DR. BAIJNATH SHARMA'MINTU''s Posts - Open Books Online2024-03-28T12:44:02ZDR. BAIJNATH SHARMA'MINTU'http://openbooksonline.com/profile/BAIJNATHSHARMAMINTUhttp://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/10847385864?profile=RESIZE_48X48&width=48&height=48&crop=1%3A1http://openbooksonline.com/profiles/blog/feed?user=3tt9j01o23p7c&xn_auth=noआज मैखाने का दस्तूर अज़ब है साक़ी |tag:openbooksonline.com,2022-10-22:5170231:BlogPost:10923402022-10-22T16:00:15.000ZDR. BAIJNATH SHARMA'MINTU'http://openbooksonline.com/profile/BAIJNATHSHARMAMINTU
<p> </p>
<p>आज मैखाने का दस्तूर अज़ब है साक़ी |</p>
<p>जाम दिखता नहीं पर बाकी तो सब है साक़ी ।</p>
<p> </p>
<p>मयकशी के लिए अब मैं भी चला आया हूँ </p>
<p>तेरी आँखों से ही पीने की तलब है साक़ी|</p>
<p> </p>
<p>भूल जाता हूं मैं दुनिया के सभी रंजो अलम</p>
<p>जाम नज़रों का तेरे हाय गज़ब है साक़ी|</p>
<p> </p>
<p>अपनी आँखों से ही इक जाम पिला दे मुझको</p>
<p>तेरे मयख़ाने में ये आख़िरी शब है साक़ी|</p>
<p> </p>
<p>तेरी चौखट की तो ये बात निराली लगती</p>
<p>जाति मजहब न कोई नस्ल–नसब है…</p>
<p> </p>
<p>आज मैखाने का दस्तूर अज़ब है साक़ी |</p>
<p>जाम दिखता नहीं पर बाकी तो सब है साक़ी ।</p>
<p> </p>
<p>मयकशी के लिए अब मैं भी चला आया हूँ </p>
<p>तेरी आँखों से ही पीने की तलब है साक़ी|</p>
<p> </p>
<p>भूल जाता हूं मैं दुनिया के सभी रंजो अलम</p>
<p>जाम नज़रों का तेरे हाय गज़ब है साक़ी|</p>
<p> </p>
<p>अपनी आँखों से ही इक जाम पिला दे मुझको</p>
<p>तेरे मयख़ाने में ये आख़िरी शब है साक़ी|</p>
<p> </p>
<p>तेरी चौखट की तो ये बात निराली लगती</p>
<p>जाति मजहब न कोई नस्ल–नसब है साक़ी|</p>
<p> </p>
<p>दर्दो ग़म अपने भूलाने को चला आता हूँ</p>
<p>वरना पीने का कहां और सबब है साक़ी|</p>
<p></p>
<p></p>
<p> डॉ. बैजनाथ शर्मा ‘मिंटू’</p>
<p>स्वरचित व अप्रकाशित </p>ग़ज़ल -बेटे से बढ़ के फर्ज निभाती हैं बेटियाँtag:openbooksonline.com,2021-11-11:5170231:BlogPost:10730682021-11-11T15:30:00.000ZDR. BAIJNATH SHARMA'MINTU'http://openbooksonline.com/profile/BAIJNATHSHARMAMINTU
<p>2 2 1 2 1 2 1 1 2 2 1 2 1 2</p>
<p></p>
<p>बचपन की याद हमको दिलाती हैं बेटियाँ|</p>
<p>उंगली पकड़ के जब भी घुमाती हैं बेटियाँ|</p>
<p> </p>
<p>हाथों से अपने जब भी खिलाती हैं देखिये </p>
<p>दादी की याद हमको दिलाती हैं बेटियाँ|</p>
<p> </p>
<p>बेटा बसा है देखिये जब से विदेश में</p>
<p>इस घर के सारे बोझ उठाती हैं बेटियाँ |</p>
<p> </p>
<p>जर्जर शरीर में जो न आती है नींद तो </p>
<p>दे दे के थपकियाँ भी सुलाती हैं बेटियाँ|</p>
<p> </p>
<p>बेटी की शान में मैं भला और क्या कहूँ,</p>
<p>बेटे से बढ़ के…</p>
<p>2 2 1 2 1 2 1 1 2 2 1 2 1 2</p>
<p></p>
<p>बचपन की याद हमको दिलाती हैं बेटियाँ|</p>
<p>उंगली पकड़ के जब भी घुमाती हैं बेटियाँ|</p>
<p> </p>
<p>हाथों से अपने जब भी खिलाती हैं देखिये </p>
<p>दादी की याद हमको दिलाती हैं बेटियाँ|</p>
<p> </p>
<p>बेटा बसा है देखिये जब से विदेश में</p>
<p>इस घर के सारे बोझ उठाती हैं बेटियाँ |</p>
<p> </p>
<p>जर्जर शरीर में जो न आती है नींद तो </p>
<p>दे दे के थपकियाँ भी सुलाती हैं बेटियाँ|</p>
<p> </p>
<p>बेटी की शान में मैं भला और क्या कहूँ,</p>
<p>बेटे से बढ़ के फर्ज निभाती हैं बेटियाँ|</p>
<p> </p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित </p>चारण हूँ मद्दाह नहीं मैं सच लिक्खूंगा-बोलूँगा - बैजनाथ शर्मा ‘मिंटू’tag:openbooksonline.com,2019-02-04:5170231:BlogPost:9729122019-02-04T08:30:00.000ZDR. BAIJNATH SHARMA'MINTU'http://openbooksonline.com/profile/BAIJNATHSHARMAMINTU
<p>S S S S S S S S S S S S S S S</p>
<p>.</p>
<p>देश के दुश्मन सबके दुश्मन इनसे यारी ठीक नहीं|<br></br> इनसे हाथ मिलाने वालों यह गद्दारी ठीक नहीं|</p>
<p>मंदिर-मस्ज़िद-धर्मों-मज़हब रक्षित औ महफूज़ हैं फिर<br></br> इनकी खातिर गोलीबारी -तेग-कटारी ठीक नहीं</p>
<p>माँ की अस्मत ख़तरे में औ मुल्क में हो गर त्राहिमाम <br></br> तब तो लोग कहेंगे दिल्ली की सरदारी ठीक नही।</p>
<p>आरक्षण की ख़ातिर ही अंधे-बहरे कुर्सी पर हैं <br></br> इस हालत से देश की होगी कुई बीमारी ठीक नहीं|</p>
<p>चारण हूँ मद्दाह नहीं मैं सच…</p>
<p>S S S S S S S S S S S S S S S</p>
<p>.</p>
<p>देश के दुश्मन सबके दुश्मन इनसे यारी ठीक नहीं|<br/> इनसे हाथ मिलाने वालों यह गद्दारी ठीक नहीं|</p>
<p>मंदिर-मस्ज़िद-धर्मों-मज़हब रक्षित औ महफूज़ हैं फिर<br/> इनकी खातिर गोलीबारी -तेग-कटारी ठीक नहीं</p>
<p>माँ की अस्मत ख़तरे में औ मुल्क में हो गर त्राहिमाम <br/> तब तो लोग कहेंगे दिल्ली की सरदारी ठीक नही।</p>
<p>आरक्षण की ख़ातिर ही अंधे-बहरे कुर्सी पर हैं <br/> इस हालत से देश की होगी कुई बीमारी ठीक नहीं|</p>
<p>चारण हूँ मद्दाह नहीं मैं सच लिक्खूंगा-बोलूँगा <br/> काम करो या कुर्सी छोडो अब मक्कारी ठीक नहीं|</p>
<p>फाँसी पर लटका दो या फिर दफ़ना दो गद्दारों को<br/> केसर क्यारी के मुद्दों पर ठेकेदारी ठीक नहीं|</p>
<p>पत्थरवाज़ो की माफ़ी से मुल्क मेरा शर्मिन्दा है<br/> कुर्सी खातिर जुल्म को सहना औ लाचारी ठीक नहीं|</p>
<p>'भारत तेरे टुकड़े होंगे इंशाअल्लाह इंशाअल्लाह'<br/> कहने वाले गद्दारों से नातेदारी ठीक नही।</p>
<p>.</p>
<p>गज़ल- मौलिक व अप्रकाशित</p>पढ़ न पाए ये ज़माना इश्क की तहरीर अबtag:openbooksonline.com,2018-05-23:5170231:BlogPost:9315082018-05-23T08:00:00.000ZDR. BAIJNATH SHARMA'MINTU'http://openbooksonline.com/profile/BAIJNATHSHARMAMINTU
<p>२१२२ २१२२ २१२२ २१२</p>
<p></p>
<p>पढ़ न पाए ये ज़माना इश्क की तहरीर अब </p>
<p>इसलिए ही ख़त जलाये औ तेरी तस्वीर अब</p>
<p></p>
<p>मंदिरो-मस्ज़िद में जाकर मिन्नतें-सजदा किये <br></br> फिर भी तुमसे दूर रहना है मेरी तक़दीर अब|</p>
<p></p>
<p>लोग कुछ मजनूँ कहें अब और कुछ फ़रहाद भी <br></br> यह तुम्हारे इश्क की ही लग रही तासीर अब |</p>
<p></p>
<p>ज़ख़्म गहरा हो गया हो या कि फिर नासूर तो <br></br> प्यार का ही लेप उस पर हो दवा अक्सीर अब|</p>
<p></p>
<p>है मुक़द्दर में नही मत सोचकर बैठो मियाँ<br></br> बदलेगी तक़दीर निश्चित…</p>
<p>२१२२ २१२२ २१२२ २१२</p>
<p></p>
<p>पढ़ न पाए ये ज़माना इश्क की तहरीर अब </p>
<p>इसलिए ही ख़त जलाये औ तेरी तस्वीर अब</p>
<p></p>
<p>मंदिरो-मस्ज़िद में जाकर मिन्नतें-सजदा किये <br/> फिर भी तुमसे दूर रहना है मेरी तक़दीर अब|</p>
<p></p>
<p>लोग कुछ मजनूँ कहें अब और कुछ फ़रहाद भी <br/> यह तुम्हारे इश्क की ही लग रही तासीर अब |</p>
<p></p>
<p>ज़ख़्म गहरा हो गया हो या कि फिर नासूर तो <br/> प्यार का ही लेप उस पर हो दवा अक्सीर अब|</p>
<p></p>
<p>है मुक़द्दर में नही मत सोचकर बैठो मियाँ<br/> बदलेगी तक़दीर निश्चित गर किया तदबीर अब।</p>
<p></p>
<p>रक्त रंजित हो गई है इसलिये माँ भारती <br/> सब के हाथों में है दिखती धर्म की शमशीर अब|</p>
<p></p>
<p>चंद ग़ज़लें कह के ’मिण्टू’ ख़ुद को मत ग़ालिब समझ <br/> हो न पायेगा कभी दुष्यंत-साहिर-मीर अब</p>
<p></p>
<p>बैजनाथ शर्मा ‘मिंटू'</p>
<p><br/> मौलिक व अप्रकाशित</p>बैजनाथ शर्मा ‘मिंटू’ - लिख रहें हैं ग़ज़ल कहानी में......tag:openbooksonline.com,2018-03-06:5170231:BlogPost:9178472018-03-06T15:00:00.000ZDR. BAIJNATH SHARMA'MINTU'http://openbooksonline.com/profile/BAIJNATHSHARMAMINTU
<p>अरकान- 212 212 12 22</p>
<p></p>
<p> </p>
<p>बात कहनी थी जो ज़ुबानी में|</p>
<p>लिख रहें हैं ग़ज़ल कहानी में|</p>
<p> </p>
<p>फूल-ख़त संग लाख दर्दोगम </p>
<p>उसने हमको दिये निशानी में|</p>
<p> </p>
<p>देवता बन के आये हैं मेहमां </p>
<p>कुछ कसर हो न मेज़बानी में |</p>
<p> </p>
<p>प्यार रुसवा मेरा भी हो जाता</p>
<p>जिक्र करता अगर कहानी में |</p>
<p> </p>
<p>सर्द मौसम में गर गिरा पल्लू </p>
<p>आग फिर तो लगेगी पानी में |</p>
<p></p>
<p></p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित </p>
<p>अरकान- 212 212 12 22</p>
<p></p>
<p> </p>
<p>बात कहनी थी जो ज़ुबानी में|</p>
<p>लिख रहें हैं ग़ज़ल कहानी में|</p>
<p> </p>
<p>फूल-ख़त संग लाख दर्दोगम </p>
<p>उसने हमको दिये निशानी में|</p>
<p> </p>
<p>देवता बन के आये हैं मेहमां </p>
<p>कुछ कसर हो न मेज़बानी में |</p>
<p> </p>
<p>प्यार रुसवा मेरा भी हो जाता</p>
<p>जिक्र करता अगर कहानी में |</p>
<p> </p>
<p>सर्द मौसम में गर गिरा पल्लू </p>
<p>आग फिर तो लगेगी पानी में |</p>
<p></p>
<p></p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित </p>ये हमारी शान है औ ये हमारा है वतन- बैजनाथ शर्मा 'मिंटू'tag:openbooksonline.com,2017-04-11:5170231:BlogPost:8485132017-04-11T15:00:00.000ZDR. BAIJNATH SHARMA'MINTU'http://openbooksonline.com/profile/BAIJNATHSHARMAMINTU
<p>2122 2122 2122 212</p>
<p> </p>
<p>जाग गहरी नींद से औ देख अपना ये चमन</p>
<p>ये हमारी शान है औ ये हमारा है वतन|</p>
<p> </p>
<p>भोली सूरत देखकर या फिर किसी भी लोभ में</p>
<p>जो जलाते घर हमारे दो न तुम उनको शरण |</p>
<p> </p>
<p>धर्म के जो नाम पर हमको लड़ाते आ रहे</p>
<p>आ गए फिर वोट लेने सोच कर करना चयन|</p>
<p> </p>
<p>आदमी की शक्ल में जो हैं सरापा भेड़िये</p>
<p>कब तलक जुल्मों सितम उनके करेंगे हम सहन|</p>
<p> </p>
<p>गर बचाना देश है तो मार दो गद्दार को</p>
<p>झट मिटा दो नाम अब तो मत करो…</p>
<p>2122 2122 2122 212</p>
<p> </p>
<p>जाग गहरी नींद से औ देख अपना ये चमन</p>
<p>ये हमारी शान है औ ये हमारा है वतन|</p>
<p> </p>
<p>भोली सूरत देखकर या फिर किसी भी लोभ में</p>
<p>जो जलाते घर हमारे दो न तुम उनको शरण |</p>
<p> </p>
<p>धर्म के जो नाम पर हमको लड़ाते आ रहे</p>
<p>आ गए फिर वोट लेने सोच कर करना चयन|</p>
<p> </p>
<p>आदमी की शक्ल में जो हैं सरापा भेड़िये</p>
<p>कब तलक जुल्मों सितम उनके करेंगे हम सहन|</p>
<p> </p>
<p>गर बचाना देश है तो मार दो गद्दार को</p>
<p>झट मिटा दो नाम अब तो मत करो पुतला दहन|</p>
<p> </p>
<p>आसतीं का साँप है और दोगला है शख्स जो</p>
<p>पीठ पीछे वार करता सामने करता नमन||</p>
<p> </p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित </p>बीत जाएगा समय तो क्या करेगा आदमीtag:openbooksonline.com,2017-04-07:5170231:BlogPost:8478672017-04-07T18:30:00.000ZDR. BAIJNATH SHARMA'MINTU'http://openbooksonline.com/profile/BAIJNATHSHARMAMINTU
<p>2122 2122 2122 212</p>
<p> </p>
<p>सच यहाँ पर कुछ नहीं जब खुद है झूठा आदमी|</p>
<p>जानकर भी आज सब अनजान देखा आदमी|</p>
<p> </p>
<p>जग पराया देश है अपना यहाँ कुछ भी नहीं</p>
<p>कुछ दिनों के वास्ते इस जग में आया आदमी|</p>
<p> </p>
<p>लोग अपने वास्ते जीते हैं दुनिया में मगर</p>
<p>जो पराया दर्द समझे है वो आला आदमी</p>
<p> </p>
<p>ये ख़जाना और दौलत सब यही रह जाएगा </p>
<p>सिर्फ तेरा कर्म ही बस साथ देगा आदमी|</p>
<p> </p>
<p>बेवफ़ा सी ज़िन्दगी जिस दिन तुझे ठुकराएगी</p>
<p>आदमी को लाश कहकर…</p>
<p>2122 2122 2122 212</p>
<p> </p>
<p>सच यहाँ पर कुछ नहीं जब खुद है झूठा आदमी|</p>
<p>जानकर भी आज सब अनजान देखा आदमी|</p>
<p> </p>
<p>जग पराया देश है अपना यहाँ कुछ भी नहीं</p>
<p>कुछ दिनों के वास्ते इस जग में आया आदमी|</p>
<p> </p>
<p>लोग अपने वास्ते जीते हैं दुनिया में मगर</p>
<p>जो पराया दर्द समझे है वो आला आदमी</p>
<p> </p>
<p>ये ख़जाना और दौलत सब यही रह जाएगा </p>
<p>सिर्फ तेरा कर्म ही बस साथ देगा आदमी|</p>
<p> </p>
<p>बेवफ़ा सी ज़िन्दगी जिस दिन तुझे ठुकराएगी</p>
<p>आदमी को लाश कहकर ले चलेगा आदमी|</p>
<p> </p>
<p>‘मिंटू’ अब भी वक्त है अपने को तू पहचान ले</p>
<p>बीत जाएगा समय तो क्या करेगा आदमी|</p>
<p> </p>
<p> </p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित</p>अशफाक-मंगल औ भगत को मत भुलाना तुम ( बैजनाथ शर्मा ‘मिंटू’)tag:openbooksonline.com,2017-03-23:5170231:BlogPost:8439572017-03-23T13:30:00.000ZDR. BAIJNATH SHARMA'MINTU'http://openbooksonline.com/profile/BAIJNATHSHARMAMINTU
<p>अरकान- 1222 1222 1222 1222 </p>
<p> </p>
<p>मुहब्बत में सनम हरदम न मुझको आजमाना तुम|</p>
<p>अकेलापन सताता है कि वापस आ भी जाना तुम|</p>
<p> </p>
<p>मुहब्बत खेल है बच्चों का शायद तुम समझते हो,</p>
<p>अगर घुट-घुट के मरना है तो फिर दिल को लगाना तुम,</p>
<p> </p>
<p>वतन के नाम कर देना जवानी-ऐशोइशरत औ</p>
<p>कटा देना ये सर अपना मगर सर मत झुकाना तुम|</p>
<p> </p>
<p>कफस में डाल के दुश्मन को मौका और मत देना ,</p>
<p>उड़ा के सर ही दुश्मन का धरम अपना निभाना तुम|</p>
<p> </p>
<p>मुहब्बत धार है…</p>
<p>अरकान- 1222 1222 1222 1222 </p>
<p> </p>
<p>मुहब्बत में सनम हरदम न मुझको आजमाना तुम|</p>
<p>अकेलापन सताता है कि वापस आ भी जाना तुम|</p>
<p> </p>
<p>मुहब्बत खेल है बच्चों का शायद तुम समझते हो,</p>
<p>अगर घुट-घुट के मरना है तो फिर दिल को लगाना तुम,</p>
<p> </p>
<p>वतन के नाम कर देना जवानी-ऐशोइशरत औ</p>
<p>कटा देना ये सर अपना मगर सर मत झुकाना तुम|</p>
<p> </p>
<p>कफस में डाल के दुश्मन को मौका और मत देना ,</p>
<p>उड़ा के सर ही दुश्मन का धरम अपना निभाना तुम|</p>
<p> </p>
<p>मुहब्बत धार है तलवार की चलना संभल के दोस्त,</p>
<p>नसीहत मान बस मेरी कि दिल को मत लगाना तुम,</p>
<p> </p>
<p>भले ही याद मत करना कभी बापू व नेहरू को,</p>
<p>मगर अशफाक-मंगल औ भगत को मत भुलाना तुम|</p>
<p> </p>
<p>अगर औलाद भी तेरा वतन गद्दार हो जाए,</p>
<p>मिटा देना उसे ‘मिंटू’ नही रिश्ता निभाना तुम|</p>
<p> </p>
<p> </p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित </p>बैजनाथ शर्मा 'मिंटू' - सू ए मंजिल तुझे हर हाल में जाना होगाtag:openbooksonline.com,2017-01-30:5170231:BlogPost:8327872017-01-30T14:30:00.000ZDR. BAIJNATH SHARMA'MINTU'http://openbooksonline.com/profile/BAIJNATHSHARMAMINTU
<p>212 2112 2112 222</p>
<p></p>
<p>सू ए मंजिल तुझे हर हाल में जाना होगा|<br></br> आज तन्हा है तो कल साथ ज़माना होगा|</p>
<p></p>
<p>मैं तो दुश्मन हूँ भला पीठ पे कैसे मारूं <br></br> इस लिए दोस्त तुझे दोस्त बनाना होगा |</p>
<p></p>
<p>जाग उठते है मेरे मन में सवालात कई<br></br> हर किसी दर पे न अब सर को झुकाना होगा |</p>
<p></p>
<p>एक दिन देखना छिड़केंगे नमक ज़ख्मों पर <br></br> शर्त है ज़ख्म सब अपनों को दिखाना होगा|</p>
<p></p>
<p>फ़ितनागर लोग ज़माने में बहुत देखे हैं,<br></br> हर किसी को न यहाँ दोस्त बनाना…</p>
<p>212 2112 2112 222</p>
<p></p>
<p>सू ए मंजिल तुझे हर हाल में जाना होगा|<br/> आज तन्हा है तो कल साथ ज़माना होगा|</p>
<p></p>
<p>मैं तो दुश्मन हूँ भला पीठ पे कैसे मारूं <br/> इस लिए दोस्त तुझे दोस्त बनाना होगा |</p>
<p></p>
<p>जाग उठते है मेरे मन में सवालात कई<br/> हर किसी दर पे न अब सर को झुकाना होगा |</p>
<p></p>
<p>एक दिन देखना छिड़केंगे नमक ज़ख्मों पर <br/> शर्त है ज़ख्म सब अपनों को दिखाना होगा|</p>
<p></p>
<p>फ़ितनागर लोग ज़माने में बहुत देखे हैं,<br/> हर किसी को न यहाँ दोस्त बनाना होगा|</p>
<p></p>
<p>जिनकी ताबीर न मुमकिन हो कभी जीवन में <br/> ऐसे सपने न कभी दिल में सजाना होगा |</p>
<p></p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित</p>इश्क छुपता नहीं छुपाने से -बैजनाथ शर्मा 'मिंटू'tag:openbooksonline.com,2016-11-27:5170231:BlogPost:8163852016-11-27T15:00:00.000ZDR. BAIJNATH SHARMA'MINTU'http://openbooksonline.com/profile/BAIJNATHSHARMAMINTU
<p>अरकान – 2122 12 12 22</p>
<p> </p>
<p>कुछ भी मिलता न सच बताने से |</p>
<p>फिर तो हम क्यों कहें ज़माने से| </p>
<p> </p>
<p>कोशिशें लाख हमने की लेकिन,</p>
<p>इश्क छुपता नहीं छुपाने से|</p>
<p> </p>
<p>कहकहे उनके गूंजते हरज़ा,</p>
<p>हम तो डरते हैं मुस्कुराने से</p>
<p> </p>
<p>लाख सोचा कि भूल जाऊँ पर,</p>
<p>याद आते हो तुम भुलाने से|</p>
<p> </p>
<p>मिन्नतें मैंने लाख की लेकिन</p>
<p>क्या मिला मुझको सर झुकाने से</p>
<p> </p>
<p>या ख़ुदा कुछ न पा सका ‘मिंटू’</p>
<p>रायगाँ ज़िन्दगी गँवाने से…</p>
<p>अरकान – 2122 12 12 22</p>
<p> </p>
<p>कुछ भी मिलता न सच बताने से |</p>
<p>फिर तो हम क्यों कहें ज़माने से| </p>
<p> </p>
<p>कोशिशें लाख हमने की लेकिन,</p>
<p>इश्क छुपता नहीं छुपाने से|</p>
<p> </p>
<p>कहकहे उनके गूंजते हरज़ा,</p>
<p>हम तो डरते हैं मुस्कुराने से</p>
<p> </p>
<p>लाख सोचा कि भूल जाऊँ पर,</p>
<p>याद आते हो तुम भुलाने से|</p>
<p> </p>
<p>मिन्नतें मैंने लाख की लेकिन</p>
<p>क्या मिला मुझको सर झुकाने से</p>
<p> </p>
<p>या ख़ुदा कुछ न पा सका ‘मिंटू’</p>
<p>रायगाँ ज़िन्दगी गँवाने से |</p>
<p> </p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित </p>प्यार में हम भी हद से गुज़र जायेंगे - बैजनाथ शर्मा 'मिंटू'tag:openbooksonline.com,2016-11-25:5170231:BlogPost:8159372016-11-25T06:00:00.000ZDR. BAIJNATH SHARMA'MINTU'http://openbooksonline.com/profile/BAIJNATHSHARMAMINTU
<p>अरकान – 212 2 122 122 12</p>
<p></p>
<p>काले बादल कभी जब बिखर जायेंगे |</p>
<p>ए नजारे भी बेशक बदल जायेंगे |</p>
<p> </p>
<p>मुस्कुरा के ना देखो हमें आज यूँ,</p>
<p>दिल के अरमाँ हमारे मचल जायेंगे|</p>
<p> </p>
<p>हमको मारो न खंज़र से ऐ महज़बी,</p>
<p>रूठ जाओ तो हम यूँ ही मर जायेंगे|</p>
<p> </p>
<p>आके देखो कभी तुम हमारी गली,</p>
<p>ए इरादे तुम्हारे बदल जायेंगे|</p>
<p> </p>
<p>लैला-मजनू हैं क्या शीरी फरहाद क्या,</p>
<p>प्यार में हम भी हद से गुज़र जायेंगे|</p>
<p> </p>
<p>संग दिल हैं वे…</p>
<p>अरकान – 212 2 122 122 12</p>
<p></p>
<p>काले बादल कभी जब बिखर जायेंगे |</p>
<p>ए नजारे भी बेशक बदल जायेंगे |</p>
<p> </p>
<p>मुस्कुरा के ना देखो हमें आज यूँ,</p>
<p>दिल के अरमाँ हमारे मचल जायेंगे|</p>
<p> </p>
<p>हमको मारो न खंज़र से ऐ महज़बी,</p>
<p>रूठ जाओ तो हम यूँ ही मर जायेंगे|</p>
<p> </p>
<p>आके देखो कभी तुम हमारी गली,</p>
<p>ए इरादे तुम्हारे बदल जायेंगे|</p>
<p> </p>
<p>लैला-मजनू हैं क्या शीरी फरहाद क्या,</p>
<p>प्यार में हम भी हद से गुज़र जायेंगे|</p>
<p> </p>
<p>संग दिल हैं वे लेकिन मैं हूँ मुतमइन,</p>
<p>सुनके रुदाद मेरी पिघल जायेंगे|</p>
<p> </p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित </p>दर्द लिखता था मैं अपना और तराना बन गयाtag:openbooksonline.com,2016-11-14:5170231:BlogPost:8140212016-11-14T16:30:00.000ZDR. BAIJNATH SHARMA'MINTU'http://openbooksonline.com/profile/BAIJNATHSHARMAMINTU
<p>2122 2122 2122 212</p>
<p></p>
<p> </p>
<p>दर्द लिखता था मैं अपना और तराना बन गया|</p>
<p>इस तरह लिखने का देखो इक बहाना बन गया|</p>
<p></p>
<p>मैं परिंदा था अकेला मस्त रहता था यहाँ</p>
<p>एक दिन नज़रों का उनकी मैं निशाना बन गया |</p>
<p> </p>
<p>है बड़ा कमजर्फ वो भी देखिये इस दौर में ,</p>
<p>डालकर हमको कफस में ख़ुद सयाना बन गया|</p>
<p> </p>
<p>दासतां मत पूछिये हमसे हमारे प्यार की</p>
<p>काम उनका रूठना अपना मनाना बन गया|</p>
<p> </p>
<p>जिंदगी की राह में मैं भी अकेला था मगर,</p>
<p>हमसफ़र…</p>
<p>2122 2122 2122 212</p>
<p></p>
<p> </p>
<p>दर्द लिखता था मैं अपना और तराना बन गया|</p>
<p>इस तरह लिखने का देखो इक बहाना बन गया|</p>
<p></p>
<p>मैं परिंदा था अकेला मस्त रहता था यहाँ</p>
<p>एक दिन नज़रों का उनकी मैं निशाना बन गया |</p>
<p> </p>
<p>है बड़ा कमजर्फ वो भी देखिये इस दौर में ,</p>
<p>डालकर हमको कफस में ख़ुद सयाना बन गया|</p>
<p> </p>
<p>दासतां मत पूछिये हमसे हमारे प्यार की</p>
<p>काम उनका रूठना अपना मनाना बन गया|</p>
<p> </p>
<p>जिंदगी की राह में मैं भी अकेला था मगर,</p>
<p>हमसफ़र तुम मिल गए तो इक ठिकाना बन गया|</p>
<p></p>
<p> </p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित</p>ग़ज़ल: मुहब्बत सभी से जताते नहीं हैं|tag:openbooksonline.com,2016-10-16:5170231:BlogPost:8085402016-10-16T19:00:00.000ZDR. BAIJNATH SHARMA'MINTU'http://openbooksonline.com/profile/BAIJNATHSHARMAMINTU
<p>122 122 122 122</p>
<p> </p>
<p>मुहब्बत सभी से जताते नहीं हैं|</p>
<p>मगर दोस्तों से छुपाते नहीं हैं|</p>
<p> </p>
<p>हमें तो पता है सबब आशिकी का,</p>
<p>तभी दिल किसी से लगाते नहीं हैं ।</p>
<p> </p>
<p> बहुत चोट खाई है अपनों से अब तक</p>
<p>तभी जख्म सबको दिखाते नहीं हैं|।</p>
<p> </p>
<p>अमिट कुछ निशां पीठ पर दे गए वो,</p>
<p>नये दोस्त हम अब बनाते नहीं हैं|</p>
<p> </p>
<p>कि दौरे मुसीबत में थामा जिन्होंने </p>
<p>तो हर्गिज उन्हें हम भुलाते नहीं हैं।</p>
<p> </p>
<p>अगर हो न मुमकिन जो…</p>
<p>122 122 122 122</p>
<p> </p>
<p>मुहब्बत सभी से जताते नहीं हैं|</p>
<p>मगर दोस्तों से छुपाते नहीं हैं|</p>
<p> </p>
<p>हमें तो पता है सबब आशिकी का,</p>
<p>तभी दिल किसी से लगाते नहीं हैं ।</p>
<p> </p>
<p> बहुत चोट खाई है अपनों से अब तक</p>
<p>तभी जख्म सबको दिखाते नहीं हैं|।</p>
<p> </p>
<p>अमिट कुछ निशां पीठ पर दे गए वो,</p>
<p>नये दोस्त हम अब बनाते नहीं हैं|</p>
<p> </p>
<p>कि दौरे मुसीबत में थामा जिन्होंने </p>
<p>तो हर्गिज उन्हें हम भुलाते नहीं हैं।</p>
<p> </p>
<p>अगर हो न मुमकिन जो पाना तो ‘मिंटू’</p>
<p>वे सपने कभी हम सजाते नहीं हैं|</p>
<p>.</p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित </p>आईना बन के कभी सामने आया न करो - बैजनाथ शर्मा 'मिंटू'tag:openbooksonline.com,2016-05-30:5170231:BlogPost:7715102016-05-30T17:00:00.000ZDR. BAIJNATH SHARMA'MINTU'http://openbooksonline.com/profile/BAIJNATHSHARMAMINTU
<p>212 2112 2112 222</p>
<p></p>
<p>प्यार में तुम मेरे ऐवों को दिखाया न करो|</p>
<p>आईना बन के कभी सामने आया न करो|</p>
<p> </p>
<p>फ़ितनागर लोग ज़माने में बहुत देखें हैं,</p>
<p>हर किसी को कभी अब दोस्त बनाया न करो|</p>
<p> </p>
<p>जाग उठाते हैं मेरे मन में सवालात कई,</p>
<p>हर किसी दर पे कभी सर को झुकाया न करो|</p>
<p></p>
<p> जिनकी ताबीर न मुमकिन हो कभी जीवन में,</p>
<p>ऐसे सपने कभी आँखों में सजाया न करो|</p>
<p> </p>
<p>एक दिन देखना छिड़केंगे नमक ज़ख्मों पर,</p>
<p>ज़ख्म अपने कभी अपनों को दिखाया…</p>
<p>212 2112 2112 222</p>
<p></p>
<p>प्यार में तुम मेरे ऐवों को दिखाया न करो|</p>
<p>आईना बन के कभी सामने आया न करो|</p>
<p> </p>
<p>फ़ितनागर लोग ज़माने में बहुत देखें हैं,</p>
<p>हर किसी को कभी अब दोस्त बनाया न करो|</p>
<p> </p>
<p>जाग उठाते हैं मेरे मन में सवालात कई,</p>
<p>हर किसी दर पे कभी सर को झुकाया न करो|</p>
<p></p>
<p> जिनकी ताबीर न मुमकिन हो कभी जीवन में,</p>
<p>ऐसे सपने कभी आँखों में सजाया न करो|</p>
<p> </p>
<p>एक दिन देखना छिड़केंगे नमक ज़ख्मों पर,</p>
<p>ज़ख्म अपने कभी अपनों को दिखाया न करो|</p>
<p> </p>
<p>जान दे देंगे कभी ‘मिंटू’ तेरी यादों में,</p>
<p>ख़्वाब झूठे मुझे भूले से दिखाया न करो|</p>
<p></p>
<p> </p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित</p>
<p>बैजनाथ शर्मा ‘मिंटू’</p>हमारी दिल्ली में- बैजनाथ शर्मा 'मिंटू'tag:openbooksonline.com,2016-05-24:5170231:BlogPost:7676752016-05-24T12:30:00.000ZDR. BAIJNATH SHARMA'MINTU'http://openbooksonline.com/profile/BAIJNATHSHARMAMINTU
<p>अरकान - 2 2 2 2 2 2 2 2 2 2 2</p>
<p> </p>
<p>पैसों का व्यापार हमारी दिल्ली में| </p>
<p>गुंडों की सरकार हमारी दिल्ली में|</p>
<p> </p>
<p>साँप–सपोले जब से संसद जा पहुंचे ,</p>
<p>ज़हरों का व्यापार हमारी दिल्ली में|</p>
<p> </p>
<p>लूट रहे है अस्मत मिलकर सब देखो,</p>
<p>हैं भारत माँ लाचार हमारी दिल्ली में|</p>
<p> </p>
<p>जाति-धरम के नाम पे मिलती नौकरियाँ</p>
<p>हम जैसे बेकार हमारी दिल्ली में |</p>
<p> </p>
<p>लालकिला, जंतर-मंतर सब रोते हैं,</p>
<p>अब गुल ना गुलज़ार हमारी दिल्ली…</p>
<p>अरकान - 2 2 2 2 2 2 2 2 2 2 2</p>
<p> </p>
<p>पैसों का व्यापार हमारी दिल्ली में| </p>
<p>गुंडों की सरकार हमारी दिल्ली में|</p>
<p> </p>
<p>साँप–सपोले जब से संसद जा पहुंचे ,</p>
<p>ज़हरों का व्यापार हमारी दिल्ली में|</p>
<p> </p>
<p>लूट रहे है अस्मत मिलकर सब देखो,</p>
<p>हैं भारत माँ लाचार हमारी दिल्ली में|</p>
<p> </p>
<p>जाति-धरम के नाम पे मिलती नौकरियाँ</p>
<p>हम जैसे बेकार हमारी दिल्ली में |</p>
<p> </p>
<p>लालकिला, जंतर-मंतर सब रोते हैं,</p>
<p>अब गुल ना गुलज़ार हमारी दिल्ली में|</p>
<p> </p>
<p>गुंडागर्दी सड़क से लेकर संसद तक,</p>
<p>गुंडों का भण्डार हमारी दिल्ली में |</p>
<p> </p>
<p>खूँ से लथपथ दिखते हैं अखबार सभी,</p>
<p>कितना अत्याचार हमारी दिल्ली में |</p>
<p> </p>
<p> </p>
<p>हैं चोर-चोर मौसेरे भाई सब नेता,</p>
<p>एक से एक मक्कार हमारी दिल्ली में| </p>
<p> </p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित </p>
<p>बैजनाथ शर्मा 'मिंटू' </p>कोई सीखे आपसे - बैजनाथ शर्मा 'मिंटू'tag:openbooksonline.com,2016-05-07:5170231:BlogPost:7631992016-05-07T10:30:00.000ZDR. BAIJNATH SHARMA'MINTU'http://openbooksonline.com/profile/BAIJNATHSHARMAMINTU
<p>अरकान - 2122 2122 2122 212</p>
<p> </p>
<p>दिल लगाकर दिल चुराना कोई सीखे आपसे|</p>
<p>तौर ये सदियों पुराना कोई सीखे आपसे| </p>
<p> </p>
<p>कल सुबह नज़रें मिली औ शाम को ही गुफ्तगू,</p>
<p>रात को सपनों में आना कोई सीखे आपसे|</p>
<p> </p>
<p>आपकी मख्मूर आँखें गोया मय के जाम हैं,</p>
<p>ये अदाएँ कातिलाना कोई सीखे आपसे|</p>
<p> </p>
<p>सैंकड़ो उल्फ़त में अबतक बन गए हैं आशना,</p>
<p>इश्क में पागल बनाना कोई सीखे आपसे|</p>
<p> </p>
<p>पीठ पीछे प्यार का इकरार करते हैं मगर,</p>
<p>सामने…</p>
<p>अरकान - 2122 2122 2122 212</p>
<p> </p>
<p>दिल लगाकर दिल चुराना कोई सीखे आपसे|</p>
<p>तौर ये सदियों पुराना कोई सीखे आपसे| </p>
<p> </p>
<p>कल सुबह नज़रें मिली औ शाम को ही गुफ्तगू,</p>
<p>रात को सपनों में आना कोई सीखे आपसे|</p>
<p> </p>
<p>आपकी मख्मूर आँखें गोया मय के जाम हैं,</p>
<p>ये अदाएँ कातिलाना कोई सीखे आपसे|</p>
<p> </p>
<p>सैंकड़ो उल्फ़त में अबतक बन गए हैं आशना,</p>
<p>इश्क में पागल बनाना कोई सीखे आपसे|</p>
<p> </p>
<p>पीठ पीछे प्यार का इकरार करते हैं मगर,</p>
<p>सामने नज़रें चुराना कोई सीखे आपसे|</p>
<p> </p>
<p>दिल में कोई गम है लेकिन होठ पर मुस्कान है,</p>
<p>राजेदिल को यूं छुपाना कोई सीखे आपसे|</p>
<p></p>
<p> </p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित</p>
<p>बैजनाथ शर्मा ‘मिंटू’</p>पैसा:बैजनाथ शर्मा ‘मिंटू’tag:openbooksonline.com,2016-05-06:5170231:BlogPost:7633852016-05-06T17:00:00.000ZDR. BAIJNATH SHARMA'MINTU'http://openbooksonline.com/profile/BAIJNATHSHARMAMINTU
<p>अरकान – 1222 1222 1222 1222</p>
<p></p>
<p> </p>
<p>कभी चाहत कभी हसरत कभी श्रृंगार है पैसा </p>
<p>कभी है फूल तो देखो कभी तलवार है पैसा |</p>
<p></p>
<p> </p>
<p>जुदा माँ-बाप से कर दे लड़ाए भाई-भाई को,</p>
<p>बहाए खून का दरिया तो फिर बेकार है पैसा|</p>
<p></p>
<p> </p>
<p>खुदा का शुक्र है घर में बरसती है सदा खुशियाँ, </p>
<p>कि रहते साथ सब मिलकर मेरा परिवार है पैसा|</p>
<p> </p>
<p></p>
<p>इसे पाने की खातिर ही जहां में खोया है सब कुछ</p>
<p>मेरे आपस के सम्बन्धों में ये दीवार है पैसा…</p>
<p>अरकान – 1222 1222 1222 1222</p>
<p></p>
<p> </p>
<p>कभी चाहत कभी हसरत कभी श्रृंगार है पैसा </p>
<p>कभी है फूल तो देखो कभी तलवार है पैसा |</p>
<p></p>
<p> </p>
<p>जुदा माँ-बाप से कर दे लड़ाए भाई-भाई को,</p>
<p>बहाए खून का दरिया तो फिर बेकार है पैसा|</p>
<p></p>
<p> </p>
<p>खुदा का शुक्र है घर में बरसती है सदा खुशियाँ, </p>
<p>कि रहते साथ सब मिलकर मेरा परिवार है पैसा|</p>
<p> </p>
<p></p>
<p>इसे पाने की खातिर ही जहां में खोया है सब कुछ</p>
<p>मेरे आपस के सम्बन्धों में ये दीवार है पैसा |</p>
<p> </p>
<p></p>
<p>कलम करता है अपनों का ये रिश्ते ताक पर रखकर,</p>
<p>इसाई-हिन्दू-मुस्लिम तो कभी सरदार है पैसा |</p>
<p> </p>
<p></p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित </p>दवा लाते नहीं कोई दिले बीमार की ख़ातिर- बैजनाथ शर्मा 'मिंटू'tag:openbooksonline.com,2016-04-07:5170231:BlogPost:7564152016-04-07T12:00:00.000ZDR. BAIJNATH SHARMA'MINTU'http://openbooksonline.com/profile/BAIJNATHSHARMAMINTU
<p>अरकान – 1222 1222 1222 1222</p>
<p> </p>
<p>सभी आते हैं घर मेरे महज़ दीदार की खातिर|</p>
<p>दवा लाते नहीं कोई दिले बीमार की ख़ातिर|</p>
<p> </p>
<p>सुना है दान वीरों में भी उनका नाम आता है,</p>
<p>मगर वो दान करते है तो बस जयकार की ख़ातिर|</p>
<p> </p>
<p>वो मंदिर और मस्जिद में लुटाते लाख पर अफ़सोस,</p>
<p>नही लेकिन दिया कुछ भी कभी लाचार की ख़ातिर|</p>
<p> </p>
<p>बनाता मैं भी इक बंगला जो रिश्ते ताक पर रखता,</p>
<p>मगर रहता हूँ कुटिया में तो बस परिवार की ख़ातिर|</p>
<p> </p>
<p>बता तू सरफिरा है…</p>
<p>अरकान – 1222 1222 1222 1222</p>
<p> </p>
<p>सभी आते हैं घर मेरे महज़ दीदार की खातिर|</p>
<p>दवा लाते नहीं कोई दिले बीमार की ख़ातिर|</p>
<p> </p>
<p>सुना है दान वीरों में भी उनका नाम आता है,</p>
<p>मगर वो दान करते है तो बस जयकार की ख़ातिर|</p>
<p> </p>
<p>वो मंदिर और मस्जिद में लुटाते लाख पर अफ़सोस,</p>
<p>नही लेकिन दिया कुछ भी कभी लाचार की ख़ातिर|</p>
<p> </p>
<p>बनाता मैं भी इक बंगला जो रिश्ते ताक पर रखता,</p>
<p>मगर रहता हूँ कुटिया में तो बस परिवार की ख़ातिर|</p>
<p> </p>
<p>बता तू सरफिरा है या कोई मजनूं बना बैठा,</p>
<p>कड़कती धूप में जलता है बस दीदार की ख़ातिर|</p>
<p> </p>
<p>चली आती वो दौड़े ख़ुद जो तुमसे प्यार करती तो,</p>
<p>गँवाता जान क्यूँ ‘मिंटू’ तू ऐसे यार की ख़ातिर|</p>
<p> </p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित</p>
<p> </p>
<p> </p>कभी इनकार लिख देना कभी इकरार लिख देना- बैजनाथ शर्मा 'मिंटू'tag:openbooksonline.com,2016-01-03:5170231:BlogPost:7291832016-01-03T15:00:00.000ZDR. BAIJNATH SHARMA'MINTU'http://openbooksonline.com/profile/BAIJNATHSHARMAMINTU
<p>1222 1222 1222 1222</p>
<p></p>
<p></p>
<p>कभी इनकार लिख देना कभी इकरार लिख देना|</p>
<p>अगर मुझसे मुहब्बत है तो बस तुम प्यार लिख देना|</p>
<p></p>
<p> कि दिल की बात को दिल में दबाना छोड़कर दिल से,</p>
<p> वफ़ा-उल्फत-मुहब्बत पर भी कुछ अशआर लिख देना। </p>
<p></p>
<p>हमारे राजनेता पर भी थोड़ी बात हो जाए,</p>
<p>डुबाते हैं ये कश्ती को इन्हें बेकार लिख देना| </p>
<p></p>
<p>मेरा महबूब गर तुमसे मेरा जो हाल पूछे तो, </p>
<p>बड़ी संजीदगी से तुम दिले बीमार लिख देना| </p>
<p></p>
<p>तिरंगे में…</p>
<p>1222 1222 1222 1222</p>
<p></p>
<p></p>
<p>कभी इनकार लिख देना कभी इकरार लिख देना|</p>
<p>अगर मुझसे मुहब्बत है तो बस तुम प्यार लिख देना|</p>
<p></p>
<p> कि दिल की बात को दिल में दबाना छोड़कर दिल से,</p>
<p> वफ़ा-उल्फत-मुहब्बत पर भी कुछ अशआर लिख देना। </p>
<p></p>
<p>हमारे राजनेता पर भी थोड़ी बात हो जाए,</p>
<p>डुबाते हैं ये कश्ती को इन्हें बेकार लिख देना| </p>
<p></p>
<p>मेरा महबूब गर तुमसे मेरा जो हाल पूछे तो, </p>
<p>बड़ी संजीदगी से तुम दिले बीमार लिख देना| </p>
<p></p>
<p>तिरंगे में लिपटकर जब मेरा ताबूत घर आये,</p>
<p>हमारे जन्मदाता के लिए जयकार लिख देना| </p>
<p></p>
<p>ज़रूरत शीश की गर हो कभी माँ भारती तुमको,</p>
<p>बिना पूछे ही मेरा नाम तू हरबार लिख देना| </p>
<p></p>
<p>कभी भी यार गर करना पड़ोसी मुल्क की चर्चा,</p>
<p>समझ जायेंगे नौनिहाल बस गद्दार लिख देना| </p>
<p></p>
<p>कलम का मैं सिपाही हूँ नहीं तलवार रखता पर,</p>
<p>कहीं जब जिक्र गर करना तो पहरेदार लिख देना। </p>
<p></p>
<p>मुहब्बत है रहेगी भी वतन से ए वतन वालों,</p>
<p>दिवाना है मेरा दिल नाम तुम दिलदार लिख देना| </p>
<p></p>
<p>कसम खायी है ‘मिंटू’ ने मरेगा देश की खातिर,</p>
<p>वतन पर मरने-मिटने का मेरा अधिकार लिख देना| </p>
<p></p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित </p>लबों पर रख हँसी हरदम अगर को भुलाना है- बैजनाथ शर्मा 'मिंटू'tag:openbooksonline.com,2015-12-23:5170231:BlogPost:7257222015-12-23T12:59:59.000ZDR. BAIJNATH SHARMA'MINTU'http://openbooksonline.com/profile/BAIJNATHSHARMAMINTU
<p>बैजनाथ शर्मा ‘मिंटू’</p>
<p> </p>
<p>अरकान – 1222 1222 1222 1222</p>
<p> </p>
<p>लबों पर रख हँसी हरदम अगर को भुलाना है|</p>
<p>दिखा मत दर्दे-दिल अपना बहुत ज़ालिम ज़माना है|</p>
<p> </p>
<p>तेरा गम तेरा अपना है न जग समझा न समझेगा,</p>
<p>तू अपने पास रख इसको कि ये तेरा ख़जाना है|</p>
<p> </p>
<p>नजूमी हाथ की रेखाएं पढ़कर मुझसे यूँ बोला,</p>
<p>पुजारी है तू किस्मत का कि दिल तेरा दिवाना है|</p>
<p> </p>
<p>कभी मायूस मत होना भले कुटिया में रहना हो,</p>
<p>बचाती धूप से तुझको वो तेरा आशियाना…</p>
<p>बैजनाथ शर्मा ‘मिंटू’</p>
<p> </p>
<p>अरकान – 1222 1222 1222 1222</p>
<p> </p>
<p>लबों पर रख हँसी हरदम अगर को भुलाना है|</p>
<p>दिखा मत दर्दे-दिल अपना बहुत ज़ालिम ज़माना है|</p>
<p> </p>
<p>तेरा गम तेरा अपना है न जग समझा न समझेगा,</p>
<p>तू अपने पास रख इसको कि ये तेरा ख़जाना है|</p>
<p> </p>
<p>नजूमी हाथ की रेखाएं पढ़कर मुझसे यूँ बोला,</p>
<p>पुजारी है तू किस्मत का कि दिल तेरा दिवाना है|</p>
<p> </p>
<p>कभी मायूस मत होना भले कुटिया में रहना हो,</p>
<p>बचाती धूप से तुझको वो तेरा आशियाना है|</p>
<p> </p>
<p>हमेशा दोस्ती का दम भरा करता है उसको भी,</p>
<p>मुसीबत और गर्दिश में कभी तो आजमाना है|</p>
<p> </p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित </p>गमख्वार समझा था मक्कार निकला- बैजनाथ शर्मा 'मिंटू'tag:openbooksonline.com,2015-12-17:5170231:BlogPost:7240982015-12-17T18:11:11.000ZDR. BAIJNATH SHARMA'MINTU'http://openbooksonline.com/profile/BAIJNATHSHARMAMINTU
<p align="center" style="text-align: left;">बैजनाथ शर्मा 'मिंट'</p>
<p align="center" style="text-align: left;"></p>
<p align="center" style="text-align: left;">अरकान - 122 122 122 122</p>
<p align="center" style="text-align: left;"></p>
<p align="center" style="text-align: left;">गमख्वार समझा था मक्कार निकला|</p>
<p align="center" style="text-align: left;">जो दिखता था सज्जन गुनहगार निकला|</p>
<p align="center" style="text-align: left;"> </p>
<p align="center" style="text-align: left;">जिसे…</p>
<p align="center" style="text-align: left;">बैजनाथ शर्मा 'मिंट'</p>
<p align="center" style="text-align: left;"></p>
<p align="center" style="text-align: left;">अरकान - 122 122 122 122</p>
<p align="center" style="text-align: left;"></p>
<p align="center" style="text-align: left;">गमख्वार समझा था मक्कार निकला|</p>
<p align="center" style="text-align: left;">जो दिखता था सज्जन गुनहगार निकला|</p>
<p align="center" style="text-align: left;"> </p>
<p align="center" style="text-align: left;">जिसे नासमझ हम समझते थे यारों ,</p>
<p align="center" style="text-align: left;">वो मुझसे भी ज्यादा समझदार निकला|</p>
<p align="center" style="text-align: left;"> </p>
<p align="center" style="text-align: left;">खुशामद की जिसको है हासिल अदाएँ,</p>
<p align="center" style="text-align: left;">वही जग में यारों अदाकार निकला|</p>
<p align="center" style="text-align: left;"> </p>
<p align="center" style="text-align: left;">हँसी दे के जो ले ज़माने के आँसू,</p>
<p align="center" style="text-align: left;">वही यार सच्चा खरीदार निकला|</p>
<p align="center" style="text-align: left;"> </p>
<p align="center" style="text-align: left;">न जीते-जी पूछे गए जिसके नगमें,</p>
<p align="center" style="text-align: left;">वही बाद मरने के फनकार निकला|</p>
<p align="center" style="text-align: left;"></p>
<p align="center" style="text-align: left;">मौलिक व अप्रकाशित </p>
<p align="center" style="text-align: left;"> </p>
<p align="center" style="text-align: left;"> </p>ज़िन्दगी - बैजनाथ शर्मा 'मिंटू'tag:openbooksonline.com,2015-12-09:5170231:BlogPost:7224552015-12-09T17:03:03.000ZDR. BAIJNATH SHARMA'MINTU'http://openbooksonline.com/profile/BAIJNATHSHARMAMINTU
<p>बैजनाथ शर्मा ‘मिंटू’</p>
<p></p>
<p>अरकान - 212 212 212 212</p>
<p></p>
<p>हो के मुझसे तू ऐसे खफ़ा ज़िन्दगी |</p>
<p>जा बसी है कहाँ तू बता ज़िन्दगी|</p>
<p> </p>
<p>जग को ठुकरा दिया मैंने तेरे लिए,</p>
<p>कर न पायी तू मुझसे वफ़ा ज़िन्दगी|</p>
<p> </p>
<p>तेरी सूरत ही थी मेरा दर्पण सदा,</p>
<p>तू मिले फिर सजूँ इक दफा ज़िन्दगी|</p>
<p> </p>
<p>तू हंसाती भी है और रुलाती भी है,</p>
<p>तू दिखाती है क्या क्या अदा ज़िन्दगी|</p>
<p> </p>
<p>पहले इतना बता क्या है मेरी ख़ता,</p>
<p>फिर जो चाहे तू देना सज़ा…</p>
<p>बैजनाथ शर्मा ‘मिंटू’</p>
<p></p>
<p>अरकान - 212 212 212 212</p>
<p></p>
<p>हो के मुझसे तू ऐसे खफ़ा ज़िन्दगी |</p>
<p>जा बसी है कहाँ तू बता ज़िन्दगी|</p>
<p> </p>
<p>जग को ठुकरा दिया मैंने तेरे लिए,</p>
<p>कर न पायी तू मुझसे वफ़ा ज़िन्दगी|</p>
<p> </p>
<p>तेरी सूरत ही थी मेरा दर्पण सदा,</p>
<p>तू मिले फिर सजूँ इक दफा ज़िन्दगी|</p>
<p> </p>
<p>तू हंसाती भी है और रुलाती भी है,</p>
<p>तू दिखाती है क्या क्या अदा ज़िन्दगी|</p>
<p> </p>
<p>पहले इतना बता क्या है मेरी ख़ता,</p>
<p>फिर जो चाहे तू देना सज़ा ज़िन्दगी|</p>
<p> </p>
<p>मिस्ले महबूबा तुझको सजाऊंगा मै,</p>
<p>मुझसे होना कभी मत जुदा ज़िन्दगी|</p>
<p> </p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित </p>मुझे सच को कभी भी झूठ बतलाना नहीं आता - बैजनाथ शर्मा 'मिंटू'tag:openbooksonline.com,2015-12-02:5170231:BlogPost:7212392015-12-02T18:00:00.000ZDR. BAIJNATH SHARMA'MINTU'http://openbooksonline.com/profile/BAIJNATHSHARMAMINTU
<p align="center" style="text-align: left;">अरकान -1222 1222 1222 1222</p>
<p align="center" style="text-align: left;"></p>
<p align="center" style="text-align: left;"></p>
<p align="center" style="text-align: left;">मुझे सच को कभी भी झूठ बतलाना नहीं आता|</p>
<p align="center" style="text-align: left;">तभी तो मेरे घर भी यार नज़राना नही आता|</p>
<p align="center" style="text-align: left;"> </p>
<p align="center" style="text-align: left;">अगर तुम प्यार से कह दो लुटा दूँ जान भी अपनी,…</p>
<p align="center" style="text-align: left;">अरकान -1222 1222 1222 1222</p>
<p align="center" style="text-align: left;"></p>
<p align="center" style="text-align: left;"></p>
<p align="center" style="text-align: left;">मुझे सच को कभी भी झूठ बतलाना नहीं आता|</p>
<p align="center" style="text-align: left;">तभी तो मेरे घर भी यार नज़राना नही आता|</p>
<p align="center" style="text-align: left;"> </p>
<p align="center" style="text-align: left;">अगर तुम प्यार से कह दो लुटा दूँ जान भी अपनी,</p>
<p align="center" style="text-align: left;">मगर परछाईयों से मुझको टकराना नहीं आता|</p>
<p align="center" style="text-align: left;"> </p>
<p align="center" style="text-align: left;">तड़पकर भूख से मरना मुझे हर पल गवारा है,</p>
<p align="center" style="text-align: left;">मगर आगे किसी के हाथ फैलाना नहीं अता|</p>
<p align="center" style="text-align: left;"> </p>
<p align="center" style="text-align: left;">तू कर दे सर कलम मेरा मगर है बेबसी मेरी,</p>
<p align="center" style="text-align: left;">मुझे दिन को कभी भी रात बतलाना नहीं आता|</p>
<p align="center" style="text-align: left;"> </p>
<p align="center" style="text-align: left;">अगर है शौक पीने का तो ख़ुद जाना तू मयखाने,</p>
<p align="center" style="text-align: left;">किसी के घर तलक चलकर ये मयखाना नही आता|</p>
<p align="center" style="text-align: left;"> </p>
<p align="center" style="text-align: left;">मौलिक व अप्रकाशित </p>धीरे-धीरे.........(बैजनाथ शर्मा ‘मिंटू’)tag:openbooksonline.com,2015-11-26:5170231:BlogPost:7176612015-11-26T14:30:00.000ZDR. BAIJNATH SHARMA'MINTU'http://openbooksonline.com/profile/BAIJNATHSHARMAMINTU
<p>अरकान - 122 122 122 122</p>
<p> </p>
<p>किया जिसने दिल में ही घर धीरे-धीरे|</p>
<p>उसी ने रुलाया मगर धीरे –धीरे|</p>
<p> </p>
<p>उमर मेरी गुजरी है यादों में जिनकी ,</p>
<p>हुई आज उनको खबर धीरे –धीरे |</p>
<p> </p>
<p>जहाँ तक पहुचने की ख्वाहिश है मेरी,</p>
<p>यकीनन मैं पहुंचूंगा पर धीरे –धीरे|</p>
<p> </p>
<p>बचपन में सरका जवानी में दौड़ा,</p>
<p>बुढापा गया अब ठहर धीरे-धीरे|</p>
<p> </p>
<p>न शिकवा किसी से न है अब शिकायत,</p>
<p>भरा घाव मेरा मगर धीरे –धीरे|</p>
<p> </p>
<p>मौलिक व…</p>
<p>अरकान - 122 122 122 122</p>
<p> </p>
<p>किया जिसने दिल में ही घर धीरे-धीरे|</p>
<p>उसी ने रुलाया मगर धीरे –धीरे|</p>
<p> </p>
<p>उमर मेरी गुजरी है यादों में जिनकी ,</p>
<p>हुई आज उनको खबर धीरे –धीरे |</p>
<p> </p>
<p>जहाँ तक पहुचने की ख्वाहिश है मेरी,</p>
<p>यकीनन मैं पहुंचूंगा पर धीरे –धीरे|</p>
<p> </p>
<p>बचपन में सरका जवानी में दौड़ा,</p>
<p>बुढापा गया अब ठहर धीरे-धीरे|</p>
<p> </p>
<p>न शिकवा किसी से न है अब शिकायत,</p>
<p>भरा घाव मेरा मगर धीरे –धीरे|</p>
<p> </p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित </p>दिन सुनहरा हो गया- बैजनाथ शर्मा 'मिंटू'tag:openbooksonline.com,2015-11-20:5170231:BlogPost:7165972015-11-20T16:30:00.000ZDR. BAIJNATH SHARMA'MINTU'http://openbooksonline.com/profile/BAIJNATHSHARMAMINTU
<p>अरकान - 2122 2122 2122 212</p>
<p> </p>
<p>आप आये और मेरा दिन सुनहरा हो गया|</p>
<p>आपको देखा तो मेरा फूल चेहरा हो गया|</p>
<p> </p>
<p>कुछ समय पहले तलक तो थी हरी यें वादियाँ ,</p>
<p>आपके जाते ही तो हर सिम्त सहरा हो गया|</p>
<p></p>
<p>क़त्ल का ए सिलसिला क्यों और आगे बढ़ गया,</p>
<p>जब से मेरे गाँव में कुछ सख्त पहरा हो गया |</p>
<p> </p>
<p>लाख चीखो और चिल्लाओ सुनेगा कौन अब,</p>
<p>हाय पत्थर दिल ज़माना आज बहरा हो गया|</p>
<p> </p>
<p>जख्म तो बस जख्म था जो भर भी सकता था मगर…</p>
<p>अरकान - 2122 2122 2122 212</p>
<p> </p>
<p>आप आये और मेरा दिन सुनहरा हो गया|</p>
<p>आपको देखा तो मेरा फूल चेहरा हो गया|</p>
<p> </p>
<p>कुछ समय पहले तलक तो थी हरी यें वादियाँ ,</p>
<p>आपके जाते ही तो हर सिम्त सहरा हो गया|</p>
<p></p>
<p>क़त्ल का ए सिलसिला क्यों और आगे बढ़ गया,</p>
<p>जब से मेरे गाँव में कुछ सख्त पहरा हो गया |</p>
<p> </p>
<p>लाख चीखो और चिल्लाओ सुनेगा कौन अब,</p>
<p>हाय पत्थर दिल ज़माना आज बहरा हो गया|</p>
<p> </p>
<p>जख्म तो बस जख्म था जो भर भी सकता था मगर ,</p>
<p>बेरुखी से पर तुम्हारी और गहरा हो गया |</p>
<p></p>
<p></p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित </p>गीत - कितना तुझको याद किया.( बैजनाथ शर्मा ‘मिंटू’)tag:openbooksonline.com,2015-11-19:5170231:BlogPost:7161062015-11-19T15:00:00.000ZDR. BAIJNATH SHARMA'MINTU'http://openbooksonline.com/profile/BAIJNATHSHARMAMINTU
<p>श्याम हमारे दिल से पूछो, कितना तुझको याद किया|</p>
<p>भूल गई मैं सारे जग को, फिर भी तेरा नाम लिया|</p>
<p>यादों में तेरी मुरली वाले, जीवन यूँ ही गुजार दिया,</p>
<p>श्याम हमारे दिल से पूछो, कितना तुझको याद किया|</p>
<p> </p>
<p>देख के तेरी भोली सूरत हम भी धोखा खा ही गए,</p>
<p>मोहन तेरी मीठी-मीठी बातों में हम आ ही गए,</p>
<p>हार गए जीवन में सब फिर भी तेरा नाम लिया</p>
<p>श्याम हमारे दिल से पूछो, कितना तुझको याद किया|</p>
<p> </p>
<p>करती हूँ कोशिश मैं मोहन याद हमेशा तुम आओ,</p>
<p>रह नही सकती…</p>
<p>श्याम हमारे दिल से पूछो, कितना तुझको याद किया|</p>
<p>भूल गई मैं सारे जग को, फिर भी तेरा नाम लिया|</p>
<p>यादों में तेरी मुरली वाले, जीवन यूँ ही गुजार दिया,</p>
<p>श्याम हमारे दिल से पूछो, कितना तुझको याद किया|</p>
<p> </p>
<p>देख के तेरी भोली सूरत हम भी धोखा खा ही गए,</p>
<p>मोहन तेरी मीठी-मीठी बातों में हम आ ही गए,</p>
<p>हार गए जीवन में सब फिर भी तेरा नाम लिया</p>
<p>श्याम हमारे दिल से पूछो, कितना तुझको याद किया|</p>
<p> </p>
<p>करती हूँ कोशिश मैं मोहन याद हमेशा तुम आओ,</p>
<p>रह नही सकती दूर मैं तुमसे दिल में मेरे बस जाओ,</p>
<p>छोड़ दिया तू साथ भी मेरा दिल को भी लाचार किया|</p>
<p>श्याम हमारे दिल से पूछो, कितना तुझको याद किया|</p>
<p> </p>
<p> बाहर से कुछ और है मोहन अन्दर से कुछ और है तू,</p>
<p>सीखा है बस दिल को चुराना जाने कैसा चोर है तू,</p>
<p>पछताती हूँ बनवारी अब क्यों मैं तेरा ऐतवार किया,</p>
<p>श्याम हमारे दिल से पूछो, कितना तुझको याद किया|</p>
<p></p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित </p>नया कोई सपना सजाकर तो देखो| -बैजनाथ शर्मा ‘मिंटू’tag:openbooksonline.com,2015-11-18:5170231:BlogPost:7159852015-11-18T13:00:00.000ZDR. BAIJNATH SHARMA'MINTU'http://openbooksonline.com/profile/BAIJNATHSHARMAMINTU
<p>अरकान - 122 122 122 122 </p>
<p></p>
<p>नया कोई सपना सजाकर तो देखो|</p>
<p>परायों को अपना बनाकर तो देखो</p>
<p> </p>
<p>लगेगी ए दुनिया तुम्हें खूबसूरत,</p>
<p>ज़रा दिल से नफ़रत भुलाकर तो देखो|</p>
<p> </p>
<p>सफलता मिलेगी तुम्हें भी यकीनन,</p>
<p>कदम अपने तुम भी बढाकर तो देखो|</p>
<p> </p>
<p>बहू-बेटियाँ क्यों न पर्दा करेगी,</p>
<p>हया उनको तुम भी सिखाकर तो देखो|</p>
<p> </p>
<p>करोगे जहां को भी सूरज –सा रोशन,</p>
<p>तुम अपने को पहले तपाकर तो देखो|</p>
<p> </p>
<p>बनेंगे…</p>
<p>अरकान - 122 122 122 122 </p>
<p></p>
<p>नया कोई सपना सजाकर तो देखो|</p>
<p>परायों को अपना बनाकर तो देखो</p>
<p> </p>
<p>लगेगी ए दुनिया तुम्हें खूबसूरत,</p>
<p>ज़रा दिल से नफ़रत भुलाकर तो देखो|</p>
<p> </p>
<p>सफलता मिलेगी तुम्हें भी यकीनन,</p>
<p>कदम अपने तुम भी बढाकर तो देखो|</p>
<p> </p>
<p>बहू-बेटियाँ क्यों न पर्दा करेगी,</p>
<p>हया उनको तुम भी सिखाकर तो देखो|</p>
<p> </p>
<p>करोगे जहां को भी सूरज –सा रोशन,</p>
<p>तुम अपने को पहले तपाकर तो देखो|</p>
<p> </p>
<p>बनेंगे तुम्हारे सभी दोस्त अपने,</p>
<p>सबक दोस्ती का सिखाकर तो देखो|</p>
<p> </p>
<p>ए राहे मुहब्बत है पुरखार यारो,</p>
<p>यहाँ फूल फिर भी सजाकर तो देखो|</p>
<p></p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित </p>मेरा पैगाम बाक़ी है|- बैजनाथ शर्मा ‘मिंटू’tag:openbooksonline.com,2015-11-16:5170231:BlogPost:7158162015-11-16T18:30:00.000ZDR. BAIJNATH SHARMA'MINTU'http://openbooksonline.com/profile/BAIJNATHSHARMAMINTU
<p>अरकान- 1222 1222 1222 1222</p>
<p> </p>
<p> </p>
<p>सुनो सब गौर से वीरों मेरा पैगाम बाक़ी है|</p>
<p>न हारो हौसला अपना अभी तो लाम बाकी है|</p>
<p> </p>
<p>मैं आकर मैकदे में अब बता कैसे रहूँ प्यासा,</p>
<p>पिला दे जह्र ही साक़ी अभी इक जाम बाक़ी है|</p>
<p> </p>
<p>जमीं से तोड़कर रिश्ता बहुत आगे निकल आया,</p>
<p>मगर हालत कहते हैं अभी अंजाम बाकी है|</p>
<p> </p>
<p>गए पकड़े वो सारे जो बहुत मासूम थे यारो,</p>
<p>सही कातिल का लेकिन इक सियासी नाम बाक़ी…</p>
<p>अरकान- 1222 1222 1222 1222</p>
<p> </p>
<p> </p>
<p>सुनो सब गौर से वीरों मेरा पैगाम बाक़ी है|</p>
<p>न हारो हौसला अपना अभी तो लाम बाकी है|</p>
<p> </p>
<p>मैं आकर मैकदे में अब बता कैसे रहूँ प्यासा,</p>
<p>पिला दे जह्र ही साक़ी अभी इक जाम बाक़ी है|</p>
<p> </p>
<p>जमीं से तोड़कर रिश्ता बहुत आगे निकल आया,</p>
<p>मगर हालत कहते हैं अभी अंजाम बाकी है|</p>
<p> </p>
<p>गए पकड़े वो सारे जो बहुत मासूम थे यारो,</p>
<p>सही कातिल का लेकिन इक सियासी नाम बाक़ी है|</p>
<p> </p>
<p>नही छू पायेगा दामन तुम्हारा कोई भारत माँ,</p>
<p>शहीदों में अभी मेरा कहीं इक नाम बाक़ी है|</p>
<p></p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित </p>बाकी सब कुछ अच्छा है|---बैजनाथ शर्मा 'मिंटू'tag:openbooksonline.com,2015-11-13:5170231:BlogPost:7145902015-11-13T12:30:00.000ZDR. BAIJNATH SHARMA'MINTU'http://openbooksonline.com/profile/BAIJNATHSHARMAMINTU
<p>अरकान - 2 2 2 2 2 2 2 2 2 2 2 2 2 2 2 </p>
<p></p>
<p></p>
<p>तेरे बिन घर वन लगता है बाकी सब कुछ अच्छा है|</p>
<p>तुझ बिन बेटे जी डरता है बाकी सब कुछ अच्छा है|</p>
<p> </p>
<p>माँ तेरी बीमार पड़ी है गुमसुम बहना भी रहती,</p>
<p>भैया का भी हाल बुरा है बाकी सब कुछ अच्छा है| </p>
<p> </p>
<p>दादी तेरी बुढिया हैं पर चूल्हा-चौका हैं करती, </p>
<p>कोई न उनका दुख हरता है बाकी सब कुछ अच्छा है|</p>
<p> </p>
<p>दादा जी पूछा करते…</p>
<p>अरकान - 2 2 2 2 2 2 2 2 2 2 2 2 2 2 2 </p>
<p></p>
<p></p>
<p>तेरे बिन घर वन लगता है बाकी सब कुछ अच्छा है|</p>
<p>तुझ बिन बेटे जी डरता है बाकी सब कुछ अच्छा है|</p>
<p> </p>
<p>माँ तेरी बीमार पड़ी है गुमसुम बहना भी रहती,</p>
<p>भैया का भी हाल बुरा है बाकी सब कुछ अच्छा है| </p>
<p> </p>
<p>दादी तेरी बुढिया हैं पर चूल्हा-चौका हैं करती, </p>
<p>कोई न उनका दुख हरता है बाकी सब कुछ अच्छा है|</p>
<p> </p>
<p>दादा जी पूछा करते हैं अक्सर तेरे बारे में,</p>
<p>आँख से उनको कम दिखता है बाकी सब कुछ अच्छा है|</p>
<p> </p>
<p>अन्न न उपजा खेतों में और मालगुजारी है बाक़ी,</p>
<p>गैया घर में भूखी बैठी बाकी सब कुछ अच्छा है|</p>
<p> </p>
<p>तू बैठा परदेस यहाँ पर बहना शादी जोग हुई</p>
<p>सोच के मेरा जी डरता है बाकी सब कुछ अच्छा है|</p>
<p> </p>
<p>समय मिले तो आना बेटा मुनिया को भी साथ लिए,</p>
<p>मिलने को बस जी करता है बाकी सब कुछ अच्छा है|</p>
<p> </p>
<p>मत करना तू चिंता घर की खुश रहना तू लाल वहाँ,</p>
<p>और मैं ज्यादा क्या कह सकता बाकी सब कुछ अच्छा है|</p>
<p></p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित </p>न जाने क्यों भला फिर आज उनकी याद आयी है|tag:openbooksonline.com,2015-11-09:5170231:BlogPost:7137862015-11-09T14:30:00.000ZDR. BAIJNATH SHARMA'MINTU'http://openbooksonline.com/profile/BAIJNATHSHARMAMINTU
<p>अरकान- 1222 1222 1222 1222 </p>
<p></p>
<p>न जाने क्यों भला फिर आज उनकी याद आयी है|<br></br> न मिलने की कसम जिनसे हमेशा मैंने खाई है|</p>
<p></p>
<p>मुरव्वत से हैं बेगाने हया तक बेच खाई है,<br></br> छूटे गर पिंड ऐसों से इसी में ही भलाई है|</p>
<p></p>
<p>तुम्हारी याद हावी है मेरे दिल पर उसी दिन से,<br></br> हुई खुशियाँ मेरी रुखसत दुखों से ही सगाई है|</p>
<p></p>
<p>समझकर देवता पत्थर को घर में ला बिठाया है,<br></br> इमारत दिल की यूँ अफसोस क्यों मैंने सजाई है|</p>
<p></p>
<p>जो मारा पीठ पर…</p>
<p>अरकान- 1222 1222 1222 1222 </p>
<p></p>
<p>न जाने क्यों भला फिर आज उनकी याद आयी है|<br/> न मिलने की कसम जिनसे हमेशा मैंने खाई है|</p>
<p></p>
<p>मुरव्वत से हैं बेगाने हया तक बेच खाई है,<br/> छूटे गर पिंड ऐसों से इसी में ही भलाई है|</p>
<p></p>
<p>तुम्हारी याद हावी है मेरे दिल पर उसी दिन से,<br/> हुई खुशियाँ मेरी रुखसत दुखों से ही सगाई है|</p>
<p></p>
<p>समझकर देवता पत्थर को घर में ला बिठाया है,<br/> इमारत दिल की यूँ अफसोस क्यों मैंने सजाई है|</p>
<p></p>
<p>जो मारा पीठ पर खंज़र समझ में आ गया फ़ौरन,<br/> मेरे अपनों ने मुझसे यूँ शनासाई निभाई है|</p>
<p></p>
<p>हज़ारों पाप करके भी नहाते हैं जो गंगा में,<br/> खुदा जाने ज़माने की ए कैसी पारसाई है|</p>
<p></p>
<p>लगा के दिल को पत्थर से मैं पहुंचा मोड़ पर ऐसे,<br/> कि आगे है कुआँ मेरे औ पीछे मेरे खाई है|</p>
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<p>इबज में प्यार के मुझसे वो मेरी जान मांगे है,<br/> बचा ले ए खुदा मुझको दुहाई है दुहाई है|</p>
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<p>मौलिक व् अप्रकाशित </p>