसने सुलाया सेज पर , </p>
<p>उसको सुलाया बेखबर, </p>
<p>सर्दियों की रात में , </p>
<p>बाहर लगाकर चारपाई । <br/>मुस्कुरा कर त्याग दी, </p>
<p>सारी खुशी जिसके लिए, </p>
<p>आज फिर से बाप को, </p>
<p>औकात बेटों ने दिखाई । <br/>अजय शर्मा " अज्ञात "</p>
<p></p>
<p>मौलिक एवं अप्रकाशित।</p>जो लक्ष्य से भटका नहींtag:openbooksonline.com,2015-11-05:5170231:BlogPost:7132922015-11-05T15:00:00.000ZAjay Kumar Sharmahttp://openbooksonline.com/profile/AjayKumarSharma805
<p>जो लक्ष्य से भटका नहीं, </p>
<p>जो हार पर अटका नहीं, </p>
<p></p>
<p>जीत पक्की है उसी की, </p>
<p>राह में खटका नहीं। </p>
<p></p>
<p>लगन है अटूट जिसकी, </p>
<p>और है पक्का इरादा, </p>
<p>पास उस रणवीर के, </p>
<p>काल भी फटका नहीं। </p>
<p></p>
<p>मजबूत हैं जिसके…</p>
<p>जो लक्ष्य से भटका नहीं, </p>
<p>जो हार पर अटका नहीं, </p>
<p></p>
<p>जीत पक्की है उसी की, </p>
<p>राह में खटका नहीं। </p>
<p></p>
<p>लगन है अटूट जिसकी, </p>
<p>और है पक्का इरादा, </p>
<p>पास उस रणवीर के, </p>
<p>काल भी फटका नहीं। </p>
<p></p>
<p>मजबूत हैं जिसके इरादे, </p>
<p>लौह पुरुष की तरह, </p>
<p>चट्टान टकराये अगर, </p>
<p>काँच भी चटका नहीं। </p>
<p></p>
<p>चुनौतियां भी हों बड़ी, </p>
<p>और रास्ते चाहे कठिन, </p>
<p>विश्वास हो, विधि साथ हो, </p>
<p>मझधार में अटका नहीं। </p>
<p>अजय शर्मा "अज्ञात"</p>
<p></p>
<p>मौलिक एवं अप्रकाशित।</p>नजरें दीवारों पर क्यों। " अज्ञात "tag:openbooksonline.com,2015-11-03:5170231:BlogPost:7126452015-11-03T11:56:16.000ZAjay Kumar Sharmahttp://openbooksonline.com/profile/AjayKumarSharma805
<p>बेकार हजारों कोशिश भी, </p>
<p>इन आँखों को समझाने की , </p>
<p>रखती हैं समुंदर को वश में, </p>
<p>और धार बहाये रहती हैं।</p>
<p> <br></br>जबकि है मालूम इन्हें, </p>
<p>वो दूर हैं नजरों से फिर भी, </p>
<p>नजरें दीवारों पर क्यों, </p>
<p>टकटकी लगाये रहती हैं।</p>
<p> <br></br>है असर मुहब्बत का…</p>
<p>बेकार हजारों कोशिश भी, </p>
<p>इन आँखों को समझाने की , </p>
<p>रखती हैं समुंदर को वश में, </p>
<p>और धार बहाये रहती हैं।</p>
<p> <br/>जबकि है मालूम इन्हें, </p>
<p>वो दूर हैं नजरों से फिर भी, </p>
<p>नजरें दीवारों पर क्यों, </p>
<p>टकटकी लगाये रहती हैं।</p>
<p> <br/>है असर मुहब्बत का इतना, </p>
<p>दिल सोचे कुछ, होता कुछ है, </p>
<p>सोना चाहे यादों के संग, </p>
<p>तो यादें जगाये रहती हैं।</p>
<p> <br/>शायद इनका भी दोष नहीं, </p>
<p>जब से नजरें चार हुई , </p>
<p>उनकी बातें, उनकी यादें, </p>
<p>धड़कन में समाये रहती हैं ।</p>
<p> <br/>अजय शर्मा " अज्ञात "</p>
<p>मौलिक एवं अप्रकाशित</p>अच्छा तो ! हिन्दुस्तान के हो तुम " अज्ञात "tag:openbooksonline.com,2015-11-01:5170231:BlogPost:7121452015-11-01T10:24:26.000ZAjay Kumar Sharmahttp://openbooksonline.com/profile/AjayKumarSharma805
<p>लकीरें खींच कर सब लोग, </p>
<p>मुझसे पूछते हैं जब, </p>
<p>असम के हो ,या जम्मू के, </p>
<p>या राजस्थान के हो तुम , <br></br>मैं कहता हूँ, वहाँ का हूँ, </p>
<p>जहाँ की, सोना है माटी, </p>
<p>जहाँ सौहार्द का मेला, </p>
<p>जहाँ की प्रेम परिपाटी , </p>
<p>वो कहते हैं…</p>
<p>लकीरें खींच कर सब लोग, </p>
<p>मुझसे पूछते हैं जब, </p>
<p>असम के हो ,या जम्मू के, </p>
<p>या राजस्थान के हो तुम , <br/>मैं कहता हूँ, वहाँ का हूँ, </p>
<p>जहाँ की, सोना है माटी, </p>
<p>जहाँ सौहार्द का मेला, </p>
<p>जहाँ की प्रेम परिपाटी , </p>
<p>वो कहते हैं कि, </p>
<p>अच्छा तो ! हिन्दुस्तान के हो तुम । <br/>वो कहते हैं, कि किससे, </p>
<p>है तुम्हारा खून का रिश्ता, </p>
<p>किसी राजा के बेटे या, </p>
<p>किसी धनवान के हो तुम, </p>
<p>मैं कहता हूँ जहाँ पैदा हुए, </p>
<p>हैं राम, गौतम बुद्ध , </p>
<p>वो कहते हैं कि, </p>
<p>अच्छा तो ! हिन्दुस्तान के हो तुम । <br/>तुम्हारा क्या धरम है और, </p>
<p>क्या मजहब तुम्हारा है, </p>
<p>वो मुझसे पूछते हैं कौन, </p>
<p>तुमको दिल से प्यारा है , </p>
<p>मैं कहता हूँ , मुझे प्यारा वही , </p>
<p>ईमान में जो गुम , </p>
<p>वो कहते हैं कि, </p>
<p>अच्छा तो ! हिन्दुस्तान के हो तुम । <br/>अजय शर्मा "अज्ञात "</p>
<p>मौलिक एवं अप्रकाशित</p>आज मेरे गाँव से गली ओझल हो गयी। "अज्ञात "tag:openbooksonline.com,2015-10-30:5170231:BlogPost:7110572015-10-30T13:34:27.000ZAjay Kumar Sharmahttp://openbooksonline.com/profile/AjayKumarSharma805
<p>जब थी उठी बरसात से, </p>
<p>पहले पहल भीनी महक, </p>
<p>था मन तरंगित हो उठा, </p>
<p>सुन पक्षियों की चह चहक, </p>
<p>गुमशुदा, अब बाग से, </p>
<p>क्यों कली कोमल हो गयी। </p>
<p>बीते पलों को याद कर, </p>
<p>आँख, बोझल हो गयी।<br></br>पत्थरों की शगल में, </p>
<p>सड़क सौतन क्या…</p>
<p>जब थी उठी बरसात से, </p>
<p>पहले पहल भीनी महक, </p>
<p>था मन तरंगित हो उठा, </p>
<p>सुन पक्षियों की चह चहक, </p>
<p>गुमशुदा, अब बाग से, </p>
<p>क्यों कली कोमल हो गयी। </p>
<p>बीते पलों को याद कर, </p>
<p>आँख, बोझल हो गयी।<br/>पत्थरों की शगल में, </p>
<p>सड़क सौतन क्या बनी, </p>
<p>हो द्रवित फिर आज वह, </p>
<p>कह उठी हो अनमनी, </p>
<p>आज मेरे गाँव से, </p>
<p>गली, ओझल हो गयी। </p>
<p>बीते पलों को याद कर, </p>
<p>आँख, बोझल हो गयी। <br/>अब सघन पाषाण से, </p>
<p>वह आच्छादित हो गया, </p>
<p>आपसी सब भाईचारा, </p>
<p>भी विवादित हो गया, </p>
<p>एकता भी अब बदलकर, </p>
<p>आज दो दल हो गयी । </p>
<p>बीते पलों को याद कर, </p>
<p>आँख, बोझल हो गयी। <br/>अजय शर्मा " अज्ञात "</p>
<p></p>
<p>मौलिक एवं अप्रकाशित</p>हृदय को विक्षिप्त करते। " अज्ञात "tag:openbooksonline.com,2015-10-30:5170231:BlogPost:7104302015-10-30T02:39:14.000ZAjay Kumar Sharmahttp://openbooksonline.com/profile/AjayKumarSharma805
<p>हृदय को विक्षिप्त करते, </p>
<p>शूल हैं, दंश हैं कुछ, </p>
<p>घावों को कुरेदते, </p>
<p>बीते पलों के अंश हैं कुछ। </p>
<p>अतीत की स्मृति भला, </p>
<p>मस्तिष्क से हो दूर कैसे, </p>
<p>कसक भी है, ठेस भी, </p>
<p>चुभन है भरपूर ऐसे, </p>
<p>वेदनाएं मिट रही हैं शनैः शनैः, </p>
<p>अभी भी पल…</p>
<p>हृदय को विक्षिप्त करते, </p>
<p>शूल हैं, दंश हैं कुछ, </p>
<p>घावों को कुरेदते, </p>
<p>बीते पलों के अंश हैं कुछ। </p>
<p>अतीत की स्मृति भला, </p>
<p>मस्तिष्क से हो दूर कैसे, </p>
<p>कसक भी है, ठेस भी, </p>
<p>चुभन है भरपूर ऐसे, </p>
<p>वेदनाएं मिट रही हैं शनैः शनैः, </p>
<p>अभी भी पल रहे वंश हैं कुछ । </p>
<p>घावों को कुरेदते, </p>
<p>बीते पलों के अंश हैं कुछ। </p>
<p>आतंक की वीभत्सता से, </p>
<p>आत्मा आहत हुई, </p>
<p>स्वप्न भी टूटे सभी, </p>
<p>ध्वस्त सब चाहत हुई, </p>
<p>कुछ को मिला है दण्ड, </p>
<p>शेष नृशंस हैं कुछ। </p>
<p>घावों को कुरेदते, </p>
<p>बीते पलों के अंश हैं कुछ।</p>
<p> <br/>अजय शर्मा "अज्ञात"</p>
<p>मौलिक एवं अप्रकाशित</p>जाने ये कैसा असर जिन्दगी का। "अज्ञात"tag:openbooksonline.com,2015-10-29:5170231:BlogPost:7099762015-10-29T13:55:41.000ZAjay Kumar Sharmahttp://openbooksonline.com/profile/AjayKumarSharma805
<p>जाने ये कैसा, असर जिन्दगी का,<br></br>फूलों की चाहत है होती सभी को, </p>
<p>काँटों भरा है, सफर जिन्दगी का।<br></br>मेहनत मशक्कत सब करते हैं फिर भी,</p>
<p>रस्ता न आता, नज़र जिन्दगी का। <br></br>बदलती फिजायें , बदलता जमाना, </p>
<p>अंधेरा है देखो जिधर, जिन्दगी का। <br></br>मन की मुरादें जब पूरी न होतीं, </p>
<p>तो सपना है जाता, बिखर जिन्दगी का।<br></br>गरीबों को मिलती न रोटी कहीं भी, </p>
<p>ये करते हैं कैसे, बसर जिन्दगी का।<br></br>भटकता हर इंसा कुछ पाने की जिद…</p>
<p>जाने ये कैसा, असर जिन्दगी का,<br/>फूलों की चाहत है होती सभी को, </p>
<p>काँटों भरा है, सफर जिन्दगी का।<br/>मेहनत मशक्कत सब करते हैं फिर भी,</p>
<p>रस्ता न आता, नज़र जिन्दगी का। <br/>बदलती फिजायें , बदलता जमाना, </p>
<p>अंधेरा है देखो जिधर, जिन्दगी का। <br/>मन की मुरादें जब पूरी न होतीं, </p>
<p>तो सपना है जाता, बिखर जिन्दगी का।<br/>गरीबों को मिलती न रोटी कहीं भी, </p>
<p>ये करते हैं कैसे, बसर जिन्दगी का।<br/>भटकता हर इंसा कुछ पाने की जिद में, </p>
<p>ये किस्सा इधर से उधर जिन्दगी का।</p>
<p>जाने ये कैसा असर जिन्दगी का।<br/>अजय शर्मा "अज्ञात"। </p>
<p>मौलिक एवं अप्रकाशित।</p>सरकार पर व्यंग्य बाण " अज्ञात "tag:openbooksonline.com,2015-10-29:5170231:BlogPost:7099512015-10-29T08:12:10.000ZAjay Kumar Sharmahttp://openbooksonline.com/profile/AjayKumarSharma805
<p>काश कि सरकार, </p>
<p>अपने चक्षुओं से देख पाती, <br></br>यदि वोट की खातिर वो, </p>
<p>दोनों हाथ से धन न लुटाती। </p>
<p>तो देश की सारी व्यवस्था, </p>
<p>इस तरह न चरमराती। </p>
<p>काश कि सरकार, </p>
<p>अपने चक्षुओं से देख पाती। <br></br>छोड़ निंदा रस कहीं, </p>
<p>गर…</p>
<p>काश कि सरकार, </p>
<p>अपने चक्षुओं से देख पाती, <br/>यदि वोट की खातिर वो, </p>
<p>दोनों हाथ से धन न लुटाती। </p>
<p>तो देश की सारी व्यवस्था, </p>
<p>इस तरह न चरमराती। </p>
<p>काश कि सरकार, </p>
<p>अपने चक्षुओं से देख पाती। <br/>छोड़ निंदा रस कहीं, </p>
<p>गर ध्यान देती दाल पर, </p>
<p>बात सच है, </p>
<p>तो नहीं , दाल दो सौ पार जाती। </p>
<p>काश कि सरकार, </p>
<p>अपने चक्षुओं से देख पाती, <br/>देश की जनता भला, </p>
<p>खाये क्या, और क्या पिये, </p>
<p>बढ़ती हुई मँहगाई में, </p>
<p>होती दुखी न तिलमिलाती। </p>
<p>काश कि सरकार, </p>
<p>अपने चक्षुओं से देख पाती।<br/>अजय शर्मा " अज्ञात "। </p>
<p>मौलिक एवं अप्रकाशित</p>हे कलाम शत शत प्रणाम "अज्ञात"tag:openbooksonline.com,2015-10-27:5170231:BlogPost:7098252015-10-27T18:00:00.000ZAjay Kumar Sharmahttp://openbooksonline.com/profile/AjayKumarSharma805
<p>आदरणीय कलाम साहब को समर्पित <br></br> सरल, सादगी की वह मूरत, </p>
<p>ऐसा पावन दूत हुआ, </p>
<p>भारत ही क्या ,उसकी छवि से, </p>
<p>जग सारा अभिभूत हुआ, </p>
<p>आकाश, नाग, पृथ्वी, त्रिशूल से, </p>
<p>दाता पैने तीरों का, </p>
<p>भारत को समृद्ध किया और </p>
<p>जीवन जिया फकीरों सा । </p>
<p></p>
<p>जिसकी …</p>
<p>आदरणीय कलाम साहब को समर्पित <br/> सरल, सादगी की वह मूरत, </p>
<p>ऐसा पावन दूत हुआ, </p>
<p>भारत ही क्या ,उसकी छवि से, </p>
<p>जग सारा अभिभूत हुआ, </p>
<p>आकाश, नाग, पृथ्वी, त्रिशूल से, </p>
<p>दाता पैने तीरों का, </p>
<p>भारत को समृद्ध किया और </p>
<p>जीवन जिया फकीरों सा । </p>
<p></p>
<p>जिसकी लगन से भारत भी, </p>
<p>परमाणु शक्ति अब कहलाया, </p>
<p>दुनिया को आकर्षित कर, </p>
<p>परचम दुनिया में लहराया, </p>
<p>भारत के लिए सर्वस्व दिया, </p>
<p>वह आजादी के वीरों सा। </p>
<p>भारत को समृद्ध किया और, </p>
<p>जीवन जिया फकीरों सा ।</p>
<p></p>
<p>वह महापुरुष था महामना, </p>
<p>वह ज्योतिपुंज भारत सपना, </p>
<p>वह अथक तपी, वह अद्भुत था, </p>
<p>निज देश हेतु वह उद्दत था, </p>
<p>था युवाशक्ति का अधिनायक, </p>
<p>परिचायक नहीं लकीरों का । </p>
<p>भारत को समृद्ध किया और </p>
<p>जीवन जिया फकीरों सा। </p>
<p></p>
<p>दुनिया भी नतमस्तक हो,</p>
<p>जिसे 'मिसाइल मैन' कहे , </p>
<p>अश्रुधार बह गयी जगत में, </p>
<p>अपने कलाम जब नहीं रहे, </p>
<p>"रत्न" भारती का वह प्यारा, </p>
<p>वह मिसाल रणधीरों सा । </p>
<p>भारत को समृद्ध किया और </p>
<p>जीवन जिया फकीरों सा । </p>
<p></p>
<p>हे कलाम शत शत प्रणाम, </p>
<p>तू रहे और तेरा नाम रहे, </p>
<p>तब तक तू धरती पर चमके, जब तक सुबह ओ शाम रहे, </p>
<p>तेरे मन में रहे मेरे मन रहे , </p>
<p>वह बनकर तस्वीरों सा। </p>
<p>भारत को समृद्ध किया और, </p>
<p>जीवन जिया फकीरों सा । <br/> अजय शर्मा "अज्ञात "</p>
<p></p>
<p>मौलिक एवं अप्रकाशित</p>जीवन की आपाधापी में,tag:openbooksonline.com,2015-10-25:5170231:BlogPost:7094122015-10-25T09:30:00.000ZAjay Kumar Sharmahttp://openbooksonline.com/profile/AjayKumarSharma805
<p>जीवन की आपाधापी में, </p>
<p>दिन बचपन के भूल गये, </p>
<p>परिवर्तित हो गयी हवायें, </p>
<p>मौसम भी प्रतिकूल भये।<br></br> वो शाम सुहानी,मित्रों के दल, </p>
<p>और किनारा नदियों का, </p>
<p>कूद, कबड्डी,गुल्ली डंडा, </p>
<p>झर झर झरना सदियों का, </p>
<p>खेत और खलिहान की रंगत, </p>
<p>लदी डाल में अमियों का, </p>
<p>मानचित्र…</p>
<p>जीवन की आपाधापी में, </p>
<p>दिन बचपन के भूल गये, </p>
<p>परिवर्तित हो गयी हवायें, </p>
<p>मौसम भी प्रतिकूल भये।<br/> वो शाम सुहानी,मित्रों के दल, </p>
<p>और किनारा नदियों का, </p>
<p>कूद, कबड्डी,गुल्ली डंडा, </p>
<p>झर झर झरना सदियों का, </p>
<p>खेत और खलिहान की रंगत, </p>
<p>लदी डाल में अमियों का, </p>
<p>मानचित्र बनता है मन में, </p>
<p>धूल-धूसरित गलियों का, </p>
<p>भौतिकता के मैराथन में, </p>
<p>हम इतने मशगूल भये। जीवन---<br/> बाबू जी की उंगली थामे, </p>
<p>ढलती शाम की बेला में, </p>
<p>चल पड़ते थे खुशी-खुशी हम, </p>
<p>अपने गाँव के मेला में, </p>
<p>पानी-पूरी,चाट,मुगौरी, </p>
<p>और खसता के चटकारे, </p>
<p>बाँसुरी,पिपिहरी,शीटी भी, </p>
<p>और हवा के गुब्बारे, </p>
<p>मेघनाद,रावण के पुतले, </p>
<p>लगते थे कितने प्यारे , </p>
<p>जीत राम की होती थी, </p>
<p>और हर्षित होते थे सारे, </p>
<p>वो कल बदला,वो पल बदला, </p>
<p>अब सब विचार निर्मूल भये।जीवन----<br/> खुले गगन में दादी के संग, </p>
<p>गर्मी की उन रातों में, </p>
<p>उड़ता था मन मतवाला हो , </p>
<p>मीठी-मीठी बातों में, </p>
<p>राजा रानी और परियों के, </p>
<p>किस्से अब क्यों भूल गये । जीवन----<br/> अजय शर्मा "अज्ञात "</p>
<p></p>
<p>मौलिक एवं अप्रकाशित</p>मात्र इक भाषा नहीं है।tag:openbooksonline.com,2015-10-23:5170231:BlogPost:7089072015-10-23T13:56:14.000ZAjay Kumar Sharmahttp://openbooksonline.com/profile/AjayKumarSharma805
<p>मात्र इक भाषा नहीं है,</p>
<p>राष्ट्र की पहचान -हिन्दी।</p>
<p>सभ्यता की नींव है,</p>
<p>साहित्य की धनवान -हिन्दी।</p>
<p></p>
<p>सर्वव्यापक सरल सुन्दर,</p>
<p>सर्वगुण सम्पन्न है,</p>
<p>ज्ञान का विस्तीर्ण साधन,</p>
<p>सद्गुणों की खान -हिन्दी ।</p>
<p></p>
<p>व्यक्ति का व्यक्तित्व है,</p>
<p>प्रतिबिंब है अभिव्यक्ति का,</p>
<p>उपयोग,सूचक शक्ति का,</p>
<p>मान और सम्मान -हिन्दी।</p>
<p></p>
<p>गुरुमुखी श्रीग्रंथ साहिब ,</p>
<p>नित्य शाश्वत वेद है,</p>
<p>काव्य की निर्मल विधा,</p>
<p>"अज्ञात"…</p>
<p>मात्र इक भाषा नहीं है,</p>
<p>राष्ट्र की पहचान -हिन्दी।</p>
<p>सभ्यता की नींव है,</p>
<p>साहित्य की धनवान -हिन्दी।</p>
<p></p>
<p>सर्वव्यापक सरल सुन्दर,</p>
<p>सर्वगुण सम्पन्न है,</p>
<p>ज्ञान का विस्तीर्ण साधन,</p>
<p>सद्गुणों की खान -हिन्दी ।</p>
<p></p>
<p>व्यक्ति का व्यक्तित्व है,</p>
<p>प्रतिबिंब है अभिव्यक्ति का,</p>
<p>उपयोग,सूचक शक्ति का,</p>
<p>मान और सम्मान -हिन्दी।</p>
<p></p>
<p>गुरुमुखी श्रीग्रंथ साहिब ,</p>
<p>नित्य शाश्वत वेद है,</p>
<p>काव्य की निर्मल विधा,</p>
<p>"अज्ञात" गीता ज्ञान -हिन्दी।</p>
<p></p>
<p>कवि की कोमल कल्पना है,</p>
<p>सावनी मल्हार है,</p>
<p>कूक कोयल की मधुर है,</p>
<p>कर्ण प्रिय सुर-तान- हिन्दी।</p>
<p></p>
<p>क्यों आज विस्मृत हो रही,</p>
<p>भाषा पुरातन काल की,</p>
<p>क्यों दुर्दशा से ग्रसित है,</p>
<p>क्यों सह रही अपमान -हिन्दी।</p>
<p></p>
<p>भारत के मानुष आज लो प्रण,</p>
<p>साख हो जीवित पुन:,</p>
<p>विश्व में छा जाये तिरंगा,</p>
<p>कर रही आह्वान -हिन्दी।।</p>
<p></p>
<p>अजय शर्मा " अज्ञात "</p>
<p></p>
<p>मौलिक एवं अप्रकाशित</p>मन में हो विश्वास अगर।tag:openbooksonline.com,2015-10-22:5170231:BlogPost:7080862015-10-22T07:41:48.000ZAjay Kumar Sharmahttp://openbooksonline.com/profile/AjayKumarSharma805
<p>मन में हो विश्वास अगर,दीप आस के जलते हैं,</p>
<p>कीचड़,मटमैले जल में भी,फूल कमल के खिलते हैं।</p>
<p>घोर घने अंधियारे में ही, तारे झिलमिल करते हैं।</p>
<p></p>
<p>पत्थर तो बस पत्थर है, पत्थर का कोई मोल नहीं,</p>
<p>दुख सहकर मूरत बनता है,होता है अनमोल वही,</p>
<p>धूप,दीप,नैवेद्य चढ़ा,लाखों सिर सजदे करते हैं।</p>
<p>मन में हो विश्वास अगर,दीप आस के जलते हैं।</p>
<p></p>
<p></p>
<p>अपना अस्तित्व बचाने को,खाक में दाना मिलता है,</p>
<p>सर्दी,बारिश की बूंदें,गर्मी की चुभन को सहता है,</p>
<p>हृदय…</p>
<p>मन में हो विश्वास अगर,दीप आस के जलते हैं,</p>
<p>कीचड़,मटमैले जल में भी,फूल कमल के खिलते हैं।</p>
<p>घोर घने अंधियारे में ही, तारे झिलमिल करते हैं।</p>
<p></p>
<p>पत्थर तो बस पत्थर है, पत्थर का कोई मोल नहीं,</p>
<p>दुख सहकर मूरत बनता है,होता है अनमोल वही,</p>
<p>धूप,दीप,नैवेद्य चढ़ा,लाखों सिर सजदे करते हैं।</p>
<p>मन में हो विश्वास अगर,दीप आस के जलते हैं।</p>
<p></p>
<p></p>
<p>अपना अस्तित्व बचाने को,खाक में दाना मिलता है,</p>
<p>सर्दी,बारिश की बूंदें,गर्मी की चुभन को सहता है,</p>
<p>हृदय चीर कर धरती का तब कोमल पौधे बनते हैं।</p>
<p>मन में हो विश्वास अगर,दीप आस के जलते हैं।</p>
<p></p>
<p>जीवन के पथ दुर्गम हैं, दुर्गम पथ के वीर बनो,</p>
<p>ऊँची चोटी के शिखर बनो,बहती नदिया के नीर बनो,</p>
<p>अविराम,निरंतर मानुष ही, फल जीवन के चखते हैं,</p>
<p>मन में हो विश्वास अगर,दीप आस के जलते हैं।</p>
<p></p>
<p>अजय शर्मा " अज्ञात "</p>
<p>मौलिक एवं अप्रकाशित</p>चलते रहना रुकना मत।tag:openbooksonline.com,2015-10-21:5170231:BlogPost:7079082015-10-21T05:52:27.000ZAjay Kumar Sharmahttp://openbooksonline.com/profile/AjayKumarSharma805
<p>चलते रहना रुकना मत।</p>
<p>पथ चाहे हो पथरीला ,</p>
<p>पर्वत हो चाहे टीला ,</p>
<p>सघन समूचा जंगल हो ,</p>
<p>गूढ़ समुंदर हो नीला ,</p>
<p>वीरों सा बढ़ते रहना।</p>
<p>झुकना मत।</p>
<p></p>
<p>चपला चमके आँधी आये,</p>
<p>घनघोर घटा नभ छा जाये,</p>
<p>हो काली रात अंधेरी भी,</p>
<p>सागर में धरा समा जाये,</p>
<p>दीपक सा जलते रहना ,</p>
<p>बुझना मत ।</p>
<p></p>
<p>बन सजग देश के प्रहरी तुम,</p>
<p>रख लक्ष्य साधना गहरी तुम,</p>
<p>नील गगन में चमक उठो,</p>
<p>बनकर चमक सुनहरी तुम,</p>
<p>निज सपनों को…</p>
<p>चलते रहना रुकना मत।</p>
<p>पथ चाहे हो पथरीला ,</p>
<p>पर्वत हो चाहे टीला ,</p>
<p>सघन समूचा जंगल हो ,</p>
<p>गूढ़ समुंदर हो नीला ,</p>
<p>वीरों सा बढ़ते रहना।</p>
<p>झुकना मत।</p>
<p></p>
<p>चपला चमके आँधी आये,</p>
<p>घनघोर घटा नभ छा जाये,</p>
<p>हो काली रात अंधेरी भी,</p>
<p>सागर में धरा समा जाये,</p>
<p>दीपक सा जलते रहना ,</p>
<p>बुझना मत ।</p>
<p></p>
<p>बन सजग देश के प्रहरी तुम,</p>
<p>रख लक्ष्य साधना गहरी तुम,</p>
<p>नील गगन में चमक उठो,</p>
<p>बनकर चमक सुनहरी तुम,</p>
<p>निज सपनों को गढ़ते रहना,</p>
<p>रुकना मत।</p>
<p>अजय शर्मा " अज्ञात "</p>
<p></p>
<p>मौलिक एवं अप्रकाशित</p>